कलम का वक्त: रात 11:59
रात एक बजे तक करवटें बदलते-बदलते नींद गायब रही। ऐसे समय में मुझे किताब पढ़ना अच्छा लगता है—कुछ पन्ने पढ़ते ही नींद धीरे-धीरे उतर आती है।
ऑफिस और घर की दोहरी जिम्मेदारियाँ
शनिवार का दिन वैसे ही व्यस्त रहा। ऑफिस में इतना काम था कि मोबाइल तक देखने का वक्त नहीं मिला। घर पर श्राद्ध का निमंत्रण भी दिया हुआ था और उसी बीच ऑफिस में बैंक ऑडिट की तैयारी ने तनाव और बढ़ा दिया।
दोपहर को घर लौटकर सिर्फ तीन बजे तक रुक पाया और फिर सीधा ऑफिस की ओर। तेज धूप और लगातार दौड़भाग ने पूरा दिन थका देने वाला बना दिया।
दीपावली ट्रिप पर संशय
प्रियंवदा! ऑफिस का यह घेरा अब इस कदर बढ़ गया है कि लग रहा है, दीपावली पर घूमने जाने का प्लान अधूरा रह सकता है। शायद कुछ जगहों को कम करना पड़े या फिर पूरी यात्रा ही टालनी पड़े। वजह यह है कि मैं और पुष्पा, दोनों को साथ जाना था और ऑफिस की जिम्मेदारियाँ पीछे छोड़ना आसान नहीं दिख रहा।
थका मन और खाली शब्द
|| अस्तु ||
प्रिय पाठक !
“आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि ऑफिस और घर की जिम्मेदारियों ने किसी यात्रा का सपना अधूरा छोड़ दिया हो? अपने अनुभव कमेंट में ज़रूर साझा करें।”🌿