सवेरा अब भी वैसा ही है... (प्रियंवदा के नाम)
“सवेरा अब भी वैसा ही है...”
प्रियंवदा ! शाम के सवा छह हो चुके है, और मैं फिर से एक प्याली चाय की गर्मी अपने भीतर उतारकर कंप्यूटर के आगे बैठ गया हूँ, तुमसे बतियाने ही तो..! आज लगभग चार कप चाय पी है, फिर से अपनी पुरानी आदतों में ढलने लगा हूँ। सवेरा अब भी वैसा ही है प्रियंवदा ! शाम हो गयी, लेकिन जब सवेरे आँखे खुली, और मैदान से अधखुले उजियारे में दौड़ लगाकर वापिस आया था। अभी भी वैसा ही अधखुला उजियारा है। न सूर्य ने पूर्ण प्रकाश भेजा, न निशा ने पूर्ण अँधेरा..! यह बादल कहीं तो बरस रहे है। कईं दिन हो गए, ऐसा ही वातावरण रहता है। मौसम भी मेरी तरह ग्रे हो गया है, वह भी श्याम और श्वेत में से कोई एक पक्ष चुन नहीं पा रहा है।
“आज दिल ने खुद से बात की…”
तुमने कहीं सुना है, एक लंबी बातचीत हुई, लेकिन बिना आवाज के। वैसे चैटिंग में आवाज नहीं होती। यह भी एक कितना सहूलियतपूर्ण बात करने का जरिया है। है न? जब तुम्हे इच्छा हो तब प्रत्युत्तर दो। लेकिन मैं कहना चाह रहा था, कि जब अपने आप से बात हो रही होती है, तब भी आवाज नहीं होती। वो कहीं न कहीं भीतर एक विस्तृत चर्चा चलती है। कुछ अमृत निकलता है, कुछ विष भी। कभी किसी डर से सामना हो जाता है, कभी कोई शिकायत, तो कभी छिपा हुआ इश्क़..! हाँ ! मुझे याद है, मैं प्रेम में नहीं मानता हूँ, लेकिन तब भी मेरी व्याख्या अनुसार जो आकर्षण है, वह अपने भीतर जीवित रहता है। और कईं बार हृदय उससे बातें करता है। कईं बार हृदय कुछ कहते कहते रूक जाता है। डर का सामना करने से हिचकिचाता है। और बातें रुक जाती है.. जैसे अपने आप ने अपने आप पर एक पॉज लगा दिया हो।
“बारिश की एक चुप दुआ”
एक तो यह बारिश.. मौसम होने के बावजूद नहीं बरस रही.. बिलकुल तुम्हारे जैसी है प्रियंवदा। बल्कि तुमसे थोड़ी अच्छी भी है। तुमने तो कभी संकेत भी नहीं दिया। यह कम से कम बादल की आशा तो बनाती है। वर्षा में अक्सर नमीं सिर्फ मिट्टी में नहीं होती। कुछ तो हमारी यादों में भी भीग जाता है। कुछ याद आता है, कुछ कहने का मन होता है, लेकिन बारबार रुक जाता है। सब कुछ बदल जाएगा, यह सोचकर.. एक स्टेज पर पहुंचकर बदलाव किसीको पसंद नहीं आते..! क्योंकि वहां पहुंचकर उन बदलावों को झेल पाने की क्षमता शायद घट चुकी होती है। कुछ नयी पसंद, कोई नया व्यक्तित्व, या कोई नई भावना पालनी, कठिन काम लगता है। और लगना भी चाहिए। क्योंकि मन तो कहाँ किसी का संतोषी हुआ है?
“जो कह न सके, वो एक चिट्ठी”
तुम अगर पढ़ रही हो प्रियंवदा, तो सुनो कुछ नए पनपते जज्बातों को रोकना बहुत कठिन काम है। मन को मारना भी कहाँ आसान है? कभी भी नहीं था। लेकिन मैं तो मन को मारना सीख चूका हूँ। बहुत पहले से। जब से समझ आ गयी थी जिम्मेदारियां.. अपने लिए भी मैंने कईं चाहतें रखी थी, लेकिन उतनी ही, जितने में जिम्मेदारियों के बोझ पर अधिक भार न पड़े। एक रुतबा मैंने बचपने से जान लिया था। उसे संभालकर रखने में, कईं सारे मनों को मैंने मौत के घाट उतारा है। कईं सारी आकांक्षाएं थी। जिन्हे दूसरों ने जी है, मैंने बस ख्वाब में पी है। बहुतों के पास विकल्प थे, मेरे पास बस मेरी इच्छाओं को मारने की शक्ति। जिन्हे लोग नियंत्रण कहते है, वह हकीकत में एक इच्छा की लाश पर खड़ा हुआ विजय ही समझो.. आज भी कईं ऐसी इच्छा जागृत होती है, जिनसे मैं दूर हो जाता हूँ, भली बुरी दोनों से.. क्यों? क्योंकि मन को मारना अब एक आदत बन चुकी है प्रियंवदा। एक आदत..
