क्रिएटिव लोगों के लिए Time Management Tips: Focus और Productivity Hacks
प्रस्तावना – समय और सृजन का रिश्ता
प्रियंवदा ! सच में समय के पास सारे जवाब हैं? वह सदैव से मौन साक्ष्य की तरह बरतता आया है.. उससे संवाद हो नहीं सकता, उसके लिए मेरे पास हजारों सवाल है। लाखो संभावना और समीकरण पूछने है मुझे। लेकिन समय से संवाद स्थापित करने योग्य कोई साधन तो मिले पहले..! प्रतिक्षण कुछ न कुछ बदल रहा है, प्रतिक्षण सूर्य पश्चिम की और बढ़ रहा है, या पृथ्वी परिभ्रमण पथ पर सरकती है। परछाइयां तक साथ छोड़ देती है, शाम होते होते..! आज का दिन भी अकर्मण्यता की साधना करने में बीता है।
मैं अपने आप को यूँ तो बुरे से बुरा रूपक दे देता हूँ, लेकिन वहां अटक जाता हूँ, जब बात आती है रचनात्मक लोगो की। वैसे मैं अपने आप को इस श्रेणी में रख जरूर सकता हूँ, लेकिन मेरे साथ दूसरी समस्या है। मैं अपनी रचनात्मकता का क्रेडीट लेना तो चाहता हूँ, लेकिन प्रत्यक्ष नहीं आना चाहता। हां ! जानता हूँ प्रियंवदा। मैं अजीब हूँ। चलो फिर आज यही मुद्दा पकड़ लेते है, रचनात्मक लोग और टाइम मैनेजमेंट..! वह बात तो मैं कईं बार बता चूका हूँ, कि मुझे बढ़िया बढ़िया पंक्तियाँ, या अच्छे विचार अति-व्यस्तता के मध्य में आते है, या फिर तब, जब मैं उन्हें कहीं लिख नहीं सकता हूँ। जैसे की ड्राइविंग करते समय, नहाते समय, या कहीं किसी के साथ बैठे हुए। रचनात्मक लोगो की यही सबसे बड़ी ताकत है, और कमजोरी भी..! क्रिएटिव लोगो को जब इंस्पिरेशन आता है, तो सारे काम छूट जाते है। और जब प्रेरणा कहीं गायब हो जाती है, तब भी सारे काम अधूरे रह जाते है।
क्यों अलग होता है Creative Time Management?
यह घड़ी सतत टिक-टिक करती रहती है। जैसे कहती है, डेडलाइन पास आ रही है। अरे, मैं तो अपने ही ब्लॉग पर लिखता हूँ, मुझे समय की कोई बाध्यता नहीं है। लेकिन फिर भी एक नियम मैंने अपने आप पर ही लादा है, कि शाम सात बजे तक तो मैं कुछ न कुछ लिख ही लिया करूँ। लेकिन क्या करे, जब कोई आईडिया आता है, तब तो शब्द ज्वालामुखी की तरह फुट-फुट कर निकलते है। लेकिन मन सूना पड जाए, फिर तो लाख कोशिशों के बावजूद एक पंक्ति नहीं लिखी जाती है। यह एक रस्सा-खिंच खेल है। मन कुछ और चाहता है, और समय कुछ और..! प्रत्येक क्रिएटिव व्यक्ति के भीतर यह TUG OF WAR चलता रहता है, जहाँ मन मुक्त बहना चाहता है, और दुनिया कहती है, काम खत्म करो पहले।
बड़ी मुश्किल से दिमाग के भीतर एक काल्पनिक संसार का निर्माण हुआ ही होता है। कि एक मोबाइल नोटिफिकेश उसे ताश के पत्तो की तरह धराशायी कर देता है। अक्सर यह मोबाइल नोटिफिकेशन डिस्ट्रक्शन का काम करता है, घंटो का समय खा जाता है। आज सवेरे से इसी में मशगूल था मैं भी। फिर अचानक से डेडलाइन वाला राक्षस सामने आ खड़ा हो जाता है। और उसकी माया से मन चल पड़ता है OVERTHINKING की शरण में। क्या मैं वास्तव में PRODUCTIVE हूँ? क्या मेरी क्रिएटिविटी अभी के अभी जागृत हो पाएगी? अब तो बस आधे घंटे में यह लिखकर मुझे पूरा करना है। सवालों का यह अंबार दिमाग को उलझा देता है। सारी की सारे प्रोडक्टिविटी, या क्रिएटिविटी थकान में परिवर्तित हो जाती है। प्रियंवदा ! वक़्त के साथ साथ नाचना ही रचनात्मक लोगो को पसंद है, बस कभी कभी स्टेप में भूल होते ही, सारा नृत्य रुक जाता है।
The Creative Clock vs Regular Clock
एक और मुसीबत भी तो है। जैसे की साधारण काम होते है, तो सोच भी सीधी और स्पष्ट रूप से आगे बढ़ती है, एक काम ख़त्म हुआ, तो NEXT टास्क। लेकिन जब बात आती है क्रिएटिविटी की, तो दिमाग भी आड़ा-टेढ़ा चलने लगता है। शेरबाजार के रनिंग चार्ट की भांति। मन मर्कटछलांग मारता है, एक विचार से दूसरे पर, फिर किसी की याद में, फिर किसी धुन पर, या किसी चहेरे पर अटक जाता है। बस यही कारण है, प्लानिंग या रूटीन कच्चे रह जाते है। एक तो इस रचनात्मक-ऊर्जा का कोई भरोसा नहीं। कोई चित्रकार सुबह की सुनहरी किरणों से रंगीन हो जाता है, तो कोई कवि रात के दो बजे प्रेरणा का कृपापात्र बनता है। मुद्दा है इस प्रेरणा के फ्लो का.. घड़ी का शिड्यूल और शरीर का क्रिएटिव क्लॉक आपस में सामंजस्य नहीं बना पाते। यह रचनात्मक ऊर्जा का बहाव जब फूटता है, तो एक घंटा भी पांच मिनिट के बराबर लगता है।
