दिन की शुरुआत और जेब की छोटी चोरी
आज तो तुम्हे लिखने के लिए दो बार इस ड्राफ्ट में आया प्रियंवदा ! लेकिन कुछ न कुछ काम आ जाता रहा बिच में। अब फिर से एक बार शुरू से शुरू करने की जरुरत आन पड़ी है, और भूमिका सप्तपाताल को पार कर गयी शायद। कईं बार ऐसा होता है, कुछ काम कर रहे है, तब बढ़िया बात दिमाग में आ जाती है, लेकिन समय रहते लिख नहीं पाते। और वह विचार फिर वापिस नहीं लौट पाता। चलो फिर आज दिनचर्या से ही शुरू करते है। क्योंकि भूमिका स्त्रीलिंग है, और आज बेवजह रूठ गयी लगती है। तो आज सवेरे - सवेरे मेरी एक चोरी पकड़ी गयी.. सवेरे जब जगा तब, पेण्ट की जेब से कुछ गिर गया मिला।
ऑफिस की हलचल और मल्टीटास्किंग के मज़े
लेकिन उम्र का एक फायदा यह है, कि अब कुछ मर्यादित डाँट ही पड़ती है। जो हम ढीठ होकर सह सकते है। खेर, फिर चल पड़ा ग्राउंड में। आधे घंटे में जितनी तोंद घटा पाऊं उतनी मैंने महेनत जरूर की। घर आकर कुछ देर माली बना। और फिर नहाधोकर ऑफिस। ऑफिस पर तो वही काम होता है, आज पहली तारीख थी, तो थोड़ा और ज्यादा रहा। हालाँकि मुझे मल्टी-टास्किंग करनी आती है, तो एक तरफ स्नेही से चर्चा करता रहा, एक तरफ विषैले गजे की चैनल के लिए बैनर बनाते हुए, ऑफिस की एक लिस्ट भी बना ली। मल्टी टास्किंग में एक अलग मजा है वैसे... क्योंकि कईं बार इधर का उधर भी हो जाता है। गजे का एक मेसेज स्नेही को भेज दिया।
ख्यालों की जगह और संघर्ष की ज़रूरत
खेर, दोपहर कब हो गयी, ज्यादा ध्यान न रहा। वैसे कल एक मित्र के घर की बागवानी देखते हुए ख्याल आया। अपने पास भी थोड़ी ज्यादा जगह होनी चाहिए। ख्याल तो फ्री में आते है, लेकिन जगह नहीं। जगह की प्लानिंग तो वैसे भी मैंने कब से शुरू कर दी है, लेकिन जिस साधना में समस्या न हो, निरि सरलता हो, संघर्ष न अनुभव हुआ, तो आप कहानी क्या बताओगे किसी को? एक कहानी जरूर बननी चाहिए। ताकि किसी महफ़िल में आपके पास भी शब्दबाण हो। महफ़िल से याद आया प्रियंवदा ! मैंने आखरी बार कब लाल पानी पिया, वह याद तक नहीं आ रहा है। अच्छी बात है, हैं न?
बचपन की गुल्लक से लेकर फाइनेंशियल प्लानिंग तक
प्रियंवदा ! वो रिश्तेदारों वाली पैसो की खींचतान तुम्हे याद है? जब कोई रिश्तेदार जाते हुए पैसे देते, तो वे पैसे ले लेने की इच्छा होने के बावजूद मना करना पड़ता। फिर एक खींचतान चलती, एक तरफ से पैसे देने के लिए, और दूसरी तरफ से पैसे न लेने के लिए। और वह पैसे की नॉट इधर उधर घूमती रहती। फिर जब यह खींचतान लंबी चलती, तो नॉट का मूल्य कम हो जाता.. सीधा ही आधा..! तब दुःख जरूर होता.. लेकिन वे पैसे उसी समय खर्च नहीं हो जाते थे, या तो माताजी रख लेती.. या फिर गुल्लक। गुल्लकों का भी एक रुतबा हुआ करता था एक समय पर। धीरे धीरे उसने भी उत्क्रांति की। मिट्टी वाले गुल्लक के बाद खिलौने वाले बैटरी से चलते गुल्लक आए। एक घर जैसा होता था, उस घर के दरवाजे पर सिक्का रखो तो, दरवाजा खुलता, और अंदर से एक कुत्ता या बिल्ली वो सिक्का अपने भीतर ले जाता।
