कनेर के फूल और सुबह की सौंधी ख़ुशबू
प्रियंवदा ! मेरे घर के पास चार कनेर के वृक्ष है। सुबह जब मॉर्निंग वॉक के लिए निकलता हूँ, तब इतनी बढ़िया खुशबू आती है, कि मन भर जाता है। चार में से एक पीला है, दो हल्के केसरी, और एक सफेद.. शायद केसरी वाले खूब महकते है। सारे ही पेड़ लगभग तेरह-चौदह फीट के होंगे, तो ढेरों फूल आते है। सुबह मंदिर जाने वाले लोग खास यहां से गुजरते है, और थैलियां भर भर ले जाते है। वैसे यह चारो पेड़ देखादेखी में लगे थे। पहले मेरे माताजी ने लगाया था, फिर पडोसियोने कॉपी-पेस्ट किया। तुम्हे पता है प्रियम्वदा ! कनेर को कोई भी फालतू तामझाम नही चाहिए। बस जमीन और थोड़ा पानी..! और हाँ ! कोई पशु चर न जाए, उतनी ही संभाल। जब यह बड़ा हो जाता है, फिर तो जैसे हरे गुब्बारे में पीली या केसरी बिंदियां लगाई हो। वो गुलाबी कनेर का वृक्ष बनता है, लेकिन वह नीचे से ही फैलने लगता है, एक तने पर ही आकार नही लेता है।
बारिश की रात और चप्पलों की क़िस्मत
आज फिर फूल-पौधे की बाते लेकर बैठ गया मैं, है न प्रियंवदा? लेकिन क्या करूँ, सुबह सुबह जब नाक में कनेर के फूलोंने अपनी सुगंध भरी हो, तो उन्हें भी बिरदाना बनता है। हाँ, आज थोड़ा देर से जगा था, क्योंकि रात को नींद टूटी थी। रात को ताबड़तोड़ बारिश हुई थी, छत से जैसे जलप्रपात गिर रहा था। और पानी की बूंदे खिड़की से होती हुई सोफे तक को भिगाने लगी थी। खिड़की आधी बन्द करके वापिस सोया तो आंखे खुली लगभग साढ़े छह को। साढ़े सात-पौने आठ तक तोंद में कटौती के उपचार हेतु लगा रहा। आज ग्यारस भी थी, तो माताजी को मंदिर भी ले गया। ऑफिस पहुंचा तब दस बज गए थे। कल गाड़ियां ज्यादा थी, तो बाकी बचा काम आज सवेरे सवेरे निपटाना था। लगभग डेढ़ उसीमे बज गए। सरदार की गैरहाजरी में काफी फालतू जिम्मेदारियां भी लेनी पड़ी। मेघ और धरा के प्रेम से जन्मे कीचड़ ने मिल में अपना यौवन प्राप्त किया है। ऐसा गाढ़ा कीचड़ है, कि चाहो तो मिट्टी का ऊंट बना लो, टूटेगा नही।
मिल कीचड़ और फंसे हुए ट्रक
समस्या यह होती है, कि लोडिंग के लिए आए ट्रक्स अलग अलग लोडिंग पॉइंट्स पर जाने के लिए मिल में घूमते है, तो टायर उस कीचड़ में धंस जाते है। और ट्रक वहीं फँसकर खड़ा हो जाता है। न आगे बढ़ता है, न पीछे हटता है। फिर उसे किसी और वाहन से टो करवाना पड़ता है। इस सीजन में हर जगह यही हाल है। तो टो करने वाले लोडरों कि बोलबाला खूब बढ़ गयी है। डिमांड-सप्लाई के नियमानुसार चारोओर इन लोडर्स की मांग है, तो लोडर ऑपरेटर भी बड़ा मूंह फाड़ते है। कल रात को एक फंसी हुई गाड़ी बड़ी मुश्किल से निकलवाई थी, तो आज एक और ट्रक वाले ने फंसा दी। फँसी गाड़ियां निकलवानी भी मिल वाले के जिम्मे होता है। दोपहर ढाई बजे घर पहुंचा था।
शाम को कुँवरुभा के नए मित्र झुकाम की दवाई लेने जाना था। आसमान में ऐसे बादल घिरे थे, कि अगर बरस जाते तो तबाही ला देते.. लेकिन उन्हें रुकना ना-मंजूर था। अच्छा ही हुआ, बरस जाते तो मैं मार्किट नही जा पाता। दो तीन चीजे और लानी थी। खुद के लिए चप्पलें तक नही थी मेरे पास। पहननी ही नही पड़ती है, इस लिए जरूरत अनुभव नही हुई थी। कल रात की बारिश में गलती से खुले में रह गए जूते जब सवेरे पानी की उल्टियां करते पाएं, तब सहसा चप्पलों पर अनहद प्रेम उमड़ आया मेरा। चप्पलें पहनकर देखा तो एक और अनुभव हुआ, मेरे पैर मेरे हाथों के मुकाबले गोरे है। गोरे होंगे ही, धूप देखते ही नही, हमेशा हिजाब में रहते है, अरे मतलब जुराब में रहते है। मार्किट से घर आकर वापिस मार्किट चला गया।
पौधों का मोह : जासुद, मोरपंखी और जेड प्लांट
