धराली की जल त्रासदी: जब गाँव नक़्शे से मिट गया
प्रियंवदा ! मृत्यु कितना गतिवन्त है। अवधि का अंश तक नहीं देता। कितने भयावह और डरावने है धराली के वह चित्र.. जलप्रलय के वे विज़ुअल्स अंतरात्मा तक कपकपा देते है। क्या अनुभूति हुई होगी उन लोगो को, जब उन्होंने पानी का सैलाब आता देखा होगा। एक दम से सब कुछ 'था' हो गया। कुछ सेना के जवान भी लापता हो गये। गंगोत्री जाते हुए उत्तरकाशी के पास स्थित धराली गाँव कुछ ही देर में जैसे नक़्शे से मिट गया। सौ से अधिक लोग लापता थे, बाढ़ में पानी के साथ आयी मिट्टी में शांति दब गयी, और कोलाहल शेष रह गया। जीवन का कोई भरोसा नहीं है प्रियंवदा। कब क्या हो जाए, अभी अभी सौम्य मालुम होती यह प्रकृति कब अपना रूख मोड़कर आततायी हो जाए..
नदियों की स्मृति और हमारा विस्मरण
वैसे सदैव से कहा जाता है, नदियां अपना रास्ता कभी नहीं भूलती..! किसी समय पर जिस मार्ग से नदियां बही हो, और फिर नदी ने अपना प्रवाह बदल भी लिया हो, तब भी वह कभी न कभी अपने पुराने मार्ग पर लौटती है। या जैसे कहा जाता है, सिंधु का प्रवाह बदला गया, और मोहेंजोदड़ो आज पुरातत्व विभाग की शोध का विषय बन गया। हमने अपने निवास हेतु बहुत सी भूमि नदियों से प्राप्त की है। समाचारों में सुना की प्रयागराज, और काशी के घाटों पर भी जलस्तर अनहद बढ़ा है।
एक विडिओ में तो पुलिस अफसर थाने में आ पहुंचे गंगा प्रवाह की पूजा करते देखे गए। क्या पता गंगाजी स्वयं थाने में रिपोर्ट लिखवाने गयी हो। कि लोग नदियों का अनधिकृत दोहन तथा तटभूमि अतिक्रमण कर रहे है, उन पर कौन नियंत्रण लादेगा? संभव है गंगाजी के तटों पर अतिक्रमण नहीं होता होगा, लेकिन और नदियों की तो दशा ठीक नहीं। यमुना और कावेरी तो प्रसिद्द है। दिल्ली का दूषण - प्रदुषण यमुनाजी ही संभालती है। और हम है, प्रकृति पूजक। नदियों में चुनरी, दीपक और सिक्के चढाने वाले। साथ ही साथ गटर और कारखानों का कूड़ा भी..! है न? शायद गंगा इसी कारण से उफान पर है।
व्यवसायिक शहर और छिपती मंदी की आहट
सुबह ऑफिस पहुँचने से पूर्व दूकान पर स्टॉप ले ही लिया था। और उस गधे ने पांच रूपये जमा रख लिए, इस कारण से कल भी जाना पड़ेगा। ऑफिस पर और कुछ ख़ास काम होता नहीं है। हाँ ढेरों गाड़ियां लगी हुई है। लेकिन दिनभर आराम रहता है.. प्रियंवदा, एक बात और भी है। मैं जिस क्षेत्र में हूँ, वहां काफी बदलाव होने लगे है। धीरे धीरे देख रहा हूँ, एक छिपी हुई मंदी दिखाई पड़ रही है। और फिर सोचता हूँ, यह सारा तामजाम आयात पर निर्भर है। किसी दिन यह इम्पोर्ट पर कोई प्रभाव पड़ा। तो मेरे शहर की एक टांग ही टूट जाएगी। और लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। धीरे धीरे यह सारा व्यापार जैसे शिफ्ट होता जा रहा है। भारत में बहुत सी वस्तुएं निर्माण होती है, कच्चे माल के प्रोडक्ट्स बनते है।
जैसे कच्चे तेल से पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स, कच्चे हीरो की पॉलिशिंग, आयरन स्क्रेप से स्टील.. ऐसी बहुत सी वस्तुएं है, जो आयात होती है। उन पर काम होता है, और फिर एक्सपोर्ट होती है। खेर, सवेरे से आज बूंदाबांदी काफी हुई। सवेरे जब कसरत वगैरह करके घर लौट रहा था, तो शर्ट भीग चूका था, नहीं पसीने से नहीं। बारिश से। बूंदाबांदी के बिच भी मैं रुका नहीं। एक नियमितता बन गयी है, तो निभाई भी जाती ही है। वाकिंग करते हुए, कानो में लगे ब्लूटूथ भीगे नहीं, इस लिए मुंह पर रुमाल लपेट कर चक्कर काटे है। बादलों के पीछे बैठे सूर्य को नमस्कार भी मुँह पर रुमाल लपेटे हुए ही किये। पुरे दस सूर्यनमस्कार करते ही कमर कह देती है, कि 'रुक जा मोटे..!'
