YQ की यादें और ब्लॉगर का सफर || दिलायरी डायरी : 10/09/2025

0

YQ पर बिताए सुनहरे दिन

    प्रियंवदा ! आज का दिन काफी ठीक रहा। उसका एक मात्र कारण यही है, कि लगभग दिन मैंने yq पर बिताया है। सवेरे से लेकर शाम तक। हाँ ! बिच बिच में अपने ऑफिस के कामों को न्याय देता रहा हूँ, लेकिन अधिकांश ध्यान तो yq पर ही था..! लेकिन सच कहूं तो उन पुराने मित्रों की काफी याद आयी। वे दिन नहीं, दौर था पूरा.. वाह-वाही लूटने का एक समयखण्ड..! गुजराती में वनवे पूरा घेर रखा था, हम लोगो ने ही.. उस समय कभी ख्याल भी नहीं था मेरे मन में, कि एक दिन मैं भी नियमित डायरी लिखूंगा। क्योंकि जब आप एक निश्चित दायरे में व्यस्त रहने लगते हो, तो फिर उस घेरे से बाहर निकलने का ख्याल तक नहीं आता। 


"YourQuote पर लिखने की यादें और Dilayari Diary"

    आज से मेरा ऑफिस आने का रूट भी थोड़ा चेंज हो गया। सवेरे जागकर वही ग्राउंड में थोड़ी भागदौड़, फिर नौकरी की भागदौड़, रात को भोजन पचाने की भागदौड़, और फिर सो जाओ। सुबह से वही कंटीन्यू.. भागदौड़ ही परम सत्य है, हम जीवन जीते है, यह अपने आप में एक अवधारणा है। खेर, सवेरे कुँवरुभा को उनके स्कूल छोड़ा। फिर चल पड़ा जगन्नाथ जी के मंदिर, वहां से लौटकर घर। अपना बैग, हेलमेट उठाकर फिर दूकान। क्या करूँ प्रियंवदा, जैसे तुम्हारी याद आती है, वैसे ही धुम्रदण्डिका भी.. शिड्यूल वही है, बस रूट इधर-उधर हो गया। 


ब्लॉगर तक का सफर

    ऑफिस आकर, पहला काम आजकल दिलायरी को मठारकर पब्लिश करना होता है.. लेकिन आज ऑफिस पहुँचने से पूर्व ही ऑफिस के कामों ने मेरे फोन को घेर लिया था। ऐसे ही कुछ पल-दो-पल का समय मिला तो, YQ नगरी पर चल पड़ा। आज उधर सवेरे सवेरे टेस्टीबांटो अभियान छिड़ा हुआ था। मैं भी जुड़ गया उस अभियान में। 3 टेस्टी बाँट दिए मैंने भी। और फिर बाकी का समय उनपर आती कमैंट्स में होती बातों में बीत गया। सच में, पुराना दौर याद आ गया। YQ बंद हो रहा था, उस दिन मैंने अपने सारे ही मित्र, जिन्हे मैं अचूक पढता था, उन सब को याद कर कर के मैंने टेस्टीमोनियल लिखे थे। YQ तो बंद न हुआ, उसने प्रीमियम प्लान पर चालू रखा, लेकिन मैंने, और मेरे जैसे कईं सारे और मित्रो ने YQ छोड़ दिया। 


    उसके बाद से वह जो भावनाओं का घिराव था, वह टूट गया। कविताएं छूट गयी। शब्द साथ छोड़ गए। मैं भी इंस्टाग्राम और ब्लॉगर पर आ गया। अब तो ब्लॉगर पर भी तीन साल हो गए। ब्लॉगर से एक परमेनन्ट वेब-एड्रेस तक पहुँच गया। लेकिन जब भी पीछे मुड़कर देखता हूँ, कभी कभी अपने अनंत उपनाम को पढता हूँ, या उस मनमौजी का परिवेश धारण करता हूँ, तब इस दिलावरसिंह को बहुत ज्यादा अकेला पाता हूँ। इस अकेलेपन को मैंने ही स्वीकारा था। यह खलता है, जब किसी दिन यूँही YQ पर टहलने निकलता हूँ। क्योंकि नए लोगो से घुलना-मिलना, मुझे अभी तक नहीं आता। 


