आजकी भागदौड़ उत्तरदायित्व से दिखावे की आकांक्षा तक... || दिलायरी : ३०/०४/२०२५ || Today's rush from responsibility to desire to show off...

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अस्पताल, असमंजस और उत्तरदायित्व

    बस बहते जाना भी कोई जिंदगी हुई? यह तो वही बात हुई की आई और गयी..! जीवन में हर तरह की परिस्थितियों से टकराना जरुरी है। हर तरह की मुश्किलों से कुछ न कुछ सिखने को मिलता है। सुबह सुबह असमंजस में था कि कुँवरुभा को अस्पताल ले जाया जाए या नहीं? लेकिन हुकुम जरी सा भी इंतजार या असमंजस की स्थिति में ढलते नहीं। वे ज्यादा सोचते नहीं, चाहे जो परिणाम आना हो आए..! 


    मैं परिणामो का पूर्वानुमान करने में समय व्यर्थ कर देता हूँ। वही प्राइवेट वाले डॉक्टर ने सरकारी अस्पताल में ही सारवार देने को कहा है। कुँवरुभा कि नियति अब जिस ओर ले जाए उस तरफ चले जाना है। लगभग नौ बजे हम पहुंच चुके थे। हुकुम को साथ ले जाने में एक ही समस्या है। वे डांटते-फटकारते बहुत है। क्योंकि मैं सोचता रहता हूँ। शायद मूर्ख हूँ।



सरकारी अस्पतालों में चाय से ज्यादा केतली गर्म होती है। 

    धक्के ना खिलाये जाए तो बात ही अलग है। यहाँ वो वाला हाल है, द्वारपालों को सूचित करना पड़ता है, यहाँ के द्वारपाल नर्स, कम्पाऊंडर यही सब होते है। शायद इनके पास व्यस्तता ज्यादा होने के कारण पूरी बात सुने-समझे बिना ही दूसरी जगह पर जाने को बोल देते है। हालाँकि डॉक्टर से हुई बात अनुसार शुक्रवार को मुझे एक और हाजरी लगानी है, और फिर शनिवार को एक और..! 


    हाँ ! हालफिलहाल की तो यही मेरी भागदौड़ है प्रियंवदा। यही मेरे प्रेम की परिभाषा का तृतीय स्तम्भ उत्तरदायित्व है। प्रेम के बस तीन रूप है - आकर्षण, आवश्यकता और उत्तरदायित्व। सुबह सुबह एक पार्टी का फोन आया, कि 'मेरा चेक बैंक में मत डालना, बाउंस हो जाएगा।' मुझे तो यही समझ नहीं आता कि फिर यह लोग चेक देते ही क्यों है? डेटेड चेक देने का मतलब ही यही होता है, कि उस दिन फंड्स क्लियर होंगे। मैं अस्पताल में था, तो ज्यादा बहस किये बिना हामी भर ली। वैसे भी उसकी बात माने बिना ऑप्शन क्या था मेरे पास?


जीएसटी की कॉल और धूप में संवाद

    अस्पताल से निकला ही था, कि एक अननॉन नंबर से कॉल आया। उठाते आवाज सुनाई दी, 'मैं फलानि गाडी का ड्राइवर बोल रहा हूँ। और मुझे उ.प्र. में सेल्सटैक्स वालो ने रोक लिया है।' ड्राइवर लोगो की अपनी एक भाषा होती है। वरना अब सेल्सटैक्स नहीं, GST होता है। उसे किसी GST अधिकारी ने रोका होगा। मुझसे बात करवाई। सामने से आती आवाज बड़ी ही कन्फ्यूजिंग थी, एक अधिकारी के आवाज में विश्वास और एक धमकी होती है हमेशा। यह खुद ही कन्फ्यूज्ड लगे मुझे। साहब ने कहा, 'आपके बिल में डिस्पेच अड्रेस गलत है।' यह वाक्य ही अपने आप में गलत है। 


    फिर उन्हें शांतिपूर्वक समझाया, कि अपना एक ही एड्रेस है, वहीं से सारा काम होता है। अब समस्या यह थी कि मैं घर जा रहा था, और चालू बाइक पर बात भी नहीं कर सकता। और लगभग समय हो रहा था ग्यारह.. धूप भी अपने चरम को प्राप्त करने बढ़ गयी थी। जहाँ छाँव मिले वहां फोन कॉल उठाकर बात कर लेता। अगर मैं ऑफिस में होता तब तो समस्या ही नहीं थी। फिर कुछ डाक्यूमेंट्स चाहिए थे, वे हेड-ऑफिस से अपने फ़ोन पर व्हाट्सप्प मंगवाए, और साहब श्रीमान के लिए ड्राइवर के नंबर पर फॉरवर्ड किये। और फिर घर पहुँच गया। हुकुम तथा कुँवरुभा को घर पर छोड़कर ऑफिस जाने के लिए निकला। वही हमेश वाली दुकान पर स्टॉप लिया। फिर एक बार ड्राइवर को फोन मिलाया अपडेट जानने के लिए। और गाडी छूट जाने के संतोष में ऑफिस पहुंचा।


