सोलर पैनल से जुआ तक: रविवार की दिलचस्प दास्तान | Gujarati Life Diary | मोज़रेला चीज़ और गेम्स || दिलायरी : 10/08/2025

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रविवार का आलसी लेकिन घटनाओं से भरा दिन

    आज कुछ भी लिखने को मन नही कर रहा प्रियंवदा! सुबह से बिल्कुल ही खाली दिन निकल गया। सवेरे ऑफिस तो नियत समय पर ही पहुंच गया था। लेकिन मैं ही अकेला हूँ, जिसे ऑफिस से मोहब्बत है। रविवार को कुछ कम ही काम होता है, फिर भी तीन तो बज ही जाते है। आज पता नही कैसे, लेकिन दोपहर को नींद आ गयी, और चार बजे आंखे खुली। आंखे खुलने का कारण भी कोई आम नही था, कुँवरुभा ने सीधे मेरे पेट पर छलांग लगा दी थी। फिर तो डर के मारे भी नींद न लौट पाई। और मैं निकल पड़ा मार्किट, बाइक धुलवाने। तभी सोलर वाले का फोन आया कि मैं घर देख लू तो अंदाज आ जाए। हाँ! सोलर तय कर दी है। जरूरी डाक्यूमेंट्स उसे सुबह देने है।


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घर की छत पर सोलर पैनल का सपना

    देश के सबसे अमीर आदमी की कम्पनी की सोलर पैनल्स तय की है। क्योंकि उस के अनुसार वही लेटेस्ट टेक्नॉलॉजी है। और कुछ ही समय मे यह पैनल्स भी आउटडेटेड हो जाएगी, क्योंकि इस क्षेत्र में हररोज कुछ नई शोध हो रही है। मैंने इस बारे में डीप खोजबीन की नही है, लेकिन मार्किट में टाटा, अडानी, वारी और कुछ ऑस्ट्रेलियन ब्रांड्स बहुत चलते है। खेर, शहरी मकान की छोटी सी छत भी सोलर पैनल्स रोक लेगी। वैसे छत तो बड़ी है। बीच मे प्लान था कि ऊपर एक रूम का कंस्ट्रक्शन करवा लू। ताकि उसके ऊपर सोलर पैनल्स भी आ जाए, और सेफ भी हो जाए, लेकिन फिर कुछ ज्यादा ही इन्वेस्टमेंट हो जाता। फिर प्लान बदल दिया कि बाद में देखेंगे। फिर प्लान पलट दिया कि सीधे ही छत पर लगवा देते है। अपने यहां एक बात फिक्स्ड है प्रियंवदा, किसी कार्य के बार बार प्लान न बदलें तो वह होता ही नही है। मैंने कितने ही एस्टिमेट्स लिए, कितने ही लंचटाइम और बाइक का तेल जलाया, ताकि एक अच्छी ऑफर और प्लान गढ़ सकूं।


जुए के दांव और महाभारत की सीख

    प्रियंवदा, तुमने कभी जुआ खेला है? हाँ ! जानता हूँ, गलत है। गैरकानूनी भी। लेकिन घर-फेमिली में खेल सकते है टाइम-पास हेतु। जुए का एक नियम सदा से शाश्वत है। हारा हुआ खिलाड़ी दुगना खेलता है। उसे लगता है कि बस इस बाजी में तो सारा खोया हुआ वापिस कर लूंगा। जैसे धर्मराज ने अपनी तमाम मालिकाना संपत्ति लगा दी थी। यहां तक कि पत्नी भी। फिर मैं सोचता हूँ, कि पत्नी पर भी मालिकाना हक़ होता है, तो उसे अर्धांग क्यों मानना? वामा कहते है, हमेशा वाम पक्ष का स्थान होता है उसका, फिर उसे लेफ्टिस्ट विचारधारा का जनक मानना चाहिए? वैसे यह बात भी भली है, वामपंथी भी नूतनता चाहते है, बदलाव चाहते है। और पत्नी भी.. उसे भी घर मे कुछ नयापन ही चाहिए होता है। कभी दीवारों पर टंगी तस्वीरों में बदलाव मिलता है, कभी छत से लटकते झूमरों में, तो कभी तो दीवारों के रंग में भी बदलाव का मुख्य कारण यह पत्नी ही होती है। कभी इन्हें बाहर खाना होता है, तो कभी बाहरी खानों से मेल खाते, नए प्रकार के पकवान घर मे बनाने के लिए, चीज़ के सत्रह प्रकारों में से कोई अटपटा प्रकार चाहिए होता है। 


