"भारत में आरक्षण प्रणाली : इतिहास, फायदे, नुकसान और वैश्विक तुलना"

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"प्रियंवदा, ग्राउंड की उस रात से उठी बहस…"

    प्रियंवदा ! बीती रात को मैं और गजा ग्राउंड में बैठे थे। मेरा तो फिक्स है, रात को खाना खाकर मैं सीधे ही ग्राउंड में चला जाता हूँ। कुछ देर टहलता हूँ, फिर एक जगह बैठ जाता हूँ। मोबाइल में रील्स, या तो आजकल YQ या फिर एक्स (ट्वीटर) वगैरह देखता रहता हूँ। गजा भी डेली आ जाता है। संघी कहूं आज, या विषैला.. तय नहीं कर पा रहा हूँ। पिछले कईं महीनों से सरकारी नौकरी की चाह में वह घर बैठा है। बेरोज़गार बनकर। दिनभर अपनी पढाई वगैरह कर के, शाम को यहाँ ग्राउंड में आ जाता है। कुछ देर बैठता है मेरे पास, और फिर चल देता है। आजकल लेट से लेट मैं भी ग्यारह बजे तक ही बैठता हूँ। पहले की तरह बारह बजे तक अकेला नहीं बैठा रहता। 


"Village well scene with four people using different methods to draw water – electric pump, handpump, rope with bucket, and one confused man scratching head."
"SC/ST" WITH ELECTRIC WATERPUMP,
"OBC" WITH HANDPUMP,
"EWS" WITH BUCKET,
AND REMAIN "GENERAL" IS STILL CONFUSED..!

आरक्षण की शुरुआत और इतिहास

    गजे के पास यूँ तो तरह तरह के मुद्दे होते है। पर कल रात को हम दोनों ही एक मुद्दे पर सहमत हो गए, वो था आरक्षण..! भारत की आज़ादी के बाद से ही समानता के अधिकार के नाम पर एक झुनझुना पकड़ा दिया गया है भारतवासियों को। गजे की विषाक्त भाषा में कहूं तो, कैसी आज़ादी? निर्माण हुआ है भारत का। एकत्रीकरण। पहले 562 + ब्रिटिश भारत था। अब एक भारत है। आज़ादी नहीं कहनी चाहिए, आजके नक़्शे का निर्माण हुआ था। तो भारत के निर्माण के बाद संविधान सभा हुई, संविधान लागू हुआ, और एक आदमी ने पिछडो के नाम पर अपनी जाती को विशेषाधिकार दे दिए। वहां से यह जातिवाद नाम का विषाणु फैलने लगा। संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) में शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था बना दी। यहाँ तक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण था। 


"1902 से 2019 तक : आरक्षण की जड़ें और फैलाव"

    फिर 1953 में काका कालेलकर आयोग ने obc को इंट्रोड्यूस किया। रिपोर्ट तैयार किया गया, लेकिन मान्यता नहीं मिली। 1979 में मोरारजी देसाई ने बी पी मंडल आयोग को गठित किया। और 1980 में 27% OBC के आरक्षण की सिफारिश की गयी। 1990 में प्रधानमंत्री V P SINGH ने मंडल आयोग की सिफारिश लागू कर दी, और यहां से SC को 15%, ST को 7.5% और OBC को 27% आरक्षण, यानी कुल 49.5% आरक्षण शुरू हुआ। और अंत में एक बदलाव और हुआ, वह था, 2019 में मोदी सरकार द्वारा जनरल केटेगरी में 10% EWS,  यानी की आर्थिक रूप से कमजोर लोगो के लिए एक और आरक्षण आवंटित किया।


संविधान और समानता के अनुच्छेद

     यह तो हो गया, आरक्षण का इतिहास। लेकिन अब मजेदार बात देखिए आप..!

