रक्षाबंधन की दिलायरी : स्वामी, मंदिर और ‘Ex. Man’ का रहस्य
ऑफिस में ख़ामोशी और पत्ता का घूमने का न्योता
प्रियंवदा ! आज भी ऑफिस पर कोई नहीं है, लेकिन मैं बैठा हूँ। धीरे धीरे करके सारे ही सरक गए। दो दिन से पत्ता कह रहा था, चलो द्वारिका, चलो द्वारिका.. लेकिन मुझे द्वारिकाधीश का आदेश तो होना चाहिए न? कौन जा सकता है भला बगैर आदेश के। प्रधानमंत्री से भी बिना उनके आदेश नहीं मिल सकते, फिर तो यह तो राजाधिराज ब्रह्माण्ड अधिपति है। पत्ता हमारा घुमताराम है। आज यहाँ है, तो कल पता नहीं कहाँ पावेगा। कभी जयपुर, कभी मुंबई, कभी दिल्ली, तो कभी ऋषिकेश..!
बातानंद स्वामी : बोलने के महारथी
अपना एक ही ठिकाना फिक्स है। जय ऑफिस जी की। रक्षाबंधन में क्या होता है? सुबह एक राखी बंधवाई, और निकल लिए। कल रात शाखा थी, एक पुराने हमारे बातानंद स्वामी जी पधारे थे। बैठकी लगाने की काफी इच्छा थी, लेकिन गजानंद नहीं माना। पिछली बार स्वामी जी आए थे, तब मैं अपने स्वास्थ्य के चलते अनिच्छा से भी बैठा रहा था। बातानंद स्वामी वैसे तो पिछली कईं दिलायरीयों में अपना शब्द स्थान पा चुके है, लेकिन उनका नामकरण आज किया है। हालाँकि वे अब कभी कभी मिलते है, तो अगली दिलायरी तक मुझे यह नाम याद रहा तो पुनः उन्हें इसमें स्थान दिया जाएगा।
बातानंद स्वामी को बातें बड़ी पसंद है। सुननी नहीं, करनी। वे जब बोलना शुरू करते है, तो शायद फन ताना हुआ सांप भी उनकी बोली पर नाचने लगे। उन्हें बस एक इशारा चाहिए होता है, फिर तो वे इतिहास, भूगोल, अगोचर, रहस्यवाद, ब्रह्माण्ड कुछ नहीं छोड़ते। बोलने में तो हमारा गजानंद उर्फ़े विषैला गजा भी जरा घटता नहीं है। लेकिन एक बोली की एक छटा, और मेदनी को अपनी बातों में बांधे रखने में बाबा बातानंद सिद्धहस्त है। एक चिलम की मनवार कर दी, फिर तो पूरी रात वे अपने शब्दों से दुनिया डोला सकते है। काफी पुरानी पहचान है हमारे साथ। तो शाखा में किसी किसी दिन 'अलख निरंजन' कर आ धमकते है। कल भी आ चढ़े थे।
गजानंद और दिलावरसिंह के राज़ खोलने वाली शाम
लगभग ग्यारह बजे सब अपने अपने रस्ते चढ़े, और मैं और पत्ता कुछ देर चौक में बैठे रहे। धुम्रदण्डिका को पूर्ण न्याय दिया गया। थोड़ी इधर उधर की बाते की। अरे हाँ ! कल विषैले गजे ने चार पांच मित्रो के आगे पोल खोल दी, कि गंगाधर ही शक्तिमान है। यही आदमी दिलावरसिंह के नाम से अपने सारे गुप्त रहस्य खुली डायरी में चेप देता है। और तो और, बुक पब्लिश कर दी, 'दिलायरी' नाम से। हालाँकि बाबा बातानंद ने कुछ देर मजे लिए। घर पहुंचा था लगभग साढ़े ग्यारह, और फिर निंद्रदेवी का अखंड ध्यान। सवेरे, सवा छह बजे जबरदस्ती आँखे मलते हुए उठा, और मैदानी कसरतों से निवृत होकर घर लौट आया। नहाधोकर फ्रेश हुआ, अब तो कुरियर में राखियां आती है, तो माताजी ने ही बाँध दी। जगन्नाथ पर दर्शन किए।
रक्षाबंधन की सुबह और जगन्नाथ के दर्शन
इस बार जगन्नाथ के पंडित ने राखियां बांधने का प्रोग्राम नहीं रखा था। पंडितों को आशा होती है, राखी बांधकर कुछ धनप्राप्ति की। लेकिन लोग ज्यादा श्रद्धा भगवन पर रखते है। पिछली बार तो पंडित जी ने बाँध दी थी। ऑफिस पहुंचा लगभग नौ बजे। काम तो था, मशीने बंद थी फिर भी। काफी हिसाब किताब निपटाने थे। दोपहर एक कैसे बजा कुछ पता न चला। रक्षाबंधन भी आयी और गयी। अब अगले शनिवार जन्माष्टमी है। दो बजे घर से फोन आया, कि 'क्या नौकरी नौकरी लगा रखी है। कभी घुमाने भी ले जाया करो।' फिर सोचा बात तो सही है। तुरंत घर के लिए निकला, घर से कार उठायी, और पास की एक और तहसील में प्रसिद्द स्वामीनारायण मंदिर में हिंडोला बनाए जाते है, वही दिखाने ले गया। मेरे यहाँ मात्र दस किलोमीटर के अंतराल में दो तहसील है। एक प्राचीन नगर है, एक औद्योगिक।
परिवार संग स्वामीनारायण मंदिर का हिंडोला दर्शन
