शायद मुझे ऑफिस से प्रेम है..
एक बात तो तय है। मैं भले ही कहता रहता हूँ, की पृथ्वी पर प्रेम का अस्तित्व नहीं है, प्रेम कुछ होता ही नहीं है, मैंने कभी कहीं देखा ही नहीं है। लेकिन फिर भी मुझे यह स्वीकारना पड़ेगा कि शायद मुझे ऑफिस से प्रेम है। कल शुक्रवार को धुलेटी के कारण मिल बंद थी, छुट्टी थी। आज लेबर लोग कल का हैंगओवर उतारने के चक्कर में मिल बंद रखी है, छुट्टी है। और कल तो रविवार ही है। लेकिन मैं कल भी ऑफिस आया था, आज भी आया हूँ, कल भी आऊंगा..! क्या मैं इस प्रेम को उच्चतम मानदंडों की श्रेणी में रख सकता हूँ प्रियंवदा? कल होली के नाम पर लेबर खूब मदिरापान करती है, १०-२० वाली थेलियो में पूरी सेट हो जाती है। दूसरे दिन फिर सर पकड़कर बैठती है। और सरदर्द मिटाने को थोड़ा और सुरापान करते है।
सुबह आज ऑफिस पहुंचा, मुझे याद नहीं था कि आज तो मिल बंद ही होगी। हर बार त्यौहारों के दूसरे दिवस यही हाल रहता है। लेबर खुद दूसरे दिन बंद रख देती है। और यह तो होली का त्यौहार, शायद उ.प्र. - बिहार का बड़ा त्यौहार है, तो मिल का बंद रहना तय ही है। बिलकुल सन्नाटा.. कोई मशीनों की गर्राहट नहीं, बिलकुल शान्ति.. गुरुवार की एक गाडी अभी तक खड़ी थी। तो आते ही पहले उसका हिसाब किताब, और बिल बना दिया। और उसे फ्री किया। उसके बाद सरदार को फोन मिलाया, उसकी तबियत ठीक हो चुकी थी। सारा स्टाफ, सारे लेबर, सब छुट्टी पर है, अरे गजा भी दोपहर बाद छुट्टी मार गया। लेकिन मैं, मैं तो आशिक हूँ ऑफिस का। घर में तो मेरे पाँव टिकते नहीं। सरदार ने सामने से ही कहा, 'थोथे ले आ रहा हूँ। आज और कुछ काम नहीं है। यही निपटा देते है।' मैं भी क्या ही कहता, आज नहीं तो फिर कभी, यह काम करना तो मुझे ही है, तो मैंने भी कह दिया, 'ले आ भाई, यही करेंगे पूरा दिन।'
मार्चेंडिंग से पहले यह थोथे..
दोपहर को गजा तो बहाना मार कर घर चला गया। अब मैं अकेला.. पूरी ऑफिस, पूरी मिल में ही। कम्प्यूटर पर चढ़ाए लेक्चर्स, और लगा कलम, और हाइलाइटर को घिसने उन थोथो में.. दोपहर तक में पेंडिंग PD के सारे लेक्चर्स सुन लिए, एक दो पॉडकास्ट, और गुजराती डायरा.. शाम होते होते ९०% थोथे निपटा दिए। वैसे भी मार्चेंडिंग से पहले यह थोथे निपट गए बड़ा सही रहा। अभी समय हो रहा है १९:२०.. घर को निकल ही रहा था की याद आ गया दिलायरी तो लिख दूँ कम से कम.. क्योंकि कल तो नशे के सुरूर में भूल गया था, तो बीते कल की दिलायरी भी आज सुबह ही लिखी थी इन थोथो के बिच से समय निकालकर।
आज की दिलायरी भी अभी ही इसी लिए लिख दी, कि घर जाकर फिर याद नहीं रहता। क्या है कि कुंवरुभा के शैतानी और दादागिरी के आगे अब और कुछ याद नहीं रहता, घर पर कुछ देर कुँवरुभा के साथ खेलना, और फिर सो जाना ही सर्वोपरि रहता है।
ठीक है, आज यही समापन करते है। बाकी अभी तो रात्रि बाकी है, लेकिन शुभरात्रि।
(१५/०३/२०२५, १९:२६)
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सही है, बच्चों के आगे तो वैसे भी सबकुछ नीरस लगता है !
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