दिलायरी की शुरुआत – एक दिन, एक विचार
देखो प्रियंवदा ! अभी अभी एक दिन की दिलायरी को बड़ी जल्दी शब्दों से समेट लिया। और अब बैठ गया आज के दिन पर। यह भी लिख लेनी पड़ेगी। ताकि कल पुरे दिन की छुट्टी मार लूँ तो यह शिड्यूल हो जाए। कुछ कुछ दिन शायद बनते ही लिख लेने के लिए है। अब तुमसे क्या छिपा सकता हूँ, जब मैं अपने पुरे पुरे दिन ही यूँ खुलेआम लिख रहा होऊं, तो शब्दों को समेटू, या उन्हें मुक्त छोड़ दू, आना उनको तुम्हारे पास ही है। कल जल्दी घर चला गया था, तो ओफ्फिसिये गजे का फोन आया था, कि सुबह जल्दी ध्वज वंदन का प्रोग्राम है, तो आठ बजे पहुँच जाइएगा। मैंने भी हामी भर दी थी।
स्वतंत्रता या स्थापना? – गजे की बातों में उलझा देश
रात को जब ग्राउंड में गजे के साथ बैठा था, तो उसने भी बात छेड़ दी, स्वतंत्रता की। एक तो है वह विषैला.. उसने शुरू किया। बोला कौनसी स्वतंत्रता? न तो भारत कभी था, न ही पाकिस्तान था, न ही बांग्लादेश..! हम लोग भी तो यूरोप की तरह छोटे छोटे देशों में ही तो बंटे हुए थे। स्वतंत्रता दिवस तो उनके लिए है, जिनपर सीधा अंग्रेजो का शाशन था। हमें तो उनका शुक्रिया करना चाहिए, वे लोग उत्तर से दक्षिण तक एक देश बना कर गए। वरना आज भी प्रत्येक दस किलोमीटर पर नया वीसा लेना पड़ता। फिर तो आधारकार्ड की जगह पासपोर्ट ही जेब में लेकर घूमना पड़ता। बहुत सही कर गए, एक भारत देश को संकलित कर गए। वैसे स्वतंत्रता दिन से ज्यादा मुझे यह स्थापना दिवस लगता है।
शीतला सातम और माताजी की पूजा
जो भी कहो, स्वतंत्रता या स्थापना, या राजतन्त्र की दातारि का हर्ष मनाओ, लेकिन पंद्रह अगस्त को छुट्टी तो होती ही है। मिल की छुट्टी रखी थी। सवेरे ऑफिस के लिए निकलने ही वाला था, कि माताजी बोले मंदिर जाना है। आठ बजे मुझे ऑफिस पहुंचना था, उसके बदले सवा आठ पर तो मैं मंदिर पर ही था। शीतला का पहले रोग हुआ करता था। अब देवी है। जन्माष्टमी के पहले दिन शीतला सातम मनाई जाती है। और इस दिन सब कुछ बासी भोजन ही करते है। छठ के दिन सारी रसोई बना ली जाती है। और सातम को चूल्हे को एक दिन की छुट्टी। लेकिन अब गैस का चूल्हा होता है। लोग भी मजबूरियां व्रत के साथ रखते है। तो गैस के चूल्हे पर एक साइड वाला बंद रखते है, उसकी पूजा वगैरह कर लेते है। दो दूसरा वाले की ड्यूटी बढ़ जाती है। चाय वगैरह तो ताज़ी ही चाहिए, वो बासी नहीं चल सकती।
ऑफिस की देशभक्ति और भूख का संघर्ष
मैं खाली चाय पीकर ऑफिस आ गया। यहाँ आकर देखा, तो ध्वज लहराने के लिए पोल तो खड़ा कर दिया था। लेबर रंगोली कर कर रही थी। एक लड़का ध्वज में फूल भरकर गाँठ मारकर पोल पर चढ़ा देता है। धीरे धीरे सारी लेबर इकट्ठी हो गयी, हर कोई कुछ न कुछ काम करने में लग गया। उतने में केटरिंग वाले आ पहुंचे। छोले- भटूरे का प्रोग्राम भी था। एक तो मैं घर से कुछ खा कर नहीं आया था। तो केटरिंग वालो को बहुत तंग किया है मैंने। चाय बनाओ पहले। उतने में हमने ध्वज वंदन कर लिया। सवेरे से भूखा तो था ही, देशभक्ति फिर भी अदा कर पाया। वर्ना भूखे पेट तो कोई भी भक्ति नहीं हो सकती।
