संख्या नहीं, मूल्य बढ़ाओ: मनमौजी बाबा के विवेकहीन प्रवचन | Dilayari | Dilawarsinh

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संख्या की चिल्लर बनाम मूल्य की मुद्रा: मनमौजी बाबा के विचार

    अरे सुनो बाबू, हमको वो बात बहुते अच्छी लगी, अरे वही.. संख्या और मूल्य वाली..! बढ़ाने दो उनको संख्या, तुम अपना मूल्य बढाओ..! चिल्लर बढ़ बढ़के कितनी बढ़ेगी, नॉट का मुकाबला कर पायेगी? तुम अकेले हो तो क्या हुआ? अपने आपका नोट की भांति मूल्य बढाओ.. 


चंचुपात का समाधान: चुप रहो या चाणक्य बनो?

    देखो ऐसा है, समस्या होती है, वहां समाधान भी होता ही है, कोई अनावश्यक चंचुपात करता है, तो उस चंचुधारी को दाना दो, उसे हररोज दाना दो फिर पिंजरेमे डाल दो, तथा अपने आधीन करो उसे, अपना आज्ञाधिन। तुम्हे भी पता होगा, वैसे होना भी चाहिए, "वीर भोग्य वसुंधरा"। तुम्हे किसी न किसी क्षेत्र का तो वीर बनना होगा। यदि शारीरिक क्षमता नही है तुममे तो क्या अंतर आ जायेगा? 

प्रज्ञा बनाम बाहुबल: किससे जीतेगा वीर?

    तुम अपनी प्रज्ञा में तेज प्रज्वलित करो। तुममे बाहुबल नही आ सकता तो क्या हुआ बुद्धिबल तो ला सकोगे, लाना ही होगा। नृप से अधिक प्रभावशाली वह होता है जो उसे वह स्थान दिला सके। तुम्हे चाणक्य बनना होगा। नीति की शिक्षा लो, कूटनीति की भी। गोरो की तरह कूट नही सकते तो पहले फुट डालो.. फिर कूट भी पाओगे।

धार्मिक चेतना या मात्र संख्याबल?

    हाँ, पिछले कुछ समय से धर्म के प्रति लोगो की विचारशैली बदली है। जहाँ पहले इतना हो-हल्ला नही था वहां अब एक निश्चित प्रहर-वार को भीड़ इकठ्ठी होती है। फिर वह चिल्लर खनकती है, और अपनी अधिकाधिक संख्या का जैसे प्रदर्शन कर रही हो, ऐसे वह चिल्लर कभी पाषाण से प्रहार करती है, दिन में पांच बार तुम्हारा ध्यान भंग करे, अरे तुम्हारे तिथि-विशेष दिवस को भी वह छिन्न-भिन्न करे तब भी तुम्हारा रक्त अगर उछाल नही मार रहा तो तुम्हे स्वयं को दर्पण के सामने खड़े होकर देखना होगा, तुम्हारी भुजाए अस्थिहीन तो नही हुई है? 

    तुम्हारे शरीर मे कोई कंपन नही उठ रहा, कोई आवेग नही आ रहा तत्पश्चात तुम जीवित कैसे हो? तुम्हारे एक आराध्य की भूमि तुम्हे मिली है, उस राम की जिन्होंने जीवनपर्यन्त स्वमान को आहत नही होने दिया, उस राम को समर्पित दिवस पर भी तुम्हारे हर्षोल्लास पर कोई प्रहार करता है, तथा कोई उस होनी पर पर्दा डाल रहा हो फिर भी तुम यदि उस बात का विरोध भी नही कर पा रहे हो तो सोचो तुम्हारी स्थिति क्या है? कितनी निम्नश्रेणी में तुम्हारा स्थान है ?

प्रतिक्रिया की धधकती आँच: शिशुपाल की गिनती शुरू हो चुकी है

    अरे सुन भैया/मैया, ऐसा है, आग उठती है तो उसकी दाह तो लगेगी, धुंआ उठ रहा है, तो अग्नि भी उठेगी, वो कौन था? कीसने कहा था? यदि कोई क्रिया हुई है तो प्रतिक्रिया भी होती है। अपने राजनैतिक लाभालाभ को यदि तुम ऐसी परिस्थितिओं से उपार्जित करते हो तो तुम्हे शिशुपालकी भांति अपने अपशब्दों की गिनती अवश्य रखनी होगी। 

    बाबा मनमोजीके विवेकहीन प्रवचनों में से।

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"क्या आपके भीतर भी कोई चाणक्य जाग रहा है?
क्या आपने कभी सोचा है कि संख्या की भीड़ में आपका मूल्य कितना बचा है?
तो पढ़िए मनमौजी बाबा की यह दिलायरी — जहाँ विवेक, व्यंग्य और वैचारिक अग्नि,
सब एक साथ सुलगते हैं..."


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