"सोमवार की सुस्ती, दिलायरी की दस्तक और जयपुर की दुविधा || दिलायरी : २७/०१/२०२५ || Dilaayari : 27/01/2025

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सोमवार की सुबह और ऑफिस का खालीपन

आज हर सोमवार की तरह सुबह सुबह ऑफिस पहुंचा, सरदार था नहीं। काम भी उतना कुछ था नहीं, लगे रील्स देखने में और क्या.. एक गुजराती में पोस्ट लिखी हुई ड्राफ्ट्स में पड़ी हुई थी, और दिलायरी भी, दोनों पब्लिश कर दी। yq पर भी पोस्ट कर दी। सिर्फ एक व्यक्ति ने पढ़ी और प्रतिभाव दिया। मतलब प्रतिभाव की भूख नहीं है मुझे, क्योंकि भूख का इलाज तो दोपहर को दहीं-पूरी और भेल से कर लिया था। लेकिन यह तो बस बता रहा था की अपन आजकल लिखने में भी पिछड़ते जा रहे है। अच्छा है। है तो यह भी एक झंझट ही। रोज उठो, जागो और कलम घिसते रहो। 



दोपहर बाद एक-दो बिल्स थे, निपटा लिए, हिसाब-किताब भी साथ ही साथ कर लिया। और अभी प्लानिंग्स बिठा रहा था जयपुर जाने की। ट्रेन्स जाती नहीं, एक जाती थी वो भी आजकल दूसरे रूट से जा रही है, by car अकेला हूँ, जा तो सकता हूँ, पर जेब मना करती है। क्योंकि आगे और उ.प्र. की ट्रिप पोस्टपोन करना नहीं चाहता..! भाईसाहब, मैं बड़ा हो चूका, या वृद्ध.. क्योंकि प्लानिंग्स करने लगा हूँ। अच्छा है। ठीक है फिर, अभी पौने आठ हो रहे है। और घर जाकर बोगनवेलिया का एंडिंग भी तो पूरा करना है...


शुभरात्रि। 

(२७/०१/२०२५, १९:४२)


और हाँ, कल की दिलायरी भी खास थी —
"26 जनवरी 2025 की सोच, राष्ट्र और रिश्तों की तलाश में..."
एक बार पढ़ लेना प्रियंवदा, शायद तुम्हारे मन का कोई झरोखा खुल जाए... 🌼


प्रिय पाठक!
अगर आप भी रील्स और दिल के बीच उलझते रहते हैं, और कहीं न कहीं जयपुर जैसी कोई मंज़िल आपकी भी राह देख रही है,
तो यह दिलायरी ज़रूर पढ़िए —
"क्योंकि हर सोमवार की थकान, कभी-कभी आत्मा की पुकार बन जाती है।"
 पढ़ें, सोचें, और बाँटें!


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