दैनिक लेखन की आदत और उसका महत्व
माफ़ी चाहता हूँ प्रियंवदा ! पिछले कईं महीनो का एक नियम कल टूटा। प्रतिदिन दिन कुछ न कुछ लिखने का नियम। ऐसा तो बहुत बार हुआ है, कि एक दिन की दिलायरी आगे दिन लिखी है। लेकिन हर बार कमसे कम एक अनुच्छेद तो लिख ही लेता था। लेकिन कल तो एक शब्द भी नहीं लिख पाया। मैंने कहीं पढ़ा था कि यदि तुम्हे लिखने का शौख है, तो तुम्हे एक नित्यक्रम बनाना होगा। और उस नित्यक्रम के अनुसार तुम्हे कम से कम एक अनुच्छेद तो लिखना ही होगा प्रतिदिन। और मैंने उसका अक्षरश पालन किया था। लेकिन यह भी होना था, कल चूक गया। वैसे आगे भी चुकने वाले दिन आ रहे है। वे है त्यौहारों के दिन। नवरात्रियों में मन इतना उत्साहित रहता है, और व्यस्तता रहती है, कि लिखना मुश्किल हो जाएगा। और दीपावली पर घूमने चला गया, तो तब भी यह दिलायरी कुछ दिन रुक जाएगी।
'सटोरी' – एक सिंपल लेकिन रिलेटेबल गुजराती नवलकथा
कल कुछ भी न लिख पाने का मेरे पास वाजिब कारण भी है। कल एक बुक पढ़ रहा था। 'सटोरी', लेखक है डॉ. निमित ओझा। मुझे नहीं लगा था यह बुक मुझे इतना पसंद आएगी। क्योंकि आखरी गुजराती बुक 'अतरापी' पढ़ी थी। रेड ने सजेस्ट की थी, और उस बुक की कहानी का मुख्य पात्र एक कुत्ता था। बहुत बढ़िया लगी थी। मेरे मन में जो एक ग्रंथि बंध गयी थी, कुछ ऐतिहासिक नवलकथाओं की प्रियता की, वह उस 'अतरापी' ने तोड़ दी।
सोशल मीडिया पर कुत्तों के प्रति प्रेम की लहर
कुत्तों के प्रति दो-चार दिनों से सोसियल मिडिया पर प्रेम की बाढ़ आ गयी है। लोग खूब करुणा बरसा रहे है स्टोरियों में। शायद इस प्रेम के सैलाब का कारण सुप्रीम कोर्ट का निर्णय हो सकता है। लेकिन जो भी हो, आज सवेरे से वही नित्यक्रम पर ऑफिस पहुंचकर काम के बिच बिच से समय चुराकर एक ही काम किया, सटोरी पढ़ना। वैसे तो कल रात से पढ़नी शुरू कर दी थी। कल रात जितने पन्ने पढ़े थे वे रसप्रद लगे थे। इसी कारण से पूरी पढ़ने लग गया। कहानी सिंपल है, और काफी रिलेटेबल है। लगभग उन तमाम युवावस्था में कदम रख रहे लोगो के लिए यह पुस्तक है, जिन्हे नई नई आज़ादी चाहिए होती है, और जो एक पर्सोनेल स्पेस चाहते है।
दिनभर की डायरी – मार्केट, सोलर पैनल और ऑफिस के बीच
दोपहर तक लगभग ३० प्रतिशत बुक पढ़ चूका था। लंच टाइम में चल पड़ा मार्किट। कुंवरूभा की तासीर मुझ सी है। बुखार में भूखे रहकर नारियल पानी पर जोर देने से बड़ी जल्दी तबियत सुधर जाती है। मुझे जब भी बुखार आता है, बस सोता रहता हूँ। और समस्या यह होती है, कि मेरे सोते ही रहने से घरवाले और डरने लगते है कि यह इतना क्यों सो रहा है। और वो बार बार या तो पानी के लिए, हल्दी वाले दूध के लिए, डॉक्टर के पास जाने के लिए जगाते रहते है। उनका उद्देश्य मेरी चिंता और ध्यान रखने का होता है, लेकिन मुझे वह बीमार को और परेशां करने वाला काम लगता था। मैं और चिढ जाता था, कि एक तो मुझे नींद आ रही है, और सोने क्यों नहीं देते?
