रील्स, गार्डनिंग और कुत्तों की दुनिया में खोया एक सोमवार || दिलायरी : 21/07/2025

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दिनभर की रील्स और उनके पीछे की साज़िश

    प्रियंवदा ! मौसम तो ऐसा है, दिल गार्डन गार्डन हो रिया है..! जिंदगी की ही तरह आसमान से भी पूरा दिन कभी धूप तो कभी छाँव रही। प्रियंवदा ! आज दिनभर कुछ किया ही नहीं है, तो परेशान हूँ, कि दिलायरी में क्या उतारूं? पूरा दिन बस रील्स ही देखी है। सारा दिन। आज सवेरे आँखे खुली पौने सात को। फिर क्या ही ग्राऊंड में चला जाता? नहा-धोकर निकल लिया ऑफिस की और। जबकि सोमवार के कारण सवेरे कुछ भी काम नहीं था। वैसे था तो सही, लेकिन उतना तो सामान्य की श्रेणी में रखता हूँ में। काम मैं उसे मानता हूँ, जिसमे मुझे स्ट्रेस की अनुभूति हो। यदि स्ट्रेस न हुआ, परेशानी न हुई, फिर वो तो काम ही न हुआ। कभी कभी साढ़े छह से सात के बिच जब एक साथ बिल्स बनाने होते है, तब स्ट्रेस हो जाता है। और सर चकरा जाए तब लगता है कि हाँ ! आज खूब काम किया है। 



गार्डनिंग का बढ़ता जूनून और खरीदारी के लालच

    दिनभर देखी हुई रील्स में अधिकतर प्रॉपर्टी रेलेटेड आ रही थी। फोन अक्सर हमारी बाते सुन लेता है। दो दिन पहले मैं और हुकुम इसी विषय पर बातें कर रहे थे। और उसके बाद से मैंने आज रील्स देखी, तो ज्यादातर रील्स में आसपास के इलाके में बने-बनाए मकान ही बिक रहे थे। फ़ोन पर या तो सर्च की हुई चीजे सारे ही सोसियल मिडिया पर एड स्वरुप में दिख जाती है, यह तो सामान्य बात है। लेकिन बिना सर्च की हुई बातें भी जब दिखने लगे, तब थोड़ा असहज जरूर लगता है। कुछ साल पहले पेगासस वाला मुद्दा बड़ा जोर पकड़ लिया था। कितना अजीब है न, हमारी सर्च हिस्ट्री किसी के लिए काम है। हमारा एक ऐसा रिकॉर्ड मेंटेन हो रहा है, जिससे हम ही अनजान है। 


देशी बनाम विदेशी कुत्तों की कहानी

    आजकल रील्स में गार्डनिंग के भी खूब वीडियोस आते है, वो तो जायज भी है। क्योंकि आजकल मेरी सर्च हिस्ट्री भी उसी के रिलेटेड होती है। तरह तरह के फूल पौधे, गमले, या फिर वर्टिकल गार्डनिंग को लागू होती तमाम वस्तुएं, ऐमेज़ॉन से लेकर मीशो वाले मुझे बेचने में लगे है। आजकल तीनताल भी खूब सुन रहा हूँ। आते-जाते हुए pd के लेक्चरस कम पड़ते है, उसकी कमी इस तीनताल ने पूरी की है। आजतक रेडिओ का एक पॉडकास्ट है। जहाँ तीन लोग बैठकर गप्पे लड़ाते है। ज्ञान-गम्मत टाइप है, वहीं एक अच्छा मुद्दा मिला, stray dogs का। हमारे गाँवों में पुराना रिवाज था। घर में बचा हुआ भोजन या तो गाएं आरोग लेती, या कुत्ते। 


    कुत्ते पालते है लोग, लेकिन देशी नहीं। यातो वो रोएंदार पॉमेरियन होता है। या फिर लेब्राडोर, या जर्मन शेफर्ड। फिर उसके गले में पट्टा बांध कर खुद मोबाइल में झांकते हुए टहलने निकल पड़ते है। कुछ कुत्ते तो इतने ज्यादा नसीबदार है, कि अच्छीखासी महंगी कार में घूमते है। वाकई, सोचने लायक बात है। इंसानो के साथ रह रह कर कुत्तों का भी इंसानी हाल है। देशी कुत्ते बेचारे चौकीदारी करते हुए भी धुत्कारे जाते है, और विदेशी ऐशो-आराम फरमा रहे है। उससे भी बुरा तब लगता है, जब कुछ लोग कुत्ते को अपने बच्चे जैसा मानते है। उनके खाने से लेकर हगने तक.. सारा तामझाम व्यापारीकरण पा चूका है। कुत्ते के बेल्ट से लेकर, पेडिग्री के पैकेट, और खाने वाले बकेट तक..! कपड़े भी आते है कुत्तों के भाई..! स्वेटर भी.. ताकि कुत्ता ठण्ड झेल पाए। और अपने देशी वाले देखिए.. सारा अंग सकोरकर किसी कोना पकड़ लेते है चुप-चाप। किसी बेघर इंसान के पास कंबल हो न हो, कुत्ता गले में सुनहरी जंजीर डाले हुए है। 


