ब्लॉगिंग की दुनिया में फंसा मन
प्रियंवदा ! आज कुछ अपने ब्लॉग पर ही फंसा हुआ रहा था। नयी चीज सिखने में व्यस्त हो गया था.. वैसे सिखने की कोई उम्र तो नहीं होती है, लेकिन एक तय उम्र के बाद कुछ नया सीखनेमें परेशानी खूब होती है। वह भी टेक्निकल ज्ञान हो तो थोड़ी और ज्यादा दिक्कत। क्योंकि अब बार बार ध्यानभंग होता है। बार बार बिच में कोई न कोई काम आकर टोक देता है। कुछ न कुछ माइंड डाइवर्ट हो जाता है। और यह कोई नई बात नहीं है। क्योंकि नौकरी पेशा में कईं बार एक-साथ समय नहीं मिलता। दिनभर तो इसी में निकल गया कि वो अपडेट लागू कैसे हो.. और साथ ही एक संकलन करने में। मई महीने की सारी दिलायरी एक पीडीऍफ़ स्वरुप में यहीं ब्लॉग पर पब्लिश करने की सोच रहा हूँ।
सावन की शुरुआत और भावनाओं की बौछार
खेर, हमारा सावन शुरू हो चूका आज से ही। जो पुरे सावन का व्रत रखते है, उनके लिए कल से ही शुरू हो गया था। मैंने इस बार नहीं लिया। वैसे भी नौकरी करते हुए व्रतपालन करना बड़ा कठिन है। कभी कभी ध्यान नहीं रहता, और कुछ खा लेते है। मेरे साथ तो बहुत बार ऐसा होता है। यूँ तो पिछले कईं सालो से दोपहर का लंच में ठीक से करता ही नहीं। या तो नाश्ता, या फिर कुछ भी नहीं। और इसी की आड़-असर अब अनुभव भी होती है। छोटा था, तो मक्के को भी एक फ्रूट समझता था, बारिश में भुना मक्का खाने के मजे अलग है। और कोई व्रत वाले दिन खा लिया। घर आकर बताया भी, और सब ने खूब मजे लिए।
उपवास की परंपरा और फलाहार की विडंबनाएँ
हमारे यहाँ तो कोई व्रत रखना बड़ा आसान है। गुजराती लोग भूखा रहना पसंद तो नहीं करते है। क्योंकि व्रत हो तब भी, भरपेट भोजन लेते है। उसे नाम देते है 'फलाहार'.. जबकि फल तो होता ही नहीं उसमे। साबूदाना, राजगिरा, सिंघाड़े के आटे से बनी वस्तुएं, तेल में तलकर, या घी मिलाकर.. हलवे से लेकर पूरियां तक.. खिचड़ी से लेकर चाट तक.. वे तमाम पकवान, जो आम दिन पर नहीं आरोगते.. ऑयली बोलकर, वे सारे ही भूखे रहनेवाले दिन पर खूब खाए जाते है। जबकि फलाहार का मतलब होता है, केवल फलों का सेवन करना। मजेदार तो मुझे वो उपवास में खायी जाती पानीपुरी लगी। बताओ, पानीपुरी का उपवास वाला वेरिएंट भी आता है।
शरीर को विश्राम या और अधिक श्रम?
