प्रियंवदा ! मौसम गर्म हो चूका है,
साथ ही साथ भारत-पाकिस्तान के बिच भी.. मौसम पूरा ही तनावपूर्ण है। सुबह से खबरे तो खतरनाक ही चल रही है, साथ ही साथ उत्साहसभर भी। कारण है कि हमने युद्ध नहीं देखा है। पिछले कई वर्षो से शांतिपूर्ण माहौल था। छुटपुट मुठभेड़ को छोड़कर बड़ा युद्ध नहीं देखा है। दिनभर में कई लोग मिलते है जो कहते है पाकिस्तान को सबक सिखाना चाहिए, पूछो कि कैसे? तो कहते है, हमला कर दो..! युद्ध से शान्ति की स्थापना जरूर होती है, लेकिन उसकी किम्मत एक आदमी तक को चुकानी पड़ती है। अनुभवहीन लोग है, या जिज्ञासावश ज्यादा सोच नहीं पा रहे है। मैं युद्ध के खिलाफ नहीं हूँ, मुझे यह देखकर व्याकुलता होती है कि लोगो में प्रतिशोध से ज्यादा जिज्ञासा है, तो चलो आज इसी बात पर कुछ लिख दिया जाए..
सुबह अपने नित्यक्रम अनुसार ऑफिस आ गया था, थोड़ा देरी से पहुंचा था क्योंकि आज है चैत्र की तेरस, और हमारे यहाँ इसे 'टाढ़ी तेरस' मानते है। मतलब चूल्हे को आजके दिन छुट्टी दी जाती है। कल का पकाया हुआ, आज दिनभर ठंडा खाते है। लेकिन अपन ठहरे जुगाड़ू कौम.. अब क्या करते है कि गैस के चूल्हे में दो चूल्हे होते है, एक को बंद रखके दूसरे पर सारी दैनिक व्यवस्थाओं को निभाया जाता है। सुबह सुबह कल की बनी पुरियों का नाश्ता था। ऑफिस पहुंचा तब साढ़े नौ बज गए थे। वैसे शनिवार था, लेकिन काम इतना कुछ था नहीं। सुबह से एक विचार दिमाग में घूम रहा था, प्रख्यात शायर अमीर खुसरो की एक फ़ारसी पंक्ति "गर फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त" यह सच नहीं है, कश्मीर उसके समय पर शायद स्वर्ग रहा होगा, आज तो नर्क सा है, जहाँ प्रतिदिन खून बहता है। इसी विचार पर बड़े दिनों बाद एक मात्राबंद कविता लिखने की कोशिस की, और थोड़ाबहुत सफल भी हुआ। फिर दोपहर को एक बिहारी बाबू के साथ रास्ता डिसकस करने में समय व्यतीत हो गया.. पुराने बक्से से एक ट्रिप प्लान फिर दिमाग में आ गयी थी, मथुरा, प्रयागराज, वाराणसी तथा देवघर..! तो बिहारी बाबू से यही डिस्कसन हो रहा था कि पटना होकर जाना चाहिए या गया होकर..! यह विचार कभी आचरण में जरूर उतरेगा..! अभी समय हो चूका साढ़े आठ.. बस यह लिखने के लिए ही बैठा हूँ, जबकि एक मेहमान पधारे है, उन्हें हुकुम सम्हाल लेंगे।
तो बात ऐसी है प्रियंवदा !
