“कच्छ टोल, गड्ढे, आंदोलन और कॉल बॉम्बर – एक दिन की दिलायरी” || दिलायरी : 13/09/2025

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संतोष और लेखनी का सुख

    प्रियम्वदा, मैं कईं मामलों में संतोषी हूँ भी। जैसे की इस लेखनी से। मुझे जितना आता है, और मैं जितना नित्यक्रम निभा पाता हूँ। या फिर जितना मुझसे हो रहा है, मैं उतना किसी और के लिए कुछ कर पा रहा हूँ। या किसी को पढ़कर सराहना, और खुद उस कथन से जुड़ पाना, संतोष इन सब में है। हाँ कभी लालच वश मैं भी चाहता हूँ, कि मेरे ब्लॉग पर ट्रैफिक बढ़े। लोग मेरे शब्दों को भी सराहे। लेकिन वह विचार बहुत क्षणिक होता है।

“कच्छ के टोल विवाद पर आंदोलन की झलक”

ऑफिस का व्यस्त दिन और इंतजार का महत्व

    आज सवेरे जब ऑफिस पहुंचा, तो वाया शहर के काम निपटाते हुए चला था। बीते कल सोलार का मीटर लगा गए इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड वाले। तो हुकुम बड़े उत्साहित हो गए। विद्युत ऊर्जा की खपत बढ़ाने का इन्तेजाम करवाने लगे मुझसे। यह ले आ, वो ले आ.. हुकुम का आदेश माने लोहे पर लकीर। अटल। लेकिन बड़ी मुश्किल से उन्हें समझा पाया, कि इंतजार नाम की चीज बड़ी अच्छी होती है। कईं बार इंतजार ज्यादा लाभदायी होता है।

पत्ता, मीडिया और चुटकियों की बातचीत

    आज ऐसा दिन व्यस्त था, कि कईं सारी बातें भी अधूरी रह गयी। पत्ते के साथ ही कुछ बातें हुई। उसका कारण भी था, पत्ता मिडिया वालों को बाईट दे आया था। लेकिन अभी तक कहीं भी उस बाईट का एक अंश भी दिखा नहीं। बस, दोस्त को मौका चाहिए होता है, दोस्त को चिढ़ाने का। दोपहर तक पत्ते को यही कहकर चिढ़ाते रहा था, कि लड़किया तो काटती है भाई, मिडिया वाले भी काटते है। मिडिया वाले सिन काटते है, लड़कियां कुछ और काट ले जाती है।

गड्ढों वाली सड़कें और ट्रैफिक जैम

    खेर, मुद्दा यह था, कि पिछली तूफानी बारिश में, अपने कर्मठ नेताजी के रोड धुल गए। जगह जगह पर इतने बड़े गड्ढे है, कि इसरो चाहे तो अपना अगला मूनलैंडर यहाँ किसी भी रोड पर उतार सकता है। या इसी गड्ढे में पर्यावरण रक्षणार्थ वृक्षारोपण भी कर सकते है। शहर में जिस जगह से हर कोई गुजरता है, वहां भी गड्ढा है। और अपने यहां सबसे ज्यादा चलते है ट्रक। वजनी ट्रक के गुजरने से गड्ढों का कद बढ़ता है। गड्ढों से गुजरते हुए लगातार ट्रक्स चलते तो है, लेकिन बहुत धीरी चाल में। और लग जाता है एक लंबा ट्रैफिक जैम। एक दिन जैम लगा था, तो सारे न्यूज़ वालों ने उसे कवर किया। दूसरे दिन उसे कोई लाइम-लाइट न मिली। अपने कर्मठ नेताजी के वक्तव्यों से मैं इतना प्रभावित था, कि मैं तो उन्हें भावि-प्रधानमंत्री पद पर आरूढ़ होते देखना चाहता था।

नेताजी, एथनॉल और गन्ने की राजनीति

    साहबने कौनसे रोड की दोसौ साल की गेरंटी थी, यह याद नही आ रहा मुझे। लेकिन हाँ, वैसे अभी उन साहब की भी गलती नहीं निकाल सकते। क्योंकि फिलहाल साहब का अधिकतर ध्यान पेट्रोल में एथनॉल मिलाने में लगा हुआ है। प्रियम्वदा, कुछ दिन पहले एक मित्र ने रील भेजी थी, यही कर्मठ साहब के पुत्रों की गन्नो से जुड़ी फैक्ट्रियां है.. एथनॉल गन्नो से बनता है। बाकी तुम समझदार हो। खेर, वापिस अपने पत्ते पर लौटते है। क्योंकि ज्यादा बोलने पर देशद्रोही कहलाते है अब, या फिर चमचा, या फिर अंधभक्त। तो अपने यहां तीन दिन के जैम लगने के बाद कुछ लोग जागृत हुये। रोड तो कामचलाऊ ठीक हो गयी, लेकिन जागृत लोग अब फिर से सो नही सकते थे। इस कारण तय हुआ, आंदोलन ही कर लेते है। बड़ी सही चीज है आंदोलन करना।

