"चौथे रविवार की दिलायरी : नर्सरी, नोस्टाल्जिया और एक सिगरेट की जेब" || दिलायरी : 28/07/2025

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चौथा रविवार और नर्सरी का मोह


Biker Dilawarsinh..!

सुबह की बारिश और मैदान के कुछ चक्कर

    चौथे रविवार की शाम भी नर्सरी में ही गुजरी प्रियंवदा..! इस शौक पर अब घरवाले भी तिरछी निगाहों से देखने लगे है। उनकी भी बात ठीक है। आज सवेरे सात बजे उठकर साढ़े सात को ग्राउंड में पहुंचा तब बारिश की बूंदाबांदी चालू ही थी। बारिश उतनी, कि धीरे धीरे पानी जमीन में उतरता तो रहे, लेकिन हम भीगे भी नही। लगभग 4-5 राउंड थोड़ी तेज चलते हुए पार कर लिए। और कुछ सूर्यनमस्कार किये ही थे कि बारिश की बूंदे थोड़ी बड़ी गिरने लगी। और मैं घर चला आया। ऑफिस पहुंचा तब साढ़े नौ बजे थे।


किंडल की किंडल-कथा और पहली प्रति

    कल शाम को जब ई-बुक पब्लिश कर रहा था किंडल पर, तो वो किंडल के गाइडलाइन्स के अनुसार एक्सेप्ट न हो पाई। मैंने अपना पूरा एडिटिंग किया हुआ फॉर्मेट ही अपलोड किया था। शायद उसी कारण से। फिर से सारा कंटेंट कॉपी कर एक नई वर्ड फ़ाइल में पेस्ट किया। और हैडिंग्स वगेरह फिर से एक बार सेट किए। पेज नम्बर, हैडर, फुटर वगेरह सब नया बनाया। और फ़ाइल सेव कर के फिर से एक बार किंडल पर अपलोड कर दी। लगभग आधे mb की बन गयी। बड़ी सरल प्रक्रिया है, किंडल पर अपनी बुक पब्लिश करना। सबसे पहली प्रति स्नेही को ही भेजी थी कल। वह एक मात्र मेरी प्रेरणा और नित्यपाठी जो ठहरा। जब यह सब किंडल पर हो गया, तब तक सरदार भी आ गया, और ऑफिस के अन्य काम भी..!


    लगभग पौने दो बज गए, सिर्फ इस सप्ताह का हिसाब किताब और एवरेज निकालने में। खेर यह तो हर रविवार की यही कहानी है। छुट्टी के नाम पर हम 2-3 बजा ही देते है, ऑफिस पर ही। घर आकर कुछ देर आराम किया। हुकुम का आदेश था, कि एक हफ्ता हो गया चार चक्का अपनी जगह से हिला उसे। तो कहीं ले जा..पास ही एक मंदिर है, कम से कम वहीं ले चल। लेकिन मेरी जरा इच्छा नही थी। तो मैंने बढ़िया बहाना मारा, कि 'मुझे पत्ते के साथ एक काम के लिए जाना है।' आदमी को बहाने मारने के लिए उम्र की पात्रता नही लागू होती। बच्चे अक्सर अपने पिता से तरह तरह के झूठ बोल ही लेते है।पिता को भी पता होता है कि जड़ से झूठ बोल रहा है, लेकिन वे और कुछ आगे कहते नही।


पत्ता और पुरानी यादों का शहर भ्रमण

    पत्ते को उसके घर से उठाया, और चल दिये नोस्टाल्जिया की ओर। वे बचपन की यादें.. थोड़ी गुमशुम, और थोड़ी मजेदार। मुझे बाइक वाशिंग करवानी थी, वहीं करवाई, जहां मैं ट्यूशन जाया करता था, ठीक उसी के पास। वह मकान, वह रास्ता, और तुम प्रियंवदा.. सब फिर एक बार आंखों के आगे चलने लगा। सौ रुपये में चकाचक हो गयी बाइक। और हम चल दिए पत्ते की नोस्टाल्जिया में। वहीं से कुछ दूर पत्ते का पुराना निवास हुआ करता था, वह बताता जा रहा था, कि यहाँ से मैं साईकल लेकर निकलता, यहाँ मैं हर रविवार सुबह नाश्ता लेने आता, यहाँ पहले यह हुआ करता, यहाँ वो..! करते करते हम लोग मैन रोड पर आ गए। यहां वे तमाम प्रकार की रेडी वाले वापिस लौट आए थे, जिन्हें कुछ दिनों पहले महानगरपालिका ने अपना रुतबा जताते हुए हटवा दिए थे। इस मैन रोड पर मटके वाले, गमले वाले, फ्रूट्स वाले, फर्नीचर वाले, चाय की टपरी वाले, एक-दो नाश्ते वाले, और कुछ पालतू जीव वाले भी.. हाँ आज काफी दिनों बाद एक पालतू प्राणी वाला खड़ा मिला। उसके पास दो लेब्राडोर के पिल्ले थे, कुछ खरगोश, तरह तरह के तोते, और रंगबिरंगी चिड़िया, और कुछ लाल-पीली-नीली तैरती हुई मछलियां भी। 