यह एक दिन पूरा जब कुंवरूभा सोते रहे थे, मैंने भी उन्हें दो तीन बार जगाया, तो वो भी मुझ पर उसी तरह चिढ़े जैसे कभी मैं मेरे माताजी पर चिल्ला देता था। खेर, उनके लिए ३ नारीयल लेने थे, और गजे को भी फोन का डाटा केबल लेना था। तो हम चल पड़े। लगभग आधे घंटे में और भी कुछ सामान था, वह ले चुके। दोपहर को वह सारा सामान घर उतार दिया। छत पर सोलार वाले लगे पड़े थे, अलुमिनियम की फ्रेम खड़ी कर चुके थे। और पेनल्स ऊपर चढ़ा रहे थे। एक ही दिन में सारा सिस्टम लगा भी दिया इन लोगो ने तो।
मैं ढाई बजे वापिस ऑफिस आ गया। चार बजे तक कुछ काम थे, वे भी निपटा दिए। उतने में हुकुम का फ़ोन आया कि उनको एक शोकसभा में जाना है। और घर पर अभी तक वे सोलर वाले काम कर रहे थे। तो मैं पांच बजे घर लौट आया। मेरे जल्दी चले जाने से बाकी का काम मैंने फ़ोन पर ही गजे से करवा लिया। अक्सर मैं छुट्टी मारता हूँ, तो मुझे फोन पर सारा काम करना पड़ता है। क्योंकि उन कामों में छोटी सी गलती रह जाए तो, टैक्स वाले धर-दबोचते है। खेर, शाम को आकर कुछ देर कुँवरुभा का मन बहलाने के लिए मोबाइल दिया। उन्होंने कुछ देर देखकर बोले अब मुझे होमवर्क करना है। दो दिन की स्कूल की छुट्टी और तबियत के कारण दो दिन सोते रहने के बावजूद उन्हें होमवर्क याद आया। मैं भी कुछ कुछ ऐसा ही था। मेरी तमाम सारे आदते भले वे ले लें, बस भाग्य में मुझसा नहीं मिलना चाहिए उन्हें।
दोस्तों के साथ मुलाकात और ‘जेल डायरी’ की कहानियां
खेर, शाम को तो मेरे पहुँचते ही सोलार वाले भी अपना काम निपटाकर निकल लिए.. कुछ देर फिटिंग वगैरह चेक की, और भोजनादि से निवृत होकर वही अपने ग्राउंड में चल पड़ा। एक मित्र जेल से लौटा है कुछ दिन पूर्व। पुरे दो महीने वहां रहकर आया है। तो उससे उसका अनुभव सुनता रहा, और फिर कुछ देर बुक पढ़कर वापिस घर लौट आया। रात के लगभग बारह बज गए थे, और बुक पूरी कर के सोया। एक तो बहुत दिनों बाद गुजराती पढ़ी। और ऊपर से अलग टाइप की नवलकथा। क्योंकि मुझे पसंद है, झवेरचंद मेघाणी, धूमकेतु, कनैयालाल मुंशी.. जिनकी कहानियों में अतीत होता है। अश्व होता है। व्रत, वचन, वीरता होती है। यही कहानियां मुझे सदा से लुभाती रही है।
फिर हिंदी पढ़ते हुए मैंने अपने वांचन क्षेत्र में सिमा रेखा हटा दी। फिर तो वे तमाम प्रकार की कहानिया पढ़ी, गुनाहों का देवता, प्रेमचंद की कहानिया, और भी कुछ चुनिंदा। लेकिन काफी दिनों बाद जब एक मित्र ने इंस्टाग्राम पर कहा कि सटोरी पढ़ो, तो मन नहीं था, पर फिर भी डाउनलोड तो कर ही ली थी। उन मित्र का भी धन्यवाद जो इतनी अच्छी और सही बुक सजेस्ट की। वैसे यह बुक शायद निमित ओझा की बेस्ट सेलर है। और धीरे धीरे काफी प्रख्यात हुई है।
चलो फिर, आज इतना ही।
शुभरात्रि।
१४/०८/२०२५
|| अस्तु ||
प्रिय पाठक,
अगर यह दिलायरी पढ़कर आपको भी अपने लेखन के नियम, अपनी पसंदीदा किताबें या बीते दिनों की कोई प्यारी याद याद आ गई हो,
तो कमेंट में जरूर लिखिए।
आपके शब्द शायद किसी और की आज की कहानी बन जाएं।
और हाँ, अगर ‘सटोरी’ आपने पढ़ी है, तो अपना अनुभव भी साझा करें — हो सकता है, हम दोनों को उसमें एक जैसा स्वाद मिला हो।
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