"बारिश, राजनीति और अलगाव की पीड़ा || दिलायरी : 11/09/2025"

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बारिश के बाद का मौसम

    भारी कड़क धूप आयी, इस तीन दिन की बारिश के बाद प्रियंवदा.. शाम के बाद मौसम खूब सुहाना हो जाता है। चिरपरिचित ठण्ड वापिस लौटने लगी है। सवेरे औंस की बूंदे कार की छत और बाइक की सीट को भिगोकर रखती है। सतत बारिश में भीगते रहने से दो पौधे खराब भी हो गए। पता नहीं कौनसे पौधे थे वे, अपने आप उगे थे, घास तो नहीं थे इतना जानता हूँ मैं। लाल तने पर खड़े हो रहे उस पौधे के बड़े बड़े पत्तों में अनेकों छेद हो गए। बारिश की बूंदों ने मानों उसे छलनी बना दिया।

"बारिश के बाद की धूप, राजनीति और अलगाव की भावनाएं"

नेपाल की राजनीति और भारत के रिश्ते

    सवेरे प्रतिदिन के नित्यक्रम का अनुसरण करते हुए, ग्राउंड, मंदिर, और ऑफिस आ पहुंचा। दिनभर कुछ जिम्मेदारियों भरे काम निपटा कर, बाकी का समय बस नेपाल में मची अफरातफरी के विडिओस देखने में व्यस्त रहा। जो भी हो, अभी तक जो समाचार मिले है, उस अनुसार एक और भारत विरोधी व्यक्ति नेपाल में प्रधान मंत्री पद पर आरूढ़ होने की रेस में दौड़ रहा है। बालेन्द्र शाह.. शौक से रैपर है। वो तेज गति के गीत वाला रैपर। आत्मश्लाघा से भरे गीत माने रैप, और उस गीत का गीतकार वह रैपर।

    रैप भी बड़ा अजीब प्रकार है गीतों का। मैंने यह किया, मैंने वो किया, मैं यह कर सकता हूँ, या मैं वो करके दिखाऊंगा.. गीत से आगे तो कोई कोई ही बढ़ पाया है। बाकी सारे ही आज भी आपस में रैप-डिस, रैप-डिस खेलते रहते है। यह भी मुझे डीसीस (DISEASE) लगता है। खेर, यह बालेन्द्र शाह ने ग्रेटर नेपाल का मुद्दा उठाया था, जिसमे भारत के लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल में दर्शाता नक्शा प्रदर्शित किया था। मुझे लगता है, भारत का सबसे कमजोर नेतृत्व प्रधानमंत्री मोदी कर रहे है।

    पहले कभी इतना हो-हल्ला नहीं सुना था। पिछले कुछ वर्षों में भारत के तमाम पडोसी देश के भारत के साथ के रिश्ते बदल गए है। श्रीलंका, मालदीव्स, म्यांमार, बांग्लादेश और अब यह नेपाल भी..! किसी को भी सबसे पहली शांति पडोसी से चाहिए होती है। पडोसी ही सबसे पहले काम आता है। लेकिन यह कैसी विदेशनीति है, कि हमे दूर वाले तो आँखे दिखा ही रहे थे, अब पडोसी भी परेशां करते है। नहीं, जियोपोलिटिक्स पर मुझे अभी नहीं जाना।

जिस दिन उससे अलग होंगे उस दिन..


    उस दिन शायद सुबह की धूप अधूरी लगेगी। चिड़ियों की चहचहाट दिल में न उतर पाएंगी। इंद्रधनुष के तमाम रंग शायद एक मात्र श्याम में समाहित हो जाएंगे। समस्त चेतनाएं साथ छोड़ देगी। बचाना चाहूँ भी यदि, तो मैं तो बस सुनते रहना चाहूंगा। वे तमाम बातें जो कभी निकली तो थी, लेकिन कहीं दब गयी थी, दूसरी बातों के प्राधान्य के भार तले। कुछ वे बातें, जिन्हे सोचनेभर की लायकात न मिली थी.. उनका महत्त्व भी आरक्षण खा गया था।