पिटबुल का डर और नगरपालिकाओं की मजबूरी

    आजकल वे भयानक कुत्ते भी पालने का शौख बढ़ रहा है। नाम में सांढ़ है, लेकिन है कुत्ता.. पिटबुल। इसने अपने मालिक तक को नहीं बक्शा है। लेकिन फिर भी पाले जाते है। दूसरी समस्या यह भी तो है, कि अपने यहाँ आवारा कुत्ते भी बहुत है। जो अक्सर किसी राह चलते को काट लेते है। और फिर रेबिस.. बड़ा तड़पता है रेबिस का रोगी। पहले तो चौदह इंजेक्शन लगते थे, वे भी नाभि पर। नगरपालिकाएं भी बेचारी क्या क्या करेंगी? वो इंसानो को संभाले या पशुओं को? क्योंकि अपने यहाँ गाय भी है रोड पर, कुत्ते भी, सांढ़ भी है, छिपी हुई बिल्लियां भी..! बिल्ली इस मामले में अच्छी है। बड़ी चुपके से आती जाती है। किसी को कानोकान खबर न होने दे। समस्या वहां ज्यादा है, जब कुत्ते काटने को दौड़ते है, बाइक वालो के पीछे ही पड़ जाते है। 


ऑफिस के तीन वफादार रक्षक – छगन, मगन और गगन

    मेरे ऑफिस वाले वो तीन - छगन, मगन और गगन - यह तीनो भी अक्सर मैं रोड पर होऊं तो आते जाते वाहनों के पीछे दौड़ लगा देते है। या कोई अनजान आदमी दिखाई पड़े तो उस पर भोंकने लगते है। मुझे प्रोटेक्शन देते है शायद, पर मेरी भी नहीं सुनते। पथ्थर फेंककर मारने पड़े, तब जाकर चुप होते है। मेरे ऑफिस से निकलते ही, अगर सामने हो तो तुरंत खड़े होकर चौकन्ने हो जाते है। रस्ते पर दूसरा कोई कुत्ता देखते ही हमला कर देते है। तीनो छोटे है, तो ज्यादातर मार खाकर या दुम दबाकर लौट आते है। एक बार तो इन तीनो ने मुझे फँसा दिया था। तीनो ने मुझे घेरे में रखकर दूसरे कुत्तो से युद्धारंभ कर दिया। चक्रव्यूह के केंद्र में मैं था। यह तो मेरे भाग्य की शायद मजबूती थी, कि मामला शांत हो गया। अन्यथा उस दिन तो मुझे भी इंजेक्शन लेने की घड़ियां आ ही गयी थी।


सुनिए दिल को छू लेने वाला सिंधी गीत

    आजकल एक गीत खूब सुन रहा हूँ। कच्छी गीत कह लो, या सिंधी कलाम। लेकिन दो पंक्तियाँ रीलमें आयी थी। और बड़ी पसंदीदा बन गयी। 'केडी तोजी तारीफ़ कैयां, तू यार गुलाब जो गुल आहीं... तू जान जिसम मुंजो आहीं, तू जान तू मुंजी दिल आहीं.." मतलब तेरी तारीफ़ में क्या कहूं? तू गुलाब की पंखुड़ी है, तू मेरा शरीर है, तू मेरी जान है, तू ही मेरा दिल है..! जब कवि के पास रूपक खत्म हो गए होंगे, तब शायद उसने उस प्रिय को अपने आप में ही समा लिया होगा। या फिर उस एकात्मता का सिद्धांत.. जहाँ मैं और तुम अलग नहीं प्रियंवदा। तुम मुझमे हो.. मैं तुम में। 


    शुभरात्रि। 

    (२१/०७/२०२५)

|| अस्तु ||


और भी पढ़ें.. 

वैसे आजकल गार्डनिंग का जुनून कुछ ज्यादा ही चढ़ा हुआ है...
कनेर के फूल, जेड प्लांट और बाग़बानी की दिलायरी में भी कुछ इसी तरह के भाव बह निकले थे।
यहाँ पढ़िए उस बगिया की बात...


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– दिलावरसिंह


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