"दिलायरी : मई की मुलाक़ातें" – मेरी पहली Kindle ई-बुक का अनुभव
क्या कहती हो प्रियंवदा? अब से नाम के आगे 'लेखक महोदय' लगाना चालू कर दूँ? "लेखक महोदय दिलावरसिंह".. आज मेरी पहली इ-बुक पब्लिश हो गयी..! हालाँकि दूसरी कहनी चाहिए। क्योंकि पहली भले ही मेरे अपने मनोरंजन के लिए ही बनायीं हो, लेकिन इसी ब्लॉग के मेनूबार में 'e-book' सेक्शन में मैंने वह फ्री बाँट दी है। वह है तो yq के जमाने की कुछ बकैती ही.. लेकिन एक यादों के झरोखे की तरह मैंने उसे संभालनी चाही, तो उसे इ-बुक स्वरुप में कैद कर ली। चलो फिर आज की बुक की ही बात बताता हूँ आज की दिलायरी में।
बार-बार और लगातार मुझे मेरे सोसियल मीडिया के मित्र और दो-तीन रूबरू मिलते दोस्तों ने कहा था, आप बुक लिखो.. और मैं हँसते हुए टाल दिया करता कि अपने बस की नहीं सो-सवासो पन्ने भरने। मैं ठहरा ज्यादा से ज्यादा अपना नजरिया व्यक्त करने वाला कलमकार। कहानीकार बनने की जिज्ञासा तो जागते ही बालमरण को प्राप्त हो गयी थी। एक कारण भी है, एक कहानी मैंने गढ़ी भी थी, लेकिन न तो उसका अंत मिला, और ऊपर से वह अपने आप में उलझ गयी। वह आखरी प्रयास था। उसके बाद मैं लगा रहा कविताओं पर। कविताओं के लिए ही मेरे कईं मित्रो ने कहा, एक कविता संग्रह छपवाओ। लेकिन यह जो पुस्तकों क्या व्यापार है, वह बड़ा अजीब है..!
YQ से ब्लॉग तक, फिर डायरी तक
YQ पर जब बात का बतंगड़ (વાતનું વતેસર) बनाना शुरू किया, उसे पढ़कर भी कुछ मित्रों ने कहा था, 'आपमें काबिलियत है बुक लिखने की..' और मैंने कहा था, 'चने के झाड़ पर मत चढ़ाओ..!' फिर एक दिन YQ बंद हुआ, हर कोई इधर उधर हो गया। तभी एक उजियारी किरण मिली। उसे देख देख मैंने अनुकरण करते हुए डायरी लिखनी शुरू की। हालाँकि ब्लॉगपोस्ट तो तब भी लिख रहा था। लेकिन उस किरण ने मेरी लेखनी को हिंदी के पड़ाव में बैठा दिया। तब भी मैं डेली डायरी नहीं लिख रहा था, २४ दिसंबर २०२४ से 'दिलायरी' नाम से प्रतिदिन की दैनंदनी का आरम्भ किया। शुरू शुरू में तो बस एक-दो अनुच्छेद में दिनचर्या ही लिखी जा रही थी। लेकिन धीरे धीरे किरण का अनुकरण करते हुए और भी बातें समाहित होती गयी।
मई महीने की मुलाकातें और दिल की बातें
मई महीना बड़ा व्यस्त गुजरा, और दिलायरियाँ भी काफी भावनाओं भरी बनी। एक तरफ मैं अस्पताल में धक्के खा रहा था, दूसरी तरफ भारतीय सेना लोहा बरसा रही थी पाकिस्तान पर। वे ब्लैकआउट वाली रातें.. आकाश में गरजते फाइटर जेट्स, और एक उत्साही ह्रदय से उद्भवते भाव अंकित हुए डायरी में। उसी मई में मैंने अपने ब्लॉग को एक स्थायी वेबसाइट में कन्वर्ट किया, वहां क्या क्या परेशानियां आयी, और उसी महीने में ब्लॉग पर प्रतिदिन लिखी जाती दिलायरी १५० अंक का पड़ाव पार कर गयी। तो १५१ वा खत मैंने प्रियंवदा के नाम लिखा। सरकारी योजना जो ग्राम पंचायत के सरपंच कईं बार निगल जाते है, उस विषय पर मैंने एक पूर्व-सरपंच के साथ हुआ संक्षिप्त संवाद भी दिलायरी में समाहित किया। उस मई महीने में यही सब मुलाकाते हुई, कभी उत्साह के साथ, तो कभी जिज्ञासा के साथ, कभी निराशा भी हुई, तो कभी दुःख, बाकी सारा सुख और आनंद तो है ही उस दिलायरी में।
कैसे बनी डायरी से ई-बुक : पूरा प्रोसेस
तो एक दिन यूँही ख़याल आया, जब इतने लोग कह भी रहे थे, कि बुक लिखो.. तो क्यों न एक माह की दिलायरी का संकलन कर उसे एक बुक का स्वरुप दे दिया जाए? तो बस लग गया.. एक वर्ड फाइल में ३१ दिनों की लेखनी संकलित कर दी। अब ख्याल आया, बुक तो काफी अलग दिखती है इससे। तो एक रेंडम बुक उठायी, शुरू से जांचपड़ताल करने पर पाया, कि एक बुक में सबसे पहले एक शीर्षक का पन्ना होता है, जिसमे सिर्फ पुस्तक का नाम, और एक छोटी सी टैगलाइन होती है। फिर एक कॉपीराइट का पन्ना होता है। जहाँ सारे अधिकार अपने पास रखकर मात्र वांचन हेतु बुक पाठक को दी जाती है। उसके बाद एक समर्पण का पन्ना भी तो होता है। किसी स्वजन को, स्नेही को वहां याद किया जाता है। उसके बाद प्रस्तावना या भूमिका होती है - जहाँ उस पुस्तक का छोटा परिचय हो, और किस स्थिति में लिखी गयी, वो सारी बातें होती है। उसके बाद अनुक्रमणिका। अंत में, लेखक परिचय, और आभारलेख।