  • अनुच्छेद 14 : कानून के समक्ष समानता..!
    भारत के सभी नागरिक कानून की दृष्टि में एकसमान है। किसी के भी साथ अन्यायपूर्ण भेदभाव नहीं होगा।
  • अनुच्छेद 15 : भेदभाव का निषेध.. 
    धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान या नस्ल के नाम पर कोई भेदभाव नहीं होगा। शिक्षा संस्थानों में प्रवेश आदि में समान अधिकार होगा।
  • अनुच्छेद 16 : रोजगार में समान अवसर..
    सरकारी नौकरी में सभी को समान अवसर मिलेगा, लेकिन आरक्षण यहाँ ADD किया गया।
  • अनुच्छेद 17 : अस्पृश्यता का उन्मूलन..
    किसी भी रूप में अस्पृश्यता का पालन कानूनन अपराध घोषित किया गया।
  • अनुच्छेद 18 : उपाधियों का उन्मूलन..
    राजा, महाराजा, रायबहादुर जैसी उपाधियों का अंत.. 

    यह सब बातें संविधान कहता है। कानून के समक्ष सब समान है। वहां कोई आरक्षण नहीं है.. वैसे है, कानून की नजरों में भी कुछ जाति के पास विशेषाधिकार है। एट्रोसिटी कहते है उसे। 1989 में एट्रोसिटी का कानून लागू किया, जिस में SC/ST को जाति के आधार पर होने वाला कोई भी अन्याय, अत्याचार, शोषण या हिंसा पर दंडनीय अपराध की श्रेणी में रख दिया गया। इस कानून के दुरूपयोग के सेंकडो किस्से है। आरक्षण की शुरुआत मानी जाती है 1902 में। कोल्हापुर के महाराज शाहूजी ने अपने राज्य में सरकारी पदों पर 50% अनामत पिछड़े वर्गों के लिए घोषित किया था। इसका उद्देश्य सामाजिक समानता लाना था। 

    लेकिन मुझे यह समझ नहीं आता है, कि एक तरफ तो आप समानता के अधिकार की बातें करते हो, एक तरफ आप केवल दस वर्षों के लिए लागु हुए अनामत को और वर्षों तक खींचते जाते हो। जब एक तरफ आप आर्टिकल 15 में भेदभाव का निषेध करते हो, लेकिन स्वयं ही समाज को चार मुख्य हिस्से में बाँट देते हो। या तो यूँ कहा जाना चाहिए, कि भारत में समानता का अधिकार है ही नहीं। या समानता का अधिकार देना है, तो फिर निष्पक्ष रहकर आरक्षण को हटा देना चाहिए। 

बड़े आंदोलन और संघर्ष

    आरक्षण की मांग के साथ भारत के कितने सारे आंदोलन हुए, कभी इस जाति ने तो कभी उस जाति ने उग्र आंदोलन भी किये। सरकारी संपत्ति एवं ऊर्जा, दोनों व्यय हुआ, कारण एक मात्र यह आरक्षण। 

"गुर्जर से मराठा तक : आरक्षण की आग में झुलसते आंदोलन"

1902 - ब्रिटिश काल..

  • कोल्हापुर के महाराजा शाहू जी ने अपने राज्य में आरक्षण लागू किया। 


1950 का दशक..

  • स्वतंत्रता के बाद संविधान लागू होते ही SC/ST को आरक्षण दिया गया। लेकिन OBC को आरक्षण न मिलने से असंतोष बना। 


1979 - 1990 OBC आंदोलन..

  • ऊपर कहे अनुसार मोरारजी देसाई ने मंडल आयोग गठित किया। 27% OBC आरक्षण की रिपोर्ट तैयार हुई, और 1990 में वी.पी. सिंह ने OBC आरक्षण लागू किया, तब देशभर में आंदोलन भड़क था उठा। और इस आरक्षण के विरोध आंदोलन में छात्रों ने आत्मदाह तक किया। 


2006 - 2010 राजस्थान, गुर्जर आरक्षण आंदोलन..

  • राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बसा हुआ गुर्जर समुदाय, परंपरागत  रूप से पशुपालन एवं खेती करने वाला समुदाय है। राजस्थान में शायद यह समुदाय पहले OBC में हुआ करता था। गुर्जर समाज ने ST दर्जा माँगा, क्योंकि उनका कहना था, कि वे भी मीणा जैसी जनजातियों की तरह सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े है। 2006 में यह आंदोलन का आरम्भ हुआ। 
  • 2007-08 में यह आंदोलन उग्र हो गया। कर्नल किरोड़ी बैंसला इस आंदोलन का मुख्य चेहरा बने। राष्ट्रिय रेलमार्ग, और राजमार्गों पर जाम लगाया, बड़ी संख्या में जानमाल का नुकसान हुआ। आखिरकार जून 2008 में, वसुंधरा राजे सरकार ने 5% अनामत देने का निर्णय लिया, और यह आंदोलन समाप्त हुआ। इस आंदोलन में अलग अलग रिपोर्ट्स के अनुसार 30 से लेकर 80 का मृत्युअंक दर्शाया जाता है। 


2015-2016 गुजरात, पटेल/पाटीदार आंदोलन 

  • गुजरात में समृद्ध और प्रभावशाली कृषक समुदाय बसता है, जिन्हे पटेल या पाटीदार से पहचानते है। राजनीती, उद्योग और शिक्षण क्षेत्र में इस समुदाय की मजबूत पकड़ है। पारम्परिक रूप से समृद्ध किसान होने के कारण इन्हे सवर्ण / जनरल केटेगरी में ही रखा गया था। 2000 के बाद गुजरात में कृषि संकट और शिक्षा तथा नौकरी में प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगी। 2015 में आंदोलन की शुरुआत हुई। PAAS (Patidar Anamat Andolan Samiti) का गठन हुआ और उस समय 22 साल का हार्दिक पटेल इस आंदोलन का मुख्य चहेरा बन गया। 
  • अगस्त 2015, अहमदाबाद के GMDC ग्राउंड में लाखों पाटीदार समुदाय के लोग इकठ्ठा हुए। ऐतिहासिक रैली की और अनिश्चितकालीन आरक्षण आंदोलन की घोषणा हुई, रैली के बाद हिंसा भड़क उठी। परिणामस्वरूप कर्फ्यू, इंटरनेट बंद, और कईं लोगो की मृत्यु भी हुई। इस आंदोलन से पाटीदार समाज EWS (आर्थिक पिछड़ा वर्ग) भी स्वीकारने को तैयार था। 2019 में केंद्र सरकारने EWS लागू किया। जिसमे सवर्णों में से आर्थिक रूप से कमजोर लोगो को EWS के अंतर्गत 10% अनामत मिलता है।


2016 हरियाणा, जाट आरक्षण आंदोलन.. 

  •  हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में जाट समुदाय एक प्रमुख जाति है। सामाजिक रूप से संपन्न होने के बावजूद शिक्षा और सरकारी नौकरी में अपने आप को पिछड़ा मानते थे। 1990 के मंडल आयोग में जाटों को OBC में सम्मिलित नहीं किया गया था, फिर भी कुछ राज्य सरकारों ने इन्हे आंशिक OBC आरक्षण दिया। 
  • फरवरी 2016 में शांति पूर्ण धरने से जाटों ने OBC में आरक्षण पाने हेतु आंदोलन शुरू किया। लेकिन 18, 19 फरवरी को आंदोलन उग्र हो गया। रेलमार्ग, सड़क जाम की, और पुलिस के साथ झड़प होने लगी। 20, 21 फरवरी को आंदोलन चरम हिंसा पर उतर आया। सरकारी इमारतें, निजी संपत्ति, और गाड़ियां जला दी। पानी की आपूर्ति करते संस्थान रोक दिए। हिसार, रोहतक, झज्जर और सोनीपत मुख्य रूप से प्रभावित रहे। 30 से अधिक लोगो कि मृत्यु, 200 से अधिक घायल, और तकरीबन 20000 करोड़ रूपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। 
  • 22 फरवरी को सरकार जागी, सेना तैनात करनी पड़ी, मार्च 2016 में विधयेक पारित किया गया। लेकिन 2017-18 में हाईकोर्ट ने पिछड़ी जाति होने के प्रमाण के आभाव में रोक लगा दी। हालिया स्थिति में आंदोलन शांत हुआ पड़ा है। 