    उस दिन सब कुछ ही अधूरा अनुभव होगा, बेस्वाद चाय, बगैर अग्नि की सिगरेट, और बिन मौसम का दिन..! उस दिन डायरी के इन पन्नों पर शब्दोंकी स्याही न ढुल पाएगी। जरूर ही क्रोध के पश्चात का पश्चाताप भरा होगा उस दिन में। शब्दों के स्त्रोत सूख गए होंगे, जैसे सूखे हो निर्जल होंठ..! कृशकाय हाथ में इतना बल भी नहीं होगा, कि वह उठा पाएगा एक कलम.. और न लिख पाएगा, याचना, या फरियाद। भावों के जोर में इतने आंदोलन उठेंगे, कि किनारा समाहित हो जाएगा, डूब जाएगा लाइटहाउस.. एक मात्र अँधेरे का सहारा भी.. किनारे की पहचान सा।

    उस दिन कुछ भी आम न होगा, न होंगी आम सांसे.. तेज चलती होगी.. अपनी गर्माहट को छोड़कर। ठण्ड में लिप्त वह श्वास.. निःश्वास में वेदना होगी। कठोर वेदना। क्रूर वेदना। अतृप्त क्षुधाओं की वेदना, असमय वियोग की वेदना, अधूरे अल्फ़ाज़ों की वेदना, और वेदना का कठोरपन हर लेगा सर्व संवेदना। वही वेदना, उन लकड़ियों की भांति, जिनमे बस अग्नि की आशा शेष होती है। वह वेदना, जो भीतर से खाली होना चाहती हो, लेकिन अलग नहीं हो पाती। क्योंकि उसे नयी वेदनाओं को स्थान नहीं देना।

    उस दिन बरसे हुए बादलो का पानी मिट्टी को न महकाएगा, पेड़ों की हरियाली आकर्षण शक्ति खो बैठेगी। जल स्त्रोत के किनारे पर बैठे बगुलों की कतार में ऐक्यता न दिखेगी। उस दिन रूक जाएगा, गति का मनस्वीपना। गति बिना मनस्वीपन के, केवल दौड़ है। और मनस्वीपन बिना गति के एक ज्वाला है। दोनों के एकसाथ पद्संचालन से रचना निर्माण होती है। लेकिन उस दिन.. दोनों शायद विमुख हो जाएंगे, ज्वाला की लपटों में दौड़ना पड़ेगा। अनंत तक।

    धीर धीरे समझ आता है। इस अलगाव में एक अलग यात्रा का अंदेशा छिपा है। नदियां पहाड़ों से अलग होकर समंदर तक का रास्ता खोज लेती है। शाखा से अलग होकर पत्ते गिरकर मिट्टी में मिल जाते है। नए बीज अंकुरित होते है। अलगाव की पीड़ा कभी भी जड़वत नहीं करती। यह खोल देती है, वे स्त्रोत, और धाराएं बह निकलती है। नूतन शुद्ध धाराएं। वह धारा कहीं दूर ले जाती है, नवीन पगडंडियों की ओर, स्वयं से मिलाने के लिए। स्व की पहचान तक। स्व की क्षमताओं तक, नयी क्षमताएं। अपूर्व।

    अलगाव के बादल छंटने पर, नूतन भास्कर का उदय होता है, स्मृतियों के कांच से सैंकड़ों टुकड़ों पर, उन रविकिरणों का परावर्तित होकर, प्रकाश के पुंज से पुनः एक भेंट होगी। धीरे धीरे समझ आता है। अलगाव एक अंत नहीं। यह तो एक प्रस्थान बिंदु है। जहाँ से अपने भीतर की यात्रा शुरू होती है। धीरे धीरे, रुकते हुए, टूटते हुए, चलते हुए, जुड़ते हुए.. फिर से सम्पूर्ण होने के लिए।


    शुभरात्रि।
    ११/०९/२०२५



|| अस्तु ||


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