मैं खुद से मिलने निकला हूँ..! || Day 24 || नए लम्हे का पहला कदम..

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 मैं खुद से मिलने निकला हूँ..!



Date  - 03/10/2025
Time & Mood -11:04 || प्रत्युत्तर से विमुख..

नए लम्हे का पहला कदम..

    उगते आदित्य के साथ जैसे संसार में चेतना का संचार हो जाता है। यह कनेर का वृक्ष सूर्यकिरणों के स्वागत में, अपने पुष्पों पर एकत्रित जलबूंदो से, किरणों को यथोचित परावर्तित कर उजाले का सहयोग कर रहा है। नया दिन अपने साथ नई ऊर्जा, और नए प्लान्स ले आता है। यह दिन छुट्टी का नहीं है, लेकिन इसे मैं अपने आप के लिए आवंटित करता हूँ।
    अपनी उन तमाम उलझनों को कम से कम आज के दिन के खाते में न ही उतारूं। मैं जो लिखना चाहता हूँ, वह बेझिझक लिख दू। फिर परिणाम चाहे जो भी आए। मुझे किसी से कुछ कहना था, मैं कह चूका, मुझे प्रत्युत्तर की कोई कामना नहीं। मुझे अपने भीतर के भावों को प्रकट करना था, मैंने कह दिया। अपना हृदय कूप खाली कर दिया है। अब वहां वे भाव पड़े न रहेंगे। भविष्य में उस कूप को फिर कोई स्त्रोत सींचकर पुनः भर दे, तब फिर से प्रियम्वदा को संबोधित कर मैं वह कूप फिर से एक बार खाली कर दूंगा। 
    यह खाली हुआ कूप भी कितना अच्छा है, जैसे मन पर से कितना ही भार कम हो गया। यही भार मुझे बाधित करता रहता है। जरुरत है, तो समय समय पर बस यह कूप को खाली करते रहने की। बहुत कम अवसर और हिम्मत बनती है, जब यह मिश्रित भावों से भरा कूप खाली हो जाए। 


एक सवाल :

    मुझे प्रत्युत्तर की आशा क्यों नहीं है? क्या समय के साथ साथ एक कठोरता आ जाती है? जो मेरी उन संवेदनाओं को बाँध रखती है, जिन्हे प्रत्युत्तर से फर्क पड़ता है। 

सबक :

    उस कूप में कईं सारे भाव होते है। कुछ ऐसे भी, जिन्हे अव्यक्त रहने देना चाहिए। क्योंकि वे संबंधों में हानि करते है। सत्य के नाम पर वे कटुता से सराबोर होते है। और उन्हें सर्वनाश से कोई अंतर नहीं पड़ता।

अंतर्यात्रा :

    कभी कभी बस कह देना चाहिए और फिर कान बंध कर लेने चाहिए। क्योंकि उस बात के प्रतिध्वनि सुनने को हम तैयार नहीं होते है। उन्हें अनसुना करने से अपना पथ अबाध्य रहता है। 


स्वार्पण :

    मुझे मेरा हाल पता है। मैं उस हाल को अब संभाल सकता हूँ.. अनंत तक।


तुम्ही ने सींचा था उस बीज को, रन में गुलाब को अंकुरित नहीं होना चाहिए।   

 

वही,
जिसके ह्रदय में कोंपल अंकुरित हो चुकी। 


***


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