मुफ्त की योजनाएं, जनरल वर्ग की पीड़ा और सरकारी लाभ || दिलायरी : 02/08/2025

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मुफ़्त योजनाओं के पीछे भागती जनता और मेरा अनुभव

    तुम्हे पता है प्रियंवदा, दुनिया में मुफ्त के पीछे लोग पागल है बिलकुल.. इस में मैं भी आ गया। मैंने भी आजतक फालतू खर्चे नहीं किये, जब तक बगैर पैसो के काम चल जाए, तब तक जेब में हाथ डालना हराम है। यह बात मुझे विषैले गजे ने अनुभव करवाई..! कारण क्या है पता? मैंने जो किंडल पर बुक पब्लिश की है, वो उससे खरीदवाई थी। पहला श्री गणेश उससे करवाया है। हालाँकि आजकल उसे भी एक कीड़े ने काटा है। वह है, बुक खरीदने का कीड़ा। ५०-६० पुस्तकें इकट्ठी कर ली है उसने। बुद्धिजीवी बनता जा रहा है। उसीने मुझसे कहा, 'खुद ने तो खरीदने के बजाए, इंटरनेट छानकर फ्री की पीडीऍफ़ ही खोजी है सदैव। और खुद की बुक पब्लिश की तो दाम रखा सौ रूपये.. वाह लेखक..!'


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चूहा, झाड़ू और टूटी नींद – एक सुबह की हलचल

    प्रियंवदा ! कल की दिलायरी भी आज सवेरे पूरी की। और आज तो सुबह से सर दर्द कर रहा है। कारण भी बड़ा विचित्र है। नींद टूटी थी, यही कारण है। सवेरे पांच बजे मुझे भरनिंद्रा से जगाकर माताजी ने कहा, 'रसोई में चूहा घुसा है, निकाल उसे।' आधा जगा हुआ, और आधा अभी नींद में, मैं रसोई में झाड़ू लेकर सवेरे पांच बजे चूहा ढूंढने बैठा था। मुझे लगा था, कोई अंगूठेभर की चुहिया होगी छोटी सी। लेकिन मेरी सारी निंद्रा उड़ गयी, जब वो पैर के पंजे जितना चूहा सामने आया। एक तो इसने नींद तोड़ी, ऊपर से रसोई में इधर उधर भागे अलग से। नींद भी आ रही थी, गुस्सा भी.. खिंच के दो झाड़ू फटकारे तो चूहे महाशय एक जगह स्थिर हो गए। अब लगा, यह क्या कर दिया मैंने, सवेरे सवेरे जिव-हत्या? क्रोध, पश्चाताप, निंद्रा, सब एक साथ.. लेकिन महाशय जीवित थे, उनकी पूँछ पकड़कर घर से थोड़े दूर छोड़ आया। हाथ मुंह धोकर वापिस सोने चला गया। 


    लेकिन अब निंद्रादेवी जा चुकी थी। करवटें बदलते बदलते छह बज गए। और फिर ग्राउंड में। आज शायद पौने घंटा भागदौड़ की। प्रियंवदा! वह असमय टूटी नींद से पकड़ा हुआ सर अभी शाम के पौने पांच बजे तक दर्द कर रहा है। कल रात शाखा से आकर सो गया था, इस कारण कल की दिलायरी लिख नहीं पाया, वह भी सवेरे ऑफिस आकर ख़त्म की। दोपहर तक आज शनिवारीय काम ने घेरे रखा। और लंच में घर चला गया। एक तो अपने यहाँ सिक्स लेन रोड है, तब भी भारी ट्रैफिक जाम हो जाता है। ट्रक्स ही ट्रक्स, तीनो लेन कब्ज़ा लेते है। 


