तेज बरसात और ठंडी हवाओं का जादू
अभी अभी वेगवंती वर्षा हुई है प्रियंवदा ! कुछ देर तो ऐसा लगा था, जैसे इस वर्षा की जलबूँदे, इतनी तीव्रता से आ रही है, कि पृथ्वी की परत फाड़ती हुई, सीधा शेषनाग का मस्तक छूने को प्रयासरत है। लगा था, जैसे आज यह वर्षा रुकेगी नहीं। लगा था, जैसे बिरहणि दौड़ आयी हो। लगा था, जैसे गर्मी से प्रभावकारी हुई नीरवता का नाश करने आयी हो। लेकिन यह भी तुम्हारी ही तरह कुछ ही देर रुकी.. और अपने पीछे छोड़ गयी एक ठण्ड..! वही ठण्ड जो चेतना को जड़ में परिवर्तित करती है। वही ठण्ड जिसमे घटादार वृक्ष भी अपना चहेरा बदल लेते है। वही ठण्ड जिसमे पानी भी अपना रूप बदल लेता है। जिसे मैं पसंद करता हूँ वही ठण्ड। क्योंकि ठण्ड भी एक शाश्वत है, सूर्य का अस्तित्व न रहा तो ठण्ड का अखंड साम्राज्य पुनः स्थापित होगा।
सवेरे जब ऑफिस पहुंचा तो, वही नित्यक्रमानुसार बीते कल की दिलायरी पोस्ट की। और शेयर कर दी। काम तो आज भी बहुत था। लेकिन समय निकालते हुए एक पुस्तक भी पढता रहा साथ ही साथ। कल ही डाउनलोड कर लिया था। जितने दिन यह चस्का चढ़ा है, सोचता हूँ भरपूर लाभ उठा लूँ। आजकल दिलबाग का नशा उतर चूका है। मेरा सच में वो दुग्गल साब वाला हाल है, फर्क उतना है, कि वो दुग्गल साब दैनिक बदल जाते थे, मैं शायद साप्ताहिक.. या फिर मासिक..! खेर, काम करते हुए भी साथ साथ बुक पढता रहा।
निरुत्साह : जब उत्साह भी मौन हो जाए
कईं बार ऐसा भी हो जाता है। जब आप इतने नीरस हो जाओ की उत्साह ही उत्पन्न न हो। बड़ी दूर से कुछ देर पूर्व पत्ते का फोन आया, 'व्हाट्सप्प चेक कर।' मैं यह दिलायरी ही लिख रहा था, और कंप्यूटर पर ही व्हाट्सप्प भी खुला हुआ था। तो मैंने तुरंत देखकर मेसज डिलीट भी कर दिया। और कुछ देर उसे यूँ ही परेशां करता रहा, कि मेसेज मिला ही नहीं है। उसने अपने में ब्लूटीक देखे। और लगा चिढ़ाने.. दरअसल वो किसी बार में बैठा हुआ, बियर ग्लास की फोटो भेजकर चिढ़ाने की कोशिश कर रहा था, कि देख एन्जॉयमेंट चल रही है। लेकिन मुझे उस चिल्ड बियर गिलास की फोटो देखकर भी मुँह में पानी नहीं आया।
बियर के ग्लास से बड़ा नशा : भावनाओं का सुरूर
होता है, कभी कभी आप इतने निरुत्साही हो जाते हो कि जो चीज आपका ट्रिगरपॉइंट थी उत्साह की, वो भी आपको कुछ समय बाद उत्साहित नहीं कर पाती। पत्ते ने हार नहीं मानी, उसने एक फ़ूड आइटम (चकने) की भी फोटो भेजी.. लेकिन मैंने कोई उत्साहित प्रतिक्रिया ही नहीं दी। बल्कि उसे उल्टा ज्ञान दिया, कि कुछ नहीं रखा बे इन दो मिनिट के नशे में। जिसे भावनाओं का नशा चढ़ा हो, उसे यह सब तुच्छ लगता है। उसे लगा मैं अपने शब्दों से उसका सुरूर मिट्टी में मिला दूंगा। उसने यह कहकर फोन रख दिया, कि सात बजे मैं उसे सामने से फोन करूँगा, ऐसा कुछ व्हाट्सप्प करेगा वह। और वास्तव में इसका कोई भरोसा नहीं है। मेरे जन्मदिन पर उसने अपनी स्टोरी में मेरा मदिरापान करते हुए फोटो चढ़ा दिया था।
आज तो मौसम भी बईमान है। दोपहर तक गर्मी थी, एक घंटे की तूफानी ठंडी हवाओं भरी बारिश हुई, और अब फिर से घने आसमान वाली गर्मी है। सुरा-सेवकों के लिए उपयुक्त समय है। ऐसी प्रकृति प्यासियों के जठराग्नि को उदीप्त कर जाती है। लोग कहीं से भी सेटिंग कर लेते है। जुगाड़ बिठा लेते है। बहाने मारकर भी बोत्तल ढूंढ निकालते है। जिसकी फोटो देखकर भी मेरी भावना जागृत न हुई, वह शब्द स्वरुप में भी मेरे सामने इंस्टाग्राम में हाजिर हुआ। एक मित्र ने भेजा, कि 'अल्कोहल भले ही आकर्षक लगे, पर क्या आपने कभी किसी ऐसे मित्र से भेंट की है, जो आपकी कविताएं या आपके पत्र बिना आपको जज किए सच में पढ़ें, मेरे पास है, इस लिए मुझे बोत्तल नहीं चाहिए।'
