जिंदगी के मसाले : जब मिज़ाज हो मज़ाकिया || दिलायरी : १९/०५/२०२५

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सोशल मीडिया का कारनामा

    प्रियंवदा ! नाइट क्रिकेट टूर्नामेंट चल रही है। यूँ तो कभी मैच देखी नही मैंने..! लेकिन यह तो मेरी प्रतिदिन की बैठक और मेरी लेखनी की इंक से ग्राउंड में ही चल रही है। इसी कारण से देखने चला आता हूँ। हालांकि यहां कुछ लिखने में तो बड़ी समस्या है क्योंकि लगातार कॉमेंट्री चलती रहती है। खेर, घर की छत पर हवाएं ऐसी चल रही है, जैसे मुक्त मन का आशिक..! जिसे कोई परवाह न हो, उन चार लोगो की जिनके मत मौसम की तरह बदलते है। प्रियंवदा ! आज बड़े दिनों बाद कई लोगो के व्हाट्सप्प स्टेटस देखे है। आमतौर पर मैं कुछ बड़ा जरूरी हो तब ही व्हाट्सप्प स्टेटस रखता हूँ। ना ही कभी किसी से देखता हूँ। बस कुछ रसिकजन को छोड़कर।

 

Social media ke sailaab me Dilawarsinh..!

    लोग कितने एटीट्यूड भरे स्टेटस चढ़ाते है.. वास्तविकता से कोसो दूर। सुनाना जिसको होता है उसके साथ साथ समस्त समाज को वे अपने स्टेटस से उद्बोधित करते मालूम होते है। कहीं पर तीर कहीं पर निशाना टाइप..! कुछ को तो मैं रूबरू जानता हूँ। घर मे शाम की दाल तय नही होती है, लेकिन स्टेटस में दुनियाभर की अमीरी झाड़ते है। क्या फर्क पड़ता है शोऑफ़ करने से? किसी दिन कहीं पर जेब मे हाथ डालना पड़ गया तो मुसीबत आन पड़ेगी। आदमी के पास कितना ही धन हो, शोऑफ़ नही करना चाहिए। लेकिन नही, स्टेटस पर किसी की थार के आगे खड़े होकर खिंचवाई फ़ोटो को स्टेटस में चढ़ाकर खुद सालो पुरानी स्कूटी पर चले जाते है। 


खाने का दिलफेंक अंदाज़

    प्रियंवदा ! भूख भी एक ऐसी ही चीज है। गुजराती में कहावत है, "भूख न मांगे रोटलो, ऊंघ न मांगे ओटलो".. सीधा सा अर्थ है, जिसे सच मे भूख लगी हो वह मांग नही करता कि मुझे यही पकवान चाहिए। या जिसे नींद आ रही हो उसे मलमल या रेशमी बिस्तर नही चाहिए होता है। यह सब जो जिह्वा के रसास्वाद के चोंचले है वह तो बहुत बाद में आते है। प्राथमिकता तो केवल और मात्र खाने योग्य भोजन ही होता है। और इंसान ने तो खाने में क्या नही छोड़ा है? पशु भी लाख गुना अच्छा है इस मामले में। शाकाहारी है वह सिर्फ वनस्पतिजन्य आहार ही लेता है, और मांसाहारी मात्र मांस पर ही निर्भर है। लेकिन मानव.. मानव तो कुछ भी नही छोड़ता है। इनका बस चले तो यह तो एककोशिकीय अमीबा, पैरामिशियम या यूगलेना का भी पिज़्ज़ा पर टॉपिंग लगा ले..! 


    लेकिन जब भूख नही होती है, तब सामने पड़े बत्तीस पकवान भी फीके ही लगते है। सब कुछ ही दृष्टिकोण और आवश्यकता पर निर्भर करता है प्रियंवदा.! 


ऑफिस की कॉमेडी क्लास

    प्रियंवदा ! हम जैसे लोग जो नौकरी करते है न वही यह बात अच्छे से रिलेट कर पाएंगे। कभी कभी क्या होता है कि कुछ भी काम नही होता है, उस समय पर स्टाफ को दिया जाता पगार कैसे वसूला जाए यह विचार बॉस की प्राथमिकता होती है। बेफालतू के काम बांटे जाते है उस समय। जैसे कि रविवार को कई बार स्टॉक लेने वाले लोगों पर बस खीज निकालने के लिए ही उनसे आडेटेढे सवाल किए जाते है। जिसका तात्पर्य कुछ भी नही होता है। कभी कभी तो उसके अधिकार क्षेत्र, या उसके उत्तरदायित्व क्षेत्र के भी बाहर के प्रश्नों से उसे ऐसे उलझाया जाता है कि अगला मन ही मन कन्फ्यूज़ हो जाता है। मैं सब जानते हुए भी बस मूंछ में मुस्काने के अलावा कुछ नही कर पाता। 


    सबसे विकट बात यह है कि अक्सर आदमी बॉस के आगे कुछ बोल नही पाता। फिर पीठ पीछे कहता फिरता है कि, 'गधे के पीछे, बैल के आगे, और बॉस के बाजू में कभी नही चलना चाहिए। एक लात मारता है, एक सिंग, और यह काम मारता है।' यह कर दो, वो कर दो, ऐसे नही वैसे करो, वैसे नही ऐसे करो.. इस गाड़ी को रोको, उसको भरो, उसका माल अब बनेगा, तब तक इसे भरो.. वगेरह वगेरह.. करते हुए फालतू में समय व्यर्थ करवा दिया जाता है। और यह हकीकत भी है। 


