जब बोरियत ने घेरे रखा : खाली दिन, बेचैन मन और कुछ यूँ ही बातें || दिलायरी : 17/07/2025

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प्रियंवदा ! आज भी बड़ा ही बेकार दिन रहा...

खाली ऑफिस और बेचैन दिन


कुछ काम नहीं था, लेकिन कदमों ने रास्ते बनाए

    प्रियंवदा ! आज भी बड़ा ही बेकार दिन रहा। कुछ काम नहीं है। लेकिन हाँ ! यह जो कुछ काम नहीं है, मैंने उसका सदुपयोग पैदल चलने में किया है। दिनभर बहुत चला हूँ। और आज लगभग छह-सात बार सीढ़ी चढ़-उतर की है। उसका कारण मात्र यही था कि आज बहुत उबाऊ मूड रहा। न रील देखने में मन लग रहा है, न कोई गेम खेलने में। न कुछ पढ़ने का मन है, न ही कोई रसप्रद सर्फिंग में मन लग रहा है। उससे भी अजीब बात, करें तो करें क्या वाला हाल.. कल पूरा दिन व्यस्तता में निकला और आज पूरा दिन सोचने में, कि क्या किया जाए? ऐसे ख़ालिखम दिन बहुत बार आते है। दो साल पहले तो ऐसे कई सारे दिन आ चुके थे, और मैंने उनका सदुपयोग घूमने में किया था। लंच टाइम में रन (कच्छ के बड़े रन) को छूकर वापिस ऑफिस आ जाते थे। 


    लेकिन आज ऐसी कोई सम्भावना नहीं थी, कि किसी दिशा की ओर दिशाहीन होकर निकल पडूँ। आज मन भी बड़ा बेचेन रहा। फ़िलहाल यह लिखने का भी कोई मन नहीं है, बस झुंझलाहट भरी हुई है, कि करें तो करें क्या? खेर, सुबह वही नौ बजे से पहले ऑफिस आ चूका था। आज ग्राउंड में काफी चला था, इस कारण से सुबह सुबह ही थोड़ी थकान अनुभव रहा था। दिनभर तो कुछ ख़ास काम था ही नहीं। कल की दिलायरी में भी कुछ था नहीं, (फिर भी पढ़नी हो तो यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते है।) वह भी आज सवेरे ही लिखी थी। कल लेट हो गया था, घर पहुंचने में। तो सवेरे वह पोस्ट पब्लिश करके NOINDEX कर दी। ताकि ब्लॉग पर तो रहे, लेकिन गूगल पर नहीं आएगी। 


गजे से बातें, और देश के पुतलों की दुर्दशा

    आज के खाली दिन की शाम भी खाली है। सवा छह बज रहे है, और अभी तक न ही कुछ लिखने लायक मिला है, न ही कुछ मन बहलाने लायक। ऐसे दिन होने ही नहीं चाहिए। बोरियत भगाने के लिए काफी देर तक गजे से बातें करता रहा। मुद्दा कुछ नहीं, बस इधर उधर की। इधर उधर की से याद आया, कल परसो समाचार देख रहा था, तो उससे पता चला की, बिहार या झारखण्ड में पुतले भी सुरक्षित नहीं है। किस जगह का समाचार था वह तो भूल गया, लेकिन समाचार यह था, कि कहीं महाराणा प्रताप का पुतला लगा हुआ था। कोई उनका भाला चुरा गया। और एक और जगह पंडित दीनदयाल उपाध्याय का चश्मा..! बताओ.. कैसा काल चल रहा है। उपाध्याय जी का चश्मा चुरा जा रहे है लोग। वो तो तब भी ठीक है, लेकिन महाराणा का भाला? काश महाराणा प्रकट हो जाते..! वैसे अपने यहाँ सच में कुछ भी हो सकता है। 


    प्रियंवदा ! मैं भी अब शायद काम की मशीन ही बन चूका हूँ। काम नहीं होता है, तो बड़ा बेकार सा मन हो जाता है। सच कहूं तो आज कुछ ज्यादा ही अकेलापन महसूस हो रहा है। किसी से बात करने का मन तो कर रहा है। लेकिन वहां भी यही समस्या उठ खड़ी होती है, कि किस से? क्यों? और क्या बात की जाए? और इनके जवाब तो मुझे भी नहीं पता है। ठीक है, इसे भी यही ख़त्म करते है।


    शुभरात्रि। 

    १७/०७/२०२५ 

|| अस्तु ||

प्रिय पाठक !

क्या आपके साथ भी ऐसा दिन कभी बीता है – जब कुछ करने का मन ही ना हो?
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और अगर मन भारी लगे – तो मेरी दिलायरी पढ़ते रहिए… शायद कुछ अपना सा मिल जाए।


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2Comments
  1. Priyamvada be like : Mujhse baate ho rhi h phir bhi kisi se baate krne ka man ho rha h !!

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    1. lol.. Priyamvada se bhi to baaten nhi ho rhi hai.. jo ho bhi jaae wo bhi beman se hi...!

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