दिनभर में गजा ही कई बार मुझसे कह देता है कि पाकिस्तान का सर्वनाश कर देना चाहिए। इसे भी उत्साह तथा जिज्ञासा है। बहुतो को है। सरकार भी शायद पूर्वतैयारियाँ कर रही है ऐसा ही प्रतीत हो रहा है, क्योंकि अभी मैंने मिनिस्ट्री ऑफ़ इन्फॉर्मेशन एन्ड ब्राडकास्टिंग की एक एडवाइजरी के विषय में सुना तथा पढ़ा..! सरकार ने तमाम न्यूज़ मिडिया चेनल्स को एडवाइजरी जाहिर करते हुए कहा है कि सेनाकिय मूवमेंट्स तथा ऐसी कोई भी खबर जो युद्ध से लागू होती है उनपर नियंत्रण रखना। तथा यह बात हम आम लोगो पर भी लागू होती है कि कभी इतने उत्साहित न हो जाए कि मिलिट्री मूवमेंट्स तथा लोकेशन आदि कहीं सोसियल मिडिया वगैरह जगह न शेयर कर दे। यह दौर अलग है, अब सोसियल मिडिया पर भी युद्ध होते है, मिस-इन्फॉर्मेशन से युद्ध। यह भी एक युद्ध तकनीक है, अफवाह फैलानी, नकली वर्दी पहनकर बातें फैलानी, यह सब मुद्दे बड़े जांचपड़ताल के बावजूद पकड़ में आते है तब तक देर हो जाती है। गुजरात में खासकर कच्छ तथा बनासकांठा सीमावर्ती क्षेत्र है, यहां ख़ास ध्यान रखना होता है।
तो बात ऐसी है, युद्ध शुरू होते ही दूसरे ही दिन सबसे विचित्र बात है बाजार में महंगाई आसमान छूने लगती है। गजा तुरंत बोला, 'कोई फ़िक्र नहीं है, गेंहू भरवा लिए है मैंने..' अब गजा इतना उत्साही है कि बात जाने दो। पिछली बार जब तूफान आया था, और लाइट नहीं थी तो सबसे बड़ी समस्या पानी की बन आई थी। उसे यह बात याद दिलाई मैंने। लोग २० वाली वाटर बोत्तल से नहा रहे थे। तूफ़ान वाली आपदा में पानी जो ५ रूपये में २० लीटर होम डिलीवरी होता था, वही पानी भरने जाने पर ८० रूपये २० लीटर पहुंच गया था। लेकिन वो तो एक सप्ताह की ही बात थी, एडजस्ट हो जाता है। युद्ध में महीने बीत जाते है। दूसरी चीज, युद्ध काल में और भी बहुत कुछ होता है, सामान्य जनजीवन पर बहुत बड़ा असर पड़ता है। पेट्रोल डीज़ल के भाव भी कर्ण को अप्रिय हो जाते है। जिस प्रकार का वातावरण बना हुआ है, हिन्दू- मुस्लिम के दंगो भरा गृहयुद्ध भी हो जाए, बहुत सारी अप्रिय संभावनाएं जन्मती है। सोसियल मिडिया पर कोई पाकिस्तानी झंडा रोड पर चिपकाता है, और कुछ मुस्लिम महिलाऐं उस झंडे को रोड से हटा देती है। ऐसी स्थितिओ में प्रत्येक प्रकार का संतुलन बनाए चलना पड़ता है। युद्ध कभी मात्र फ़ौज नहीं लड़ती, एक एक नागरिक का भी परोक्ष-अपरोक्ष योगदान रहता है। फिर वह जेब से लेकर जानहानि तक का हो सकता है। सीमावर्ती क्षेत्रो में खासकर जहाँ आर्मी केम्प बहुत नजदीक हो। कई शहरों में आर्मीकैम्पस होते है, युद्ध मे पहला निशाना यह कैम्प्स होते है, कोई दागी गयी मिसाइल राह भटककर रिहायसी इलाको के भी गिर सकती है।
अब कोई भी युद्ध नीतिपूर्ण तो रहे नही है।
दिनभर आजकल मैं पाकिस्तानी पेजस पर उन्हें चिढ़ाने के कमेंट्स करता हूँ। लेकिन और लोग इस रेस में बहुत आगे है। एक कमेंट बहुत बढ़िया लगा था मुझे, बोला, 'अब तो तुम्हारे गरीबी में आटा गीला भी नही होगा।' क्योंकि भारत ने सिंधु जल समझौता तोड़ दिया है। इसी बीच, मतलब कि आज के दिनभर में बहुत सारे प्रसंग बने है। भारतीय सेना तथा भारतीय नौसेना ने आज एक ही दिनमे यूनिटी, रेडी फ़ॉर एनी मिशन, एनी टाइम लिखी हुई पोस्ट्स पब्लिश की है, जो आम तौर पर होती नही है। आज ही के दिन में सूचना मंत्रालय ने एडवाइजरी जाहिर की है कि, कोई भी न्यूज़ चैनल लाइव अपडेट