पैदल यात्रा, सेवा कैंप और नवरात्रि की तैयारी : एक अनुभव || दिलायरी : 21/09/2025

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पैरों के दर्द और नींद की कमी से हुई शुरुआत

    बहुत सालों बाद मेरे पैर के तलवे दर्द कर रहे है। रात का एक बज रहा है। और अनिंद्रा के कारण सोचा यही दिलायरी ही लिख लू। पिछले दो दिनों से रात एक बजे के बाद ही नींद आ रही है। और सवेरे इसी कारणवश सात बजे ही जाग पाता हूँ। वह भी जबरदस्ती। सात बजे उठकर तैयार होकर, नौ बजे ही ऑफिस आ पहुंचा था। आजकल इतनी ज्यादा व्यस्तता है, कि दिलायरी लिखने का समय तो दूर, मन भी नही करता है। दूसरे दिन जैसे तैसे कर लिख लेता हूँ। तो बीते कल की दिलायरी आज सवेरे ऑफिस पहुंचकर लिखी। लिखने का मन तो नही था इसी कारण से थोड़ा सा लिखकर ब्लॉगर में 'नोइंडेक्स' कर दिया। मुझे नापसन्दीदा लेखों को मैं नोइंडेक्स कर दिया करता हूँ। उससे गूगल सर्च कंसोल में वह पेज इंडेक्स नही होता।


नवरात्रि के गरबा चौक की तैयारी, जिसमें कुछ लोग फावड़ा चला रहे हैं और एक व्यक्ति सीरीज लाइटें लगा रहा है, रात के समय का दृश्य।

    दोपहर ढाई बजे तक ऑफिस का सारा कार्यक्रम चला। पुष्पा सेवा में गया है। श्राद्ध के दिनों में मुम्बई से भी लोग सायकल लेकर 'माता ना मढ' आशापुरा माताजी के दर्शन हेतु आते है। और सौराष्ट्र में राजकोट, जामनगर, और मोरबी के ज्यादातर लोग पैदल दर्शन करने आते है। कच्छवासी भी पैदल यात्रा करते है। इन पैदल यात्रियों की सुविधा हेतु 'सेवा केम्प' लगाए जाते है। और इन बारे में पिछले अपने कईं लेखों में लिख चुका हूँ। हमारे यहां से जगन्नाथ मंदिर से दो ट्रक नारियल लेकर सेवा में गए थे। बड़े बड़े बेनर तले लोग अपने से बनती तमाम सेवा करते है, पैर दबाते है, मेडिकल फैसिलिटी, भोजन, नहाने के लिए, सोने के लिए केम्पस.. सब कुछ। लेकिन कईं ऐसे श्रद्धालु है, जो किसी भी केम्प की सेवा नही लेते, अपने खर्चे पर पहुंचते है। 


सेवा कैंप और आस्था की अनोखी मिसाल

    मैं जब गया था पैदल, तो मुझे याद है, हमने ज्यादातर पानी पैसे देकर ही पिया था। खाना भी भोजनालय में लिया था। तब तो वैसे कैम्प्स की संख्या बहुत कम हुआ करती थी। लोग तो तब भी बहुत ज्यादा थे। एक बार तो हम इसी लिए लंबी दूरी तक चल गए, क्योंकि हमें सोने के लिए कोई खाली कैम्प नहीं मिल रहा था। वैसे यह यात्रा थकान से भरी होती है, लेकिन हर कैम्प में बजते गरबा के भक्ति गीत से, लोग फिर भी झूमते हुए गरबा खेलते है। उन्हें खेलता देख, और पैदल यात्रियों में भी उत्साह भर जाता है। अच्छे भले शेठ, जिन्होंने फोरव्हीलर से नीचे कदम नही रखा, वे भी रोड पर खड़े हुए यात्रियों की आवभगत करते, और उन्हें खाना परोसते दिख जाते है। आशापुरा की शक्ति, और श्रद्धा ही है यह।