वैसे तो मुझे यह स्वामीनारायण संप्रदाय जरा पसंद नहीं। क्योंकि मैं मानता हूँ, पुराणों में उल्लेख है, वे ही देव है, यह बाकी जो धर्मप्रचारक अब भगवन बन गए है, मुझे उन में विश्वास नहीं। आस्तिकता नहीं, वैसे ही नास्तिकता भी नहीं। हाँ ! उनके धर्म संस्थापन के कर्तव्य को नमन। लेकिन मैं उन्हें ईश्वर या ईश्वरावतार कैसे मान लूँ? खेर, स्वामीनारायण सम्प्रदाय की क्षतियाँ मैं अपनी पुरानी दिलायरी में लिख चूका हूँ। (यहाँ पढ़िए) लेकिन यह संप्रदाय मंदिरों का निर्माण बहुत बढ़िया करते है। दुबई में भी यही संप्रदाय मंदिर बना रहा है। शायद विश्व का सबसे बड़ा मंदिर होगा वह। इनके मंदिरों की खासियत है, शिल्पकाम। पत्थरों पर बहुत सुन्दर शिल्पकार्य स्वामीनारायण संप्रदाय के मंदिरो में होता है। जन्माष्टमी से पूर्व यह लोग हिंडोला बनाते है। हिंडोला का हिंदी मुझे नहीं मालुम.. हाँ ! पालना कह सकते है।
मंदिर का शिल्प, रंगीन रोशनी और विशेष प्रदर्शनी
छोटे बच्चों के लिए पालना होता है झूले वाला, वैसा ही। लेकिन यह उनके आराध्य घनश्याम - सहजानंद स्वामी के लिए बनाते है। और बहुत सुन्दर बनाते है। पौने तीन बजे मैं परिवार के साथ पहुंच गया था। लेकिन पता चला अभी कपाट बंद है। तीन बजे खुलेंगे। पंद्रह मिनिट इधर उधर टहलते निकल गयी। कुंवरुभा खूब प्रसन्न थे। मंदिर में तो अलग अलग स्वामियों की मूर्तियां गर्भगृह में स्थापित थी। मैं राधाकृष्ण को प्रणाम कर, आगे निकल गया। एक सभामंडप में रंगबिरंगी रौशनी, क्रिएटिविटी, और भी बहुत कुछ प्रदर्शनी में बना रखा था। ऑपेरशन सिन्दूर का मिनिएचर बनाया गया था। उसके आगे रुई से बने बहुत बड़े बड़े बादलों में स्वामीनारायण संप्रदाय के आराध्य सहजानंद स्वामी की विशाल प्रतिमा स्थापित की हुई थी, लगता था जैसे स्वर्ग में बैठे हो।
एक बहुत अच्छी आदियोगी की प्रतिमा थी। वहां कुँवरुभा की कुछ फोटोग्राफी कर, हम निकल पड़े। मैं ऑनड्यूटी ही आया था। हालाँकि मिल तो बंद थी, काम तो कुछ ख़ास था नहीं। लेकिन फिर भी ऑनड्यूटी तो ऑनड्यूटी होती है। पांच बजे वापिस ऑफिस लौट आया। फ़िलहाल भी काम तो कुछ ख़ास है नहीं, लेकिन बैठा हूँ, दिलायरी लिखते हुए।
अरे हाँ ! एक विचित्र बात और सुनो लगे आँख..! लगेहाथ क्यों कहते है हम लोग? फ़िलहाल जो पढ़ रहा है, वह तो स्क्रीन पर नजरें गड़ाए होगा, इस लिए लगे आँख होना चाहिए। खेर, हम लोग वाहनों पर तरह तरह की चीजें लिखवाते है। ट्रक वाले तो प्रख्यात है 'बेवफा सनम' की शायरियों के लिए। धीरे धीरे कुछ ट्रक वाले उन शायरियों में भी क्रिएटिविटी दिखाने लगे। उन्हें देखकर ही शायद रिक्शा वाले भी कुछ न कुछ उटपटांग लिखवाने लगे। कार थोड़ी परसनल चीज है, तो उसपर आदमी फ़ालतू बातें नहीं लिखवाता, लेकिन अपनी पहचान जरूर से जाहिर करता है। या तो जाति लिखी होगी। या फिर किसी देव-देवी का नाम। अब तो इंस्टाग्राम हैंडल, और यूट्यूब चैनल का नाम भी लिखवाते है।
‘Ex. Man’ का रहस्यमय स्टीकर — सेना, सिनेमा या कुछ और?
मैंने एक कार पर लिखा देखा, 'Ex. Man'.. अब मैं परेशान हूँ कि क्या यह अकेला हम सब से ज्यादा उत्क्रांति कर गया है क्या? एक्स मैन का मतलब तो यही होता है कि 'भूतपूर्व आदमी' किसका आदमी? अपनी औरत का? मतलब उसने डाइवोर्स लेकर अपनी कार पर लिखवाया होगा, 'पूर्व पति'.. ऐसा थोड़ा हो सकता है? हालाँकि वह व्यक्ति जरूर सेना निवृत होगा। लेकिन ज्यादातर लोग एक्स आर्मी, या एक्स पुलिस लिखवाते है। यह एक्स मैन पढ़कर थोड़ा विचित्र जरूर लगा। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि वह हॉलीवुड मूवी x man का फैन रहा हो। और रेडियम स्टीकर वाले ने गलती से एक्स्ट्रा e जोड़ दिया हो आगे..! जो भी हो.. पढ़कर लगता है, जैसे पूर्वकाल में वह पुरुष था, अब पुरुषत्व से आगे बढ़ गया है।
चलो फिर प्रियंवदा ! अब विदा दो।
शुभरात्रि।
०९/०८/२०२५
|| अस्तु ||
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