बारिश, ठंडी हवाएँ और छत पर पौधों की कहानियाँ || दिलायरी : 06/09/2025

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बारिश और बिजली का किस्सा

    प्रियंवदा ! कल बहुत बढ़िया बारिश हुई है। मौसम इतना ठंडा हो गया था, कि चद्दर ओढ़नी पड़े। एक तो यह इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड वाले भी मस्त आदमी है। कितना ध्यान रखते है। रात में सब सोए हुए हो, तब लाइट भी काट देते है, ताकि किसी को बारिश के पानी में शॉक न लगे। इन्वर्टर के कारण मुझे तो सवेरे पता चला कि रातभर लाइट थी नहीं। यह इन्वर्टर भी कितना सही अविष्कार है प्रियंवदा। आपकी नींद में इलेक्ट्रिसिटी भी खलल नहीं पहुंचा सकती। जिनके पास न हो, वे रातभर मच्छरों के साथ अंताक्षरी खेलते हुए, विद्युत कर्मियों को गालियां देते होंगे। मेरी ओर से तो अब गाली से मुक्त हो चुके है वे।


बारिश के बाद छत पर पौधे – दिलायरी 06 सितम्बर 2025"

ऑफिस में कुत्ते का आगमन और पुष्पा की व्यस्तता

    लो, अभी अभी एक मजेदार बात हो गयी, वह पहले लिख देता हूँ। अभी भी बारिश जारी है, और ऑफिस में कुछ काम नहीं होने से, मैं अपनी केबिन में दिलायरी लिख रहा हूँ, और बाहरी डेस्क पर पुष्पा कानों में ब्लूटूथ लगाए रीलें देख रहा है। एक कालिया कुत्ता ऑफिस में आया, पुष्पा के बाजू में चक्कर काटकर चला गया, उसे पता भी न चला। ऑफिस के अंदर मैं अपनी केबिन में से कुत्ता देखकर परेशां हो गया। कुत्ते को एक लात रसीद की। और फिर पुष्पा के समझाया, कि आदमी को इतना भी व्यस्त नहीं हो जाना चाहिए, कि कुत्ता भी सूंघकर मुंह निचा कर चला जाए। बेचारा कुछ खाने आया होगा। लात खाकर गया। 


सुबह की ठंड और छत पर पौधों की हालत

    सवेरे आज छह बजे जाग गया था, क्योंकि ठण्ड लग रही थी। आसमान में तो अभी तक अँधेरा ही था। लेकिन फिर वापिस सोया नहीं गया मुझसे। तो सोचा ग्राउंड में चल पड़ा जाए। लेकिन बूंदा-बांदी जारी थी। तो छत पर ही वर्कआउट कर लेने की सोची। छत पर पहुंचा तो मेरे सारे पौधे सोये पड़े थे। सच में सोये हुए थे। गेंदा तो सोते सोते जमीन तक छु रहा था। गुड़हल बस एकाध सेंटीमीटर छत से ऊँचा सोया हुआ था। लिटरली पौधों को मैंने जगाया, "सुबह हो गयी मामू" कहकर। रात में बारिश के साथ साथ खूब हवा भी चली थी। तो सारे पौधे वर्टिकल से हॉरिजॉन्टल हो गए थे। आम.. उसकी तो कहूँ.. वो तो बेचारा गमला कहीं ओर, गुठली कहीं ओर, और पौधा कहीं ओर.. उसका तो काम तमाम ही मान लिए मैंने। फिर भी पौधे को एक गमले में फिर से लगाया तो है, लेकिन अपनी आत्मा से अलग हो चूका था वह। 


गिरे पौधों को संभालना और छत पर कसरत

    सारे गमले पानी से लबालब भरे पड़े थे, पहले तो वह पानी खाली किया। जितने पौधे गिर गए थे, उन्हें वापिस खड़ा किया, और लकड़ियों का सहारा दिया। गमलों के बिच की दूरियां कम कर दी, ताकि हवाओं में एक दूसरे के सहारे टिक पाए। ग्राउंड तो जाना न हो पाया, छत पर ही कुछ कसरतें कर ली। घर में आया, तो सोफे पर कल वाली बन्दूक पड़ी मिली। तो मैंने उसमे एक तीली लगाकर फायर किया। कुँवरुभा नींद से उठकर दौड़े आए, "माली बन्दूक केम फोली?" मुझसे छीनकर सोफे पर बैठे बैठे ही झपकियां लेने लगे। तो उन्हें उनकी अमानत सौंप कर मैं वापिस छत पर चला आया। कुछ देर फिर यूँही छत पर टहलता रहा। 


ठंडे पानी से नहाने के नुस्खे

    वैसे छत पर टहलते रहना मेरी मजबूरी भी थी। वो क्या है, अपन को जरा पानी ठंडा ज्यादा लगता है। और अपन थोड़ा डरते भी है माताजी के सामने गरम पानी मांगने से। पता नहीं, उनको कैसे पानी ठंडा नहीं लगता है। ना ही हुकुम को लगता है। बचपन से सुनता आ रहा हूँ, नहाने के लिए अगर पानी ठंडा लगे तो, पहले थोड़ा सा पानी मुँह में भर लो, और फिर नाहा लो, ठंडा नहीं लगेगा। हालाँकि यह ठण्ड से मन हटाने का नुस्खा मात्र था, वह भी बेकार.. क्योंकि पानी तब भी ठंडा तो लगता ही है। एक और नुस्खा बताया गया, नहाने से पूर्व पानी को चुपड़ लो.. मतलब अंजुली में पानी भरकर पहले मुंह पर पावडर की तरह पानी मल लो.. फिर नहाओ तो ठंडा नहीं लगेगा। यह तरकीब थोड़ी असरदार है। क्योंकि यही मुझे आखरी नुस्खा आता है। 