रूप-परिवर्तन और एक नई शुरुआत

    दोपहर को इतनी तेज धूप थी, कि घर पहुंचकर मुझसे खाना न खाया गया। मैं थोड़ी देर आराम करके खड़ा ही हुआ था, कि काफी दिनों बाद ख्याल आया, सर में अब डाई करवा लेनी चाहिए। प्रियम्वदा, मैंने अपनी दसवीं कक्षा पास की, तबसे ही मेरे सर में बाल सफेद होने लग गए थे। अपने शहर में बहुत सारे स्कूली छात्र सफेद बालों वाले है। पता नही, या तो यहां की क्षार वाली आबोहवा कारणभूत है, या फिर कोई और समस्या होगी। पीछले तीन-चार में तो सारा ही माथा सफेदी ले चुका है। वैसे पूरा सफेद नही। मुझे पसंद है वैसा ग्रे..! काले और श्वेत का मिश्रण। नाई भी अपनी कमाई के चक्कर मे कई बार कहता है कि डाई करवा लो। लेकिन मैं नही करवाता। सादगी कह लो या कंजूसी.. मैं ज्यादातर जैसा हूँ, वैसे ही रहना चाहता हूँ। फालतू की फिल्टरबाजी में नही पड़ता। 


नवरात्रि की तैयारी : कड़ी मेहनत और नए कौशल का विकास

    लेकिन कल से नवरात्रि है, और दीवाली भी आ रही है, तो घर पर खुद से ही डाई कर ली मैंने। दस-बारह मिनिट बाद सर धोया, और खुद को शीशे में देखा तो लगा जैसे शीशे में कोई और खड़ा है। खेर, उसके बाद सोचा बाइक भी धुलवा लू। लेकिन किस्मत से कोई भी वाशिंग वाला मिला नही। अब इस चक्कर मे टाइम पास करने के लिए पत्ते को कॉल करके मैंने कहा कि, मेरा गजे से मनमुटाव हो गया है, और मुझे अपनी चौक वाली नवरात्रि में नही जाना। फिर काफी देर तक पत्ते को फोन पर यूंही झगड़े की नकली कहानियां सुनाकर आखिर में कह दिया कि मजाक था.. लेकिन फिर पत्ता बरस पड़ा, गजा खाली फोकट में चिढ़ाता रहता है.. वगेरह वगेरह..! मैं घर आ कर, खुद से बाइक को थोड़ा थोड़ा पोछा मार लिया। शाम को शाखा थी। और उसके बाद नवरात्रि चौक की अधूरी तैयारियां। सीरीज़ लाइट्स लगाई, बड़े हेलोजन लाइट्स, और नवरात्रि का बेनर, गरबी का मंदिर, चौक की लेवलिंग, और गेट पर झंडियां..!


    लगभग बारह बजे तक फ्री हुए। काफी सारी भागदौड़ हो जाती है। सालों बाद हाथ मे फावड़ा लिया रात को। गरबी चौक का गेट लेवल करना था। लगभग ऐसी मेहनत नवरात्रि के समय ही हम करते है। ऐसे आयोजनों से हमे मैनेजमेंट से लेकर डेकोरेशन, और इलेक्ट्रिक लाइन से जुड़ी स्किल्स भी डेवेलोप हो ही जाती है। काफी कुछ नया सीखने मिलता है। काफी अनुभव भी मिलता है। ऐसी थकान महसूस करना भी अपने आप मे एक अनुभव है। जैसे कईं मिल चले हो, और फिर पैरों के तलवे ललकने लगे हो.. जैसे तलवों की नसों में उबाल हो उठा हो, नसों में जैसे समंदर की लहरों से उफान आए, और फिर लौट जाए..! 


    आज भी यही बातें थी प्रियम्वदा, और यह भी पेज नोइंडेक्स ही होगा।


    शुभरात्रि

    २१/०९/२०२५

|| अस्तु ||


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