सुबह की शुरुआत और पहली तारीख का जश्न
प्रियम्वदा!
पहली तारीख है, प्रियम्वदा.. नौकरी करने वालों की खुशियों भरा दिन.. क्योंकि अब प्रेमिका के आने से भी ज्यादा खुशी पगार आने की होती है। यह खुशी सिर्फ नौकरी करने वाला ही समझ सकता है। पहले प्रेम में जो पेट मे गुदगुदी होती है, प्रेमिका के सामने.. ठीक वैसी ही खुशी महीने की शुरुआत में होती है। खेर, हम तो अब इन खुशियों से परे हो चुके है। क्योंकि हमें अब यह दिखता है, कि यह पगार आयी... अरेरे.. यह गयी..! यही परम् सत्य है हमारे लिए। छोड़ो यार, तुम अभी की बात सुनो.. क्या हुआ, हम लोग खेल रहे थे वॉलीबॉल.. अपने उस विषैले गजे का फोन आया। "तुम लोगों ने कल वॉलीबॉल खेलने के लिए शाखा नहीं ली?"
वॉलीबॉल, शाखा और ‘विषैले गजे’ का मंत्र
मैने मना किया, कि "लड़के लोग तैयार नहीं हुए।" उसने कहा, "जिस शाखा के कारण तुम लोग इकट्ठा होना सीखे, वॉलीबॉल खेलने लगे। आज उसी शाखा को तुम लोगों ने वॉलीबॉल के लिए स्किप किया? तुम लोगों का वॉलीबॉल ज्यादा चलेगा नहीं..!" उसका इतना कहना था, कि वॉलीबॉल पंक्चर हो गया। वो भी बड़ा पंक्चर। हवा भरते ही तुरंत निकल जाती। सारे खेल का कबाड़ा हो गया। इतने लड़के निराश हो गए। मैं उस काली जुबानिये को कोसता रहा। मैं भी उसकी बात से सहमत तो हूँ, कि जिस शाखा के कारण हम लोग इकट्ठा हुए, और एक खेल खेलने की भावना से जुड़ते गए, हमने उसी शाखा को स्किप किया था। यह एक आत्मग्लानि का भाव मेरे भी भीतर कहीं न कहीं था ही। वॉलीबॉल खेल लेने के पश्चात मैंने लड़को से कहा भी था, कि प्रार्थना और मंत्र ले लेते है। शाखा हुई मान ली जाएगी। लेकिन सब वॉलीबॉल खेलकर बहुत थक गए थे, तो कोई भी तैयार न हुआ।
परिणामस्वरूप उस तांत्रिक ने बड़ी दूर से कोई तो मंत्र मारा था, कि हमारा यहां वॉलीबॉल पिचक गया। खेर, आज का दिन तो बड़ा ही बेकार रहा था। सवेरे बारह बजे ऑफिस गया, क्योंकि एक इलेक्ट्रीशियन बुला रखा था। इलेक्ट्रीशियन भी मुझे खतरनाख मिला है। अपना तो साफ हिसाब है, प्रियम्वदा ! मैं तो मांगे उतने पैसे देने को तैयार हूँ, लेकिन काम मुझे तय समय के भीतर चाहिए, और काम भी साफ सुथरा होना चाहिए। मैंने सवेरे फोन किया तो उसने बताया कि वह वायर और mcb स्विचस लेने गया है। इतना तो आश्वासन रहा, कि आज के दिन में काम हो जाएगा। लेकिन हकीकत में यह आशा भी गलत ही रही। मैं दोपहर के बारह बजे तक इन्तेजार करता रहा, लेकिन वह नहीं आया। जितनी बार फोन करता, वह आधे घण्टे का नाम लेता रहा।
इलेक्ट्रिशियन और अधूरा काम
विचार हुआ, कि जितनी देर में यह आएगा, उतनी देर में मैं एल्युमीनियम डोर वाले से मिल आऊं। घर मे एक एल्युमीनियम डोर लगवाना है, और विंडो भी..! मैं एक डोर वाले के पास पहुंचा, वह भी हाज़िर नहीं था। उसको फोन करके घर का पता बताया, ताकि एस्टीमेट दे जाए, कितना खर्चा आएगा, कमसेकम अंदाज़ तो आ जाए। घर लौटकर वापिस इलेक्ट्रीशियन को फोन किया तो उसने फिर से एक घण्टे का नाम ले लिया। बारह बज रहे थे, और शनिवार होने के कारण काम भी बहुत था। मैं ऑफिस चल पड़ा। दोपहर को घर पर फोन किया था, तो इलेक्ट्रीशियन घर पर काम कर रहा था। उसे एक वायर इलेक्ट्रिसिटी मीटर से बैडरूम तक ले जाना था। और वह वायरिंग करके चला गया, शाम को आने की बोलकर। शाम को मैंने उसे फोन किया तो वह बोलता है उसके घर मे कोई फंक्शन है। कल पक्का काम कर दूंगा।