ऑफिस का काम और ऑनलाइन शॉपिंग

    खेर, ऑफिस पहुंचकर पहला काम होता है दिलायरी पब्लिश करना। आजकल मन बहलाने YQ पर बुरे से बुरा कोलाब कर रहा हूँ। और भी लोग जुड़ते है। तो काफी देर में हो-हल्ला मच जाता है। मजेदार हो-हल्ला। आज और कुछ काम नहीं था, तो एक खर्चा ही कर लिया। सवेरे छत पर टहलते हुए फ्लिपकार्ट पर भी टहल रहा था। क्योंकि कईं दिनों से गमले मेरी नजर में थे। वो क्या है, अपन थोड़े आलसी भी है। यहाँ पास ही मिट्टी के बढ़िया गमले मिलते है, लेकिन लेने कौन जाए? लेकर कैसे आएं? बाइक पर तो आएँगे नहीं। गाडी लेकर चला तो जाऊं, लेकिन अभी ही धुलवाई है। फिर से कीचड़ वाली हो जाएगी.. ऐसे कईं सारे बहाने दिमाग में तैरने लगते है। तो ऑनलाइन ही सही, मिट्टी के ना सही, प्लास्टिक के ही सही.. सोचकर आर्डर कर दिए। 


प्लास्टिक गमले और वाछटीया बाइक का जिक्र

    वैसे प्लास्टिक के गमलों में पौधे अभी तो मौज करेंगे, लेकिन गर्मियों में प्लास्टिक खुद भी गर्म हो जाता है, तो पौधे की जड़ों को भी गर्म कर देता है। लेकिन फ़िलहाल तो गर्मिया काफी दूर है। साथ ही एक चीज और आर्डर कर दी। वो था बाइक का चैन ल्यूब और चैन क्लीनर। अपना वाछटीया ना-ना करते भी डेढ़ साल का हो गया। लाया तब से उतना का उतना ही है। लेकिन अब खर्चे मांगता है। वाछटीया नाम से मेरी बाइक को संबोधित करता हूँ। वाछटीया गुजराती शब्द है। अश्व के लिए प्रायोजित होता है। वा माने पवन, हवा, और छटीया मतलब जो छांट देता है। हवा को छांट ले वह वाछटीया, घोड़े हवा को चीरते हुए भागते थे। जो बड़े स्फुर्तीले और तेजवान हो, उन्हें वाछटीया घोडा कहते थे। वाछटीया एक विशेषण है।


बाइक की देखभाल और ढाई हजार का चुना

    तो अपन ठहरे कुछ ज्यादा ही आकर्षण के आराधक। इस बाइक के आकर्षण में कुछ यूँ डूबे.. कि प्रत्येक रविवार को वाशिंग सेंटरों में अपनी बाइक खड़ी मिलती। लेकिन कईं बार ऐसा भी होता था, कि बाइक वाशिंग के बाद बाइक की चैन आयल नहीं हो पाती। सूखी चैन चलाते रहने के कारण चैन के साथ साथ चक्कर (चैन सॉकेट) भी बोल गया। जिस बाइक में ओपन चैन आती है, उसमे विशेष ध्यान रखना पड़ता है। क्योंकि खुली चैन पर धूल, मिट्टी, कीचड़.. सब कुछ ही लगता है। और इन्हे प्रतिदिन, या एक दिन छोड़कर एक साफ़-सूफ करना पड़ता है। अपन यह साफ़-सफाई वाला मुख्य मुद्दा भूल चुके थे। तो बस, ढाई-हजार का चुना..! अब आगे से यह ध्यान रखने वाली बातो की पूर्वतैयारी अनुसार ही, मैने वह चैन ल्यूब और क्लीनर भी मंगवा लिए है। 


मैदे से भरे हफ्ते का समापन

    दोपहर को मैंने पुष्पा से कहा, इस सप्ताह हमने मैदे की खूब साधना की है। खूब आराधना की है। सोमवार से ही मैदे के बने पिज़्ज़ा से यह परंपरा चालु कर दी थी, तो बीते कल छोले भटूरे तक मैदा ही मैदा.. मैदा मैदान मार चूका है। तो आज के दिन मैदे को दरकिनार करते है। और ककड़ी का सेवन करते है। लेकिन वह नहीं माना। बोला, नहीं, थोड़ा भारी होना चाहिए। तो हम पास के ही एक ढाबे पर चल पड़े। भरपूर खड़े मसलों युक्त 'दाल-तड़का, तवा रोटी, और जीरा राइस' को कंठ की स्वरपेटी तक ठूंस आए। चावल भी यूँ तो पेट में जाकर फूलता है। लेकिन मैंने कुछ देर चलते रहकर चावल को बैठा दिया। 


    फ़िलहाल चार बजे से एकदम घुप्प अँधेरा हो गया था, और अभी भी बारिश बरस रही है। कल ही मैं फरियाद कर रहा था, कि बारिश झम के बरसती है, रिमझिम नहीं बरसती। तो आज चार से लेकर पांच झमकर बरसी। और अभी साढ़े सात बजने को आए, रिमझिम चालु ही है। मौसम बिलकुल ठंडा हो चूका है। प्यासियों की तलब को जागृत कर देने वाला ठंडा मौसम। और प्रेमियों को अटखेलियां करवाने वाला मौसम.. अपन ना प्यासी है, न ही प्रेमी.. तो अपन की और से तो बस, 


    शुभरात्रि। 

    ०६/०९/२०२५

|| अस्तु ||


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