नौकरी और लेखनी का संघर्ष
प्रियंवदा ! पिछली किसी दिलायरी मे मैंने लिखा था, कि कुछ दिनों में जिम्मेदारियों का एक और भार मेरे कंधों पर आने वाला है। वह शायद अब आ चुका। क्योंकि मिल बन्द होने के बावजूद मैं दिनभर व्यस्त रहा हूँ। एक काम खत्म हुआ नही कि दूसरा पॉपकॉर्न की तरह फूट कर सामने आ गया। ज्यादातर जब मिल चालू हो, तब ही ऐसा कभी कभार होता है, कि कब दोपहर हुई, कब शाम ढली, पता भी न चला हो। पिछले कईं दिनों से शाम के चार बजे ही मैं दिलायरी का आरंभ कर देता। और सात बजे तक ड्राफ्ट तैयार कर के रख भी देता। ताकि अगले दिन बस उसे पब्लिश और शेयर करनी ही बाकी रहे। आज चार बजे करीब मैंने कीबोर्ड कूटना चालू तो कर दिया था, लेकिन तुरन्त ही अन्य कईं कामो ने अचानक प्रकट होकर मुझे हतप्रभ और व्यस्त.. दोनो एक साथ कर दिया। हालात तो यह है प्रियंवदा, कि कल तक मैं यह सोच सोच कर राजी हुए जा रहा था, कि मैंने पौना साल प्रतिदिन एक ब्लॉगपोस्ट लिखी है। लेकिन अब लगता है, यह पोस्ट साप्ताहिक हो जाएगी, या फिर दो-तीन दिन में एक। मुख्य कारण एक मात्र, समय की पाबंदियां..!
देखते है, कुछ न कुछ जुगाड़ तो बिठाऊंगा मैं भी। यदि कुछ पसंदीदा काम कर रहा हूँ, तो उसे मैं कंटीन्यू रखना ही चाहूंगा। फिलहाल जो नौकरी में अतिरिक्त भार आ रहा है, उसे मैंने ही स्वीकारा है। मैं कभी भी काम के भार से नही दबा आज तक। मैं एक बार को दूसरी-तीसरी प्लानिंग्स टाल सकता हूँ, लेकिन ऑफिस या अपना कार्यक्षेत्र नही। मैं जिस क्षेत्र में हूँ, यहाँ नौकरी की कोई निश्चित पोजीशन नही होती है, और न ही कोई बताने योग्य ऑक्यूपेशन। इसी कारणवश मैं खुद को एक अकाउंटेंट कहता हूँ। क्योंकि इसी के आसपास, और इससे जुड़े हुए वे सारे काम मेरा कार्यक्षेत्र है। हालांकि एक अकाउंटेंट का कार्यक्षेत्र एक निश्चित दायरे में होता है। लेकिन मैं, अबाध्य हूँ, असीमित.. मुझे टैक्स के अपडेट्स नही पता होते, लेकिन जिन्हें पता होता है, उनसे पद्धति समझ लेता हूँ। बस ऐसे ही मेरा निर्वाह हो जाता है।
जिम्मेदारियों का बढ़ता बोझ
जीवन हमे अपग्रेड होने के बहुत कम अवसर देता है। खासकर जब आप पढ़ाई-लिखाई छोड़कर किसी एक प्रोफेशन को अपना चुके हो। पढ़ाई-लिखाई छोड़ने के बाद हम प्रोफेशनली उन्नति जरूर पाते है, लेकिन विषयांतर कम करते है। खासकर जब स्थायी हो जाते है, तब यह सोचना पड़ता है, कि नया रिस्क क्यों उठाना है..! उदाहरण के तौर पर यदि कहूँ तो, मैं एक मुनीम हूँ, तो जीवनभर यही करता रहूंगा.. और कोई स्किल्स की ओर फिर मेरा प्राधान्य नही बनेगा। नौकरी के क्षेत्र में, पदोन्नति मिलती रहती है, अनुभव के आधार पर, लेकिन पदोन्नति के साथ साथ बहुत सारे काम हाथ से छूट जाते है। क्योंकि वे शुरुआती काम के लिए अब आपके पास एक और व्यक्ति है, जो आपको सब कुछ तैयार करके देता है। मैं भी फिलहाल सांप की तरह अपनी केंचुली बदल रहा हूँ। नही, पूरा प्रोफेशन चेंज नही करूंगा, बस उसी में थोड़ा अपग्रेड हो रहा हूँ। नौकरी पेशे में सबसे बड़ी चीज ही अनुभव है।
मैं प्रतिदिन कुछ नई चीजें सीख रहा हूँ, उन्हें अमल में ला रहा हूँ। इसी के चलते, अब लेखनी से एक अलग सी दूरी बनती जा रही है। मेरे डेली शिड्यूल में, समय का जो भाग मैं दिलायरी को देता था, नियमित रूप से, वहां अब वह नियमितता भंग हो रही है। समय का वह स्लॉट अब कुछ और काम खाने लगा है। फिलहाल रात्रि के ग्यारह बजे रहे है, और मैं अभी तक यह लेखनी समेट नही पाया हूँ। खेर, सवेरे तो वही नित्यक्रम से ऑफिस पहुंच गया था। कल की पोस्ट पब्लिश कर दी, लेकिन शेयर किसी के साथ नही कर पाया। स्नेही भी अपने कर्तव्यपथ पर बहुत दूर निकल गया है। लेकिन उसकी यह पीछे मुड़कर दिलायरी देख लेने की आदत बरकरार है। मैं सवेरे से लेकर दोपहर तक, एक के बाद एक काम निपटाए जा रहा था। बीच मे जो एक छोटा सा समय का हिस्सा खाली मिला, उसे मैंने yq को सौंप दिया था।
