मैं खुद से मिलने निकला हूँ..!
Date - 03/07/2025Time & Mood - 17:12 || व्यस्तता छांटते हुए..
खाली जगह..
मेरे दिल में भी एक खाली जगह रह गयी है, जहाँ फिर कोई भी आकर नहीं बस पाया। उस जगह कोई कैसे बस जाता? वहां तो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी स्मृतियाँ और मैंने सदा से संजोयी तुम्हारी मुस्कान बसती है। वहां आज भी हवा में एक नाम बहता है, जो कभी मैंने क्लास में बेंच पर तर्जनी से उकेरा था। लेकिन उस खाली जगह में एक उदासी भी बसती है। जो मेहमान बन कर आयी थी, लेकिन डेरा डालकर बस गयी।
इस खाली जगह को मैं खाली कैसे कहूं? यहाँ एक मेज है, उस पर कईं सारे कागज़ पड़े है। जिनमे भावनाएं कैद है। वे शब्द जो कभी तुमसे रूबरू नहीं हुए। वे बातें, जो मैंने तुम्हे देखकर महसूस की। अब उन्हें वहां कोई भी दखल नहीं करता, वे अपने अकेलेपन के आदी हो चुके है। उन्हें पढ़ने वाला तो कहीं और चला गया। लेकिन इस खाली जगह को पूरी तरह खाली भी न कर गया।
एक सवाल :
क्या उस खाली स्थान में कोई भी तुम्हारी जगह नहीं ले पाएगा?
सबक :
वो खाली जगह सम्पूर्ण खाली नहीं है, वहां तुम्हे भी तो बसाया है। बस और कोई नहीं आ पाएगा वहां।
अंतर्यात्रा :
वर्षा की बूंदे जिन खाली जगहों को नहीं भर पाती, लेकिन हवाएं तब भी वहां भरी हुई होती है।
स्वार्पण :
उन यादों को समेटना जरुरी नहीं है, उस पिटारे को अब कभी कभी ही खोलता हूँ।
खाली जगह और खालीपन में भेद स्वयं का ही तो है..
जो उस खाली जगह को नहीं भर पाया..
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