"लापता लेडीज़, फेमिनिज्म और फूलों का जुनून: एक डायरी" || दिलायरी : 10/07/2025

0

लापता लेडीज़ की खोज में — दिल से दिलायरी


Laapata Ladies nihaarte Dilawarsinh..!

फिल्म ‘लापता लेडीज़’ और उसका सशक्त स्त्री दृष्टिकोण

    प्रियंवदा ! फेमिनिज्म के सन्देश वाली मूवीज में अभी तक में मुझे सबसे बेस्ट 'लापता लेडीज़' लगी। आज ही देखी। वैसे तारीफें खूब सुनी थी। कि बड़ी शानदार मूवी है, मजेदार है..  सारे केरेक्टर्स का रोल जोरदार है। लेकिन देखी नहीं थी। मेरा ऐसा ही सिस्टम है। थोड़े थोड़े समय में मेरी मनोवांछना बदलती रहती है। और मैं विविध विषयों में रसमग्न हो जाता हूँ। लद्दाख यात्रा वाली डायरी (यहाँ पढ़िए) पढ़ने के बाद अनुभव हुआ, कि और भी पढ़ना चाहिए। तो राहुल सांकृत्यायन की कुछ पुस्तकें डाउनलोड कर ली। लेकिन पढ़ते पढ़ते बिच में मोबाइल नामक खरदूषण ने बहका दिया। और इंस्पेक्टर अविनाश देख ली। (इंस्पेक्टर अविनाश का रिव्यू यहाँ पढ़िए।


    उसके खत्म होते ही, मन की लालसा और तीव्र हो उठी, और याद आया 'लापता लेडीज़'..! कल शाम को ही उसे भी डाउनलोड कर लिया था। अब कोई यह मत कहना, की डाउनलोड करके देखता है। इंटरनेट पर उपलब्ध है, तो देखता हूँ। उपलब्धता नहीं होगी, तो नहीं देखेंगे। बाकी सिनेमाघरों में अपनी और से एक फूटी देहली नहीं जाती। हाँ ! दो-तीन साल में एकाध बार कोई बढ़िया फिल्म हो तो देख आता हूँ। लास्ट 'सैम बहादुर' देखी थी। लेकिन उसमे भी वही बातें थी, जो मैंने पहले ही पढ़ रखी थी। (उसका भी रिव्यू पढ़िए।) हाँ! तो बात थी स्त्री वाद की। मतलब फेमिनिज़म.. वही फेमिनिज़्म जिसमे स्त्रियां पुरुषों पर निर्भर रहना नहीं चाहती। और उद्दंड व्यवहार का सन्देश सुनाती है।


गाय, मंदिर और सुबह की भिड़ंत — एक अनकही कहानी

    वैसे ठीक भी है, इतने वर्षों से स्त्रियां गाय की तरह जहाँ ले जाया गया, चुपचाप गयी भी है। गुजराती में कहावत है, 'दीकरी अने गाय, दोरे त्यां जाय..' मतलब बेटी और गाय, दोनों की जहाँ दी जाए वहां चली जाती है चुपचाप, निर्विरोध। गाय से याद आया, दो दिन से सुबह सुबह जब जगन्नाथजी के वहां जाता हूँ, तो एक गाय है, वह जरूर से सींग भिड़ाती है, लेकिन मैं बच जाता हूँ। उसका बड़ा बछड़ा साथ होता है। कल तो मैं जरा सा रह गया था। मेरे कमर से टीशर्ट में उसका सींग घुस जाता तो जरूर से उठा के पटक देती। लेकिन मैं सचेत था, सो बच गया। वाहनों की आवाज सुनते ही हमला कर देती है। कुछ हुआ होगा। 


    आज भी सवेरे मैं बाइक लेकर पहुंचा तो वह दौड़कर आ गयी। मैंने तुरंत अपनी बाइक बंद कर दी, तो वह भी रूक गयी। धीरे से मंदिर का गेट खोलकर मैं अंदर दाखिल हुआ, तो वह भी दौड़कर गेट के पास आ गयी। कल का अनुभव तो था ही, इस कारण आज बाइक को चालू किए बिना कुछ दूर धक्के से ले गया, और फिर चलाकर ऑफिस पहुंचा। आते ही पहला काम कल रात की अधूरी बची 'लापता लेडिस' पूरी करने का किया। फिल्म सचमे बढ़िया है। और मजेदार भी। विवाह के नाम पर लड़कियों पर होते दबाव को, तथा एक कन्या के अपने पति के प्रति के समर्पण को भी एक साथ बुना है। सबसे बढ़िया था, रविकिशन का अभिनय। खासकर वह सिन, जहाँ प्रदीप अपनी अपनी पत्नी जया को लेने आता है, और एक निहायती करप्ट अफसर भी उचित न्याय का पक्षधर हो जाता है। 


फेमिनिज्म का दूसरा पहलू — कटुता या स्वतंत्रता?