संक्षिप्त में कहूं तो धनसंचय हमे बचपन से सीखा दिया जाता है। एक सुदृढ़ भविष्य के लिए धनसंचय अनिवार्य है।
धनसंचय का नियम – 50+40+10 का मंत्र
लेकिन फिर बड़े हो गए, इनकम होने लगी, और खर्चा भी.. एक समय पर दोनों समान भी हो चले थे, आय और खर्च.. दोनों बराबर..! पैसे बचाने का एक बहुत बढ़िया नियम मुझे लगा, वो है, 50+40+10..! आय के तीन हिस्से करने है, 50 % घरखर्च में। 40 % बचत खाते में, और 10 % एक साल तक रिकरिंग या sip करके घूमने जाने के लिए अलग कर लेने चाहिए। मैंने यह तरीका आजमाया है। लेकिन मुझसे प्रतिमाह नहीं निभाया जा रहा है। क्योंकि हर नए महीने मुझे कोई नया कीड़ा काट लेता है, खर्च का। और मैं निकल पड़ता हूँ, जेब को जालीदार करने।
रील्स की दुनिया में भावना का बाज़ार
खेर, यह सब तो चलता रहता है। एक बात और सुनो लगे हाथो.. रील की दुनिया में कल कुछ बड़ा ही उथलपुथल हो गयी। क्या वाहियात रील्स स्क्रॉलिंग में आयी है। एक रील में एक शोकसभा चल रही थी। बिलकुल धवल रंग में सब कुछ था, लोग भी श्वेत वस्त्र धारण किये हुए, बारी बारी से श्रद्धा सुमन चढ़ा रहे थे। किसे? एक कुत्ते की पांच फ़ीट की तस्वीर के आगे। बताओ.. एक कुत्ते की भी श्रद्धांजली होती है। हाँ ! आर्मी डॉग की बात अलग होती है, उसे अक्सर शहीद का दरज्जा मिलता है, क्योंकि वह या तो विस्फोटक खोजते हुए हताहत होते है, या फिर गोलीबारियों के बिच। लेकिन एक सिविलियन कुत्ता.. उसने ऐसी कौनसी जनसेवा कर दी होगी? लोग भी उदास मुँह लिए मौन पालन करते हुए दिखे.. कुत्ता भी नसीब लेकर पैदा हुआ होगा।
उसके बाद एक और विचित्र रील आयी.. एक २५-३० उम्र की स्त्री एक बकरे को स्तनपान करा रही थी। वीडियो पर लिखा था, 'आज तो मेमो ने काट लिया'..! यह जो वाइरल होने का चक्कर है, वह बड़ा ही गन्दा है। हालाँकि यह मानव और पशु के बिच की यह ममता तो बहुत पुरानी है। राजस्थान में एक जाति है, जिन्हे हिरन से बहुत लगाव है। वे लोग हिरन के साथ इतने घुले मिले रह सकते है, कि कईं बार वहां से ऐसे फोटोज आते है, जिसमें एक स्त्री नन्हे हिरन को पयपान कराती हुई दिखती है। लेकिन कहने की बात यह है, कि उसके वीडियोस रिकॉर्ड करके सोसियल मिडिया पर नहीं डालने होते..! अच्छी बात है, कि एक पशु बेख़ौफ़ होकर तुमसे ममत्व बाँध सकता है। लेकिन तुम उसका प्रचार क्यों करते हो?
उलूलजुलूल राजनीति और मर्म की मार
भावना सब में होती है, किसी की मजबूत, तो किसी की कमजोर। किसी की छोटी सी बात में आहत हो जाती है, तो कोई तो पथ्थर ही भावना पाले टिके रहते है। जब एक नेता जी की पत्नी की खुली पीठ पर कोई टिप्पणी करे, तो उस नेता जी के सप्पोर्टर्स मारपीट कर सकते है। लेकिन उस नेता जी की पार्टी के कोई सदस्य किसी जाति पर टिप्पणी करें, और उस जाति वाले नेताजी के कलीग को कूटना चाहे तो वे गुंडे है। बड़ा ही उलूलजुलूल मामला है.. यह शब्द मुझे बड़ा मजेदार लगता है, 'उलूलजुलूल'.. खेर, तोतापुरी नासिकाधारी नेता जी को सादर नमन..!
शुभरात्रि प्रियंवदा।
०१/०८/२०२५
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