    YQ के ही एक मित्र, जो बाद में इंस्टाग्राम पर भी जुड़े, उन्होंने व्हाट्सप्प पर एक ग्रुप बनाया, मुझे भी एड किया। वहां सब लोग नए है। वे लोग शाम तक हजारों मैसेजिस की रेल लगाते है। लेकिन मैं नहीं घुल-मिल पाता। शुरुआत से यह समस्या रही है, नए लोगो से नजदीकियां न बढ़ाने की। खेर, आजकल दोपहर को ऑफिस में ही लंच कर लेते है। पक्का पता है, इससे शरीर में मोटापा और बढ़ेगा। लेकिन बाहरी फ़ूड पैकेट्स से तो यह अच्छा ही है। कब शाम ढल गयी, अंधेरा हो गया, कुछ भी नही पता। जैसा दिन गया है, पुरानी यादों भरा, वैसी ही रात हुई है यादों भरी..!


दोस्तों की यादें और गजे की बातें

    ग्राउंड में कुछ देर टहलने के बाद एक जगह बैठकर, yq पर सबको रिप्लाई दे रहा था। तभी गजा आया। और हम रूबरू बैठकर भी पुरानी यादों में चल पड़े। हमारी यादें भी एक सी है.. क्योंकि बचपन भी एक सा था, एक साथ था। उन दिनों में हुए वे तमाम झगड़े गजे को अक्षरसः याद है, वह सुनाता रहा, और मैं उन्हें याद करने की कोशिश। मुझे याद नही रहता। हाँ, कुछ झगड़ों में मैं भावनात्मक रूप से जुड़ा था, वे मुझे याद है। जहां मेरी खुदकी, या हमारे ग्रुप की मेटर नही थी, वे मुझे याद नही। पहले खूब झगड़े होते थे। वैसे झगड़े तो अब मैं देख, क्या सुन भी नही रहा हूँ, हमारे इस विस्तार में। तभी मैंने बात को मोड़ दी, और फिर गजा मुड़ गया, रूपललनाओ की बातों में। किशोरावस्था से यौवन में प्रवेश कर रहे थे हम। तो वह आकर्षण से अनभिज्ञ कैसे रहते। और हमारे यहां तो तब भी देशभर की प्रजा आयी बसी थी। गुजराती के 'रहेवा दो' से ज्यादा 'रहने दीजिए' हमे लुभावना लगता था। उस समय तो किसके तार कहाँ फिट है, और किसके तार हाई वोल्टेज में है, वह सब बातें ही प्रमुख मुद्दा थी। 


    इन्ही तारों में होती उलझनों भरा, गजे ने एक रसप्रद वाकिया याद दिला दिया.. लेकिन वह फिर कभी। फिलहाल ग्यारह बजे चुके है। सवेरे जल्दी उठना होता है। मोटा कसरत के प्रति थोड़ा जागरूक बनने की फिराक में है। तो उसे इस आशंका में रहने देना चाहिए। कि समंदर से लौटा भर लेने से समंदर में लौटाभर पानी वास्तव में कम हो जाता है।


    शुभरात्रि

    १०/०९/२०२५

|| अस्तु ||

प्रिय पाठक !

"शब्दों का ये सफर अकेले का नहीं, हम सबका है। अगर आप भी लिखते हैं, तो अपनी लिखावट मुझे ज़रूर साझा करें।"

Dilayari पढ़ते रहिए, नए पत्र सीधे आपके Inbox में आएंगे:
Subscribe via Email »

मेरे लिखे भावनात्मक ई-बुक्स पढ़ना चाहें तो यहाँ देखिए:
Read my eBooks on Dilawarsinh.com »

और Instagram पर जुड़िए उन पलों से जो पोस्ट में नहीं आते:
@manmojiiii

आपसे साझा करने को बहुत कुछ है…!!!


और भी पढ़ें :



#DilayariDiary #YourQuoteMemories #BloggingJourney #DailyDiary #GujaratiWriters #DilawarsinhWrites

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)