2016 - 2025 महाराष्ट्र, मराठा आरक्षण आंदोलन..

  • 2016 में एक नाबालिग लड़की से बलात्कार-हत्या की घटना के बाद 'मराठा क्रांति मोर्चा' का उदय हुआ। लाखों लोग मूक मोर्चा में शामिल हुए। यहाँ से मराठा समाज को आरक्षण, और पीड़िता को POCSO कानून के तहत न्याय की मांग उठी। 2017 में महाराष्ट्र में 50 से अधिक मूक मोर्चे हुए। शांतिपूर्ण आंदोलन, लेकिन समाज की एकता का बड़ा प्रदर्शन हुआ। 2018 में देवेंद्र फडणवीस ने मराठा समाज को SEBC (Socially and Educationally Backward Class) घोषित किया। और विधानसभा में सर्वसम्मति से 16% आरक्षण पास हुआ। 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। और मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने 50% के आरक्षण की सीमा के उल्लंघन का हवाला देते हुए, मराठा अनामत रद्द कर दिया। 
  • 2022-23 में आंदोलन फिर तेज हुआ, मनोज जरांगे पाटिल नए नेता बनकर उभरे। इस बार मांग में बदलाव हुआ, मराठा समाज को OBC में कुनबी श्रेणी में सम्मिलित कर दिया जाए। इस आंदोलन में कईं अनशन, मोर्चे और आत्महत्या की घटनाएं हुई। 
  • 2024 में यह आंदोलन उग्र हुआ। रेल–मार्ग, सड़कें जाम, पुलिस टकराव और आत्मदाह जैसी घटनाएँ हुईं। महाराष्ट्र सरकार ने जिन मराठा परिवारों के पास कुनबी का प्रमाणपत्र है, उन्हें OBC में शामिल करने का वादा किया। और 2025 में महाराष्ट्र सरकार इस आंदोलन का अंत लाने के लिए मराठाओं को कुनबी श्रेणी में OBC में सम्मिलित कर रही है। 

हाल की तस्वीर

    इनके अलावा मध्यप्रदेश में भी पटेल-पटेलिया आंदोलन हुआ था। वहां भी गुजरात पटेल आंदोलन की गूँज सुनाई दी थी। लेकिन वह आंदोलन कमजोर रहा था। मांग उनकी भी OBC में सम्मिलित होने की थी। इसके अलावा मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में MADA (Modified Area Development Approach) आंदोलन हुआ था। इस आंदोलन में आदिवासी क्षेत्रों में विशेष आरक्षण और विकास की मांग थी। EWS आंदोलन भी समय समय पर सर उठाता रहा था। सवर्णों में गरीब परिवारों की मांग थी, कि उन्हें आरक्षण मिले। इस पर कईं सारे संगठन भी बने थे। और 2019 में मोदी सरकार ने 103वाँ संशोधन कर 10% EWS आरक्षण लागू किया। 

    भारत में इस आरक्षण रुपी राक्षस की वर्तमान स्थिति अनुसार, SC को 15%, ST को 7.50%, OBC को 27%, EWS को 10%, कुल मिलाकर 59.50% है। राज्यों में यह आंकड़ा 70% तक भी जाता है। कानूनी रूप से 50% की सीमा पर बहस जारी है। आरक्षण किसी समय पर सामाजिक न्याय का मुद्दा था। लेकिन अब राजनैतिक और आर्थिक न्याय का भी मुद्दा बन गया है। 

