दिलायरी : १०/०१/२०२५ || Dilaayari : 10/01/2025

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आज तो सुबह सुबह मेरा नुकसान हुआ, घर के बाहर बाइक खड़ी थी, कोई कार लेकर निकला, और टक्कर मार दी, लेफ्ट साइड का शीसा टूट गया। मैं नाश्ता कर रहा था, तो खड़ा न हुआ, लेकिन देख लिया की कार कौन सी है। ऑफिस के लिए निकला, देखा तो चार घर आगे ही वो कार खड़ी मिली। पडोशी ही निकला, गेट खटखटाया तो वह पूजा करता हुआ ही बाहर आया, अच्छा पडोशी है, फिर भी हसते हसते मैं कह आया कि 'किसी दिन मैं टक्कर मार के सीसा तोड़ दूंगा तो तुझे महंगा पड़ेगा। धीरे चला कर।' और अगला भी इसे समझ न पाया की मजाक में कह गया मैं या गंभीरता से.. 



ऑफिस पहुँचता हूँ तो धीरे धीरे काम मे उलझने लगता हूँ। दोपहर तक तो आज प्रियंवदा से बाते होती रही। काम कुछ भी न था। दोपहर होते ही गजा बोला, "चलो बापु, भूख लगी है, कुछ नाश्ता हो जाए.." अपन को तो बस मूंह उठाना है। चल दिये। लेकिन पौने तीन हो रहे थे। फिर नजदीकी दुकान पर ही कुछ नमकीन पर टूट पड़े। 6-7 पन्नियां उड़ गई फिर रुक गए।


आज मौसम वाकई बेईमान है। न ठंडी है, न धूप। हे देवताओं ! कुछ तो दो.. बर्फ नही तो ओले ही गिरा दो कमसे कम। सुबह समाचार देख रहा था तब तुम अमरीका में तो एक तरफ हिमवर्षा से ठंडक दे रहे हो, दूसरी तरफ उस ठंडी को सामान्य करने के लिए जंगल जला रहे हो.. सुबह तक तो सूर्यनारायण थे, देखे थे मेने। दोपहर बाद से बादलों में छिप गए है। अभी पांच बजे रहे है शाम के।


वैसे हम लोग कहते है सिर्फ की बहुत काम है, लेकिन वास्तव में कुछ भी काम होता नहीं है। गिने चुने ३ घंटे कुछ काम किया होगा आज तो। बाकी दिन रील्स देखने में और बाते करने में निकला है। लिखने के लिए कुछ विषय तो सुझा है नहीं। सात से आठ बिलकुल फ्री हो तब भी घर तो आठ के बाद ही जाना होता है। क्योंकि नक्की नहीं ना, आठ में पांच कम पर कुछ काम प्रकट हो जाए...!


बस अब घर जाऊंगा, सवा आठ हो रहे है। चौक में जाने का विचार तो है, थोड़ी देर आग सेंकेंगे। लेकिन निश्चित नहीं है। ठीक है फिर शुभरात्रि। 

(१०/०१/२०२५, २०:१७)


|| अस्तु ||

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