आंदोलन और दांडी मार्च की यादें

    आंदोलन से बदलाव तो जरूर होते है। कभी भी कोई भी आंदोलन बिना परिणाम के नही रहा है आजतक। अनिर्णायक आंदोलन भी नही ध्यान आता मुझे। आंदोलन की बात छिड़ी है, तो कल परसो ही पता चली बात लिख देता हूँ। ब्रिटिश भारत मे खूब आंदोलन हुए है। स्वदेशी आंदोलन, असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन.. वगेरह वगेरह.. इनमें एक आंदोलन हुआ था, सविनय अवज्ञा आंदोलन। इस आंदोलन का एक भाग था दांडी मार्च। मुद्दा सबको पता ही होगा, अंग्रेजो ने नमक पर कर वसूलना चालू किया। नमक घर घर की जरूरत का साधन है। इस पर कर नही होना चाहिए वगेरह वगेरह..! दांडी मार्च का पूर्वाध सब लोग जानते है, किस हाल में इसकी शुरुआत हुई, क्यों हुई, न पता हो तो गूगल कर लेना ठीक रहेगा। लेकिन इस दांडी मार्च का परिणाम क्या आया, उस बारे में कहीं भी बातें नही होती..! और बहुत कम सामग्री मिलती है इस दांडी मार्च के उत्तरार्ध, या इस आंदोलन के परिणाम के बारे में।

दांडी मार्च का परिणाम और अनकही सच्चाई

    आंदोलन का मकसद तो यही था, कि नमक पर लगा हुआ टैक्स खत्म होना चाहिए। और आंदोलन हुआ, रैली निकली। दांडी पहुंचे, नमक उठाया, और कानून को तोड़ा। गांधी समेत कईं लोगो को जेल हुई, लाठियां बरसी, घायल हुए, और मृत्यु भी हुई ही होगी। आंदोलन का उद्देश्य था, कि नमक पर से टैक्स हट जाए। नमक का टेक्स हटेगा तो अंग्रेजो को आर्थिक नुकसान होगा। आर्थिक नुकसान होगा तो अंग्रेज कमजौर होंगे। और देश छोड़कर चले जाएंगे। लेकिन वास्तव में क्या हुआ? क्या इस सत्याग्रह से नमक का कर हट गया था? अंग्रेजो को कोई भी प्रकार का नुकसान हुआ था?

    इस आंदोलन का परिणाम, जिन्होंने आंदोलन किया, उनके पक्ष में लाभार्थी न रहा था। सीधे शब्दों में कहूँ, तो अंग्रेजो ने साबित कर दिया था, कि गांधी का कद उतना बड़ा नही है। 1929-30 में यह आंदोलन हुआ था, उस वर्ष में अंग्रेज सरकार ने नमक के टैक्स से 6.7 करोड़ वसूले थे। 1930-31 में 6.8 करोड़, 1931-32 में 8.2 करोड़ रुपए, और 1932-33 में यह टैक्स की रकम 10.2 करोड़ हो चुकी थी। अंग्रेजो ने यह टैक्स कभी खत्म किया ही नही। पंद्रह साल बाद, 1946 में जब नेहरू अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री बने थे, तब नेहरू के मंत्रिमंडल को गांधीने चिट्ठियां लिखी थी, कि अब नमक पर लगा कर हटा दो। मजेदार बात तो यह भी है, कि अंतरिम भारतीय सरकार के इन प्रधानों ने भी इस कर को हटाने में छह महीनों का समय लिया था। आखिरकार 28 फरवरी 1947 को नेहरू ने नमक पर लदा कर हटाया।

