अधूरी यात्राएँ, यादों की बारिश और ज़िम्मेदारियों की बेड़ियाँ || दिलायरी 29/10/2025

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सुबह की शुरुआत – बारिश, ट्रैफिक और थकान

    प्रियम्वदा !

    अति हो चली है.. सुबह से लेकर शाम तक..! दिलायरियाँ लिखने का भी समय नहीं मिल रहा है। कैसा होगा.. अभी तक वह ट्रेवल ब्लॉग भी बाकी है, और यह एक के बाद एक ढलते जाते दिन अलग..! इनकी भी दिलायरियाँ होती है। होती तो वैसे इन्ही की है। मुझे वह चार दिन के टूर का ब्लॉग ही अलग कर देना चाहिए था। चलो जो हो गया सो हो गया। 


“बारिश के बाद की शाम में, एक रज़ाकार रajasthani यात्री कार की सीट पर बैठा खिड़की से बाहर देख रहा है — सोच में डूबा, दिनभर की थकान और जिम्मेदारियों के बीच अपनी दिलायरी लिखता हुआ।”

नए AC की तलाश और उलझे फैसले

    आज सवेरे भी बारिश की बूंदाबांदी चालू थी। और हमारे यहाँ का ट्रैफिक जैम। रात को किसी ट्रक वाले ने दो लेन रोककर अपने ट्रक को ब्रेक डाउन करवा लिया। सवेरे तक बढ़िया जैम हो गया। आजकल दिमाग में कोटशन ही चल रहे है। हुकुम का आदेश है, AC ले आओ। अपन को जीरो अनुभव है, AC के फंक्शन्स के बारे में। अपने को तो बस ठंडक होती है, उससे मतलब होता है। मैं एक शोरूम और दो दुकानों में गया। उन लोगो ने मुझे तरह तरह के फंक्शन्स समझाए। लेकिन कुछ भी समझ आया नहीं। 


    सोचा यार दोस्तों से पूछा जाए, एक से पूछा, वो बोला LG बढ़िया है। दूसरे ने कहा LLOYD बढ़िया है। एक ने ONIDA कहा। एक ने PANASONIC.. सब सही है, तो गलत कौन है भाई? इनके अलावा BLUE STAR, VOLTAS, और O'GENERAL की मार्किट में अलग चलती है। कोई कहता है, थ्री स्टार बढ़िया है। कोई कहता है फाइव स्टार सबसे अच्छा है। कोई ड्यूल इन्वर्टर है, तो कोई AI वाला भी। 


इलेक्ट्रीशियन की तलाश और अधूरी इच्छाएँ

    यह समस्या खड़ी ही थी, कि याद आया। पहले तो AC के लिए उसके पावर प्लग पॉइंट भी तो चाहिए। और वह लगाकर देगा इलेक्ट्रीशियन। तो पहले तो ढंग का इलेक्ट्रीशियन ढूंढो। अपने पास तो उसके भी नंबर नहीं है। वो इधर उधर फोन घुमाकर निकाले। पहले एक को फोन किया, तो वो बोला, मैं घर का काम नहीं करता। सिर्फ इंडस्ट्रीज का हूँ। उसने एक और नंबर दिया। उसको फोन मिलाया, तो वो बोला, पहले काम कितना है, और कैसा है, वह देखना पड़ेगा। कितना अच्छा होता प्रियम्वदा, कि हम कुछ सोचते और वह काम हो जाता। 


थकान, सर्दी और खुद से सवाल

    शाम तक आज तो काम का अंबार लगा हुआ रहा है। बीते कल की दिलायरी भी कहाँ लिख पाया हूँ। तबियत भी घूमकर आने के बाद नरम हो चुकी है। झुकाम बड़ी गन्दी बला है। जल्दी पीछा नहीं छोड़ती। सर से शुरू होती है, और छाती तक पहुँचती है। कईं बार लगता है, या तो मैंने यह दिलायरी लिखते रहना गलत चुन लिया है। या फिर मैंने वह ऑफिस में जो एक्स्ट्रा काम ले लिया है, वह गलत है। 


    समय ही नहीं बचता। ऑफिस, या नौकरी, या काम ऐसी बला है, कि हम कहीं भी हो, हमें अपनी ओर खींचता ही खींचता है.. वहां मैंने सापुतारा छोड़ा, और यहाँ काम ने पकड़ लिया। चालु ड्राइविंग में भी फोन चलाने की नौबत आ जाती है। लेकिन मैं कार रोक लिया करता हूँ। हाँ ! दुर्घटना से देर भली यह अच्छा विचार है। वैसे हमने अच्छी ट्रिप की है, सिर्फ उस पुलिसवाले अधिकारी के अनुभव को छोड़कर। 


काम, यादें और अकेलेपन का डर

    तुम्हे पता है प्रियम्वदा ! हम अक्सर उन यादों से इस लिए भी पीछा नहीं छुड़वा पाते है, क्योंकि हमें लगता है, फिर कहीं अकेलापन न हो जाए। यादें हमेशा से हमारे मन को व्यस्त रखती है। मन कभी भी खाली नहीं बैठता है। हम कुछ भी न कर रहे हो, तब भी हमारा मन तो कहीं न कहीं भटकता रहता है। सतत कोई न कोई प्लानिंग मन में चल ही रही होती है। 


अधूरी यात्राएँ और ‘काश’ के पल

    यादों के झरोखो में हर बार गुलाब ही नहीं उगते। कभी कभी धतूरे भी उग आते है। वर्षा के बाद, भावनाओं की वर्षा के बाद। प्रियम्वदा ! मुझे हमेशा अधिक की आशा रहती है। अभी अभी यह घूमकर आया हूँ, पर मन कहता है, थोड़ा और घूम पाता काश..! लेकिन वह संभव कहाँ..? मेरी वह देवघर वाली ट्रिप भी थोड़ा और थोड़ा और करते करते कितने ही शहरों तक लंबी हो गयी थी। शायद इसी लिए वह ट्रिप ज़मीन पर नहीं उत्तर पायी। 


    अयोध्या में क्या गजब का दीपोत्सव हुआ था। हम तो रील और फोटोज से ही प्रभावित होतें है। हजारों किलोमीटर दूर बैठे है। ट्रेनों की हालत खस्ता थी। बाई-रोड मैं तो जाना चाहता था, लेकिन कोई सहयात्री माने तो। एक साथ कईं सारे दीपक जलते हो, वह नज़ारा कल्पना में भी कितना सुन्दर लगता है..! वास्तविकता में भी दिख जाता, लेकिन वही काश वाली बात है। काश जा पाता। 


जिम्मेदारियाँ और दिलायरी का वचन

    मुझे अक्सर सब कुछ छोड़-छाड़कर बस निकलने पड़ने का मन करता है। जैसे कोई विजोगी निकल पड़ता है। बेपरवाह होकर। लेकिन यह ख्याल भी यहाँ लिखते समय आता है। घर पर फिर से मुझे कितनी सारी जिम्मेदारियों की बेड़ियाँ जकड़ लेती है। अभी साढ़े सात बज रहे हैं शाम के, और यह दिलायरी भी समेटने की कोशिश कर रहा हूँ, क्योंकि यह भी एक जिम्मेदारी मानकर मैंने शुरू की थी। है तो यह भी एक बेड़ी ही.. शायद..


    शुभरात्रि।

    २९/१०/२०२५

|| अस्तु ||


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