"डींगे, डायलेक्ट और दर्जी की जीन्स – 24 दिसंबर की दिलायरी" || I have to sleep to meet you.. | Dilaayari |

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24 दिसंबर की दिलायरी – जब दर्जी लंच पे था और भाषा की क्लास चालू थी

    आजके दिन की तो क्या कहूँ प्रियंवदा... सुबह बड़ी अच्छी गुजरी दोपहर तक एक भाषाकीय चर्चा में व्यस्त रहा। लेकिन दोपहर के बाद वाला दिन तो कब बीता है कुछ पता ही नही। चलो फिर दिलायरी में कुछ डींगें हांकते है।



    हुआ कुछ यूं था कि सुबह सुबह ऑफिस पहुँचा, ख्याल आया कि वो 'अभिगम परिहार संघर्ष' वाली शिड्यूल्ड की हुई पोस्ट पब्लिश हो चुकी होगी, तो स्नेहीमित्रो के साथ साझा कर दूं। लेकिन मोबाइल में एप खोलकर देखा तो पोस्ट पब्लिश हुई ही नही है। पढ़े लिखे को फारसी क्या? तुरंत कम्प्यूटर ओन किया, पता चला कि पोस्ट दोपहर बारह बजे का शिड्यूल लगाया था गलती से। उसे ठीक करते हुए तुरंत ही पब्लिश की और कुछ गिनेचुने पाठकों को पर्सनली भेजकर स्टोरी पर भी लगा दी। 


भाषाकीय चर्चा और गुजराती डायलेक्ट की तकरार

    कुछ देर बाद एक स्नेही ने सुंदर बखान किये उस पोस्ट के। अब बखान किसे पसंद न आए भला.. मेरे काले गालों पर गुलाबी शर्म की रेखाएं बस दिख नही पाई थी। खेर, उन्हें धन्यवाद किया, लेकिन फिर हम भाषाकीय चर्चाओं में उतर पड़े। अब मैं ठहरा गुजराती आदमी, हम कोई भी भाषा गुजराती में ही बोलते है। तात्पर्य था कि मैं हिंदी बोलता हूं तो गुजराती डायलेक्ट के कारण शुद्ध हिंदी उच्चारण नही होता मुझ से। फिर कुछ नया भी जानने मिला कि कई बार मैं 'मेरे को यह चाहिये था' ऐसा बोलता हूं वह गलत है, 'मुझे यह..' होना चाहिए। 


शुद्ध हिंदी और 'मेरे को' की बहस

    मेरे प्रत्येक उच्चारण में एक एक शब्द में उन्होंने मुझे गलतियां गिना दी। अब वह शर्म की लाल रेखाएं थोड़ी और बढ़ी थी। लेकिन हार कैसे मानूं? फिर मैंने गुजराती होने पर हिंदी का गुजराती डायलेक्ट का आरक्षण मांग लिया। तब जाकर सब मामला शांत हुआ। वैसे मुद्दा सच है। हमारे अपने डायलेक्ट के कारण जब भी हम कोई अन्य भाषा बोलते है तो उच्चारण में बहुत बड़ा अंतर आ जाता है। फिर वह चर्चा का भी अंत आया, और मैं अपने ऑफिस के दूसरे कामो में लग गया। 


दर्जी की बेवक्त भूख और पावभाजी की जीत

    प्रियंवदा ! ढुलमुल शरीर के आदमी को और भी बहुत सी समस्या होती है। उनमे सबसे बड़ी समस्या है कपड़ो की फिटिंग.. या तो ओवरसाइज पहनो, या.. अंडरसाइज तो वैसे भी नही पहन सकते। ओवरसाइज ही पहनना पड़े। जीन्स में कमर आती है, 28, 30, 32, 34, 36, 38, 40.. अब जिनकी 29, 31, 33, 35, 37, 39 हो वे क्या करे बेचारे? दो-दो खर्चे भुगतते है हम लोग, वो भी इस महंगाई में। पहले तो रेडीमेड कपड़े खरीदो, फिर उसे दर्जी के पास ले जाकर फिटिंग करवाओ। 