ऑफिस की दिनचर्या और गजा की गैरहाज़िरी

    ऑफिस पर तो वही नित्यानुसार काम मेरी ही राह तकते मालुम हुए। संयोग से आज गजा भी छुट्टी पर था। सरदार बड़े टेंशन रहा होगा। मेरे पहुँचते ही दो-तीन अपनी जिम्मेदारियां उसने हल्की की। कुछ हिसाब-किताब और लेनदेन की व्यवस्थाओं से निजाद पाकर अब तुमसे बतियाने हाजिर हूँ प्रियंवदा। फ़िलहाल बहुत सारी भागदौड़ मेरी आँखों के आगे विचारो में चल रही है। बहुत सारे प्रसंग आने वाले है। जिनमे से सकुशल मुझे आरपार निकलना है। 


    अरे हाँ प्रियंवदा ! एक विचार बड़ा व्याकुल करने लगा है। कल-परसो मैं CHATGPT से बतिया रहा था। बहुत सारे प्रश्न उसको पूछ लिए मैंने। तो एक बात दिमाग में घर कर गयी है, इस ब्लॉग को अब वेबसाइट बनाने का विचार। सोचता हूँ एक डोमेन खरीद लूँ। CHATGPT से जानकारी लेनी चाहिए, सलाह नहीं। मुझे जो जो जानकारी चाहिए थी, वे उसने बताई। और फिर से एक बार इस फ्री ब्लॉग को वेबसाइट में कन्वर्ट करने कि तीव्र इच्छा उठ आयी है। सोच रहा हूँ, मई के अंत तक यह प्रयोग सफल हो भी जाए..!

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ब्लॉग, दिखावा और डिजिटल पहचान

    वैसे मेरे ब्लॉग पर मुझे ट्रैफिक आये न आए उससे कोई समस्या नहीं है, मैं चाहता हूँ एक दिखावा जरूर छलके मेरे ब्लॉग से। एक वेबसाइट होने का दिखावा। प्रियंवदा, दुनिया दिखावे से ही चकाचौंध है। तो मैं भी एक दिखावा करूँ उसमे क्या गलत है? हाँ थोड़ा बहुत खर्चा होगा। लेकिन, बगैर खर्चे के दुनिया में क्या ही मिलता है? वैसे भी मैं व्यसनों पर अँधा खर्चा कर देता हूँ। तो यह तो फिर भी मेरे जीवन के कुछ अंश है, इसके पास भी एक स्टेटस, एक रुतबा क्यों न हो? मुझे सायकल पर आना भी मंजूर है, लेकिन सायकल भी चमचमाती होनी चाहिए। 


टाइटल के पीछे की टेंशन

    आज कुछ अजीब बाते नहीं करने लगा मैं प्रियंवदा? अरे हाँ, आज से एक और बदलाव, CHATGPT के सलाहनुसार, आज से पुनः एक बार अपनी पुरानी स्टाइल में पोस्ट टाइटल अजीबोगरीब बनाने शुरू करूँगा..! तो आज की इस दिलायरी का टाइटल क्या होना चाहिए? 'उत्तरदायित्व से साक्षात्कार' या फिर 'दिखावा सर्वोपरि है प्रियंवदा!', या जैसे, 'आजकी भागदौड़ उत्तरदायित्व से दिखावे की आकांक्षा तक।' यह बढ़िया था, लास्ट वाला..! इसे ही इस्तेमाल करूँगा।


    वैसे ब्लॉग की रीच बढ़ाने के लिए बहुत सी छोटी-मोटी चीजे मैटर करती है, लेकिन अपन उतने झमेले में पड़ना चाहते नहीं। गूगल सर्च कंसोल, गूगल एनालिटिक्स, सर्च इंजिन ऑप्टिमाइज़ेशन.. यह सब जब मैंने अपना पहला वर्डप्रेस ब्लॉग बनाया था, तब सीखा था। वह भी यूट्यूब से। लेकिन समय के साथ साथ सब कुछ भूल जाता है व्यक्ति, या फिर इंट्रेस्ट ख़त्म हो जाता है, या तो परवाह करना छोड़ देता है। मेरे जैसा कंजूस कभी कभी यह भी सोचता है कि इतनी फ़ालतू में मेहनत और ऊर्जा व्यर्थ करता हूँ यह सब लिखने में तो इसका कोई उपार्जन भी तो हो..! लेकिन यह ख्याल सुबह गिरी औंस के आयुष्यभर का होता है।


    चलो फिर, अब आज के लिए इतना बहुत है प्रियंवदा, विदा दो।

    (३०/०४/२०२५)


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– दिलावरसिंह


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