न्यूज़ में नही दिखायेगा। बहुत कुछ बदलने लगा है, एक तरफ वो बिलावल भुट्टो कह रहा है, 'या तो सिंधु का पानी बहेगा या तो हिंदुस्तानियों का खून..' और दूसरी तरफ इनके 'वजीरे आजम' किसी भी मध्यस्थि करते देश से निष्पक्ष जांच करवाने को कबूल हो रहे है। एक तरफ इनका रक्षामंत्री uk के मीडिया को इंटरव्यू देते हुए स्वीकार लेता है, 'पाकिस्तान टेररिस्ट को सपोर्ट करता है।' मतलब आपस मे ही किसी का तालमेल नही दिख रहा है। इनका पानी बंध हो जाए तो सबसे पहले करांची - सिंध ही अलगाव की बाते करने लगेगा। क्योंकि भारत से निकलते पानी का अधिकांश भाग तो पाकिस्तानी पंजाब ही रख लेता है, यह मुद्दा उनके वहां तूल पकड़ भी रहा था, और अब तो भारत इस समझौते पर संशोधन करके भारत को मिलते २० प्रतिशत पानी को ५० प्रतिशत करवा भी लेगा, तब तो करांची बूंद बूंद का लाचार बनेगा। तब करांची ही पाकिस्तानी पंजाब के विरुद्ध हो जाएगा। युद्धनीति ऐसी बनानी चाहिए कि आपको खुद को मैदान में उतरना पड़े उससे पहले ही दुश्मन की आधी ताकत बर्बाद हो चुकी हो। रशिया जैसे देशों ने तो पाकिस्तान में ट्रेवलिंग करते अपने नागरिकों को सूचित भी कर दिया है पाकिस्तान छोड़ने के लिए। इन सब मे मुझे दुखद बस यही लग रहा है कि पाकिस्तान के कई सारे हिन्दू जिनका विवाह संबंध है गुजरात तथा राजस्थान में, उनको भी भारत छोड़ना पड़ेगा।
वैसे आज भयंकर कार्यवाही चल रही है, गुजरात मे...
लगभग हजारों बांग्लादेशी घुसपैठियों को पकड़ लिया है पोलिस ने। और भी है, बहुत सारे है यहां। आसामी बने घूमते है। मजदूरी करते है, कांडला से लेकर तमाम बड़े औद्योगिक शहरों में। जिस शहर में जितना बड़ा उद्योग है उस शहर में उतने ज्यादा बांग्लादेशी है। हमारे यहां भी पोलिस ने सूचित कर दिया है, बहुत सी कंपनियों में हड़कंप है। लेकिन गजे ने सारी जानकारी जानकर मुझसे कहा, 'अपने यहां तो मुसलमान लेबर ही नही है। बांग्लादेशी तो दूर की बात है।' आज शायद यूएन सिक्युरिटी कॉउंसिल ने भी पाकिस्तान को खड़काया है। पाकिस्तान से मतलब था टेरर सपोर्ट करने वालो को खड़काया है। इस पहलगाम हमले के मामले में लगभग सारे देश या तो भारत का समर्थन कर रहे है, या तो चुप्पी साधे हुए है। बड़ा मुर्गा - टर्की मतलब तुर्किये और अज़रबैजान भी गजब के चुप बैठे है। इन्होंने भी पाकिस्तान का समर्थन नही किया यह भी बड़ी बात है।
तात्पर्य है कि इस बार कुछ बहुत बड़ी प्लानिंग चल रही है ऐसा अनुभव हो रहा है। एक वो वीडियो भी जबरदस्त था। एक जेसीबी चलाने वाला भी गाली देते हुए चिनाब या झेलम नदी में मिट्टी डाल रहा था, सरकार एक्शन में है यह उस ने सरेआम कर दिया, लेकिन अच्छा है। ऐसे ही पाकिस्तान पर प्रेशर बनेगा। लेकिन साथ ही साथ ऐसी पोस्ट्स की प्रत्येक संभावनाएं जांच लेनी चाहिए हमे। वैसे एक और किसी नदी में अचानक से बढ़े पानी ने भी पाकिस्तान को डराया जरूर होगा, क्योंकि पानी बंद करने की बात थी, और यह तो पानी अधिक छोड़ दिया... पाकिस्तान की इसबार अच्छी वाली चूड़ियां कसी जाएगी, जो भी होगा अच्छा ही होगा। हम तो तैयार है, जीजान से, बस इच्छा इतनी है कि जल्द से जल्द, मतलब कम दिनों में काम तमाम हो जाए, और राष्ट्रगीत सही हो जाए, 'पंजाब सिंध गुजरात मराठा..'
मुझे नहीं लगता कि किसी भी प्रकार का कोई भीषण युद्ध होगा !
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