पीएम किसान सम्मान और मेरे पहले ₹2000 की कहानी

    वैसे तो मैं मानता हूँ, प्रियंवदा! कि यह सरकार जो फ्री रेवड़ियां बांटती है, वह बंद होनी चाहिए। लेकिन मुझे जब कोई सरकारी लाभ मिलता है, तो मन में तो मेरे भी लड्डू फूटते है। उसका मेरे पास एक वाजिब कारण भी है। बात अपनी पर आती है, तो हर कोई स्पष्टीकरण अवश्य देता है। मुझे भी देना पड़ेगा। ऐसा है प्रियंवदा ! सरकार साल भर में करोडो-अरबों रूपये आम जनता में फ्री बाँट देती है। आयुष्मान भारत, पीएम गरीब कल्याण, उज्वला योजना, पीएम किसान सम्मान - यह तो सीधी केंद्र द्वारा दिए जाते निशुल्क लाभ है। उसके अलावा राज्य सरकार अपनी और से 'लाड़ली बहन' जैसी योजना चलाती है। विधवा सहाय, पोषण अभियान.. वगैरह वगैरह.. ढेरों ऐसी योजनाएं है। या तो बिलकुल ही फ्री पैसे सीधे बैंक अकाउंट में आते है। या फिर सोलर और आवास योजना के तरह सब्सिडी के रूप में बांटे जाते है। 


    यह सीधा सीधा सरकार पर भार है। मैंने अभी कुछ दिनों पहले से समाचार सुने थे, कि महाराष्ट्र में १४००० पुरुष, लाड़ली बहन योजना का लाभ उठा रहे थे। मुझे लगता है, s400 एयर डिफेन्स सिस्टम जितने में आ जाए, उतना तो महाराष्ट्र में पुरुष, लाड़ली बहन का पैसा खा गए। लेकिन फिर मुझे यह भी लगता है, कि हमारे लिए यह फ्री की रेवड़ियां जरुरी भी है। क्योंकि जब नेताजी ग्रांट निगल सकते है। तो महाराष्ट्र के वे पुरुषों की क्या गलती? खेर, मैं अपनी बताता हूँ। इसी वर्ष जनवरी में, मैंने भी पीएम किसान सम्मान के लिए आवेदन किया था। प्रत्येक जमीनधारकों के लिए यह स्किम है। मेरा पूरा गाँव इस योजना का लाभ ले रहा था, सिवा मेरे। क्योंकि मैं गाँव से काफी दूर हूँ। 


फ्री की योजनाएं और समाज में वर्ग आधारित असंतुलन

    तो जनवरी में आवेदन दिया, इस योजना के लिए योग्यता साबित की मैंने। और फरवरी से लाभ मिलना शुरू भी हो गया। फरवरी में ही एक साथ दो हप्ते प्रधान मंत्री जी ने मुझे भेज दिए। पुरातन समय से भारत में सामाजिक व्यवस्था को चार भाग में बांटा गया है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र। वर्तमान व्यवस्था में भी चार ही विभाग बांटे गए है, जनरल, ओबीसी, एसटी, और एससी। हाँ ! एक ewc अलग से बनाया गया है। लेकिन है तो वे भी ज्यादातर जनरल वाले ही। खेर, एक दिन ध्यान गया सरकारी लाभों के विषय में। यहाँ एससी और एसटी को सबसे अधिक लाभ, उसके बाद ओबीसी, और सबसे कम सहाय या लाभ जनरल वालों के लिए है। 


    पहले की वर्णव्यवस्था से शूद्र दुखी थे। और वर्तमान व्यवस्था में जनरल वाले। हालाँकि जनरल वाले तब भी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे है, सरकारी नौकरी प्राप्त करने में। एक रेस में एक लड़का शूज के साथ दौड़ रहा है, और दूसरा बेड़ियों के साथ, फिर भी बेड़ियों वाला जीत रहा है। तो आज दोपहर को जब घर पहुंचा और फोन में नोटिफिकेशन आयी, तृतीय हप्ते की राशि बैंक में जमा हो जाने के संबंध में। देखो, मुफ्त में आयी धनराशि सबको प्रिय ही लगती है। और मैं सबसे अलग भी नहीं हूँ। मुझे ज्ञात है, इससे सरकार पर भार बढ़ता है। लेकिन फिर मुझे यह भी लगता है, कि जब विधायक जी, रोड, गटर, या स्ट्रीटलाइट जैसे बुनियादी काम में भी काम न आते हो। तो फिर कम से कम यह फ्री की रेवड़ियां ही सही। इससे ही अपने आसपास की जरुरत खुद पूरी कर लेंगे। 