पंद्रह किलोमीटर पर एक नर्सरी है, वहाँ। गलती यह हुई कि बाइक से गया, यह भूल गया कि गमले बाइक पर अकेले कैसे ला पाऊंगा? बुद्धि उतनी तीव्र नही है मेरी। यह नर्सरी उतनी दमदार नही थी। इसने क्यारे बनाकर काफी पौधे लगाए रखे है, लेकिन सारे ही को जमीन चाहिए। या फिर बड़ा गमला। मेरे पास उतनी जगह नही है। फिर कुछ देर पौधों के बारे में उससे ज्ञान प्राप्ति ली। वह मुझे बार बार मोरपंखी बेचना चाह रहा था। पता नही क्यों? यह वो पौधा है, जिसे हम बचपन मे विद्या का पौधा कहते थे। बचपना ही था, कि मोरपंखी की पत्तियां किताबों में रखने से विद्या आती है। पढ़कर याद करने की जरूरत नही रहती। मैंने अपनी विज्ञान की किताब में रखा था। क्योंकि विज्ञान में ढेर सारी व्याख्याएं याद करनी पड़ती थी, और परीक्षा में पूछी भी जाती थी। एक पत्तियों का झुमखा रखा था गणित में। जब समप्रमाण, व्यस्तप्रमाण, और संमेय संख्याओं की उलझनें, मकरसंक्रांति में उड़ी पतंगों की डोर से भी ज्यादा उलझी हुई लगती थी।
यह मोरपंखी मुझे नही चाहिए था। जासुद चाहिए था, अंग्रेजी में हिबिस्कस। लाल चटक रंग, और बड़ा सा पुष्प। यहां दो रंग के हिबिस्कस थे, एक देशी = लालचटक लेकिन छोटा पुष्प। दूसरा इंग्लिश = केसरी मिश्रित लाल, और बड़ा पुष्प। शराब होती तो शायद इंग्लिश पसंद करता, मैंने देशी खरीदा। जब उसके बार बार कहने पर भी मैंने मोरपंखी नही खरीदा, तो उसने कोई 'जेड प्लांट' तो मुझे पकड़ा ही दिया। बोला इसमें फूल-वुल नही आएंगे, न ही हाइट में बड़ा होगा, न ज्यादा पानी देना है, बहुत कम धूप होगी तो भी इसे चलेगी। इतने सारे लाभ सुनकर खरीद लिया। सबसे बड़ा फायदा था, कि गमला भी छोटा ही चाहिए उसे। मैंने वो भी खरीद लिया। गमले नही ले पाया, बाइक पर कैसे ले जाता? घर आकर एक पुरानी बाल्टी में हिबिस्कस तो लगा लिया। फिर इस जेड प्लांट के बारे में चैटजीपीटी से पूछा। तो पता चला कि इसे 'वृक्ष लक्ष्मी' भी कहते है। और शुभ होता है। पता नही, मुझे वृक्षो में शुभाशुभ के विषय मे उतना नही पता है। लेकिन इतना जानता हूँ, कि कुछ जहरीले पौधे के अलावा सारे ही वृक्ष अच्छे ही होते है।
एक पुरानी छोटी बाल्टी पड़ी थी, उस जेड प्लांट का भी एक ठिकाना बन गया। लेकिन यहां तो अलग पंगा है, चैटजीपीटी के अनुसार उसे पानी ही नही चाहिए। गर्मियों में हफ्ते में एक बार और सर्दियों में महीने में 2-3 बार पानी बहुत है। वो विचित्र नामधारी स्नेकप्लान्ट भी लाना था मुझे। लेकिन पता नही क्यों, उसने मुझे इंडिरेक्ट मना कर दिया। बोला बारिश की ऋतु में उगेगा नही। शायद वह गमले में ऑलरेडी लगा हुआ था, इस कारण ऊंचे भाव मे उसे बेचना होगा किसी और को। उसकी पत्तियां मुझे बड़ी सुंदर लगती है, सच मे जैसे नाग ने फन उठा रखा हो वैसा लगता हैं थोड़ा थोड़ा। खेर, वह फिर कभी ले आऊंगा। पहले यह जो बो रखे है, उनकी देखभाल भी तो जरूरी है। अभीतक एक गेंदा, मधुमालती, पोर्तुलाका, अजवाइन, सदाबहार, मीठा नीम (करी पत्ता), और एक दो और है, जिनके नाम नही पता। घर के बाहर बिल्वपत्र, बादाम (terminalia catappa), कनेर, और नीम लगा है। यह सब की देखभाल तो पूरी हो नही पाती, और गुलाब और लाना चाहता था मैं।
क्या यह बाग़बानी का शौख़ स्थायी रहेगा?
मैं शायद जल्दबाजी कर रहा हूं। धीरे धीरे संख्या बढ़ानी चाहिए। क्योंकि इनमें से शायद कोई भी हमारे यहां की सीधी धूप को नही सह पाएंगे। फिलहाल तो वर्षा ऋतु चल रही है, और यही तो समय है, इनको बड़ा कर लेने का। ताकि गर्मियां आते आते यह मजबूत हो जाए। जल्दबाजी अच्छी नही है यह मैं जानता हूँ। लेकिन मन है कि मानता नही। देखते है, दिलबाग कितने दिन चलता है? तुम्हे क्या लगता है प्रियंवदा? मैं कर पाऊंगा.. या फिर यह शौख भी मेरे अन्य शौख की तरह कुछ ही दिनों में दिशाहीन हो जाएगा?
शुभरात्रि।
(२०/०७/२०२५)
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