बच्चों का राखी पर्व और एक मधुर क्षण
ऑफिस आते हुए रास्ते में ट्रक के टायर से उड़ते जलकण रज के प्रवाहक बनते है। पूरी टीशर्ट पर आज बिंदियां बनी हुई है। फिर भी दोपहर को घर जरूर चला गया। कुँवरुभा खेल रहे थे। हाथ में बंधी राखी दिखाते हुए बोले, 'लछाबंध्धन..' उनकी स्कूल ने आज ही रक्षाबंधन मना ली। दो-दो चॉकलेटों की ज्याफत सब बच्चोने उड़ाई है। कुछ देर उनके साथ खेलकर, गमलों के पास बैठा। तो ध्यान गया, की गुड़हल के पौधे में कलियाँ तो लगती है, लेकिन खिलती नहीं। वो फूल बंद ही बंद मुरझा कर टूट जाते है। इंटरनेट से पूछा कि बता भाई, 'इस सज्जन को क्या तकलीफ है भाई.?' तो प्रत्युत्तर मिला, कि धैर्य रखो, खासकर खाद डालने में।
शाम होने को आयी प्रियंवदा ! लेकिन बारिश नहीं लौटी। सुबह सुबह बस माटी को छुआ उसने। और फिर धूप ने अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। प्रियंवदा, यह दो दिन जो खाली खाली निकले है उन का सदुपयोग कुछ न हुआ। बस, आए और बीत गए। कुछ उत्साही न हो, वे दिन मुझे क्या लगभग सबको ही अप्रिय लगते होंगे। बड़ा ही निरुत्साही सा लग रहा है, सोचता हूँ, 'सैयारा' मुझे भी देख लेनी चाहिए। कैसे बिलख बिलख कर रो रही थी, यह नई जनरेशन..! या फिर एक पब्लिसिटी स्टंट होने की भी बात तो आयी थी।
संदीश का अनफ़िल्टर्ड बिहार और वोट-नोट की राजनीति
वो यूटूबेर संदीश की विडिओ देख रहा था अभी... बिहार के चुनाव में वह एक पाकिस्तान नामक गांव में रिपोर्टिंग कर रहा था। उस गाँव की हालत तो बुरी है। वैसे भी बिहार में बहुत सी जगह पर बस कथित विकास ही हुआ है। संदीश के विडिओ देखने में मजेदार होते है। चैनल का नाम ही अनफ़िल्टर्ड है, इस लिए बिलकुल ही रौ बातें होती है। उस विडिओ में एक शख्श ने तपाक से कह दिया, 'यह कभी कभार चुनाव की उथलपुथल होती है, तो लोग इस गाँव में आते है, सब इस गाँव के नाम पर कुछ न कुछ कमाते है, कोई वोट कमाता है, तो कोई नोट.. आपकी तरह मिडिया वाले आते है, खबरें चलाते है, पैसे छापते है, और चले जाते है।'
कितनी सही बात कही है न उसने.. ज्यादातर लोग दूसरे का दुःख दिखाकर अपने सुख की साधना कर लेते है। यही दुनियादारी है, किसी का नुकसान होगा, तभी तो अपना लाभ होगा। सबका साथ, सबका विकास.. यह सब जगह लागू नहीं होता।
शुभरात्रि।
०६/०८/२०२५
|| अस्तु ||

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