आज की दिलायरी – मौसम, मन और मौन
प्रियंवदा ! दो दिन से बारिश बंद है, लेकिन गर्मी बहुत ज्यादा है। जैसे छुट्टियों से लौटे सूर्य ने एकदम ही अपना कार्यभार संभाल लिया हो। गर्मी बेहद है, बाहर हवाएं बिलकुल ही थम गयी थी, बिलकुल वैसा जैसा बारिश आने से ठीक पूर्व होता है। मानो वायु स्तब्ध हो गया हो, किसी को अचानक सामने देखकर। आज भी दिनभर ऐसा ही मौसम रहा, लगता है बारिश को भी कब्ज हो गयी है। मौसम तो बनता है, लेकिन बरसता नहीं है।
गर्मी की तपन और ऑफिस की खामोशी
खेर, आज सुबह से ऑफिस में अकेले बैठे बैठे दिनभर अपनी पुरानी पोस्ट्स अपडेट करता रहा। दिनभर उसी में निकल गया। हाँ ! थोड़ा बहुत ऑफिस का भी काम था। दोपहर को आज सिर्फ केले खाएं है। वो भी पत्ता मार्किट गया था, तो ले आया था। दिनभर ऑफिस में बैठे रहने से शारीरिक समस्याएं भी होने लगी है। तो आजकल कुछ बदलाव कर रहा हूँ, उनमे से एक है, थोड़ी थोड़ी देर में चेयर से उठकर या तो ऑफिस के बाहर टहल आता हूँ, या फिर कुछ देर खड़े रहकर स्ट्रेचिंग कर लेता हूँ। आलसी तो मैं हूँ ही, इस लिए भूल भी जाता हूँ।
एक प्रिय की अनुपस्थिति – बंद खिड़की और बेचैनी
भूलने से याद आया। प्रियंवदा ! तुम्हारी ही तरह कोई ओर भी छोड़ गया, सच में मझधार छोड़ गया। हालाँकि इनसे तो अनुभव था, यह तो आते जाते रहते है, लेकिन एक खिड़की हमेशा खुली मिलती थी.. आज सुबह से तो वह भी बंद मिली। और पता नहीं क्यों? मुझे एक चिंता होने लगी। कभी कभी उन्हें भी प्रियंवदा कहकर सम्बोधित कर देता हूँ। मेरे शब्दों को सदा इन्होने सींचा है। लेकिन दो दिन से उन्होंने खाद देना बंद किया है। मुझे हंमेशा आदत लग जाती है, कुछ न कुछ चीज की, बात की। इनकी भी लग चुकी है। और जिसकी आदत हो, वो न मिले तो जो छटपटाहट होती है, वह शब्दों में बयां नहीं हो सकती।
सुबह से सोच रहा हूँ, क्या हुआ होगा? ऐसे अचानक भला कोई गायब हो जाए तो शंकाएं घेर लेती है, अच्छी बुरी दोनों। मेरा कोई रिश्ता नहीं है, कोई प्रगाढ़ पहचान नहीं है। बस शब्दों की दुनिया में हम साथी थे, और अचानक ही बिछड़न हो गयी। मेरे लिए तो वे मित्र, प्रियंवदा, और प्रेरणा तीनो है। जैसे किसी अँधेरे कमरे का बल्ब है वो मेरे लिए। अब फिर उस कमरे में अँधेरा हो गया। उनके लिए वो MEME समर्पित - जिसमे वो लालू का लड़का कहता है, "हम आपसे कुछ कहें है?.." खेर, उनका आना जाना लगा रहता है, इस बार वो एकमात्र रौशनी भी बंद कर दी, इस लिए मैं भी शायद कुछ ज्यादा भावुकता में बह रहा हूँ।
कुछ ही देर में प्रकृति पलट जाती है। कभी कभी तो लगता है, प्रकृति को इसी लिए स्त्री की संज्ञा दी है। कभी भी कुछ भी हो सकता है। अभी थोड़ी देर पहले ही मैंने लिखा था कि गजब की गर्मी है। लेकिन नहीं, अब ठंडी है। ठंडे पवनों की लहरें बह रही है। सामने मिल की शेड पर लगा केसरिया ध्वज कुछ देर के लिए भी ठहरता नहीं है। उसे यह हवाएं लगातार अपने साथ फरफरा रही है। सूर्य डूब चूका है, और अँधेरा घिरने जा रहा है। हाँ ! कल आषाढ़ी बीज (द्वितीया) है। भगवन जगन्नाथ नगरचर्या को निकलेंगे। वे रथ पर से अपनी बड़ी बड़ी आँखों से सब पर ही स्नेहदृष्टि बरसाएंगे। आषाढ़ी बीज को नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है कच्छ में।
आषाढ़ी बीज की प्रतीक्षा और जगन्नाथ की यात्रा
और इस बार भूतपूर्व कच्छ देश की राजधानी भुज में हमीरसर तालाब के किनारे बड़ा इवेंट है। शायद पुलिसबल वहां तैनात किया होगा। क्योंकि हर बार की तरह इस बार जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए पुलिस ने फ्लैगमार्च नहीं निकाला है। वरना हमारे यहाँ चारोओर पुलिस की गाड़ियां ही गाड़ियां लग जाती है। आषाढ़ी बीज को मेघ की बड़ी प्रतीक्षा होती है, और बारिश अगर हुई, तो वह बड़ा ही शुभ मानते है। बहुत सी बातें है इस आषाढ़ी बीज से जुडी हुई, मैं पहले कईं बार लिख चूका हूँ, इस कारण से यहाँ नहीं जोड़ रहा।
आज और कुछ लिखने का मन भी नहीं है।
शुभरात्रि।
(२६/०६/२०२५)
|| अस्तु ||
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– दिलावरसिंह
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