मेरा तो पहला अनुभव था, क्या करता? इधर उधर से किताबे देखता गया, और समझता गया, कैसे क्या लिखना है। प्रस्तावना लिखने में काफी समस्या हुई। क्योंकि यह ३१ अलग अलग दिनों की बातें थी। सारे दिन एक जैसे तो होते नहीं। फिर भी काफी जोड़-तोड़ के बाद एक छोटी प्रस्तावना खुद ही पारित कर दी। अनुक्रमणिका में तो कोई महेनत नहीं लगी, क्योंकि ms word में इंडेक्स बनाने के लिए एक फंक्शन होता ही है। जो अपने आप हैडिंग के नाम के साथ पेज नम्बर ले लेता है। दिक्क्त हुई लेखक परिचय लिखने में। किससे कहता कि मेरा एक छोटा परिचय लिख दीजिए? क्योंकि मैं किसी से भी इतना परिचय में हूँ ही नहीं की वह मेरे विषय में कुछ लिख सकें। तो यहाँ भी खुदने खुद की तारीफों की कसीदे पढ़ लिए। आभार लेख भी अपनी क्षमता अनुसार लिख लिया। यूँ कुछ दिनों का संकलन संपन्न हुआ।
Kindle पब्लिशिंग की चुनौतियाँ और समाधान
मन में पहले से ही तय था, कि इसे किंडल पर बेचने में हाथ आजमाते है। किंडल पर ढेरों टर्म्स एंड कंडीशन है। लेकिन काफी आसान है बुक पब्लिश करना है। हालाँकि अब भी कईं ऐसे फंक्शन्स थे, जिन्हे मैंने सोचे-समझे बिना सिलेक्ट किये थे। शनिवार यानि की २६ जुलाई को मैंने अपनी वर्ड फाइल किंडल पर अपलोड की। लेकिन उस फाइल में मैंने काफी साजो-सज्जा की थी। जो उनकी गाइडलाइन्स के अनुसार ठीक नहीं थी। तो रविवार को फिर मैंने नई फाइल बनायीं, और बस मुख्य मुख्य पन्ने रखकर बाकी तमाम सजावट हटा दी। और फिर से एक बार किंडल पर फाइल अपलोड कर दी। और वह एक्सेप्ट हो गयी। फाइल अपलोड होने के बाद, और पुस्तक के पब्लिशिंग के विषय में तमाम जानकारियां भरने के बाद वह ७२ घंटे का समय लेता है, पुस्तक को लाइव करने में। लाइव करने से मतलब है, विक्रय योग्य करने में।
किताब के विमोचन का संयोग : जन्मदिन पर प्रकाशन
जन्मदिन था २८ जुलाई को मेरा। और उसी दिन शाम को इ-बुक लाइव हो गयी। मेरा ध्यान गया आज सुबह। तो सवेरे सब से पहले विषैले गजे को ही लिंक दी। और उसने खरीद भी ली। दोस्त और किस काम आते है? उनसे खर्च नहीं करवाएंगे तो काहे की मैत्री भला? खैर, यही थी सारी कहानी मेरी पहली पुस्तक "दिलायरी : मई की मुलाक़ातें" की।
प्रेरणा और आगे की योजनाएँ
वैसे प्रियंवदा ! यह पुस्तक का शीर्षक ai की सहायता से लिया गया है। मैंने उससे कुछ नाम सजेशंस मंगवाए थे। जिसमे यह सबसे बढ़िया लगा था। तो प्रियंवदा ! आज का दिन तो बस यह बुक की पब्लिसिटी में ही निकल गया है। दिनभर मैंने अलग अलग माध्यमों पर इस बुक की पब्लिसिटी की है। देखते है, चली तो ठीक है, वरना अपना यह ब्लॉग तो है ही। वैसे क्या लगता है तुम्हे प्रियंवदा? लोगों को डायरी पढ़ने में इंटरेस्ट होता होगा? मुझे तो खूब है। किरण की डायरी खूब पढ़ी भी है मैंने। और वहीँ से उसे प्रेरणा मानकर यह दिलायरी की तीरंदाजी अभी तक किये जा रहा हूँ।
चलो फिर, आज के लिए इतना ही, बाकी कल की कल देखेंगे। लेकिन हाँ ! जरा नजर और निचे ले जाइएगा, बुक का लिंक मिलेगा, आपको रसप्रद लगे, तो "कथित" - "लेखक महोदय दिलावरसिंह" को सहयोग कीजिएगा।
शुभरात्रि।
धन्यवाद।
(२९/०७/२०२५)
|| अस्तु ||
"दिलायरी : मई की मुलाक़ातें" अब Kindle पर उपलब्ध है।
31 दिनों की दिल से निकली डायरी, अब आपकी स्क्रीन पर।
पढ़िए, महसूस कीजिए… और एक लेखक के पहले प्रकाशन का साथ दीजिए।