"रविवार की थकान, चौक की सफाई और गणपति विसर्जन" || दिलायरी : 31/08/2025

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रविवार की थकान और ऑफिस का दिन

    ऐसे बहुत कम दिन आते है जीवन में प्रियंवदा ! जब आप थक के चूर हो जाओ..! मेरे जीवन में तो बहुत ही कम..! क्योंकि मैं दिनभर ऑफिस में बैठा रहने वाला जीव हूँ। लेकिन रविवार था, ऑफिस पर भी इतना कुछ काम न था, क्योंकि पुरे एक सप्ताह से मिल बंद ही पड़ी है। लेकिन बीते कल की दिलायरी अपडेट करनी बाकी रह गयी थी, इसी कारण से सवेरे सवा नौ बजे मैं ऑफिस आ गया। यह बात तो है, मुझे काम नहीं होता है फिर भी मैं बस दिलायरी के लिए भी ऑफिस जल्दी आ सकता हूँ। 


"Sunday diary: Garbi Chowk cleaning, physical work, and Ganpati Visarjan reflections."

चौक की सफाई का संकल्प

    काम नहीं है, नहीं है, नहीं है.. करते करते भी हमने दोपहर के दो बजा दिए ऑफिस पर ही। दोपहर के भोजनादि से निवृत होकर आधा घंटा विश्राम लिया ही होगा की चार बज गए। आज काम था हमारे गरबी चौक की साफ़-सफाई वगैरह करना। जैसे मन में पुरानी यादों पर वख्त के जाले लग जाते है, कुछ इसी तरह का हाल हमारे इस नवरात्री चौक का है। वैसे तो हम हर शुक्रवार रात को संघ की शाखा लगाते है। लेकिन रात में होने के कारण इस चौक की साफ़-सफाई का काम नहीं हो पाता। बाकी के दिन हर कोई अपनी अपनी जीवनी में इतना व्यस्त हो जाता है, कि इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जा पाता। 


    इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड वाले अपने वायरो के आड़े आते तमाम वृक्ष की डालियाँ तोड़ देते है। चौक की बॉउंड्री पर लगे नीम, और अशोक वगैरह अब इतने बड़े हो चुके है, उनकी डालियाँ अब खंबे के तारों से जा टकराती है। तो यह GEB वाले कभी कभार आते है, जितनी डालियाँ उन्हें आड़े आती है, उनका निकंदन कर देते है। तो ऐसी कईं सारे डालियाँ उन्होंने इसी चौक में रखी थी। चौक के आजुबाजु मकान वाले भी कॉमन प्लाट होने का लाभ उठाने से चूकते नहीं है। चौक में इस बगीचे के लिए पानी की मोटर बाहर लगा रखी है, तो लोग अपनी मोटरसाइकिल भी धो लेते है। 


सफाई अभियान और शारीरिक श्रम का अनुभव

    झगड़ा करने का पर्याप्त समय न होने के कारण हम भी कुछ कह नहीं पाते थे। लेकिन आज तो समय ही समय था। हमने चार बजे से सफाई अभियान शुरू कर दिया। सबसे पहले तो ढेरों डालियाँ और पत्ते थे, वे सब जला दिए। कुल्हाड़ी, कुदाल, और धारिया.. सब कुछ ठीक-ठाक करते करते, छह बज गए। दिनभर कंप्यूटर चलाने वाले हाथों ने जब धारिये से वे सूखी डालियाँ काटी, तो दो-तीन छाले अपना अस्तित्व जमा गए। हथेलियां ऐसी जकड़ने लगी थी, कि कुछ देर तक तो मुट्ठी भी न भींच पा रहा था। सप्ताह में एकाध बार ऐसा शारीरिक श्रम करना चाहिए। ऐसा मुझे लगता है। क्योंकि रात नौ बजे ही मुझे नींद आने लगी थी। 


गणपति बाप्पा का बदलता स्वरूप

    साढ़े छह को हुकुम और माताजी को बस डिपो छोड़ने जाना था। तो घर से कार उठायी, और उन्हें डिपो छोड़ आया। कार में पेट्रोल भी न था। तो लौटते हुए कार को भी थोड़ा तेल सुंघा दिया। एक बात बहुत अच्छी हो चली है अब प्रियंवदा ! रविवार को बहुत से गणपति बाप्पा का विसर्जन था। अब तो गणपति बापा भी सबके सेपरेट हो गए है। सबसे पहले तो गणपति की स्थापना होती ही न थी। आज़ादी काल में आंदोलनों के लिए लोगो को इकठ्ठा करने के लिए गणपति स्थापन होने लगा। तो कईं सारे मोहल्ले के एक गणपति होते थे। धीरे धीरे जन संख्या बढ़ती गयी। 


    एक सोसायटी के एक गणपति होने लगे। धीरे धीरे, एक-एक गली के एक गणपति होने लगे। और अब तो हर घर गणपति की स्किम हो गयी है। और ऐसे ही प्रगति होती रही, तो एक दिन एक घर में दो भाई है, तो दोनों भाइयों के भी अलग अलग गणपति बैठा करेंगे..! गणपति की स्थापना ही होती थी एकता लाने के लिए। लोगो को इकट्ठा करने के लिए। समूहभावना को बढ़ावा देने के लिए। फिर अब दिखावे के चलते घर घर पर अपने अपने गणपति आने लगे। लोग भीड़ का हिस्सा होना नहीं चाहते है। खेर, अब इतने सारे गणपति हो, तो उनके विसर्जन के लिए भी भारी समस्या हो जाए..!


पर्यावरण-हितैषी गणपति और घर में विसर्जन

    तो मार्किट में वो गणपति आए, जिनका आप घर में ही विसर्जन कर सकें..! (मैं नाम भूल गया, वो कौनसी मूर्ति कही जाती है, जो कच्ची मिटटी से बनाई जाती है।) तो लोग अब उस नीले ड्रम का उपयोग करने लगे है। पानी से भरकर, उसी में बाप्पा को बिठा दिया जाता है। विसर्जन हो जाता है। छोटी मूर्ति वाले घर में ही कथरोट में विसर्जित कर देते है। तो कल ठिकाने-ठिकाने पर टेबल पर कथरोट, या जगह जगह पर पानी भरा हुआ पात्र देखा मैंने। रंगो में खेलते हुए, गाजे-बाजे के साथ लोगो ने गणपति बाप्पा को विदा किया। 


चौक का भविष्य और योजनाएँ

    पहले पिताजी आए थे, अभी अभी उनके पुत्र विदा हुए, और अब माताजी आएगीं। सावन में शिव आए, भादों में गणपति, और सब अश्विन में अम्बा - नवरात्री। साल के तीन महीने तो बस शिव परिवार के ही है। हाँ! वैसे हमने सारा ही चौक साफ़-सूफ कर दिया। अब बस रेत डलवाकर बिछानी है। महीने भर में तो आराम से सब कुछ हो जाएगा। साथ ही साथ चौक में ही एक वॉलीबॉल ग्राउंड भी तैयार करने की सोच रहे है। ताकि फ्री समय में ग्राउंड में कुछ खेल वगैरह भी हो सके। और यह चौक फिर से वीरान न हो जाए। और आजुबाजु के घर वाले अनैतिक लाभ भी न उठाए। 


    शुभरात्रि। 

    ३१/०८/२०२५

|| अस्तु ||


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