एल्युमिनियम डोर वाला और खोई उम्मीदें
शनिवार के कारण ऑफिस पर काम भी बहुत था। थोड़ा बहुत दिलायरियाँ भी खींच रहा हूँ मैं। जितना बन सके, जितना मिल पाए, उतना समय निकालकर मैं यह काम कर लेना चाहता हूँ। लेकिन बात यही है, कि मुझे जितना खाली समय मिलता है, वह यह वॉलीबॉल खा जाता है। मैं रात साढ़े आठ बजे घर लौटा। मुझे लगा था कि वह शाम को वायरिंग का काम पूरा करके चला गया होगा। घर आकर देखा, तो मेरा दिमाग हिल गया.. यह कैसा इलेक्ट्रीशियन है? मुझे वायरिंग करनी नहीं आती है, लेकिन वायर कैसे ले जाया जाता है, यह तो मुझे आता है। कोई भी वायर अगर दीवार के बाहर से ले जाना है, तो हमेशा दीवार और छत के कोने से होते हुए दीवार के सहारे सहारे लिया जाता है। इस बेवकूफ ने तो सीधा छत में शॉर्टकट मारा था। मुझे तो इतनी गालियां देने का मन कर रहा था, पर मैं घर मे था, इस लिए क्या ही करता?
अरे इतना मूर्ख कोई कैसे हो सकता है? सीधे छत में वायर क्लैंप कौन मारता है भला? किसी दिन क्लैंप निकल गए, तो वायर सीधा पंखे में नहीं फंसेगा? सही में, मूर्खो की कमी नही है इस दुनिया मे। मैंने उसे फोन मिलाया, तो कहता है, "बापु ! मेरे घर पर फंक्शन है, कल आपका काम पक्का कर दूंगा।" है तो बालक ही वह। अभी तो मुछ फुट रही है उसकी। बहुत बड़ी गलती कर दी मैंने नौसिखिए को काम देकर। मुझे लगा था लड़का होशियार हुआ तो कर लेगा। करना भी तो क्या ही था? बस दो वायर है, अलग अलग रूमों में पहुंचानी थी। इसी चक्कर मे गुस्से में वॉलीबॉल खेलने पहुंचा था। लेकिन वहां भी गजे ने शुरुआत में कहा वह मंतर मारकर गेम का कबाड़ा कर दिया।
रात का बैडमिंटन और थकान में मिली मुस्कान
लेकिन हम लोग भी हार नही मानते है। एक बैडमिंटन सेट एक लड़का ले आया। और एक सेट पत्ता। पत्ते के बहुत दिनों पहले लाये हुए बैडमिंटन आज आखिरकार काम आ गए। लगभग बारह बजे तक हम लोग खेलते रहे। वॉलीबॉल से ज्यादा मुश्किल लगा यह खेल। क्योंकि इसमें वह शटलकॉक मुट्ठीभर का होता है। ऊंचा उठ गया, तो बहुत धीरे धीरे आता है। वह जितनी देर में आता है, इतनी देर में तो मैं दो शॉट हवा में खेल लेता हूँ। और आखिरकार शटलकॉक बिना रैकेट को छुए मेरे ही पाले में गिर जाता। बहुत कोशिशों के बाद मेरा हाथ बैठा था। पहले तो सारे ही गिर जाते थे। लेकिन बाद में सारे ही शॉट ठीक से लगने लगे। हालांकि तब भी उपराउपरि सारे ही पॉइंट्स मैंने गंवाए ही थे, और तीनों मैच मैं ही हारा था।
दिन का सार और आत्ममंथन
यही था, यह बेकार दिन। जहां इलेक्ट्रिशियन बेवकूफ निकला। एल्युमीनियम डोर वाले को काम की पड़ी नही है। विषैला गजा काली विद्या सीख चुका है। और यह शटलकॉक मेरे अनुसार चला नहीं। कभी कभी दिन ही ऐसा होता है, हम चाहे कितना ही उसे समेट लेने की कोशिश करें, वह सरक ही जाता है।
शुभरात्रि।
०१/११/२०२५
|| अस्तु ||
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