भोजन समारंभ – भटूरे, भक्ति और बहुत कुछ
ग्यारह बजे ही यह भोजन समारंभ चालू करवा दिया। और फिर तो मैंने और गजे ने केटरिंग वाले को परेशान करके रख दिया। भजिया-पकोड़ा जल्दी बनाओ। हलवा डालों इसमें। भटूरे जल्दी जल्दी निकालो, बहुत धीरे धीरे बना रहे हो तुम। वो भी टेढ़ा टेढ़ा देख रहा था मुझे। लगभग सौ-सवासौ लोगो ने भोजन कर लिया, फिर मैं भी बैठ गया। लेकिन तीन मैदे के भटूरे पेट में जाते ही बोल गए कि बस! और जुल्म मत गुजार लेना कहीं। खेर, सारा राष्ट्रभक्ति का प्रोग्राम अच्छे से निपट गया। अब घर पहुँचना है। एक बज गया है। और आज की दिलायरी शायद दोपहर तक की ही रहेगी।
सटोरी की कहानी – उदासी से उद्धार तक
वैसे आज एक और पोस्ट लिखूंगा, वही सटोरी का रिव्यू, लेकिन गुजराती में। सवेरे सवेरे सबसे पहला काम स्नेही को परेशान करने का किया, उनकी सलाह अच्छी लगती है। वैसे सटोरी की कहानी बड़ी सामान्य है। एक लड़की होती है। जिसे मेल अटेन्शन चाहिए होता है। वह दिखने में सुंदर नहीं थी, इस कारण से वह सोचती थी कि उसे कोई भी पसंद नहीं करता है। वह डिप्रेशन का शिकार हुई। घर से भी चिढ-चिढ़ी रहती थी। उसने काफी ऐसे निर्णय लिए जो उसके लिए सही नहीं थे, लेकिन वह चाहती थी कि कोई तो ऐसा पुरुष मिले जो उसे भी चाहे। उसने इस अटेंशन के लिए वन नाइट स्टेण्ड भी किया।
लेकिन फिर भी उसे कोई नहीं चाहता था। फिर एक पैतालिश वर्ष के लेखक के वह संपर्क में आयी। उसने उसे दिलासा दिया। उसे उस डिप्रेशन से बाहर निकाला। वह लड़की वास्तविकता में उसी की पुत्री थी। वह लेखक जानता था, पर लड़की नहीं पहचानती थी। वह उसमे अपना बॉयफ्रेंड खोजने लगी थी। लेकिन धीरे धीरे उसका आकर्षण ख़त्म हुआ, वह उसे गुरु और आदर्श पुरुष मानने लगी। और कहानी के अंत में वह लड़की जो मेडिकल की स्टूडेंट थी, वह लेखिका बन गयी। जो उदासी की आदी हो चुकी थी, वह अब आत्मविश्वास से भर गयी थी। जिसे बॉयफ्रेंड चाहिए था, वह अब खुद की सखी बन गयी। पुस्तक की टैगलाइन ही यही थी, 'उदासी से उद्धार तक'.. जो अंत तक में सार्थक हुआ।
चलो फिर अब विदा दो। उस बुक का रिव्यू भी लिखना है मुझे। आज के दिन में दो दिलायरियाँ लिख दी। और शाम तक समय रहा तो, बुक रिव्यू भी लिख दूंगा। इस लिए मैंने शुरुआत में कहा था, कुछ दिन उगते ही बस लिख लेने के लिए है।
शुभरात्रि। एवं स्वतंत्रता पर्व की शुभकामना।
१५/०८/२०२५
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