रविवार की भागदौड़ और मस्ती
क्या भागदौड़ की है आज तो..! एक ही शहर में कईं किलोमीटर कवर किए है मैंने। ऐसा दिन बहुत पसंद है मुझे। अकेला, हर दिशा में दौड़ने को मुक्त, कोई पाबंदियां नही, कोई बंदिशें नही.. जहां चाह वहां राह.. जिस गली में मुड़ने का मन हुआ, मुड़ गया। जहां रूकने का मन किया रूक गया। लेकिन सारे ही दिन अस्त होते है। सारे ही दिन मस्त होते है। बस मैं कभी कभी दिन में मस्ती लाने के लायक नही रहता हूँ। जीवन मे सबकुछ ही जरूरी है, और सब कुछ ही फिजूल भी। जीवन मे गाम्भीर्य जरूरी है, लेकिन मस्ती भी। जीवन मे गति जरूरी है, लेकिन ठहराव भी.. ऐसा कुछ भी नही है जिसकी अति हो जाए, और हानिकारक न हो। सिवा भक्ति के। वैसे जिसने भक्ति करते हुए लहसुन-प्याज त्यागे है, वे स्वाद से वंचित भी रह जाते है। मतलब फिर वहीं आ गया मैं, कुछ खोओगे, कुछ पाओगे। वह घिसीपिटी बातों पर आ गया मैं भी, कि हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है।
प्रियम्वदा! रविवार के कारण आलस की आराधना करते हुए, मैं लगभग सात बजे उठा। ग्राउंड में जाने का जरा भी मन नही था। सवेरे सवेरे दिलबाग में पहुंच गया। सारे पौधों को गुड मॉर्निंग कहते हुए पानी पिलाया। हालांकि मैं अकेला नही था। कुंवरुभा मुझे देख देखकर सीख गए है। जिद्द करते है। उनके अनुसार मुझे सिर्फ उन्हें पानी भरकर देना है। पौधों में वही पानी देंगे। उनका आदेश भी मैं शिरोमान्य करता हूँ। सोलर पेनल के नीचे रहने से फूल वाले पौधे फूल नही दे रहे है। लेकिन प्लास्टिक के गमले होने के कारण मैं धूप में नही रख रहा उन्हें। प्लास्टिक के गमले गर्म हो जाते है धूप में, और जड़ों को भी गर्म कर देते है।
आज सवेरे पास वाले शहर जाना था, तो लगभग नौ बजे निकल पड़ा। मैं तो कार से जाना चाहता था, लेकिन माताजी को कार जरा पसंद नही आती। मोशन सिकनेस को वे 'कार की गंध' के रूप में पहचानते है। मुझ से पहले तो वाछटीए (बाइक) पर कुंवरुभा सवार हो गए। वे सारी स्विचस पहचानते है। और जन्हें तेज चलना बड़ा पसंद है। इंजिन किल स्विच को उन्होंने ऑन की, और फिर सेल्फ लगा दिया। बाइक चालू होते ही एक्सीलेटर पकड़ लिया। बोले, 'मैं चलाऊंगा'। पांच वर्ष के हो चुके है, और खूब तीखी जिह्वा चलाते है। शिव समान नाम है, तो तांडव भी खूब मचाते है। और दुर्वासा की भांति छोटी छोटी बातों में क्रोध का सातवां आसमान चिर देते है। रास्ते भर उन्होंने इस छोटी उम्र में भी ट्रक वालो को खूब भला बुरा कहा, खाली रोड देखते ही, एक्सीलेटर खींच देते, और उनका यह बल लगाना मुझे अनुभव हो जाता।
पौधों की देखभाल और गमले की खरीदारी
ग्यारह बजे घर लौटा, और साढ़े ग्यारह पर ऑफिस। काम तो रविवार को रहता ही है। आज लेट पहुंचने के कारण दिलायरी भी लगभग दोपहर डेढ़ बजे पोस्ट कर पाया। अब पोस्ट पब्लिश करके शेयर करना भी बड़ा बेकार काम लगता है। उसका एक मात्र कारण है कि मुझे मेरी प्रत्येक पोस्ट का रेगुलर क्रिटिसिज्म मिल जाय करता था। वह अब नही मिल पा रहा। फिर भी जोर जबरजस्ती, मैं पढ़वाता हूँ। खेर, दोपहर घर लौटा, तब डेढ़ बजे रहा था। फ्लिपकार्ट का पार्सल आ चुका था। गमले मंगवाए थे। दोपहर को आज एक झपकी भी ले ली। और फिर चल पड़ा कार लेकर मार्किट। थोड़ी खरीदारी करनी थी। रविवार के दिन मार्किट का बूरा हाल होता है। जैसे संध्या समय गोधन छूटा हो.. जहां देखो वहां भीड़ ही भीड़। ऊपर से मैं चला गया d mart.. मुझे चाहिए था सोलरप्लेट्स साफ करने के लिए एक मोप.. वही जो एक डंडे में आगे कॉटन का कपड़ा लगा रहता है। लेकिन फैशनेबल दिखता है, तो हम साढ़े छःसौ भी चुका देते है।
