रविवार, तुलसी विवाह और बाजार की उलझनें || दिलायरी : 02/11/2025

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रविवार, तुलसी विवाह और बाजार की उलझनें | दिलायरी 2 नवम्बर 2025

    प्रियम्वदा !

    रात्रि के बारह बजकर आठ मिनट्स हुए है। बीते कल की दिलायरी अभी अभी लिखकर पूरी की है, और अब आज की लिखने बैठा हूँ। क्या करूँ, कुछ समझ नही आ रहा, कैसे टाइम मैनेजमेंट करूं? अब तो ऑफिस में दिन भी ऐसे सरक जाता है, जैसे मुट्ठी से रेत.. या जैसे विधायक पद की टिकिट..! बिहार के चुनाव ने गजब ही तहलका मचा रखा है। खेर, आज तो रविवार था। सवेरे उठा, और जल्दी जल्दी तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल पड़ा। काम और कुछ नही, बस यह दिलायरियाँ समेटना ही प्राथमिकता है। बहुत लेट चल रही है। हाँ ! वैसे मैंने जितना सोचा था, उससे अधिक मुश्किल और पेचीदा मामला हो चुका है यह दिलायरियाँ..! सात दिन से अधिक पीछे चल रहा हूँ मैं। अब तो एक ही काम हो सकता है। जितनी लिखी जा चुकी है, उन्हें एक साथ ही पब्लिश कर दी जाए। लगभग छह दिन मेरी जिंदगी के तो ड्राफ्ट में यूँही पड़े हुए है, अपनी बारी के इन्तेजार में।


A tired Rajasthani man writing his diary at midnight under a soft lamp, with tea and a laptop on a wooden desk — symbolizing reflection, responsibility, and calmness.

 सुबह की सुगंध : तुलसी विवाह और लग्नगीतों की मधुरता

    आज तुलसी विवाह था। हमारे यहां कईं जगहों पर तुलसी का विवाह उसी तरह रचा जाता है, जैसे सचमुच का विवाह प्रसंग हो। ढोल शहनाई, भोजन समारंभ.. सब कुछ ही सच्ची विवाह वाले प्रसंग। इसी के चलते आज सवेरे सवेरे में जब उठा था, तब मेरे कानों में मीठे लग्नगीत के स्वर पड़े थे। माताजी गा रहे थे, 


"ब्रह्माना तुलसी ने सूरज ना मांगा,

सूरज ना मांगा दादा पाछा रे ठेलो,

एनी आगे रे तड़का ने ताप जाजा रे,

ब्रह्मा ना तुलसी बाळ कुंवारा..!


ब्रह्माना तुलसी ने चांदा ना मांगा,

चांदा ना मांगा दादा पाछा रे ठेलो,

इतो वधे ने घटे ने मंदवाड जाजा रे,

ब्रह्माना तुलसी बाळ कुंवारा..!"


    अरे हाँ, प्रियम्वदा, तुम्हे तो यह गुजराती समझ नही आएगी? हिंदी भी मुझे ही करना पड़ेगा। तुलसी का हाथ मांगने के लिए सूरज (सूर्यनारायण) ने प्रस्ताव रखा। विवाह के लिए प्रस्ताव रखा जाए, उसे कन्या का 'मांगु नाख्यु' कहते है। अब तुलसी तो कोमल है, वह सूर्य का ताप और धूप कैसे सहन करें? इस लिए कहा गया कि, दादा आप सूरज के प्रस्ताव को वापिस कर दो, मना कर दो। सूर्य का प्रस्ताव रदद् होने के बाद तुलसी से विवाह के लिए चंद्र की बात रखी गयी। लेकिन चन्द्र का प्रस्ताव भी इसी तरह मना किया गया, कि चन्द्र तो स्वयं ही बढ़ता घटता रहता है, मतलब बीमार रहता है। उसके साथ विवाह नही हो सकता। इस प्रकार तुलसी बाल कुंवारे ही रह जाते है। इसी प्रकार आगे इस लग्नगीत मे शिव का प्रस्ताव आता है, इंद्र का प्रस्ताव आता है। और सबके ही प्रस्ताव इसी तरह ठुकरा दिए जाते है।


दोपहर का भागदौड़ भरा ऑफिस और यादों की दौड़

    दोपहर को बारह बजे हमने वित्त वितरण कार्यक्रम शुरू किया। और निपटाते हुए दोपहर के तीन बजे गए। दोपहर बाद दीवाली के राम राम करने एक पहचान वाले के घर जाना पड़ा। वहां से लौटकर मार्किट चल दिया। आदमी कितना भुलक्कड़ हो सकता है, यह बात बताता हूँ। मैं और हुकुम चल पड़े मार्किट। थोड़ा बहुत राशन लाना था, और ac भी खरीदना था। सबसे पहले तो राशन ही खरीद लिया। हुकुम साथ में थे, और कुँवरुभा भी। तीन पीढ़ी एक साथ बाजार में निकल पड़ी थी। हुकुम के साथ होने के कारण इस बार दाल के मायाजाल से मैं सकुशल पार उतर गया। वरना हर बार दाल के प्रकार मुझे बहुत ज्यादा परेशान करते है। काली, पीली, नीली, हरी.. पता नही कौन कौन सी दाल आती है।


