मैं खुद से मिलने निकला हूँ..!
Date - 04/07/2025Time & Mood - 17:43 || Hopefull..
अब तुम्हे देखके क्या महसूस होता है..
प्रियंवदा ! कुछ दिनों पहले ही तुम्हे देखा था। सच बताऊँ तो एक बार तो सारी ही घड़ियाँ रुक गयी थी। हर जगह जैसे सन्नाटा छा गया था। मेरे कदम भी ठहर गए थे। आँखे चार हुई थी। पलके अपलक तो रहीं थी, लेकिन कुछ ही देर के लिए, और तुरंत बाद मैंने निचे देख लिया था। तुमसे ध्यान हटा लिया था, जैसे, तुम अब कोई और ही हो। मेरी नहीं।
सच में, शायद मैं भी अब बदल चूका हूँ, वो नहीं रहा। जो कभी था। अन्यथा यह कैसे सम्भव है, मैं तुम्हे देखकर भी अनजान होने का स्वांग कर लू? और शायद जरुरी भी है बदलना। वहीँ रुके रहने से कुछ भी तो नहीं बदलेगा? न हमारे बिच की दूरियां, न ही हमारी स्थिति। शायद तुम भी असहज हो जाओ, यह मैं कैसे होने देता? बहुत जरुरी था। वहां से आगे बढ़ जाना। मैंने कुछ ही देर बाद कईं देर तक तुम्हारे नंबर पर अपनी उँगलियाँ घुमाई है। कुछ मेसेज टाइप भी किया था। मैं भेज भी देता, लेकिन फिर रूक गया। मेरे लिए। तुम्हारे लिए। हमारे लिए।
ठीक ही रहा, मैं रुक गया। वरन तुम्हे भी अपनी निराशा में घसीट लाता। फ़िलहाल कम से कम तुम्हे देख तो पाया। यही मेरे लिए बहुत है।
एक सवाल :
मेसेज भेजने की हिम्मत तो थी, लेकिन नहीं भेज पाया, क्योंकि कुछ बातें बंद ही रहे वही सब कुछ ठीक है। है न?
सबक :
उस दिन पूर्णिमा नहीं थी, सिवा मेरे स्वप्न के।
अंतर्यात्रा :
सारी उलझने समय लेती है, लेकिन सही हो जाती है।
स्वार्पण :
इच्छा का क्या है, वह तो फिर से जाग उठती है, तुम्हारे दर्शन को लालायित करती है। लेकिन उन्हें बांधे रखना ही सबसे ठीक है।
एकटक मैं देखते ही रह गया, चाँद सी है, आज भी वह रौशनी..!
जिसने तुम्हारा नंबर आज भी सेव कर रखा है..
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