कच्छ का ‘नो रोड नो टोल’ आंदोलन

    तो आजके मुद्दे पर लौटते है। हमारे यहां जागृत लोगो ने भी आंदोलन छेड़ दिया। 'नो रोड नो टोल'.. विश्वप्रसिद्ध कांडला बंदर के कारण हजारों ट्रक्स प्रतिदिन निकलते है। कच्छ से बाहर निकलने के लिए एक ही मुख्य मार्ग के मुँहाने पर टोल टैक्स वसूला जाता है। एक सोसयल मीडिया पर वायरल रिपोर्ट के अनुसार रोजाना 85 लाख रुपये टोल वसूला जाता है। एक ट्रक का टोल टैक्स लगभग 800 रुपये है। चौबीस घण्टे में हजारों ट्रक्स गुजरते है। फिर भी रोड की हालत इतनी खराब है, कि दुपहिया नही चल सकती। दो-दो फीट गहरे गड्ढे भी है। सीधी बात है, रोड अच्छी हो तो टोल देने में कोई हर्ज नही है। अच्छी फैसिलिटी का लोग खुश होकर अच्छा दाम चुकाते है। लेकिन अगर पंद्रह किलोमीटर से अधिक लंबा ट्रैफिक जैम लगे, और यह हफ्ते में चार दिन होने लगे, तो हर कोई कोसेगा..!

पत्ते की मीडिया बाइट और अधूरी उम्मीदें

    खेर, आंदोलन हुआ, और फलस्वरूप शनि, रवि, सोमवार तक कच्छ के चार टोल फ्री कर दिए गए। अब इस आंदोलन में अपना पत्ता भी जुड़ा था। पता नही क्यों? शायद शौक के लिए। वहां किसी लोकल चेनल को उसने मीडिया बाईट दी होगी। भाई हो गया राजी.. बोला देखना, अपनी रील आएगी..! शाम हो गयी, शाम क्या, अभी रात के दस बज रहे है। टोल फ्री हो गए लेकिन वो रील नही आई..! और अब तो मेरा फोन भी नही उठा रहा वह। अभी यह लिखते लिखते भी उसे दो रिंग की.. कोई प्रत्युत्तर न मिला। क्योंकि उसे पता है, खिंचाई होगी। वैसे आज एक और खतरनाक बात हुई। सवेरे जब पत्ते से फोन पर बात कर रहा था, तो फोन में धड़ाधड़ नोटिफिकेशन आ रही थी। पहले तो लगा कि वही नए व्हाट्सप्प ग्रुप वाले बातूनी लोग होंगे। तो मैंने तीन नोटिफिकेशन तो इग्नोर की।

कॉल बॉम्बर और OTP मैसेजेस की बौछार

    चौथी बार भी चालू कॉल पर नोटिफिकेशन रिंग बजी, तो देखा टेक्स्ट मेसेज आया था। और एक वेटिंग में कॉल भी आ रहा था। अनजान नम्बर देखकर मैंने वेटिंग में ही वह कॉल कट कर दी। और पत्ते से बात करता था। तब फिर से धड़ाधड़ मेसेजिस आने लगे। सारे मेसेजिस में अलग अलग ओटीपी आ रहे थे। तो मैंने पत्ते का फोन काट दिया। मामला कुछ गम्भीर लग रहा था। ओटीपी फ़ॉर आकाश इंस्टीट्यूट्स, geojit investment partner का ओटीपी, district के नाम से ओटीपी, team jio का ओटीपी, IFB का OTP, TATA 1mg का ओटीपी, housing.कॉम के नाम पर ओटीपी, snapE का ओटीपी, और काफी सारे APSRTC के ओटीपी, मारुति सुजुकी ट्रू वेल्यू का ओटीपी, SuperPe का ओटीपी.. इन सब नामो पर लगभग बीस से ज्यादा ओटीपी आए। और लगभग पांच से छह फोन कॉल्स।

    एक कॉल मैंने यह सोच कर उठाली, कि वैसे भी बैंक एकाउंट में उतना बैलेंस नही है, कि मेरी अगली मोटरसायकल की क़िस्त कट जाए। कल ही मैने मिनिमम बैलेंस छोड़कर, बाकी रकम withdraw कर ली थी। लेकिन उस कॉल में कोई आदमी नही, कैसेट बोलने लगी, तो मैने कॉल काट दी। तभी फिर पत्ते का फोन आया। तो मैंने उसे सारा मामला कहा। उसने भी मजे लिए। बोला, 'इसका मतलब तेरे पास अच्छा बैंक बैलेंस है, इसी लिए कोई तुझसे फ्रॉड करना चाहता है।' फिर मुझे वही सलाहें देने लगा जो ऑलरेडी हमने सुन रखी हो, ओटीपी किसी को देना नही, कोई लिंक खोलनी नही, कोई अनजाने नम्बर का कॉल उठाना नही.. वगेरह वगेरह..! आखिरकार उसने ही अभी अभी कबूला, कि उसने प्रैंक किया था। कॉल बॉम्बर नामकी एक साइट है, उस पर कोई मोबाइल नम्बर डालते ही, उसे मैसेजेस आने लगते है, फोन कॉल्स आने लगती है।