घर लौट आने पर याद आया, गमले तो आ गए, मिट्टी? वापिस कार से नर्सरी पहुंचा। अनेकों पौधों के बीच वह कोमल कली, आज भी, एक ही, स्थितप्रज्ञ चहेरे वाली खड़ी मिलती है। काफी छोटी है, लेकिन उतनी ही चालाक.! फालतू शब्द उसके मुंह से निकलता ही नही। कट टू कट बात करने का उसका यह अंदाज ही मुझे बड़ा पसंद है। जिन्हें कुछ बेचना होता है न, वे लोग कुछ भी चिपकाने में लगे रहते है। यह इतनी छोटी है, लेकिन उसे पौधे के इंग्लिश नाम आते है। हालांकि यह उसका काम ही है, इस लिए आना चाहिए भी उसे। पर बड़ा प्रभावशाली लगता है। मैं गया तब साढ़े सात बज रहे थे। वे लोग नर्सरी बन्द कर रहे थे। मेरे पहुंचने पर रूक गए। बोरभर मिट्टी बंधवा ली। और उस लड़की को मैंने विवरण देते हुए कहा कि, मेरी छत पर सोलर है, उसके नीचे सुबह शाम की धूप आएगी, दोपहर की धूप नही आएगी, ऐसा कोई पौधा दो।
वह पत्तों वाले कईं सारे पौधों के सेक्शन में मुझे ले गयी। तरह तरह के नाम और विवरण उसने बताए, मुझे एक भी समझ नही आया। मैं उससे बस यही पूछता, कि यह पौधा कहीं घर पर उगे ही नही ऐसा तो नही होगा न? खेर, उसने तीन अलग अलग पौधे मुझे पकड़ा दिए। जिनमे से एक गुलाब का नाम मुझे याद रहा बस। क्योंकि गुलाब बड़ा सामान्य हो चुका है। वह तो गुलाब के लिए मना करती रही, क्योंकि गुलाब को पूरी धूप चाहिए। और मैं छांव में रखने वाला हूँ। आखिरकार घर लौटा। गमले मिट्टी से भरे, थोड़ी खाद भी मिला दी, और पौधे लगाए दिए। छत पर रख भी आया। दो खाली गमले भी मिट्टी से भर लिए। उनमें पोर्तुलाका या सदाबहार लगा दूंगा।
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from left, 1. Croton, 2. Lucky Bamboo, 3. Rose plant, 4. Portulaca / 9 o’clock flower / Moss Rose |
मार्किट की भीड़ और दिशाभ्रम
तो, यही था आज का दिन.. जब मार्किट कार लेकर गया था, तब पार्किंग के लिए कईं जगह पर कार लेकर घूमना पड़ा था। जब मोप लेने गया था, तब दुकान के लिए बहुत घूमना पड़ा। क्योंकि अंधेरा हो चुका था, और मैं किसी सोसायटी में दाखिल हो गया। अनजाने रोड इधर उधर घुमाते रहे मुझे। आखिरकार गूगल मैप की सहायता से बाहर निकल पाया। दिशाभ्रम हो जाता है कभीकभी, जब सेक्टर सिस्टम हो। बार बार चौराहा आता हो, तब कईं बार दिशा भूल जाते है। तीन बार राइट लेने पर वहीं पहुंच जाते है, जहां से शुरू किया था। रोड पर तो राइट डायरेक्शन ले लेता हूँ मैं। लेकिन फैंसले मेरे राइट होते हुए भी रॉंग हो जाते है। और यह शुरू से चला आ रहा है। तो अब आदत हो चुकी है गलत फैंसले ले लेने की। यूँ भी कह सकता हूँ कि महारथ हांसिल कर ली है मैंने।
भारत पाकिस्तान क्रिकेट मैच और रिश्तों की कटुता
छोड़ो यार, बात कटुता पर खत्म होने लगे उससे पहले बात बदल लेनी चाहिए। फिलहाल रात के साढ़े दस बज रहे है। यह मैदान भी चहलकदमी से भरा भरा है। ठंडी हवाएं बह रही है। आसमान स्वच्छ है, लेकिन प्रदूषण के कारण सितारे गिनेचुने ही चमक रहे है। दो टिटहरी पता नही क्यों कब से टें टें टें किए जा रही है। शायद वह भी भारत पाकिस्तान की हो रही क्रिकेट मैच पर हँस रही है। लगता है बात कटुता पर ही खत्म होगी। एक तरफ भारत पाकिस्तान के बीच कोई संबंध नही, लेकिन क्रिकेट तब भी खेल रहे है। यह रिश्ता क्या कहलाता है प्रियम्वदा? खून और पानी एक साथ नही बहेंगे, लेकिन क्रिकेट इन सब से ऊपर है। पैसा बोलता है.. अब्जो रुपियों के आड़े राष्ट्रभक्ति क्या, कोई भी भक्ति, कभी नही आ सकती। भारत पाकिस्तान का क्रिकेट मैच कोई आम खेल नही है, कायदे से पैसे उगने वाले वृक्ष है। इस खेल में स्पॉन्सर से लेकर टीवी राइट्स और सट्टे तक हर जगह पैसा ही पैसा होता है।
अपने खिलाड़ी भी इतने काबिल है, कि खेलने से मना नही करते। क्या हो जाएगा, अगर नही खेलेंगे तो? कुछ पैसे कम मिलेंगे..! ठीक है यार छोड़ो, फालतू बहस करने का मेरा अभी मन नही है।
शुभरात्रि
१४/०९/२०२५