“एक आदत जो छूट गई”
लेकिन एक आदत ऐसी भी है, जो अब छूट गयी.. बहुत दूर चली गयी.. वो भी तुम ही हो..! आदतें बदल सकती है। प्रेम पलट सकता है। और लोग कभी अपना चेहरा नहीं दिखाते। एक आदत थी, प्रियंवदा को देखने की.. लेकिन अब वह मन ही मर चूका, आदत भी...! वो सब कहने की बात है, प्रेम होता तो नहीं बदल सकता। आदत थी इस लिए छूट गयी। दुनिया अपनी स्वार्थ पर चलती है प्रियंवदा ! प्रेम पर नहीं। प्रेम एक दिखावा है, छलावा। एक स्पर्धा है, यह जताने की, कि मैं तुमसे अधिक बड़ा प्रेमी हूँ। मैं चाँद-तारें तक तोड़ लाने की बात कर सकता हूँ। वास्तविकता से कोसो दूर, जो कल्पनाओं में घटित होता है, वही है प्रेम। मुझसे सेंकडो मिल दूर किसी को मैं अपनी कल्पनाओं में उतारू, और उससे बातें करूँ वही है, प्रेम.. जिसका वास्तविकता की कठिनाईओं से कोई वास्ता न हो, और सदा खुशहाली की चद्दर लपेटे हुए है, वह है प्रेम.. वह कल्पनाओं में इस लिए पलट सकता है, उसे मोड़ा जा सकता है। उसे रूपांतरित किया जा सकता है। फिर आदत और प्रेम में क्या फर्क रह गया? आदतें बदली जा सकती है, प्रेम भी.. और प्रियंवदा भी।
“दिलायरी”
वही नित्यक्रम है मेरा प्रियंवदा ! सुबह, साढ़े छह उठो, साढ़े सात तक ग्राउंड। साढ़े आठ तक घर से निकल जाना ऑफिस के लिए। नौ बजे ऑफिस। पहला काम बीते कल की दिलायरी को शेयर करना। और फिर ऑफिस का कुछ काम है तो, वरना अपनी सर्फिंग करते रहो इंटरनेट में। राखियों की बोलबाला शुरू हो चुकी है। कल एक कुरियर आया था, आज एक कुरियर किया है। दोपहर को ट्रैफिक को चीरते हुए, मार्किट पहुंचा, कुरियर कर दिया। और वापिस लौटते हुए, एक गिलास मसाला छाछ को पेट में उड़ेला। काफी फ़ालतू समय पड़ा था, तो मार्किट में एक सुपरमार्ट है, 'MR DIY' नाम से। लगभग यह एक बिज़नेस चैन है। मेरे शहर में भी है। काफी बड़ा है। और बहुत कुछ मिलता है। मुझे चाहिए था, कार चार्जर C-PORT वाला। नहीं मिला। लगभग आधे घंटे तक बस मॉल में टहलने का आनंद लिया।
दोपहर बाद लग पड़ा फिर से सर्फिंग करने। तो एक मजेदार बात पता चली। टोयोटा की एक कार है, INNOVA नामसे। बड़ी प्रसिद्द गाडी है। उस कार का नाम इन्नोवा कैसे पड़ा होगा? ऐसा को शब्द तो है नहीं। तो पता चला, कि टोयोटा जब २००४ में एशियाई बाजार में एक नई कार की डिज़ाइन की। तो वह नई इनोवेशन थी, INNOVATION से इन्नोवा शब्द निकला है। INNOVATION + NOVA = INNOVA... लेटिन भाषा के शब्द NOVA का अर्थ है 'नया तारा'। INNOVA का मतलब होता है, A New Star of Innovation - नवाचार का नया सितारा। इतने समय से मैं रोड पर यह कार घूमती देखता हूँ, २-३ बार मैंने भी चलाई है। पर कभी जानने की जिज्ञासा नहीं हुई, कि इन्नोवा नाम क्यों पड़ा होगा इसका। है न मजेदार प्रियंवदा।
चलो फिर, अब सवा सात बज चुके.. विदा दो।
कल फिर मिलेंगे, नए पन्ने पर। तब तक के लिए,
शुभरात्रि
३१/०७/२०२५
|| अस्तु ||
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