आरक्षण के लाभ

    यह तो बात थी आरक्षण के पहचान की। अब आरक्षण के परिणाम भी देखते है। कोई कानून होता  है, तो उसका लाभदायी होना अनिवार्य है। आरक्षण के कानून के तहत, SC/ST को सबसे बड़ा लाभ यही हुआ, कि उन्हें भी सामाजिक सम्मान मिला, मुख्यधारा से वे लोग भी जुड़ पाए। OBC को शिक्षा और नौकरी के मध्यमवर्गीय उन्नति प्राप्त हुई। EWS द्वारा सवर्णों के गरीबों को बराबरी का सहारा मिला। जनरल(ओपन) को कड़ी प्रतियोगिता, और मेरिट आधारित अवसरमें अपने आप को साबित किया, और मेहनती और प्रतियोगी बनाया। 

    लेकिन आरक्षण के लाभ है, तो सामने इसके द्वारा हुई हानि भी बहुत बड़ी है। सामजिक समरसता के नाम पर समाज चार हिस्सों में बँट गया। जहाँ एक तरफ SC/ST को कईं सारे लाभ दिए गए, वहीँ जनरल केटेगरी का मेरिट और ऊँचा चढ़ता गया। सबसे बड़ी हानि तो यही है, कि शिक्षा एवं नौकरी में कड़ी महेनत के बावजूद, ऊँचे मार्क्स और योग्यता सिद्ध करने के बावजूद जब कोई बहुत कम मार्क्स से पास होकर लाभ उठा ले जाता रहा है। 

    अभी मार्च की चौथी तारीख को ओडिशा सरकार में TGT (TRAINED GRADUATE TEACHER) की भर्ती का कटऑफ लिस्ट निकला था। PCM में U.R. MALE (UNRESERVED MALE) के लिए कट ऑफ मार्क्स थे 104.5, वहीँ ST MALE के लिए 34.5.. यह भर्ती थी शिक्षकों की। मुझे यह समझ नहीं आ रहा है, कि जो 34 मार्क से पास होकर टीचर बना है, वह क्या पढ़ाएगा? कुछ दिनों पहले त्रिपुरा PSC MEDICAL OFFICER के रिजल्ट्स आये थे। ST श्रेणी की कोई महिला 14.05 मार्क्स के साथ सेलेक्क्शन पायी। मुझे यह समझ नहीं आ रहा है, कि इनसे कोई दवाई कैसे पाएगा? ऐसे अनेकों उदहारण मौजूद है।

आरक्षण की हानियाँ

    भारत विविधताओं का देश है। विविधता में हम एकता की बातें जरूर करते है। लेकिन यह विविधता - विभाजन का कारण भी बन जाती है। अनेकों लोगो ने इस आरक्षण को नेस्तनाबूद करने के लिए आंदोलन भी किये है। लेकिन समस्या यह है अब, कि जो भी राजनेता यदि इस आरक्षण की व्यवस्था ख़त्म करने का प्रयास भी करें अगर, तो उस नेता का राजनैतिक करियर जरूर से ख़त्म हो जाएगा। देश की प्रतिभा देश के बाहर जा रही है। कैसे बनेंगे हमारे यहाँ गूगल जैसे वैश्विक संसथान? ब्राइट माइंडस तो यहाँ से बाहर ही जाना पसंद करेंगे। क्योंकि वहां कोई आरक्षण के दम पर भर्तियां नहीं होती। वो 14 मार्क्स वाला डॉक्टर, वो 34 मार्क्स वाला शिक्षक, कल को 20 मार्क्स वाले वैज्ञानिक भी आएँगे, राकेट तो उड़ते उड़ेंगे, इसरो को भी उड़ा देंगे। बराबरी का मौका हैं न..

