खाराई ऊँट की कहानी और मेरी बेचैनी || दिलायरी : 11/07/2025

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खाराई ऊँट, कर्म और मेरी बेचैन आत्मा – दिलायरी 11 जुलाई 2025

खाराई ऊंट को खोजते दिलावरसिंह..!


क्या सच में हम ‘कर्म’ पर टिक पाते हैं?

    प्रियंवदा ! परमात्मा की कही बात पर हम कहाँ टिक पाते है? अक्षरसः पालन तो असम्भव ही है। मेरे लिए तो ख़ास। क्योंकि मुझे चाहिए होते है फ़ास्ट रिज़ल्ट्स। वो इंतजार-विन्तजार में न अपना मन लगता है, न ही अपन को इंटरेस्ट है। इधर सवाल उठा, उधर जवाब चाहिए। फ़ालतू की झंझट अपने को पोषाती ही नहीं है। मन बेचेन हो जाता है। शायद धीरज की कमी है। दो-तीन दिनों की व्यस्तता दिलायारी में भी अच्छी उतरी थी। लेकिन आज फिर से एक खालीपन होगा..!


    परमात्मा ने कहा है, कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो..! लेकिन अपना काम उल्टा है। मैं खासकर मैं.. पहले फल देख लेता हूँ, हजम हो जाएगा या नहीं? अगर पाच्य है, तो ही कर्म करता हूँ। वरना दूर से ही राम राम..! कौन उतनी मेहनत करे? मैं नहीं करता। आलसी हूँ। खेर, आजकल फिर से ब्लॉग की रीच बढ़ाने के चक्करों में फंस गया हूँ। पोस्ट लिखकर, उसे बढ़िया ढंग से सजाकर पब्लिश तो कर देता हूँ, लेकिन ख्याल आता है, कि स्नेही के अलावा तो कोई पढता नहीं। फिर क्या फायदा? मक़सद भूल जाता हूँ मैं कभी कभी भाईजान..! मेरा मक़सद तो यही था, कि अपनी दिनभर की भड़ास यहाँ खाली करना..! लेकिन धीरे धीरे और प्रवृतियों को भी दिलायरी में घसीट लाया। 


खाराई ऊँट – समंदर में तैरते रेगिस्तान के रहवासी

    वैसे ख़बरों में एक बड़ी रोमांचक खबर सुनने में आयी प्रियंवदा ! कुछ दिनों पहले ऊंटों ने तैराकी की। रेगिस्तान का जहाज पानी का जहाज बन गया। ऊंट को हम पहचानते है, कि वह लम्बे समय तक बगैर पानी के रह सकता है। लेकिन कभी किसी ने ऊंट को पानी में मौज मारते नहीं देखा होगा। तुम्हे पता है प्रियंवदा? ऊंट की एक नस्ल है, जो तैरने के लिए प्रसिद्द है। कच्छ के 'खराई' ऊंट। यह ऊंट अपने चारे के लिए पानी में तैरते हुए क्रीक तक जाते है। इन ऊंटों को मैंग्रोव काफी पसंद है। जो खास भारत-पाकिस्तान की कच्छ बॉर्डर पर सरक्रीक और उसके आसपास का विस्तार है, वहां खूब पाए जाते है यह मेंग्रोव्स। कभी-कभी उस क्रीक के नालों में पानी भर जाता है, तो ऊंट तैरते हुए वहां तक पहुंचते है। 


    लेकिन इस बार तो गजब ही कर दिया इन ऊंटों ने। गुजरात का नक्शा आप देखोगे तो लगता है जैसे पश्चिम की और से किसीने खंजर मारा है। कच्छ और सौराष्ट्र को अलग करती कच्छ की खाड़ी - पूरी की पूरी तैर गए यह ऊंट। कांडला के आसपास कहीं से लगभग ४० ऊंट समंदर में उतरे, और द्वारिका-जामनगर के बिच पड़ते वाडीनार में निकले। हालाँकि पांच ऊंट हतभागी हुए। लेकिन पूरा झुण्ड पूरी खाड़ी तैर कर पार कर गया। गजब ही है न.. प्रकृति जिनको बचाना चाहे उन्हें कुछ न कुछ वरदान अवश्य देती है। वर्ना आम तौर पर यह ऊंट ३-४ किलोमीटर ही तैर पाते है।