नेताओं की नज़र से दूर, जनता की ज़रूरतों की बात

    क्या करे? सरकार को गूंगी बहरी थोड़े ही कहेंगे? और विधायक या सांसद महोदय को तो हमने कभी देखा नहीं फोटो के सिवा। पिछले कईं वर्षो से हमारे शहर की विधायक की सीट पर एस.सी. "महोदया" विराजमान है। जिन्हे मैंने आजतक रूबरू नहीं देखा। हाँ ! कभी कभार बहुत महंगी साडी पहनकर वे कोई लोक कल्याण का कार्य करवाकर फोटो खिंचवाती है, तब मेरे फोन में समाचार में उन्हें देख पाता हूँ। अरे विधायक है, उनके पास कितने काम होते है, शहर में हर जगह पानी भर जाता है, कईं जगह पर गटर छलक जाती है, कईं जगह गंदकी है, कितने सारे आवारा पशु है। वे अकेली कितना संभाल पाएगी? मैं समझ सकता हूँ।


    अपने वे कर्मठ साहब, कितने सारे नए रोड बनाते है। लेकिन जो पुराने और जर्जर हो चुके है, उन्हें वे थोड़े देखेंगे? उनके पास कितना काम है, पुरे देश में काम चल रहा है रोड्स का। विश्वस्तरीय रोड, टनल्स बन रहे है। तो क्या हो गया, अगर मैं जिस नेशनल हाइवे से चलता हूँ, वहां पिछले चार वर्षो से गड्ढे हो गए है। हम गड्ढो के किनारे से गुजर सकते है। यह गड्ढे इस लिए नहीं भरे जाते है, ताकि हमारी तेज वाहन चलाकर एक्सीडेंट से मृत्यु न हो। सड़क मंत्री जी हमारी जान बचा रहे है। हाँ कोई कोई उन गड्ढो द्वारा मृत्यु योजना का लाभ लेता है। लेकिन हम जनरल वाले है। हमे वर्तमान व्यवस्था में पीछे रखा गया है। 


क्या हमें सरकारी लाभ लेने से इनकार कर देना चाहिए?

    प्रियंवदा ! तुम्हे क्या लगता है? सरकारी लाभ त्यागने चाहिए? क्योंकि यह जो तिनसों रूपये का गैस सिलेंडर पौने नौसौ का हो चूका है, और जिस हिसाब से पेट्रोल में एथनॉल मिलाकर, पुराने इंजिन्स को बंद करवाया जा रहा है, देश विकास तो कर रहा है। कितनी सारी सहूलियतें हमे मिलती है। क्या हो गया, अगर इन सहूलियतों के लिए कुछ दिन धक्के खाने पड़ गए तो। और ज्यादा महेनत करके पैसा कमाएंगे, और सड़क के गड्ढे से हुआ गाडी का नुकसान ठीक करवा लेंगे। सरकार हमे इस देश में रहने दे रही है, नए नए कानूनों के द्वारा हमे नियंत्रित करती है, तो इतना सहयोग तो हमें करना ही चाहिए। जब वे कुछ देना चाहे, तो उसे नकारना नहीं चाहिए। है न?


    शुभरात्रि। 

    ०२/०८/२०२५

|| अस्तु ||


प्रिय पाठक !

क्या आपने भी कभी कोई सरकारी योजना का लाभ लिया है? 
या आप भी 'जनरल वर्ग' की उलझनों से जूझ रहे हैं?
अपने अनुभव नीचे ज़रूर बताएं।

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