मार्केट में मोलभाव, तीन पीढ़ियाँ और खोया वॉलेट

    फिर हम चल पड़े क्रोमा में। क्रोमा से ac लेना तय ही था। पिछली बार जब आया था, तो क्रोमा वालों ने ज्यादा भाव नही दिया था मुझे। इस बार एक मेडम लपक कर आयीं। और ac के सारे फंक्शन बड़ी ही सौम्य और मधुर शैली में समझाने लगी। बड़ी ही सुंदर मेडम थी। सेल्स गर्ल्स ऐसी ही आकर्षक होनी चाहिए। तभी तो पुरुष मंडली भौरें की माफिक खरीदारी करेगी। मैंने उनसे बहुत सारे अलग अलग ac के विषय मे जानकारी ली। इतना समझ आया कि थ्री स्टार ac घर के लिए ठीक है, और फाइव स्टार ac ऑफिस के लिए। कम इस्तेमाल करना हो तो थ्री स्टार, ज्यादा उपयोग में लेना हो तो फाइव स्टार। थ्री स्टार में कूलिंग कैपेसिटी भी ज्यादा होती है। मैंने LG तय की थी। लेकिन हुकुम बोले, "नहीं ! वोल्टास टाटा की है। इंडियन ब्रांड खरीदनी चाहिए।" दोनों के भाव मे बाद अंतर नही था। उल्टा यहां पर जो मॉडल थे, उनमे वोल्टास के फंक्शन बेटर थे। हुकुम भी कईं बार गजब ही ढाते है। 


    मैंने उस सुंदर मेडम से पूछा, मुझे यह वोल्टास वाले दो ac चाहिए। लेकिन उनके पास स्टॉक में एक ही था। तो मैंने वोल्टास का दूसरा मॉडल पसंद किया। वह भी एक ही था उनके पास। तो मेडम स्टॉक चेक करने के बहाने सरक गयी। दो मिनट का बोलकर। इतने में मैंने सोचा इलेक्ट्रिक इंडक्शन स्टोव भी लगे हाथ देख लू। क्रोमा वालों के पास वह भी नही था। था एक, लेकिन वह बहुत महंगा भी था, और ब्रांड भी मैंने पहली बार सुनी थी। तो हम लोग निकल गए वहां से। क्रोमा वालों ने हुकुम के मुंह से सुवाक्य सुने, "क्या यह लोग लोकल मार्किट को तोड़ेंगे? इनके तो खुद के पास स्टॉक नही है।" बाहर निकलते हुए कुँवरुभा लैपटॉप देख गए, और जिद्द करने लगे, लेपटॉप दिलवाओ..! मैंने पूछा उनसे, "आप क्या करोगे इसका?" तो प्रत्युत्तर में कहते है, "गेम खेलूंगा.." उन्होंने हुकुम की ओर देखा। हुकुम ने एक ही बाकी उनसे कहा, "तेरे बाप को मैंने खरीदकर दिया था, अब तुझे लेपटॉप दिलाने की जिम्मेदारी, तेरे बाप की है।" और मैं अपनी मुंडी नीची करके बाहर की ओर चल दिया।


    एक लोकल दुकान पर चल दिए। यहां भी हमें वोल्टास का वैसा ही मॉडल मिला। लेकिन यहां सेमसंग का भी था। सेमसंग भी अच्छी ब्रांड है। सर्विस वगेरह भी सरलता से उपलब्ध है। और वोल्टास से ज्यादा फ़ंक्शंस वोल्टास के जितने ही दाम में मिल रही थी। यह ज्यादा अच्छी डील थी। मैंने हुकुम से आग्रह किया, कि यह ज्यादा अच्छा है। लेकिन हुकुम अपनी बाद पर अडिग रहे। अपने भारत की कम्पनी होनी चाहिए। हुकुम का यह स्वरूप मैंने पहली बार देखा था। यह सब कुछ मोबाइल का असर है। सोसियल मीडिया सबपर असर जरूर करता है। समाचार चेनल्स भी। ट्रम्प और वैश्विक राजनीति में होती उथलपुथल किसी राष्ट्र के नागरिकों की विचारधारा को अवश्य ही असर करती है। डील फाइनल हो गयी। वोल्टास के दोनों ac तय हो गए। पेमेंट के लिए आगे बढ़ा मैं। जेब मे हाथ डाला तो मेरा वॉलेट गायब था। एक बार को तो डर की एक छोटी सी कपकपाहट छूट गयी। मुझे लगा था मैंने अपना वॉलेट कहीं गिरा दिया।


    लेकिन फिर तुरंत याद आया। वॉलेट तो मैं साथ लेकर ही नहीं निकला था। जेब में वसा थोड़ा कॅश ही पड़ा था। फिर क्या था, इज्जत बचाने ले किए upi try करने की सोची। लेकिन यह विचार भी खोखला था। जिस बैंक एकाउंट से पेमेंट करनी थी, उस एकाउंट में तो यूपी एक्टिवेट है ही नहीं। अब? क्या हो सकता था। कल वापिस आकर खरीद लूंगा, यह कहकर नजरें नीची कर बाहर निकल आया। हुकुम भी बरस पड़े.. जेब मे देहली नहीं, और बाजार घूम रहे है लाटसाहब..! 


शाम की वॉलीबॉल, थकान और अधूरी सुकून की तलाश

    रात को डिनर में पावभाजी बनी थी। दबाकर ठूंस ली, और फिर चल पडा वॉलीबॉल खेलने। गजा लौट आया था, और शाखा ही ले रहा था। शाखा के बाद पसीने से लथपथ हो जाए, उतनी गेम खेली है आज तो। आखिर में तो इतनी भी शक्ति नहीं बची थी, कि घर पहुंच पाऊं..! मन तो कर रहा था, वहीं पीपल के नीचे ही सो जाऊं.. लेकिन घर घर होता है। घर लौटना अनिवार्य है। फिलहाल एक बजकर पांच मिनिट हो चुकी। आंखें नींद से सराबोर है।


    शुभरात्रि।

    ०२/११/२०२५

|| अस्तु ||


प्रिय पाठक !

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