यह रचनात्मकता कभी भी केवल समय पर निर्भर नहीं रहती। मूड और एनर्जी का भी तालमेल चाहिए इसे। मूड हो निराशा का, तो लाख कोशिश से भी हास्यरस नहीं उतर पाता लेखनी में। एनर्जी हो, मूड भी हो, तब तो दस मिनिट में ही शब्दों की धाराएं बह जाती है। उस समय तो यह सोचना पड़ता है, कि अब इस लेख में से क्या क्या हटा लेना चाहिए। लेखन की अति हो जाती है। रचनात्मकता घड़ी के समय से नहीं, मनोस्थिति से निर्धारित होती है।
आज काफी खाली समय था, फिर भी मूड ही न बना कुछ रचनात्मक लिख लू..! और आज तो बड़ी परेशानी यह भी हुई, कि पूछूं तो पूछूं किससे की आज करूँ तो क्या करूँ? एक तरफ हर कोई अपनी व्यस्तता में मस्त है, और एक मैं हूँ जो अकर्मण्यता से त्रस्त हूँ। तो कुछ यूँ ही गूगल सर्च करते करते इसी टाइम मैनेजमेंट के बारे पर पढ़ने लगा। काफी सारी बातें पढ़ने में आयी, लेकिन मुझे कुछ मुद्दे बड़े पसंद आये उन्हें यहां सम्मिलित करता हूँ। हाँ ! यह मुद्दे वैसे तो मैं भी फॉलो नहीं करता हूँ, लेकिन अच्छे लगे मुझे। और किसी दिन आजमाऊँगा जरूर।
5 Practical Time Management Tips for Writers and Creatives
- Morning Pages / Journaling - दिमाग हल्का करना, आईडिया खोजनासुबह सुबह दिमाग एक दम तरोताज़ा होता है। अगर दिन की शुरुआत 10-15 मिनिट लिखने से करते है, तो भीतर भरे हुए अनकहे ख्याल और चिंता बाहर निकल आती है। कुछ भी लिखो, चाहे वो उलझने हो, सपने हो या अधूरे विचार। इससे दिनभर के लिए एक स्पेस खाली हो जाता है।
- Pomodoro Technique with Flow – 25 min focus + 5 min breakज्यादातर लेखक, या रचनात्मक लोग एक लम्बा सेसन चलाकर खुद को थका लेते है। उन्हें बहुत देर तक बैठकर एक ही विचार, विषय पर काम करना होता है। और थकान रचनात्मकता की बड़ी शत्रु है। इसी कारन से यह टेक्निक बढ़िया काम करती है। 25 मिनिट तक एक ध्यानकेंद्रित काम करना है, और पांच मिनिट का ब्रेक लेना है। यही 25 + 5 मिनिट दोहराते रहना है। लेकिन यहाँ एक छोटा सा ट्विस्ट भी तो है। अगर लिखने का फ्लो बना हुआ है, तो ब्रेक नहीं लेना है। क्योंकि फ्लो टूटने से बड़ा तो कुछ भी नहीं है।
- Creative Hours Fix करना - अपनी ऊर्जा को पहचानोहर इंसान की शारीरिक घड़ी अलग होती है। कोई सुबह पांच बजे जागकर अच्छा लिख लेता है, तो कोई रात के बारह बजे शब्दों को पकड़ पाता है। अपनी रचनात्मकता का सही समय पहचानना होगा। और उसी समय अपनी लेखनी का महत्तम लाभ उठाओ। बाकी काम तो बाद में भी हो सकता है।
- Digital Detox Slots - Social Media को कैद करके रखो..डिस्ट्रैक्शन माने विषयांतर भी बड़ा शत्रु है रचनात्मकता का। और यह फोन नोटिफिकेशन्स बार बार एकलयता तोड़ देती है। हर समस्या का समाधान होता ही है। इसका भी है, दिन में कुछ घंटे तय कर लेने है। इसी सोशल मीडिया को चेक करने के लिए। बाकी समय उसे साइलेंट कर देना है, या फोन भी आजकल फोकस मोड का ऑप्शन देने लगा है। उसे ओन कर देना है। आप पाएंगे की बिना विषयांतर के आप आधे समय में दोगुना काम कर पाते है।
- Task Prioritization (3 MITs) – सिर्फ़ तीन बड़े काममन थोड़ा लालची भी होता है, इस रचनात्मकता के मामले में। तो कईं बार एक साथ बहुत सारे सरसंधान कर लेना चाहता है। एक साथ सोचता है, इस विषय पर लिख लू, उस विषय को भी समाहित कर लेता हूँ, और वह विषय तो अनिवार्य है। इससे chaos पैदा होता है, रचनात्मकता नहीं। रोज सुबह उठकर सिर्फ 3MITs तय करने है। MIT माने most imported tasks.. वे तीन काम दिन खत्म होते होते जरूर से पुरे करने है। इस क्लैरिटी से दिमाग रिलैक्स रहेगा। और रचनात्मकता भी विकास कर पाएगी।
समय – दोस्त, दुश्मन और दर्पण
निष्कर्ष – दिलायरी सिग्नेचर
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