महीने की शुरुआत और रिश्तों का मौसम
इस महीने के भी सात दिन हो गए। दिन जाते देर कहाँ लग रही है प्रियंवदा ! और बीतते दिनों के साथ साथ बहुत कुछ पुराना होता जाता है। जैसे घर में रखा टीवी, या फ्रिज, मोटरसायकल, या कार.. और पुराने होते जाते है लोग.. धीरे धीरे रिश्ते भी..! यही सच्चाई है। कुछ पुराने चीजें या रिश्तो में गर्माहट बरक़रार रहती है, तो कुछ में एक पनपती है एक ठण्ड। रिश्ते पुराने होते है, तो और भी बहुत कुछ बदलता है, उसमे अहम होती है भावना। भावना बड़ी चलायमान है प्रियंवदा ! कभी भी किसी के प्रति सदैव एक सी नहीं रहती। समय और संजोग पर निर्भर करती है। कभी क्रोध, तो कभी स्नेह की भावना ही रिश्ते को एक मजबूती देती है, या धराशायी करती है। जैसे तुम्हारा और मेरा ही यह रिश्ता देख लो.. कोई नींव ही नहीं। या है?
सवेरे की दौड़ और ऑफिस की नींद
सवेरे वही नित्यक्रम से आँखे खुलती तो नहीं, लेकिन एक स्वास्थ्य के प्रति जाग्रति का अनुसरण करते हुए, जोर-जबरजस्ती से जागता हूँ। शांतिपूर्ण नौकरी की सारी भागदौड़ यहीं मैदान में कर लेता हूँ। और सोचता हूँ, फिर पूरा दिन आराम। एक साथ महेनत कर लो, और आराम की ज़िंदगी जिओ..! पता नहीं सही है या गलत, लेकिन सवेरे सवेरे की इस भागदौड़ से, ऑफिस पहुंचते ही नींद आने लगती है। कुछ देर कुर्सी पर ही पसर जाता हूँ। लेकिन यह महामायावी मोबाइल.. तुरंत शुरू हो जाता है। या तो कहेगा, आजा रील दिखाऊं.. या कहेगा उसने बहुत दिनों बाद स्टोरी लगाई है, देख तो ज़रा क्या है? या फिर कहेगा पिछले हफ्ते पौधों के बारे में सर्च किया था, तो यह दस पौधों की लिस्ट देख.. बारह महीने फूल देते है।
इंश्योरेंस की चिंता : आपसे ज़्यादा किसी और को!
लगेहाथों एक बात और सुनो प्रियंवदा। पता नहीं इन को कैसे पता चल जाता है, कि मेरी कार की पालिसी ख़त्म होने वाली है। फोन और मेसेजेस ऐसे शुरू हो जाते है, जैसे मैंने इन से उधार ले रखा हो, और यह लोग वसूली के लिए फोन कर रहे हो। दिनभर में २ कॉल्स तो बस यह सुचना देती थी, कि आपकी कार का इन्शुरन्स अगले महीने ख़त्म हो रहा है। बताओ, कार मेरी, इन्शुरन्स मुझे करवाना है, लेकिन परेशान यह लोग हो रहे होते है। कभी कभी तो दया आ जाती है, इतना तो पत्नी चिंता नहीं करती होगी.. इन्हे कितनी फ़िक्र है मेरी, कि मेरा इन्शुरन्स ख़त्म हो जाएगा, तो मुझे पुलिस चालान कर देगी। न करे नारायण और गाडी कहीं एक्सीडेंट हो गयी तो उस खर्चे का भार मैं कैसे उठाऊंगा? मेरी गाडी से किसी और का कुछ नुकसान हो गया तो मेरी जेब से जाएगा..
जब पहली कॉल आई — और वो आवाज़..