ऐसी बहुत सारी चीजे है। कभी कभी तो समझ नहीं आता है कि उपवास के नाम पर हम क्या नहीं खाते है। भूखा रहकर आंतरिक अवयवों को आराम देने के बजाए हम और कईं सारी जेहमत उसे उठाने के लिए दे देते है। अरे भूखे रहकर शरीर घटाने के बजाए घी और तेल दबाकर अतिरिक्त वजन बढ़ाने का काम कर लेते है। मैं भी उन्ही लोगो में शामिल हूँ, जो कुछ नया खाने के चक्कर में व्रत रखते है। डेली रोटी-सब्जी-दाल खा-खाकर मन ऊब ही जाता है। सबके साथ होता है। फिर हमे कुछ वेरायटी चाहिए होती है। उतने में कोई न कोई व्रत आ जाता है।
करने वाले तो निर्जला उपवास तक रख लेते है। वह भी आम दिन के सारे कार्यभार को निभाते हुए। लेकिन मेरे जैसे लोग यह सोचते है, कि जब भगवान ने शरीर दिया है, खाने के लिए भोजन दिया, स्वाद के लिए जिह्वा दी है, फिर भूखा क्यों रहना भला? यह तो भगवन से चेलेंज करने जैसा नहीं हुआ? कि तुमने सब दिया है, लेकिन मैं उपयोग नहीं करूँगा। हालाँकि यह एक तर्क मात्र है, मजाक के लिए। वास्तव में ऐसे उपवास करने ही चाहिए। पाचनतंत्र को भी आराम देना जरुरी है। पुरुष सप्ताह में एक दिन छुट्टी रखकर आराम करता है, लेकिन घर की स्त्री के पास छुट्टी नहीं होती, उल्टा पुरुष छुट्टी रखता है, उस दिन उस स्त्री का काम बढ़ जाता है।
ऐसा ही कुछ पाचनतंत्र का है। पाचनतंत्र को कभी छुट्टी नहीं मिलती, जिस दिन उपवास रखते है, उस दिन और ज्यादा उटपटांग काम उसे पकड़ा देते है। वैसे जब यह लिख रहा हूँ, तो याद आया, कुछ वर्ष पूर्व मैंने सावन के तिस दिन के तिस दोहे लिखे थे। प्रत्येक दिन का एक दोहा शिवार्पण। वैसे वह कला अल्पायु ही रही। आज जब कोशिश करता हूँ कुछ दोहे में लिखने की, तो वही पुराने से मिलते जुलते लिखे जाते है। नयापन नहीं आता। उस वर्ष मैंने भी यही खाता-पीता व्रत रखा था, और प्रतिदिन सवेरे जल्दी शिवमंदिर जाकर जल चढ़ाना। और दिनभर में एकाध समय सोच-विचारकर एक दोहा रचना। और पता भी नहीं चला, कब तिस दिन हो गए, और तिस दोहे। हाँ ! याद आया, एक दिन कम था, उस सावन में। तो आखरी दिन में दो दोहे लिखे थे।
वर्षा और जल संग्रहण – ज़रूरत और ज़िम्मेदारी
आज सवेरे बड़ी जोरदार बारिश हुई। लगा तो था कि शाम तक चलेगी, लेकिन नहीं। अब सावन शुरू हो चूका है। और सावन में वर्षा इसी तरह होती है। छुटपुट बारिश फसलों के लिए बड़ी जरुरी है। एक साथ खूब बरस जाए तो किसान रोएगा, और कुछ दिन का ब्रेक ले ले, तब भी किसान रोयेगा। एक और बात याद आयी। वर्षा में जलसंग्रह को खूब प्रमोट किया जा रहा है। मैंने काफी वीडिओज़ देखे, जिसमे कुँए रिचार्ज हो रहे थे। पुरे खेत में इकठ्ठा हुए पानी को ढलान देकर कुँए में इकठ्ठा कर लिया गया। उसी तरह कईं लो बोरवेल भी रिचार्ज कर लेते है। बड़ा सही है, और बहुत जरुरी भी। क्योंकि हमने भूगर्भ जल भी तो ख़त्म किया है, और करते जा रहे है।
ओवरथिंकिंग – मन की अद्भुत कलाकारी
अरे प्रियंवदा ! आजकल तो ओवरथिंकिंग भी नहीं हो रही है। कल हो गयी थी गलती से। लेकिन उसके अलावा तो कोई भी टॉपिक, कोई भी बात पर बात नहीं बन पा रही है ओवरथिंकिंग वाली। वापिस चाहिए, क्योंकि उसमे भी एक अलग मजा था। बात का बतंगड़ बनाने का मजा। दोनों पक्षों का खुद ही सोच लेना भी एक कला है, एक आर्ट है.. हर कोई नहीं कर सकता। अपने ही मन में तुम्हारे भी डायलॉग मैं खुद ही रच पाऊं, मजेदार तो है ही वह।
चलो फिर, आज विषैले गजे का अभी से मेसेज आ गया है, समय रहते शाखा में पहुँच जाने के लिए। शाम घिर चुकी है, और समय हुआ है, साढ़े सात।
शुभरात्रि।
२५/०७/२०२५
|| अस्तु ||
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प्रिय पाठक !
"अगर कभी आपने भी व्रत के नाम पर कुछ नया चखा हो, या सावन की किसी फुहार ने आपकी यादों को भिगोया हो… तो नीचे कमेंट में लिखिए।
चलो, इस सावन में यादों की छतरी खोलें और मिलकर भीगें…!"
www.dilawarsinh.com | @manmojiiii
– दिलावरसिंह
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