    अब कुछ कड़वे वचन भी कर लें? फिल्म में कुछ जगहों पर बड़ी कटु बातें सहजता से परोस दी है। जैसे गुम हो जाने पर फूल को, वो मंजू माई पुरुषों के विषय में काफी उलटी-सीधी पट्टी पढ़ाती है। सुनने में तो सरल बात लगती है, कि स्त्रियों को पुरुषों की कोई आवश्यकता है ही नहीं। तो वह बात तो दोनों के ही लिए लागू होती है। मजेदार तो तब होता जब आप स्त्री को पुरुष के समकक्ष रखती। यह तो वही बात हो गयी, कि फेमिनिज़्म के नाम पर पुरुषों के समकक्ष आने के बजाए पुरुषो को अपने से निचा समझना। वैसे एक रील देखि थी, जिसमे एक लड़का फेमिनिस्टों से सवाल करता है, 'स्त्रियों का बड़ा योगदान क्या है, एक बल्ब पुरुष ने बनाया, गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत पुरुष ने दिया, टेलीफोन भी पुरुषों की देन है। स्त्री का क्या योगदान है?' तब वह लड़की मुँहतोड़ जवाब देते कहती है, 'उन सारे शोधकर्ताओं को जन्म किसी स्त्री ने दिया है, उनका लालन-पालन स्त्री ने ही किया है।'


    एक तरह से सही भी है। आज के समय स्त्रियां उन्नति और विकास दोनों में ही अपना योगदान दे ही रही है। लेकिन डर इसी बात का है, कि कहीं स्वतंत्र होने के नाम पर स्वछंद न हो जाए। क्योंकि स्त्रियों की स्वछंदता में अनेको हानि है। पुरुष की स्वच्छंदता में परिणाम मृत्यु से विशेष कोई नहीं, लेकिन स्त्री की स्वच्छंदता से समाज में विकृतियां पनपती है। 


छत पर गार्डनिंग की चाह — कबाड़ से क्रिएटिविटी तक

    वैसे आजकल गार्डनिंग का भी काफी शौख चढ़ा है। खेती करनी तो आती नहीं, लेकिन लोगो की छत पर लगे गमले देखकर अपने को भी कीड़ा तो काट जाता है। कईं सारे बागबानी के वीडिओज़ देख चूका हूँ। वैसे यह चस्का तो पुराना चढ़ा हुआ है, लेकिन कभी इस विषय में आगे बढ़ा नहीं। क्योंकि दिनभर तो ऑफिस पर होता हूँ। इतना समय कहाँ से निकालूँ? तो हालफिलहाल विचार तो कुछ ऐसा है, कि एकाध गमला लगाया जाए, और उसमे एकाध कोई पुष्पा बसाई जाए। वो कांटेदार गुलाब तो अपन को कम ही पसंद है। गुलाब की तो प्रेमियों ने अर्थी ही निकाल दी है। सोचता हूँ गेंदा बढ़िया रहेगा। 


    यूँ तो जितने वीडिओज़ देखे है, उसमे ज्यादातर लोग वेस्ट से बेस्ट की बातें बताते है। कोई कार का टायर आधा चीरकर उसमे मिटटी भरके पौधा लगा रहा है। तो कोई पानी के कैन तोड़ रहा होता है। कोई तो वो अति-प्रसिद्द 'नीले ड्रम' में भी बागवानी कर रहा है। कोई सीमेंट से खुद ही गमले तैयार कर रहा है। और कुछ लोग और ज्यादा क्रिएटिव होकर खुद कबाड़ से गमले बनाते है, और फिर अपनी चित्रकारी भी दिखाते है। आज एक विडिओ देखा उसमे उसने पौधा लगाने के लिए बत्तख जैसा गमला बनाया सीमेंट का। उतने झमेले में भला कोई पड़ता भी होगा? यह तो दिनभर गप्पे लडातीं स्त्रियों को इन कामो में लगाना चाहिए। अरे.. कोई फेमिनिस्ट कूद पड़ेगी.. क्षमा प्रार्थी हूँ।


पहली कोशिश: पानी के कैन से फूलों की बगिया

    कुछ नींव की जानकारियां जुटाई है उस अनुसार सबसे पहले चाहिए गमला..! अब अपुन के पास उतना फ़ालतू समय नहीं है, कि सीमेंट से कुछ बनाने बैठु.. रोजगारी वाले आदमी है अपन। फिर भी पहली ट्राय में पैसे खर्च नहीं करेंगे.. एक पुराना पानी का कैन पड़ा है, उसी को काटपीटकर आजमाइश होगी। ताकि अगर पौधा भी ज़िद्दी निकल आए और न उगे तो कम से कम पैसे खर्च न हो.. कंजूस हूँ भाई..! जो सो-दोसो बचे.. सिगरेट के काम आएँगे। 


    देखते है, यह शौख का नशा कितने दिन रहता है..! फ़िलहाल तो,

    शुभरात्रि। 

    (१०/०७/२०२५)

|| अस्तु ||

प्रिय पाठक,

आपकी छत या बालकनी में कौन से फूल खिले हैं?
कोई खास टिप्स हों तो ज़रूर बताइए,
क्योंकि मैं भी इस हरियाली की राह पर पहला क़दम रख चुका हूँ..! 
पोस्ट को शेयर करिए, ताकि और भी लोग इस बगिया में साथ आएँ।

www.dilawarsinh.com | @manmojiiii
– दिलावरसिंह


#LapataLadiesReview #FeminismInCinema #DilayariDiaries #RaviKishan #BollywoodReflections #GardeningOnTerrace #IndianBloggers #HindiBlogPost #MovieReviewWithSoul #DiaryOfADaydreamer

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)