गुजराती मानसून की ‘चिंथड़े हाल’ बारिश
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मुअनजोदड़ो पढ़ते दिलावरसिंह..! |
गजब की बारिश हुई है। गुजराती में एक प्रसिद्ध कहानीकार थे, उनके अंदाज में कहूँ तो किसी ने ठाकुरसाहब से पूछ लिया कि बारिश कैसी हुई? प्रत्युत्तर में ठाकुरसाहब ने कहा, "तोड़-फोड़ बारिश है.." फिर एक किसान से वही प्रश्न पूछा गया, तो उत्तर मिला, "चिंथड़े हाल वर्षा हुई.." फिर किसी दर्जी से पूछा गया, तो उसने बताया, "बेनाप बरसा है.." किसी बनिये ने बताया, "भंडार भर दिए.." हर किसी ने अपनी शैली में एक ही वर्षा को अलग अलग संज्ञा दी..! जैसा जिसका काम वैसा उसकी बात का अंदाज़। आज तो सुबह उठा ही आठ बजे हूँ, वो भी हुकुम के आशीर्वचनों से, "उठ जा आलसी, पड़ा रहता है सूरज निकलने तक.." उन्हें सुबह सुबह बड़ा जरूरी काम था मेरा, इन्वर्टर की बैटरी में पानी भरना था।
मेहमान और मिडल ईस्ट की राजनीति
पानी, पानी हो रहा है..! ऑफिस पहुंचा तब साढ़े दस बज चुके थे। दो बजे तक काम निपटाकर हल्का-फुल्का भीगते हुए घर लौटा। दबाके बारिश हुई थी, कुछ कुछ सूख चुके गढ्ढो को पुनर्जीवित करने ही आयी होगी। दोपहर बाद भी रिमझीम चालू ही रहा था। कल मेहमान आए थे, और बारिश भी बेपनाह मुहब्बत की थोड़ी थोड़ी देर में छांट करती रही..! बाहर जाने का तो सवाल न था। घर पर पड़े पड़े आदमी ईरान-इज़राइल के बीच होते युद्ध में अपनी नाक घुसाते है। मैं और मेहमान लगे पड़े थे, इजराइल को यह करना चाहिए था, और ईरान को यह नहीं करना चाहिए था। पता नहीं, हमारे पास कौन सी ऐसी अलौकिक शक्ति या सामर्थ्य है, जो हम दूसरे देशो को सलाह-सूचन कर रहे थे। फिर मेहमान कुछ देर, एक और रिश्तेदार के घर गए।
मुअनजोदड़ो: किताब या खंडहरों की गुफ्तगू?
खेर, शाम से पूर्व एक बार दूकान पर जरूर गया। वही, मियां की दौड़ मस्जिद तक। एकाध बीड़ी फूंक कर वापिस घर आया। सोचा अब समय है। खाली समय। क्या किया जाए? पंखे वगैरह ठीक चल रहे थे। घर में सारे बल्ब भी सही से चालू थे। बाइक भी बारिश में भीग-भीग कर धुल चुकी थी। नाइ के साथ सम्भाषण करने की इच्छा भी अपनी तीव्रता को हांसिल नहीं हो पायी थी। तो अब करे तो करे क्या? हाँ ! याद आया। आज मौका है, दस्तूर भी.. अपने टैंक बेग से, चार-पांच दिनों से मेरे साथ ऑफिस चलती, और शाम को वापिस लौटती 'मुअनजोदड़ो' निकाल लाया। छत पर बैठकर पन्ने पलटे ही थे कि ख्याल आया।
रविवार की छत, इंस्टा स्टोरी और सोलर सवाल
इस व्यस्त दुनिया के किसी कोने में, छोटे से घर की खाली छत पर, कोई आदमी 'गंभीर शोख' समान पुस्तक पढ़ रहा है, यह दुनिया को ज्ञात होना चाहिए। और दुनिया को दिखाने के लिए आदमी स्टोरियां लगाता है। आसमान की और एक हाथ से खुली पुस्तक रखकर एक फोटो खींची, लेकिन सामने वाले के घर की छत आ गयी। यह नहीं चलता है। आदमी एकांत दिखाना चाहता है। लगभग ४-५ प्रयासों के बाद एक अच्छे फोटोग्राफर होने की भावना हुई, इंस्टाग्राम के रणक्षेत्र में अपनी भी स्टोरी कूद पड़ी। इस तरह अमूल्य पंद्रह मिनिट के परिश्रम के पश्चात कुछ पन्ने पलटे। और हुकुम आ धमके। उनके पास भी बड़ा गंभीर मुद्दा था। "रूफटॉप सोलर छत पर कितनी जगह रोकेगा?"
