मैं खुद से मिलने निकला हूँ..!
Date - 08/07/2025Time & Mood - 16:51 || reflective..
मुझमें मैं खो गया था..
कोई अपने आप में भी खो सकता है भला? हाँ ! जो शायद स्वार्थी हो। मुझ सा स्वार्थी। मैं खो चूका था, तुम्हारे बाद प्रियंवदा ! अपने आप में। तुमसे बात न हो पाती थी, तुमसे अपने हाल न सुना पाने के कारण मैं भीतर ही भीतर तुम्हारी बसी हुई प्रतिछाया से बातें करता था। शायद आज भी करता हूँ। हर दिन शाम को एक एकांत का कोना खोजकर वहां बैठता हूँ, और आज भी तुमसे अपने दिनभर की सारी बातें साझा करता हूँ। अब यदि यह अपने आप में खोना माना जाता हो भले.. मैं तो तुम्हारे ही साथ होता हूँ। या तुम मेरे साथ होती हो।
एक विरक्ति का भाव मैंने कभी पाया ही नहीं। तुम्हारे छोड़ जाने के बाद भी। मैं मशीनों की तरह अपने क्रोध को अपनी दिनचर्या में पलटता रहा। मशीन जैसी जीवनी अपना ली। आदेशों को सर आँखों पर करते हुए अपने काम से निस्बत रखी। दिनभर कितना ही बोझ ढोया हो, शाम को तुम्हारे पास आते हुए वह सारी थकान बाहर ही खखेर लेता। भला क्यों विरक्ति लाऊँ? जब तुमसे अलग मैं तो हुआ ही नहीं। बाहर से लगता होगा, कि यह कोई है, जो अपने आप में खोया रहता है। लेकिन मैं भीतर से जानता हूँ। मैं खोया नहीं, मैंने तुम्हे पाया है।
एक सवाल :
सबक :
खुद में खोना भी अच्छा है, एक राह मिलती है, एक मंजिल भी।
अंतर्यात्रा :
मेरे भीतर के घने अँधेरे की रौशनी तुम ही तो हो। उसी उजास से मेरा सवेरा होता है। रात्रि में भी उस रौशनी की ध्वनि मेरे भीतर धबकती है।
स्वार्पण :
मैं खुद को खोजकर फिर से उसी पथ पर नहीं जाऊंगा, जहाँ बिछड़न के बादल है।
खुदमे खोकर भी तुम्हारे हवाले हूँ।
जिसके भीतर तुम ही तुम हो..
***