    काफी लोग इस रोड पर गुजरते हुए खरीदारी करने रुकते है। और इस कारण से यहां ट्रैफिक धीरा चलता है। मैंने एक जगह बाइक रोकी, और गमलों का भाव पूछा, सीमेंट वाले की कीमत देढ़सौ के आसपास थी। चौदह इंच वाले की। आज पता चला, गमले की त्रिज्या के नाप पर दाम होते है। मुझे लगता था, ऊंचाई पर निर्भर करता होगा दाम। मैं फिर से एक बार बाइक पर गमले खरीदने निकला था। पत्ता था साथ मे, चाहता तो वो संभालकर, गमले लेकर पीछे बैठ सकता था। लेकिन नही, अगला अड़ गया, साफ मना कर दिया उसने, फालतू की महेनत चाहिए ही नही। तो गमले वाले को झूठमूठ का रात को खरीदने आने का वायदा कर निकल पड़ा। शहर की एकमात्र महाराणा की मूर्ति के पास एक नर्सरी है, मुझे आज पता चला। कभी ध्यान से देखा ही नही था। शहर में सावन का मेला लगने वाला है। हर साल लगता है। सारी बड़ी राइड्स, फ़ूड स्टाल्स, और झगड़े..! काफी अच्छा होता है। इस बार की तैयारियां दिखाई पड़ रही थी।बड़ा सा एफिल टावर खड़ा था। दो ट्विन टावर भी, लंदन ब्रिज, और भी कुछ मोनुमेंट्स थे, लेकिन मैं चालू बाइक पर ध्यान से देख नही पाया। 


अमीरों की नर्सरी और मोहक यौवन

    खेर, इस नर्सरी में गिचता में काफी प्लांट्स लगे हुए थे। मुझे खरीदना कुछ नही था, इस कारण से जाते जाते बहाना मारा, कि आपके पास सीमेंट के गमले नही है। थोड़े आगे एक और नर्सरी है। यह बड़ी मालूम पड़ रही थी। यहां तो कईं सारे पौधे थे। और ढेरों साज-सज्जा की चीजें। इसका अर्थ था, यह अमीरों की नर्सरी है। यहां पेबल्स (वे चमकीले कंकड़-पत्थर जो नदी किनारे होते है) की बोरियां भरी पड़ी थी। अलग अलग डिज़ाइन के प्लास्टिक के गमले, हैंगर, और भी ढेरों फैंसी आइटम्स। अमीर स्त्रियां अपने चेहरे पर हजारों का मेकप चढ़ाए, इधर से उधर पौधे देख रही थी। पत्ता अचानक से अंग्रेजी उगलने लगा। देखो दोस्ती वह होती है, बिन बोले भी सब समझ जाए। मैंने पत्ते की ओर देखने बजाए इधर उधर नजरें घुमाई। प्रियंवदा ! गुलाब, कनेर, चंपा, या रजनीगन्धा की खूबसूरती एक तरफ, और सामने खड़ी एक यौवना की सुंदरता एक तरफ। क्या मोहकता थी उसमे? कैसे वर्णन करूँ? कुछ देर तो मैं भी भूल चुका था, कि कुँवरुभा पांच वर्ष के होने वाले है। क्या हो गया भंवरे कैद हो गए? फूलों को निहार तो तब भी सकते है। हालांकि हम लोग खुद पायजामे में घूम रहे थे, यह जब ख्याल आया तो तुरंत बाहर की ओर सरकने लगे। और हम, वहां से भी निकलते हुए वह पहले वाला ही बहाना मार कर चल दिए। अब बस घर की ओर प्रयाण था।


सिगरेट की जेब और घर वापसी

    घर आते हुए भी, मैं फिर से रास्ते मे पड़ती एक नर्सरी पर स्टॉप ले लिया। यही वो नर्सरी है, जहां से मैंने पहली बार मिट्टी, पौधे, और खाद लिया था। शौक का शुभारंभ यहीं से हुआ था। वही सुंदरी खड़ी थी, दो सीमेंट के गमले थोड़े ऊंचे दाम में खरीद लिए। दस इंची के एक सौ बीस, जब कि वो रोड वाला चौदह इंची के एकसौ पचास में दे रहा था। पुरुष कभी भी स्त्री से भावताल नही कर सकता, अगर वह साड़ियों का दुकानदार नही है तो। साड़ी का दुकानदार ही है, जो भावताल में स्त्री के सामने पीछेहठ नही करता। साथ ही एक स्नेकप्लान्ट भी ले ही लिया। काफी मन लगा हुआ था इसके पीछे। घर पहुंचने से पूर्व याद आया, कि उपलि जेब मे सिगरेट का पैकेट पड़ा है। घर पर गमले रखते हुए जुका और जेब से गिर पड़ा तो? गमले सर पर भी पड़ सकते है। बाइक साइड रोककर सब सेटलमेंट फिर से किया और घर लौट आया।


हुकुम का ताना और प्लॉट की उलझन

    हुकुम ने तिरछे नैनबाण, और वक्रजिह्वा चलाते हुए कहा, "जो है उसे मत मठार.. नया बनाकर दिखा।" उनका निशान कहाँ था यह मैं समझ चुका था, लेकिन मैं जानता हूँ मेरे लिए वह बड़ा मुश्किल हैं। आज के समय एक प्लॉट लेना, मतलब लोहे के चने चबाना।


    शुभरात्रि।

    (२७/०७/२०२५)


|| अस्तु ||


"और भी पढ़ें"


प्रिय पाठक!

क्या कभी आपने भी किसी रविवार को नर्सरी के कोने में अपने बचपन को खड़ा पाया है?
क्या कोई "पत्ता" आपके साथ भी गलियों की कहानी कहता है?

अगर "हाँ"... तो नीचे कमेंट कर बताइए अपनी एक याद — कोई गमला, कोई गलती, या कोई गुलाब…

और अगर "नहीं", तो अगली बार बाइक रोकिएगा — किसी नर्सरी के सामने,
शायद कोई पुरानी याद वहीं पत्तियों के नीचे बैठी मिले..!

आपकी एक पंक्ति, मेरे लिए पूरी दिलायरी होती है…

पढ़ते रहिए, जुड़ते रहिए  www.dilawarsinh.com


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