बड़ी मुश्किलियों से हुकुम के प्रश्नों को संतोषदायी उत्तर दिए, वे घर में चले गए। अब शांति थी, फिर से अपनी चारों आँखे पुस्तक के पन्नो पर गड़ाई। और दो मोटे मोटे बरसाती बूंदे बेपरवाह होकर, दोनों खुले पन्नो पर अपना अस्तित्व जमा गए। हवाएं अच्छी चल रही थी, तो आसमान में बादलो का दल मानो एकत्रीकरण की युद्धनीति में जुट गया था। ग्रे कलर की प्रकृति में धीरे धीरे कालापन और बढ़ गया। मैं घर के भीतर चला आया।
"मुअनजोदड़ो" – यात्रा से शोध में फिसलती किताब
इस पुस्तक के विषय में कुछ कुछ बातें मैं बता चूका हूँ। (यहाँ पढ़ सकते है।) एक नन्हा सा धोखा हुआ है, इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मुझे लगा। यात्रा वृतांत समझकर खरीदी थी, लेकिन यह निबंध लगा मुझे। मुझे वो बारीकियां ही चाहिए थी, जो किसी यात्रा में होती है। इसमें थी, लेकिन मात्रा कम लगी। लेखक ने अपनी बस मुसाफरी को बढ़िया तरिके से लिखा है। जब वे मुअनजोदड़ो पहुँच गए, फिर उन्होंने उन खंडरों का खूब विस्तृत सदिश वर्णन किया है। पढ़ने में मजेदार है। रुचिकर भी। फिर उन्होंने करीब तिस-बत्तीस पुस्तकों का तुलनात्मक विवेचन किया है। कौन से शोधकर्ता ने क्या लिखा है, कितना सही है, कितना तार्किक।
वहां मुझे थोड़ी बोरियत महसूस हुई, क्योंकि भाषा शैली शुद्ध और थोड़ी राजकीय लगी। मुअनजोदड़ो पढ़नी तो चाहिए। क्योंकि इसमें नवनीत है। उन तीस-बत्तीस पुस्तकों का। एक तुलना है, सही और गलत की। वैदिक सभ्यता और सिंधु सभ्यता के बिच के भेद की विवेचना। कौनसी पहले हुई, या समान्तर थी, या आर्यों ने सिंधु सभ्यता का नाश किया। या किसी ने सिंधु सभ्यता की लिपि - जो विश्व की सबसे पुरातन लिपि या चित्रलिपि मानी जाती है - को उतावलेपन से सॉल्व कर ली। यह जो यात्रा वृतांत से मुअनजोदड़ो पर अचानक से निबंध आ जाता है, तब कुछ देर मुझे विचार हो आया की, इसे न पढूं। क्योंकि मैंने अपने मन में इसे यात्रा वृतांत ही चाहा था।
जब बादल बरसे पत्नी की तरह — और नींद आई जैसे प्रेमिका की गोद
बाकी शाम के बाद किसी कुपित पत्नी के ही भांति वर्षा बरस पड़ी। और लगभग एकाध घंटे में उसका गुस्सा शांत हुआ। तब तक लगभग सब सो चुके थे। क्योंकि ठन्डे वातावरण में निंद्रा भी तो खूब आती है। लगभग साढ़े बारह मैंने अपने फ़ोन में सवेरे छह बजे का अलार्म सेट कर निंद्रा के शरण चला गया।
शुभरात्रि।
(२२/०६/२०२५)
प्रिय पाठक!
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