पहले तो जिस कम्पनी की कार है उसीकी ओर से एक कोकिलकंठी कन्या का कॉल आया, उसने माहिती दी, पॉलिसी समझायी, और नए एस्टिमेट्स मेसेज द्वारा दिए। मैंने टाल दिया कि अभी तो बहुत दिन पड़े है। फिर तो जैसे गुप्त जानकारी लिक हो गयी हो, बहुत सारी अलग अलग कम्पनी वाले व्हाट्सप्प करने लगे। मैं नजरअंदाज करता रहा। धीरे धीरे कॉल्स की संख्या बढ़ने लगी। दिनभर में पांच कॉल हो गए। उसमे दो कॉल में तो सिर्फ कैसेट ही बजती रहती। वो बड़ी गन्दी लगती है मुझे, सिर्फ अपनी अपनी सुनाती रहती है, मेरी तो कुछ सुनती नहीं.. बिलकुल टिपिकल नकचढ़ी बीवियों वाली हरकत..!
दूसरी मेडम और मेरी सड़क यात्राओं की गाथा
परसो एक फोन आया। प्रियंवदा ! पुरुषों के मन की एक अजीब जिज्ञासा होती है, आवाज सुनकर चेहरे की कल्पना करने की, और उम्र का अंदाज़ा लगाने की। उस कन्या की आवाज़ और लहजा बहुत कर्णप्रिय लगा। उसने शुरुआत की अपनी कम्पनी के प्रचार से। प्रसिद्द कंपनी है, मैं भी खाली ही था.. उसने जितना समझाया वह सारा मैंने उस तरह समझा जैसे मैं उसकी पॉलिसी में बहुत ज्यादा इंट्रेस्टेड हूँ। हालाँकि यह कॉल-सेंटर वाले पहले से ट्रेनिंग पाए हुए रहते है। वह अपने को बोलने का कम मौका देते है, और खुद की ज्यादा सुनाते है। ज्यादातर स्त्री होती है इस जॉब में, क्योंकि पुरुष हो तो उससे आर-पार की लड़ाई हो सकती है, मोबाइल पर महाभारत टाइप।
जब उसका वक्तव्य ख़त्म हुआ, तो मैंने धीरे से कहा, 'मेडम, आपकी आवाज़ बहुत अच्छी है। आप अपने देश के प्रधानमंत्री जी को जानती हैं?" उसके हाँ कहने पर मैंने भी अपनी वाणी अस्खलित बहा दी। "अरे मेडम कितने बढ़िया आदमी है वो.. देश के लिए कितनी अथाह महेनत करते है। अभी अभी में अमेरिका तक को, देखिये न टक्कर दे रहे है। कितना काम करते है वे। थकते नहीं होंगे? आप भी दिनभर में कितने कॉल्स करती होंगी.. आप और हम तो थक जाते है। लेकिन उन्हें जब भी देखो, बिलकुल फ्रेश लगते है। और कितने अच्छे अच्छे अभियान चलाए है उन्होंने। आवास योजना, उज्वला योजना, स्वच्छ भारत अभियान, और भी कईं सारे.. "
तो उसने बिच में ही कहा, "हाँ ! सर पता है। लेकिन यह पॉलिसी.. " तभी मैंने उसे रोकते हुए कहा, "लेकिन मेडम एक दिन क्या हुआ, कि मैं देख रहा था रील। आप भी तो फ्री समय में देखती होंगी। तो मेरी रील में एक दिन अचानक से प्रधानमंत्री जी प्रकट हो गए। अब वे ठहरे देश के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति। कभी भी प्रकट सकते है। और हमें प्रजा के तौर पर उनका आदर भी करना चाहिए। तो उन्होंने मेरी रील में मुझसे कहा.. वोकल फॉर लोकल.. मतलब लोकल बाजार को सपोर्ट करो..!"
उसे कुछ समझ नहीं आया। तो मैंने फिर अपनी वाणी चालु रखी.. "तो मेडम.. मैं प्रधानमंत्री जी की बात कैसे टाल सकता हूँ? मैं देशद्रोही नहीं हूँ। मैं अपने शहर के ही किसी विमापॉलिसी-विक्रेता से अपनी कार की पॉलिसी रिन्यू करवा लूंगा।" प्रियंवदा ! वो मेडम ने हँसते हँसते, 'ठीक है सर, लेकिन भविष्य में हमे जरूर सेवा का मौका दीजिएगा' कहकर फोन रख दिया। जब आदमी खाली हो तो ऐसी उटपटांग हरकतें करता ही करता है। वो खाली रिकार्डेड वौइस में सुचना वाले तो मैंने ४-५ नंबर्स ब्लॉक और रिपोर्ट तक कर दिए। फिर कुछ समय बाद एक और कॉल आयी। वो दूसरी कम्पनी वाली मेडम थी।
वोकल फॉर लोकल की आड़ में मैं फिर बच निकला!