    मैंने दीपावली पर दो जीन्स ली थी, वो पिछले हफ्ते दर्जी के पास फिटिंग कराने दी थी। उसने तो दूसरे दिन ही ले जाने को बोला था, लेकिन मैं भूल गया। यह तो आज दोपहर को अचानक याद आया कि कहीं दर्जी मजदूरी वसूलने जीन्स किसी और को न बेच दे। लगभग दोपहर डेढ़ बजे उसके वहां पहुंचा। दर्जी खाना खाने गया था। बताओ, कितनी ना-इंसाफ़ी है यह, मैं भूखा-प्यासा भरी दोपहरी को 20 किलोमीटर मोटरसायकल चलाकर जिसके द्वारे पहुंचा, वही द्वार पर किसी को चौकी करता छोड़कर खुद खाने की ज्याफत उड़ा रहा। 


    फिर क्या मैने भी आव देखा न ताव, 7 किलोमीटर और मोटरसायकल चलाकर पावभाजी खाने चला गया। पापी पेट घटना नही चाहिए। फिर डकारे मारता वापिस दर्जी के पास पहुंचा, भावताल के नामपर उसे दस रुपये कम दिए। मैं खुश था कि मैंने उसे दस कम दिए, लेकिन वो भी खुश दिख रहा था.. पता नही क्यों?


क्रिसमस से पहले ऑफिस की गधागिरी

    दोपहर बाद तो काम का सिलसिला कुछ यूं शुरू हुआ कि लगभग पौने आठ तक का तो कुछ सुध ही नही। कल नाताल है, क्रिसमस। मेरा येशु येशु.. हर हर हालेलुया। तो कल आने वाली सरकारी छुट्टी के कारण आज कुछ अधिक भार आन पड़ा। और हम तो ठहरे दो पैर वाले गधे। सारा बोझा ढो कर काम पूरे जरूर किये। लेकिन हां, वो ऊपर फ़ोटो में लगी कविता की स्फुरणा भी हुई। चारेक बजे चाय पीते पीते वसन्ततिलका की आठेक पंक्तियां लिख दी। बढ़िया हुआ। 


प्रियंवदा, तुमने उस सेकंड की सुई को क्यों नहीं रोका?

    फिर ऑफिसवर्क, फिर छह बजे थोड़ा सा समय चुराकर इंस्टा पर पोस्ट कर दी। फिर से ढेर सारा ऑफिसवर्क। पौने आठ को घड़ी में देखा तो छोटी सुई अंक अष्ट से थोडी पीछे थी, और बड़ी सुई अंक नौ से थोड़ी पीछे, और वो पतली वाली सेकंड की सुई तो रुकने का नाम ही नही ले रही थी, पता नही उसे कहाँ जाना है? प्रियंवदा ! तुमने तो उसे भागना नही सिखाया? अपनी मुसीबतों से, अपनी मुश्केलियो से? अपनी परेशानियों से? 


    अभी रात के साढ़े बारह हुए है। आज ताप सेंकने नही जा पाया। ऑफिस से नौ बजे घर पहुंचा था। लगा जैसे बॉस ने एक ही दिन में पगार वसूला है आज तो। अभी यह दिलायरी कि डींगें हांकने से पहले इंस्टा खोलकर देखा, अपनी आईडी में थोड़ी हलचल तो हुई है। अच्छा है। वैसे ड्राफ्ट में yq motabhai का अधूरा कॉलेब चेलेंज 'शियाळानी सवार' लिखना बाकी रह गया है यह अभी अभी याद आया। चलो फिर उसे अब कल देखेंगे।


    अभी तो विदा दो प्रियंवदा, तुमसे मिलने के लिए सोना पड़ता है मुझे।

    (२४,२५/१२/२०२४, १२:३७)


|| अस्तु ||


प्रिय पाठक!
अगर आप भी कभी दर्जी की दुकान से पावभाजी के ठेले तक खुद को खोजते हुए पाए हो… तो यक़ीन मानिए, यह दिलायरी आप ही के लिए है।
और हाँ — यह वाली पोस्ट भी पढ़ना मत भूलिएगा, जहाँ चार आँखों और अनकही बातों के किस्से चलते हैं… hmmm से शुरू होकर अस्तु तक!

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