सोशल मीडिया मित्रता बनाम रूबरू रिश्ते
मैं सोच रहा हूँ, सोशियल मिडिया पर ऐसी मित्रता हो कैसे जाती है? कि आप कुछ भी शेयर कर सकते हो उनके साथ, और फिर भी चल जाता है। मुझे लगता है उसका कारण है, दूरियां। नजदीकियों में एक खतरा भी होता है, व्यक्तित्व के उजागर होने का। कोई मित्र है, किसी दिन शत्रु हो गया तो आपके रहस्य तुरंत उजागर हो जाएंगे। ऑनलाइन की मित्रता में यह खतरा नहीं होता है। वहां आपको पता है, कि इससे कोई खतरा नहीं है। शायद इसी कारण एक घनिष्टता बंध पाती है। सोसियल मिडिया पर ब्लॉक करने की सुविधा मिलती है। रूबरू वाले मित्र कहीं न कहीं टकरा भी जाते है। सोशल मिडिया वाले मित्रों को टाल भी सकते है। रूबरू वाले परसनल स्पेस तक खा जाते है।
जब पुराना जुनून खो दे अपनी चमक
सोशल वाले किसी बात के लिए जोर-जबरजस्ती नहीं कर सकते। रूबरू वाले खिंच ले जाते है अपने साथ, बेमन से भी। खेर, बात थी निरुत्साह की, या अनिच्छा की। ऐसा क्यों होता होगा? कि कभी जिस चीज के लिए आपके पास समय ही समय था, या जिसके लिए आप सारी सीमाएं लांघ सकते थे, एक समय के बाद वही आपको रसप्रद नहीं लगती? नहीं नहीं.. प्रियंवदा ! मैं कोई सुधरा हुआ नहीं हूँ.. लेकिन मैं तो अपने भीतर हुए इस विचित्र बदलाव के कारण चिंतित हूँ। मैंने अपने जीवन में उस कांच की बोतल के लिए क्या क्या साहस नहीं किये है..! संध्याकाल में स्मशान के पास बैठकर भी सेवन किया है। सिनेमाहॉल के बाहर, किसी के अनजान खेत में, भरी दोपहर को, और तो और हुकुम के खौफ के बावजूद भी सेवन किया है। तब शायद इच्छाशक्ति हावी थी। अब सुषुप्त है।
प्रेम की पहेली : वहम अच्छा या हकीकत?
पौने छह बज रहे है। मिल बंद है, तो लोह-गर्जना भी कल तक यह स्थान छोड़ गयी है। आसमानी बिजली कड़कते ही, वो घरों वाली बिजली चली जाती है। शायद वह डरती है, उस आसमानी बिजली का कद देखकर। या शर्म अनुभवति होगी। खेर, मैं जो बुक पढ़ रहा हूँ, वह दरअसल एक लघुकथाओं का संग्रह है। लेखक पहले अख़बारों में 'कटार' लिखते थे। फिर उसे एक जगह संकलित कर दिया गया। यह एक सीरीज़ बुक है, और शायद अभीतक इसके दस भाग प्रकाशित हो चुके है। सत्यघटनाओं पर आधारित छोटी छोटी कहानियां है। अभी तक जितनी पढ़ी है, सारी ही वियोग के एक लम्बे अंतराल के बाद दो प्रेमी मिलते है, या कुछ वियोग के पश्चात टकराते है लेकिन एक दूसरे को अपना पाने के की स्थिति में नहीं रहते, ऐसी ही कहानियां है।
मुझे लगता है पृथ्वी पर यह प्रेम नाम की बला है ही क्यों? वहम पाल लेना बेहतर है प्रेम से। खेर, ऑफिस खाली हो चुकी है। कुछ देर पूर्व जितने ख्याल यहाँ उतारने लायक आए थे, वे सारे ही जब लिखने बैठा हूँ तो उड़नछू हो चुके है। सोचता हूँ इसे यहीं समेट लू..!
शुभरात्रि।
२०/०८/२०२५
प्रिय पाठक !
अगर इस दिलायरी की ठंडी हवाओं और बरसाती बूंदों ने आपके मन को छुआ है, तो इसे अपने मित्रों तक पहुँचाइए।आपके विचार ही इस यात्रा की असली पूँजी हैं—कृपया कमेंट में अपनी अनुभूति लिखना न भूलें।"
Dilayari पढ़ते रहिए, नए पत्र सीधे आपके Inbox में आएंगे:
Subscribe via Email »
मेरे लिखे भावनात्मक ई-बुक्स पढ़ना चाहें तो यहाँ देखिए:
Read my eBooks on Dilawarsinh.com »
और Instagram पर जुड़िए उन पलों से जो पोस्ट में नहीं आते:
@manmojiiii
आपसे साझा करने को बहुत कुछ है…!!!