दोपहर को मारवाड़ी की प्रसिद्ध कचौड़ियों का स्वाद लेकर फिर से लग पड़ा था कंप्यूटर स्क्रीन को घूरने, तो सीधे आठ बजे ही उठा। दोपहर बाद भी एक टाइम स्लॉट खाली मिला था, उसका उपयोग दिलायरी के आरंभ के लिए कर दिया था, लेकिन फिर वह दिलायरी एक बहुचर्चित विषय पर मुड़ गयी, तो उसे एक अलग पोस्ट के रूप में ड्राफ्ट कर दी है। धीरे धीरे विस्तृत जानकारियों के साथ उसे अपडेट करूंगा। दोपहर बाद ही yq के एक मित्र है, अनुभूति जी, उन्होंने कहा कि, "अभिनंदन, स्पर्धा में आपका भी नाम आया है." मुझे अपने भाग्य पर गले तक विश्वास है। किसी भी स्पर्धा, या किसी भी निर्णय पर मेरा भाग्य मुझसे विमुख ही रहा है। और मेरे इस विश्वास का घात भी आजतक कभी नही हुआ है। मैं सोच में पड़ गया, कि ऐसा तो आजतक नही हुआ है, कि मैं कोई स्पर्धा में विजेता होऊं।
साहित्यिक प्रतियोगिता का अनुभव
दरअसल बात ऐसी थी, कुछ दिन पूर्व गुजराती भाषा मे मुक्तक लिखने की एक स्पर्धा थी। और उस स्पर्धा में अनुभूति जी भी भाग ले रहे थे। उन्होंने तीन मुक्तक मुझे भेजे, मेरा अभिप्राय जानने के लिए कि कौनसा स्पर्धा के योग्य है। मुझे एक अच्छा लगा, तो मैंने उन्हें वही चिन्हित किया। फिर बातों बातों में इस स्पर्धा के बारे में पता चला। और उन्हीं के दबाव के कारण मैंने भी अपना एक पुराना मंदाक्रांता छंद में लिखा मुक्तक स्पर्धा के लिए भेज दिया। तीन चार दिन बीत जाने के कारण, मैं स्पर्धा के परिणाम के विषय मे भूल चुका था। लेकिन आज दोपहर को ही मैंने उनसे पूछ लिया था, कि रिजल्ट्स क्या आए? और परिणाम मुझे मेरे अंदेशानुसार ही मिला। प्रथम, द्वितीय या तृतीय.. मैं तीनो में से एक भी स्थान पर नही था। अब मैं परेशान, कि फिर किस बात का मुझे अभिनंदन दिया गया? तो पता चला कि, कुछ तीनसौ मुक्तकों में से मेरा मुक्तक उनकी ebook में समाहित हुआ।
शब्दों का धंधा और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म
प्रियंवदा ! मैं अब अंकलों वाली श्रेणी में आ चुका हूँ। मुझे अब हर जगह पैसा नजर आता है। जहां नही आता, वहां मुझे अपना दृष्टिदोष अनुभव होता है। यह भी एक उम्र का ही असर है, कि कौन कितना कमा रहा है, और कितना रुपया छाप सकता है, इस पर आपकी बाजनजर बनी रहे। मैंने वह स्पर्धा वाला ग्रुप चेक किया। बहुत सारे लोग दुःख जता रहे थे, उन्हें इस बात का दुःख ज्यादा था, कि वे भले ही क्रमांक न जीत पाए हो, लेकिन उस ebook में भी उन्हें स्थान नहीं मिला। मेरा दृष्टिकोण तुरंत घूम गया उस ebook की pdf को देखकर। देढ़सौ से अधिक मुक्तकों का वह संग्रह बन चुका था। मेरा मुक्तक भी समाहित था उसमे। प्रियंवदा ! एक बात सोचो, उस व्यक्ति ने यह स्पर्धा का आयोजन किया, और लोगो से मुफ्त में कईं सारे मुक्तक बटोर लिए। उनका संकलन भी कर लिया। अब वह चाहे तो इस संकलित मुक्तकों की बुक भी पब्लिश करवा लें। ज्यादातर लोग तो इस बात से ही राजी हो जाएंगे, कि उनका नाम भी किसी बुक में छपा हैं।
कैसा धंधा है यह भी प्रियंवदा, शब्दो का धंधा..! ऐसी बहुत सारी स्पर्धाएं ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर चलती है। आप प्रतिभागी होते है, अपना शब्द-प्रदान करते है। विजेता हुए तो 1000-1500 का इनाम प्राप्त करोगे। और उन तमाम स्पर्धकों की रचना उस बुक में पब्लिश होएगी। और उस पब्लिश्ड बुक की रॉयल्टी स्पर्धा आयोजक खाएगा। बिज़नेस है प्रियंवदा.. मिनिमम इन्वेस्टमेंट में लार्जर प्रॉफिट वाला बिज़नेस। अगर बुक रैंक पा गयी, फिर तो बल्ले बल्ले..!
चलो फिर, आज इतनी बातें बहुत है।
शुभरात्रि।
०३/०९/२०२५
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