दोस्ती, प्रैंक और हंसी-मजाक

    यह कॉल बॉम्बर बड़ा फेमस हुआ करता था एक समय पर। मैंने भी इससे कईं लोगो को परेशान करना चाहा था, लेकिन बहुत कम लोगो को फोन्स और मेसेजिस जाते है। मतलब बहुत कम चांस होता है सक्सेस प्रैंक का। खेर, मैंने उसे मीडिया बाईट के लिए परेशान किया, उसने मुझे इन sms से.. तो अभी यही चर्चा चल रही थी। सोचा विषैले गजे को भी इसका लाभ दिया जाए। पत्ते ने गजे का नंबर डालकर कॉल बॉम्बर चालू किया, और मैजे लेने के इरादे से मैंने कॉन्फ्रेंस कॉल पर गजे को भी लिया। लेकिन मजेदार बात देखो, गजे को कोई भी मेसेज या फोन नही आया। फिलहाल ग्राउंड में करोड़ो मच्छरों के बीच भी मैं, आज के व्यस्त लेकिन मजेदार दिन को इस दिलायरी मे उतार रहा हूँ। और अभी अभी एक और घटना हो गयी।

स्कूटी वाला लड़का, लड़की और अंकल वाली जिज्ञासा

    प्रियंवदा, दुनिया बहुत आगे बढ़ चुकी है। लेकिन लड़के-लड़कीं का छिप-छिपकर मिलना आज भी जारी है। क्या हुआ अभी, कि मैं यह दिलायरी लिखते हुए, बीच मे रुककर गजे और पत्ते के साथ कॉन्फ्रेंस कॉल पर लगा हुआ था। ब्लूटूथ के बदले मैंने फोन को स्पीकर पर कर दिया। फोन पर बातें करते हुए मैं इधर उधर देख रहा था, तो देखता हूँ, कि थोड़े दूर एक स्कूटी पर एक लड़का बैठा है। सामने रोड की तरफ से तीन लड़कीं और एक लड़का आ रहे थे। उस ग्रुप में से एक लड़की अलग हुई, इस स्कूटी वाले की ओर आगे बढ़ी। मेरी सहसा नजर उनपर पड़ी थी, लेकिन उत्सुकतावश उन्हें देखने लगा, कॉन्फ्रेंस कॉल पर पत्ता और गजा लगे हुए थे, और उनकी आवाज स्पीकर से आती हुई, इस शांत वातावरण में बड़ी जोरों से सुनाई पड़ रही थी।

    वो बेचारी लड़कीं कितनी मुश्किल से कोई बहाने से मिलने आयी होगी, लेकिन तभी पत्ते ने अपनी आदतानुसार यूंही गाली बकी.. स्पीकर का वॉल्यूम फूल ही था, और खुले मैदान में गूंज उठी..! उस लड़की ने आयी हुई आवाज में देखा, और वह तुरंत उस लड़के से दूर हो गयी, और वापिस अपने ग्रुप में जा मिल गयी। मजेदार बात देखो अब तुम। मुझ में भी अब वो बुड्ढे खुसड अंकलों वाले लक्षण आ चुके है प्रियम्वदा। वह लड़की थी कौन, यह जानने की मेरी उत्कंठा तीव्र हो गयी। मैं फोन का स्पीकर बन्द करके कान पर लगाये उस लड़की वाले ग्रुप के पीछे पीछे चलने लगा। एक जगह स्ट्रीट लाइट की रोशनी में लड़कीं का चेहरा देखा, पर उसे नही पहचानता। लेकिन रसप्रद यह था कि उस ग्रुप में जो लड़का था, उसे जानता हूँ। वह बेचारा इंद्रधनुषी रंगों के प्रभाव में है। वापिस ग्राउंड में आया, तो वह स्कूटी वाला लड़का भी रफूचक्कर हो चुका था।

    और मैं फिर से अपनी जगह पर बैठकर यह लिखने लगा हूँ। पत्ते ने उस ग्रुप के बारे में कुछ बताया है, जो लिखने लायक नही है। पर सामाजिक दूषण तो है ही। दुनिया आगे बढ़ रही है प्रियम्वदा, लेकिन सुखोपभोग में कभी भी कोई बदलाव नही हो पाएगा। पुरुष को सदैव स्त्री की आवश्यकता रहेगी, स्त्री को सदैव पुरुष की।

    शुभरात्रि
    १३/०९/२०२५

|| अस्तु ||


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