    मेरी अपनी ही बात करूं तो अब मेरा भी कुछ यही हाल है, मुझे अपने दिमाग मे कुछ न् कुछ काम का भार लिए ही चलना पड़ता है, ताकि कोई भी खाली दिखे तो उसे व्यस्त किया जा सके। कल परसो की ही बात है, कंपनी के बाहर पशुओं को पानी पीने के लिए कुंड बनवा रखा है, मेरे ध्यान में आया कि वहां नल नही है, जब भी पानी छोड़ा जाता है तो वह कुंड भरे जाने के बाद यूंही रोड पर बह जाता हैं। बुधा कल खाली मिला तो उसे पकड़ा दिया यह काम। प्लम्बर ढूंढ के आ और इसमें नल लगवा.. इस तरह छोटे मोटे अक्सर फालतू काम किसी न किसी को सौंपकर उसे व्यस्त रखना पड़ता है।


सपनों की दुकान और हकीकत की दुकानदार

    सपने देखने में तो कौन ही पीछे रहता होगा प्रियंवदा? हर किसी को अम्बाणी-अदाणी बनना है यहां। लेकिन अगर बोला जाए, कि पहले पेट्रोलपम्प पर नौकरी करके देख, तो वो नही हो पाएगा। क्यों? क्योंकि वहां अथाह मेहनत है। मन तो सबका करता है उड़ने को, लेकिन शरीर कहता है, 'आराम कर, कल भी तो है।' ऐसा नही है कि सपने पूरे नही होते। होते है, लेकिन हिम्मत और मेहनत की कसौटी को पार करने के बाद। वरना चांदी के चमच से खाना खाएं हुए आज दाने दाने को तरसते भी दिख जाते है। यह जो शॉर्टकट है न, वह सबके लिए नही है। 


    ऐसे लोग भी होते है, सपनो में तो रोल्सरोयस में चले हो, लेकिन सुबह होते ही सरकारी बसों में धक्के खाते भागते है। कुछ सपने भी ऐसे होते है प्रियंवदा जो वास्तविकता में नही उतर सकते। अगर उतर भी आए तो स्तब्ध कर दे। जैसे कि तुम प्रियंवदा.. मेरे लिए तो तुम ही मेरा वो ख्वाब हो जो कभी रूबरू हुआ तो मेरी मति ही रुक जाएगी.. तुम्हारे वशीकरण के प्रभाव में, तुम्हारे पाश में..!


दिलायरी..

    आजके दिन में ऐसा कुछ भी खास नही था प्रियंवदा, बस आया और गया.. ख़ालिखम। सवेरे आठ बजे मातृश्री ने जगाया तो आंखे खुल पाई। ऑफिस पहुंचा तब साढ़े नौ बजे गए थे। दिनभर ऑफिस से बाहर नही निकला हूँ। हाँ ! प्रियंवदा से थोड़ी गपशप जरूर हुई लेकिन वह भी अनिश्चित टॉपिक पर। कोई समृद्ध चर्चा नही।


    दोपहर को कहीं जाना था, लेकिन मैं भूल गया था और ऑफिस पर ही पड़ा रहा। आजकल ai से भारी मित्रता हो गयी है। दिनभर में कई सारी टेक्निकल सलाह उससे मिलती है मुझे। html के कोड्स भी वो बना सकता है, हालांकि मुझे कभी जरूरत नही पड़ी थी तो पता नही था। लेकिन आज कुछ काम पड़ा था, तो उससे सलाह मशवरा किया। और परिणाम बहुत सही मिला मुझे। मुझे कॉलेज के दिन याद आ गए। जब हम कोडिंग करके कैलकुलेटर बनाना सिखाया जाता था।


    शाम का तो बस होने का इन्तेजार किया है आज। कि कब घर के लिए भागा जाए..! लेकिन गर्मियों शाम ढलने में बड़ा समय लेती है प्रियंवदा..! सात बजे तक तो उजियारा रहता है। लगभग साढ़े आठ को तो घर पहुंच गया था। खा-पीकर वहीं.. जहां यह नाइट टूर्नामेंट चल रहा है। बस यूंही तुम्हे याद करते हुए मेरा एक और दिन निकल गया प्रियंवदा.. तुम चाहे कभी सीधा जवाब न दो, तुम चाहे मेरी भावनाओ को बायपास करती रहो प्रियंवदा, लेकिन मैं तुम्हे यूंही अपनी कलम से पुकारता रहूंगा..! 


आज का रील से प्राप्त अमूल्य ज्ञान : 

    "आदमी और बैल कितना ही मेहनत करके टूट मरे। बखानी तो गाय और स्त्री ही जाती है।"


    है ना मज़ेदार? आपको कौनसा ऐसा अमूल्य ज्ञान प्राप्त हुआ है? कमेंट में जरूर से बताइए।


    विदा दो अब..! 

    शुभरात्रि।

    (१९/०५/२०२५)


प्रिय पाठक,

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www.dilawarsinh.com | @manmojiiii
– दिलावरसिंह


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