अभी बज रहे है, २२:५५.. बस डिपो जाकर लौटा हूँ अभी अभी..! दिनभर तो आज गर्मी थी, और अभी औंस गिर रही है बाहर। चश्मा पर धुंध जम जाती है। वो जौक बिल्कुल सही है चश्मा वालो के लिए, कि कार में से उतरने के बाद हमारे सामने मर्डर हो जाए तब भी हम तो चश्मदीद गवाही दे ही नही सकते.. कार की ऐसी के कारण धुंध जम जाती है ना चश्मा पर, कुछ देखा ही नही है।
आज तो दिलायरी भी खाली ही रहेगी जैसे आज का दिन गया खाली..! सवेरे जगा तब बुखार तो नही था, लेकिन खांसी घर कर गई है। खांसी भी नाभि तक खींच ले ऐसी..! सरदार था नही आज, दिनभर ऑफिस में कुछ भी काम नही था। बस एक कल की गाड़ी में थोडासा माल डला था तो उसका बिल बना दिया.. दोपहर को बस ऐसे ही मार्किट चले गए मैं और गजा.. खांसी के कारण कुछ खाने का मन तो नही था लेकिन तभी गजे ने कहा, 'नाश्ता नही आज तो भरपेट खा ही लेते है।' मुझे भी वो तले हुए नाश्तों से अच्छा यह विचार ही लगा। बड़े दिनों, नही नही, सालो बाद आज उस होटल पर गए जहां मैं केवल दो बार गया हूँ, और दोनो ही बार नशे के सुरूर में। ट्रांसपोर्टनगर का प्रख्यात दाल-बाटी वाला..! न कुछ फैंसी तामझाम, न ही बाहर दिशानिर्देशन का कोई बोर्ड, जिन्हें पता है वे ढूंढ कर आ जाते है उसके वहां.. बड़ी भीड़ लगी थी आज भी..! थोड़ी देर यूंही ही टहलना पड़ा। सारे टेबल फुल थे। बुखार गया तेल लेने, खांसी भी गयी साथ के और दोपहर को दबाके बाटियाँ उतारी है गले से.. स्वाद बिल्कुल सादा, न कोई विशेष मसाले.. लेकिन फिर भी स्वादिष्ट..!
फिर सोचा लगे हाथों थोड़ी स्टेशनरी ले जाते है, लेकिन बन्द थे सारे, तो ऑफिस के लिए मेडिसिन्स लेते गए। दोपहर बाद तो बड़ा कंटाला आने लगा कि कब दिन खत्म हो आजका.. कुछ भी काम न हो तो बड़ी बेचैनी होने लगती है। कोई लोडिंग के लिए गाड़ी भी नही आई थी, तो बिल भी कोई बनना न था। बड़ी मुश्किल से शाम हुई..! गजा तो मिल में चक्कर काटकर टाइमपास कर आया, मुझे ऑफिस में ही बना रहना पड़ता है। पहले गजा नही था तब मैं ऑफिस और मिल दोनो देख लेता था। शाम को एक और कलीग के साथ गप्पे लड़ा रहे थे। और पत्ते का फोन आया। और मैं उसे समझाने में (मजे लेने) लग गया कि भाई शादी-वादी में कुछ न रखा.. बर्बाद होने का बहाना है। देख अभी तू अकेला है, अपने ऊपर पांच हजार खर्च सकता है। शादी के बाद पांच हजार के दो हिस्से होंगे, चार हजार बिंदड़ी के, एक हजार तेरा.. क्योंकि चार हजार की तो एक लिपस्टिक भर आती है बस.. लाइनर-वाइनर के लिये तो लोन लेनी पड़ेगी..! और यूंही हंसी ठिठोली में आधा घंटा मेरा कम हुआ। बात तो यह भी बड़ी सच है। एक लड़का शादी के बाद पुरुष बनता है, खुद पर खर्चे घटाता जाता है। प्लानिंग्स करने लगता है। खर्चे टालने लगता है। और बच्चे होने के बाद तो बस उसके कंजूस होने भर की ही देर है। एक-एक रुपिये की गिनती उसे अच्छे से आने लगती है, समझ आने लगती है। व्यवहारकुशलता अचानक से आ जाती है। यह बदलाव कब सहज हो जाता है पता नही चलता। सब बदल जाते है, या बदलना पड़ता है.. किसी को महसूस होता है यह बदलाव, किसी को नही।
सामने वाले के यहां एक फंक्शन है। और अभी साढ़े ग्यारह को म्यूज़िक सिस्टम पर ठुमके लगा रहे है।
ठीक है प्रियंवदा। शुभरात्रि।
🤣🤣🤣..loan to leve hi pdega..etna mehngai jo h !
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