उन्होंने भी अलग अलग स्कीम्स समझायी, इंजिन से लेकर की प्रोटेक्शन, एवं जीरो डेप, और नो क्लेम बोनस.. फिर से मैं तो फ्री ही था। समय का सदुपयोग किया.. "अरे मेडम, थोड़ा पानी पीजिये, आप तो लगातार ही बोल रही है। आधी बातें तो मेरे कानों के आरपार हो गयी, भीतर उतरी ही नहीं।" तो उन्होंने फिर से धीरे धीरे सब कुछ समझाया। मैंने कहा, "वैसे मेडम, यह गडकरी जी ने रोड इतने बेहतर कर दिए है कि स्पीड कंट्रोल करना बड़ा मुश्किल लगता है।" उसने जैसे हाँ कहा, मैंने अपनी वाणी बहा दी। "और नहीं तो क्या मेडम। आप मानोगे नहीं, यह जो जामनगर अमृतसर एक्सप्रेसवे बना है। अभी पिछले महीने ही मैं उस रोड से जा रहा था। आपको क्या बताऊँ मैं, पेट का पानी न हिले ऐसी सड़क है वो। गाडी कब सौ के पार चली जाए पता ही नहीं चलता। और जब स्पीड बढ़ जाए तो एक्सीडेंट का भी तो खतरा बढ़ जाता है। पॉलिसी तो होनी ही चाहिए।"
उसने थोड़े बेमन से मेरी कहानी सुनने के बाद कहा, "इसी लिए तो मैं कह रही हूँ, मैंने आपको व्हाट्सप्प पर एस्टिमेट्स भेजे है। आप कोई एक पॉलिसी सेलेक्ट कर लीजिये। तुरंत रिन्यू हो जाएगी।"
मैंने भी जारी रखा, "लेकिन मेडम.. क्या लगता है, ऐसी रोड पर अगर कार पलटी मार जाए तो टोटल लोस्स में ही जाएगी या फिर पॉलिसी क्लेम जैसी हालत होगी?"
अब वो कुछ परेशान हो गयी। और अपनी कम्पनी के गुणगान गाते हुए, टोटल लोस्स और इन्शुरन्स क्लेम के आंकड़े सुनाने लगी।
मुझे कौनसी दिलचस्पी थी उसकी पॉलिसी खरीदने में। मैंने टॉपिक ही बदल लिया। "मेडम आपकी तो पगार बहुत होती होगी। अमेरिका जैसी सड़कें अपने यहाँ बनने लगी है, है न? अरे अमेरिका से याद आया, क्या लगता है? यह ट्रंप भारत पर कितने टैरिफ लगाएगा?"
उसकी आवाज में एक चिड़चिड़ापन अब छलक पड़ा और वो बोली, "सर, यह कॉल्स रिकॉर्ड हो रही है, आप दूसरे टॉपिक्स पर चर्चा न कीजिए।" और फिर वो एक और अट्रैक्टिव पॉलिसी के बारे में बताने लगी।
तो मैंने उसकी बात बिच में काटकर फिर अपनी वाणी का आलाप लगा दिया। "हाँ ! यह वाली पहले से बेहतर है, IDV कुछ बढ़ा है इसमें। लेकिन मैं क्या कह रहा था, आप बैठी है राजकोट में, और मैं हूँ कच्छ में। आपने गाडी तो देखी नहीं, फिर पॉलिसी रिन्यू कैसे करेंगी?"