मोज़रेला चीज़ और पिज़्ज़ा का प्रयोग

    मुझे पहली बार पता चला, कि एक चीज़ आता है, जिसका नाम है 'मोज़रेला चीज़'। एक तो नाम ही इसका कितना डरावना लगता है। जैसे गॉडजिला..! खेर, मैं पहुंचा एक दुकान पर, उससे पूछा चीज़ दे। उसने मेनुकार्ड दिया, तरह तरह के चीज़ के नाम थे उसमे। चेडर, गोदा, फेटा, एडाम, मांचेगो, प्रोवोलोन, बुर्राटा, फॉण्टीना, मोज़रेल्ला.. ऐसे ऐसे नाम तो मैंने पढ़े ही पहली बार थे। लेकिन मुझे इतना तो पता था, कि मुझे चाहिए उसका नाम है मोज़रेल्ला..! तो मैंने दुकानदार से कहा 'यह वाला..' तो उसने उल्टा पूछा, स्लाइस चाहिए या दानेदार? अब यह तो वही बात हो गयी प्रियंवदा कि मूंगदाल में छिलके वाली या बिना छिलके वाली? घर वाले एक्सपेरिमेंट कर रहे थे पिज़्ज़ा बनाने की, तो स्लाइस तो उसमें चलती नही, दाने वाला ही ले लिया। अटपटा तो अटपटा लेकिन ज्ञानप्राप्ति तो हुई प्रियंवदा, कि चीज़ का भी एक पूरा खानदान है। उसकी भी एक अलग दुनिया, और महत्ता है। बात जुए की कर रहे थे न अपन? तो धर्मराज ने जब जुए में पीछे हट नही की, तो भला मैं तो न धर्मी हूँ, न ही अधर्मी। कल रात घर मे ही टाइम पास के लिए खेलते खेलते पूरे बाइस रुपये हार गया मैं।


जुआ – एक बुरी लत और समाज की सच्चाई

    मजेदार बात क्या है प्रियम्वदा पता है तुम्हे? अक्सर इन जुआरियों में एक खासियत होती है, अपने चेहरे के भाव को नियंत्रण करने की। दूसरी खास बात, यह चाल ऐसे चलेंगे, जैसे इनके पास तो बहुत सामान्य पत्ते है। तीसरी बात सामने वाले प्रतिद्वंद्वी को बहुत उकसाएंगे। जैसे खुद हारने वाले हो, ऐसा प्रतीत करवाते है। और फिर धीरे से जब 'शो' किया जाता है तो तीन इक्के निकालते है। और सारा धन बटोर जाते है। मुझे जुए से सख्त नफरत है। बाहर कभी खेलने नही गया, और न ही देखने भी। लेकिन घर मे जब टाइम-पास करना हो तो खेल लेता हूँ। यदि हारता भी हूँ तो माताजी ही जीतेंगी। तो कल पूरे बाइस रुपये हारने के बाद अहसास हुआ कि जुआ कितनी बुरी बला है। जिसने धर्मराज जैसे पुण्यात्मा को नही बख्शा तो मैं क्या हूँ? खेर, रात्रि के ग्यारह बजे तक बाइस रुपये हारने के बाद मेरे पास सिवा पश्चाताप के सोने के कोई विकल्प न था। आदमी अंत मे सदा ही थक हारकर सो जाता है, यह सर्वविदित कहानियों का अंत होता है, या तो अल्पविराम।


    गुजरात मे पता नही किस गधे ने यह अफवाह फैला दी थी कि सावन में जुआ खेलने ही चाहिए, इससे वर्ष का भार उतर जाता है। पता नही ऐसा कौनसा भार है, जो यह सावन का जुआ उतार देता है। लोग खूब खेलते है, और लोग खूब पकड़े जाते है। प्रतिदिन एक खबर आती है। आज पुलिसवालों ने इतने पकड़े..! फिर भी हररोज लोग खेलते है। होटल से लेकर गांव के खेतों से पकड़े जाते है। एक रुपये वाली बाजी से लेकर लाखों तक के खिलाड़ी धर लिए जाते है। खबरें ऐसी भी आती है कि किसीने अपनी कार दाव में लगा दी, तो किसी ने गले का हार.. सोने की चेन, या अंगूठी तो आम बात है.. लेकिन कभी रूबरू देखने का सौभाग्य प्राप्त न हुआ। हालांकि रूबरू खेलते लोगो को देखना भी गुनाह है। क्योंकि पुलिस वाले तो खिलाड़ियों के साथ बैठे हुए लोगों को भी उठा लेती है। जरूरी भी है। जुआ सब कुछ तबाह कर देता है, क्योंकि जुआ महाभारत का जनक है। उस दिन धर्मराज नही खेलते तो महाभारत नहीं होती। 


    सौ बात की एक बात जुआ बुरी चीज है, है और है ही। 

    शुभरात्रि।

    १०/०८/२०२५

|| अस्तु ||


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