आज तो ऑफिस पहुंचा, काम और रिल्स दोनो ही इन्तेजार कर रहे थे। दोपहर तक तो सब ठीक था, काम कर रहे था, सोसयल मीडिया में मगन था, yq पर चक्कर काट रहा था। दिलायरी पब्लिश की.. दोपहर को गजा बोला उसे भी lic भरनी है, चलो मार्किट। अपने को तो बहाना चाहिए होता मार्किट जाने का। नाश्ता-वास्ता करने का। घूमने का, भटकने का। लेकिन मन कुछ उदास था।
गजा बोला क्या खाओगे बताओ? बहुत महीनों बाद रास्ते पर वो कढ़ी-कचौड़ी वाला याद आया.. तय हुआ, वही जाएंगे आज। गए, पहुंच गए। ऑर्डर की, जो पहले टेस्ट हुआ करता था वो नही था आज। या शायद मुझे पसंद नही आया। बाजार का काम था वो निपटा लिए, और ऑफिस निकल गए। मार्किट जाने की जल्दबाजी में जैकेट पहन रखा था, ऑफिस पहुंचते पहुंचते गर्मी से बेहाल हो गया। yq की नोटिफिकेशन थी, मोटाभाई के छोटाभाई ने कॉलेब चेलेंज दिया था, वो भी लिख दिया। उखड़ा हुआ मन था तो जो लिखा वो भी रोषपूर्ण ही दिख रहा था। फिर पता चला कि वहां भी कॉपी पेस्ट हो सकता है। yq पर भी कॉपी करना आसान है। मुझे पता ही नही था कि yq पर भी कॉपी होता है। खेर, मुझे तो कॉपी हो जाए तो कोई दिक्कत नही है क्योंकि वैसे भी ब्लॉग ओपन है, कोई भी कॉपी कर सकता है। ठीक है, शाम को किसी से बात हो रही थी उस समय तो मन बहुत व्यग्र था, कारण होगा कुछ। सलाह मिली। ईश्वरीय आस्था मजबूत करो। सोचनीय है। आजमाउंगा।
पौने नौ को घर पहुंच गया था। खाना-पीना करने के बाद सीधा बेड पर। आजकल चौक में आग सेंकने भी नही जाता। फिर से शुरू करना चाहिए ऐसा लगता है मुझे। लगभग ग्यारह बजे तक तो सो गया था।
(०९/०१/२०२५, १०:५७)