तो वो तुरंत बोली, "नहीं सर मैं तो दिल्ली से बोल रही हूँ। और पॉलिसी रिन्यू करते समय कार के पिक्चर्स भी लिए जाएंगे।"
बस मुझे जो चाहिए था, वो मिल गया। "अच्छा तो आप दिल्ली से हैं.. फिर तो आपने प्रधान मंत्रीजी को जरूर देखा होगा... वे कितने यशस्वी प्रधानमंत्री है, और कितना काम करते है, आप और मैं थक जाते है, लेकिन वे नहीं थकते। देखिये न हमारे लाभ हेतु कितनी योजनाएं लाते है वे। उज्वला, प्रज्वला, जनधन, स्वच्छता अभियान, और वोकल फॉर लोकल.. अरे हाँ ! वोकल फॉर लोकल से याद आया। मैंने तो मेरे शहर के ही एक पॉलिसी विक्रेता को कह रखा है। वो यह पॉलिसी रिन्यू कर देगा।"
प्रियंवदा ! उसने इतने परेशानी भरे स्वर में आपका दिन शुभ रहे कहकर फोन काटा था, जैसे सच में तो कहना चाहती थी, कि इतना समय क्यों बर्बाद किया मैंने उसका। लेकिन बेचारी मुँह पर बोल न पायी.!
आख़िरकार रिन्यू हो ही गई, लेकिन..
दो दिन में जितने भी फोन कॉल्स आए, मैंने उन सबको इसी तरह परेशान किया है। लेकिन प्रियंवदा, हालत तो अब यह है, कि यूट्यूब पर वीडियो देखते समय बिच में जो एड्स आती है, वे भी इन्शुरन्स रिलेटेड आती है, खासकर कार के ही इन्शुरन्स की। इनकी पहुँच तो देखो तुम। चारोओर जैसे पॉलिसियों ने घेर लिया मुझे। व्हाट्सप्प पर भी कोई न कोई कंपनी मेसेज करती है। यूट्यूब पर उन लोगो ने एड्स दिखानी चालू कर दी। और फोन तो आते ही थे। लेकिन आज तो सवेरे आते ही मैंने अपने एक पहचान वाले से पॉलिसी RENEW करवा ही ली। लेकिन यह लोग रुकने वाले नहीं।
एक ने तो यह तक पूछ लिया था, कि मेरी कम्पनी से क्यों नहीं करवाया? इतना हक़ कौन जताता है भाई? लेकिन पुरुष हृदय पिघल जाता है, इन कोकिलकंठी स्वरों से। गला खखेरकर हो सकें उतने कोमल और मधुर स्वर में पुरुषकंठ कहता है, कि अगले साल आपसे ही पॉलिसी खरीदेंगे।
वैसे प्रियंवदा ! आज तो दिनभर क्या व्यस्तता छायी थी, सतत काम पर काम आता रहा। एक के बाद एक मैं भी निपटाता रहा उन्हें। दोपहर को सूर्य की उन तमाम पराबैंगनी किरणों की अवगणना करते हुए घर गया। दो रोटी तोड़ने। वापसी पर सूर्यदेव बादलों से लुकाछुपी खेल रहे थे, तो धूप-छांया के कॉम्बिनेशन में ऑफिस तक पहुँच पाया। फ़िलहाल समय हो चूका पौने आठ, और इस पोस्ट को शिड्यूल कर देना चाहिए। क्योंकि आज कुछ ज्यादा ही मजाक मस्ती लिख दी है।
ठीक है प्रियंवदा, कल मिलेंगे, नए पन्ने पर नई गपशप के साथ।
शुभरात्रि।
०७/०८/२०२५
|| अस्तु ||

प्रिय पाठक,
अगर आप भी कभी ऐसे कॉल्स से परेशान हुए हैं — या उन्हें उलझाने में आपको भी मज़ा आता है — तो नीचे अपनी कहानी ज़रूर लिखिए।
📬 Dilayari पढ़ते रहिए, नए पत्र सीधे आपके Inbox में आएंगे:
👉 Subscribe via Email »
📘 मेरे लिखे भावनात्मक ई-बुक्स पढ़ना चाहें तो यहाँ देखिए:
👉 Read my eBooks on Dilawarsinh.com »
📸 और Instagram पर जुड़िए उन पलों से जो पोस्ट में नहीं आते:
🔗 @manmojiiii
आपसे साझा करने को बहुत कुछ है…!!!
और भी पढ़ें...
#CarInsuranceWaliDilayari #CallCenterKiKahani #FunnyBlogHindi #VocalForLocalWaaliBaat #InsurenceMadamVsDil #DilawarsinhKiDilayari #DesiVyangaWithStyle #InsuranceCallsKaKissa #BloggingWithTadka #RojLikhiJaaneWaaliDilayari