    आंकड़े तो यह भी चीख कर कहते है, कि प्रतिवर्ष कितने ही छात्र विदेश पढ़ने जाते है, और वहीँ के होकर रह जाते है। यह प्रतिभाशाली दिमागों का वह देश भरपूर लाभ उठाते है। भारत को नुकसान होता है। आज हम यहाँ बैठे बैठे गर्व करते है, कि फलानि कम्पनी का CEO भारतीय है, फलाने संस्थान का CEO भारतीय है। लेकिन हम यह नहीं सोच रहे है, कि वैसे ही संस्थान, वैसी ही कंपनियां भारत में क्यों नहीं स्थापित हो रही? अपने यहां बस फ़ूड डिलेवरी के ही युनिकोर्न्स बना करेंगे क्या? भारत का अपना सोशल मीडिया कहाँ है? इतनी बड़ी जनसँख्या होने के बावजूद हम अपना खुद का फाइटर जेट इंजिन नहीं बना पाए है, उसके पीछे का कारण कहीं यह आरक्षण तो नहीं? कायदे से तो 35 मार्क वाले को फ़ूड डिलेवरी करनी चाहिए। लेकिन वह एक प्रतिभाशाली व्यक्ति की सीट खाकर बैठा है। 

    इस आरक्षण के कारण ही, जातियों के बिच दूरियां बढ़ी है। प्रतियोगी परीक्षाओं में असंतोष बढ़ा है। आरक्षण अब समाज सुधार का साधन नहीं रह गया है। वह अब वोट बैंक का औजार है। आरक्षण का एक लाभार्थी होना चाहिए। वंशानुगत नहीं। बाप यदि आरक्षण के बलबूते पर स्थापित हो चूका है। तो उसके बेटे को इस व्यवस्था से वंचित कर देना चाहिए। देश के तमाम विभागों में आरक्षण द्वारा चयनित हुए लोग, देश की ही कार्यक्षमता और गुणवत्ता का नुकसान कर रहे है। देश की प्रगति धीमी हो जाती है। प्रतिभा तो सीट न मिलने के कारण या तो मजदूरी कर रही है, या विदेश जा चुकी। गरीब सवर्ण भी उपेक्षित अनुभव करता है। 

कुछ उदहारण, कटऑफ मार्क्स के असंतुलन के..!


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    यह तो कुछ चुनिंदा उदहारण है। प्रत्येक कॉम्पिटिव परीक्षाओं का यही हाल है। केटेगरी के अनुसार समाज को बांटकर कुछ समाजों को ऊपर उठाने के नाम पर अन्य समाज को पीछे छोड़ने की साजिश क्यों न कही जाए इसे? आरक्षण तो शुरुआती दस वर्षों के लिए था न? फिर इसे आज भी सरकारें क्यों ढो रही है? रिजर्वेशन की यह प्रणाली need-based होनी चाहिए, न कि caste based..! दुनिया के बहुत से देशों में नागरिकों के बिच समरसता लाने के लिए आरक्षण मौजूद है। लेकिन अपनी तरफ जाति आधारित नहीं है। 

   एकतरफ हमें भारत को सबसे मजबूत अर्थतंत्र बनाना है, और दूसरी तरफ आरक्षण और अन्य ऐसे ही कारणों से बुद्धिमत्ता भारत से बाहर चली जा रही है। यह मुद्दा अनेकों बार अनेकों लोग लिख चुके है। मेरा भी यह लेख दबा रहेगा उन्हीं किसी कटऑफ के असंतुलित मार्क्स के शोर में। गजा स्पष्ट कहता है। कुछ नहीं होना ऐसे लेखों से..! जो भी सरकार इस मुद्दे पर कोई निर्णय लेगी, वह अपनी सत्ता खो देगी। इस लिए लोग भी आदी हो चुके है, सरकार भी। 

|| अस्तु ||


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