बदलता पर्यावरण और घटती ऊँटो की गिनती

    दुनिया में ऊंटों को रेत से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन कच्छ के खाराई ऊंट तैरते है। खारे पानी के समंदर में। इनके पैरों के तलवे अन्य ऊंट के मुकाबले कठोर होते है, ताकि समुद्र के कीचड़ में फंसे नहीं। इनके शरीर पर खाल भी मोटी होती है, ताकि समंदर के खारे पानी से बचे भी रहे। कदकाठी में अन्य नसल के ऊंट से थोड़े छोटे होते है, लेकिन अधिक मजबूत और सहनशील होते है। लेकिन जलवायु में परिवर्तन, अँधा शहरीकरण, और खाड़ी क्षेत्रों में होती कंपनियों की घुसपैठ से लगातार मेंग्रोव कम होता जा रहा है, और मेंग्रोव पर ही निर्भर इन ऊंटों की संख्या भी। खेर, सरकार ने तथा कुछ NGO ने इनके संवर्धन में उचित कदम उठाए है, लेकिन धीरी गति है। लोहे वाली प्रगति ने इन जीवों की उपयोगिता ही ख़त्म कर दी है।


आज की हलचल – ब्लॉग, बारिश और बुलडोज़र

    अरे हाँ ! आजकल सवेरे शाम जब भी न्यूज़ चैनल लगाता हूँ, यूपी का कोई झींगुर बाबा ही सारे समाचारो की हेडलाइंस खाए बैठा है। है तो कोई अपराधी ही, लेकिन न्यूज़वालों ने कुछ ज्यादा ही इसे लाइमलाइट दे दी है। दिनभर उसके मकान पर चलते बुलडोज़र दिखाए करते है। धर्मान्तरण करवाता था, और भी कुछ आपराधिक मामले होंगे, लेकिन एक ही आदमी - एक ही खबर को कोई कितनी बार सुनेगा? और एक और चैनल है, उसमे तो युद्ध के सिवा कोई ख़ास बात होती ही नहीं है। मुझे याद है, रशिया यूक्रेन युद्ध के दो साल बाद भी वह चैनल कह रहा था, कि 'आज तो रशिया कीव पर कब्ज़ा कर ही लेगा..' 


दिलायरी का मूल – आत्मस्वीकृति और निर्वाह

    सुबह वही नित्यक्रम अनुसार ऑफिस आ गया था, और तब से लेकर अभी समय हो चूका है साढ़ेसात, इस ब्लॉग पर ही लगा हुआ हूँ। क्योंकि मुझे फल की चिंता है। कर्म की नहीं। कर्म तो आज नहीं तो कल करना पड़ेगा। लेकिन फल कब तक मिलेगा.. इसकी गेरंटी नहीं दिखाई पड़ती। दोपहर को फिर से टोपी बहादुर से चने उबलवा लिए थे। और मस्त रतलामी सेव के साथ निगल गए थे। शाम होते होते आज एक बार बारिश की छांट गिरी, लेकिन धूप अपने स्थान पर यथावत रही। हाँ ! एक बार को दिन में ही शाम समान अँधेरा हो गया था। लेकिन कुछ ही देर के लिए। स्नेही आजकल उखड़ा उखड़ा है.. स्नेही तुम्हारे लिए.. "मेरे सामने वाली खिड़की में एक चाँद का टुकड़ा रहता है, अफ़सोस यह है, कि वो हम से कुछ उखड़ा उखड़ा रहता है.."


    चलो फिर, साढ़े सात हो गए..! आज की दिहाड़ी अपने नाम कर ली है। 

    कल की कल देखेंगे..!

    शुभरात्रि।

    (११/०७/२०२५)

|| अस्तु ||


आपको यह दिलायरी पसंद आई?
तो एक झलक उस दिन की भी देखिए, जब "लापता लेडीज़" जैसी फिल्म ने मेरी सोच की मिट्टी को हिला दिया था —
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प्रिय पाठक !

"क्या आपने कभी ऊँट को तैरते देखा है? या कभी ऐसा महसूस किया है, कि हम कर्म नहीं, फल से चलते हैं? अपनी राय कमेंट में ज़रूर लिखें… और हाँ, दिलायरी से दिल जोड़िए – रोज एक झलक, रोज एक सोच!"

www.dilawarsinh.com | @manmojiiii
– दिलावरसिंह

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