"सोलर प्लेट्स से गरबी चौक तक – मेहनत, रिश्ते और नवरात्रि तैयारी | दिलायरी : 16/09/2025"

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सर्द होती रातें और शायरियों की बाढ़

    आज तो फँस गए प्रियंवदा ! आज लिखने का समय नहीं बचा है। आठ बज रहे है। और काम भरपूर था। न ही कोई विषय सोचने का अवसर मिला है, न ही कोई रील ने विचारमग्न किया है। २ दिन से रील में बस शायरियों की बाढ़ आयी हुई है। बड़ी गंभीर शायरियां। मौसम ऐसा है, कि मजेदार भी लगती है। धीरे धीरे रातें सर्द होती जा रही है। तो ग्राउंड में मैं बैठा हुआ होता हूँ, ठंडी हवाएं चलती है। और यह ह्रदयविदारक शायरियां.. 


"सोलर प्लेट्स सफाई, ऑफिस व्यस्तता और गरबी चौक की नवरात्रि तैयारियाँ – दिलायरी डायरी"

सुबह की मेहनत – सोलर प्लेट्स की सफाई

    आज का दिन सवेरा होते ही मुझे कुछ मेहनती लगा। सवेरे छह बजे जगा दिया गया था। और वो नया वाला दंडधारी पोछा में लाया था, उसके साथ पानी की बाल्टी दे दी गयी। बोले जाओ, बड़ा शौक है न तुम्हे.. आज सोलर प्लेट्स साफ़ करो..! आज पता चला, सवेरे सवेरे मैं जो ग्राउंड में कसरतें करता हूँ, वो तो कुछ भी नहीं इसके आगे। एक तो काफी लम्बी प्लेट्स, ऊपर से हाइट ज्यादा। मैं स्टूल लेकर भी नहीं पहुँच पा रहा था। वो पोछे का डंडा भी कम पड़ गया। बताओ.. अब इसके लिए लेडर का खर्चा और करना पड़ेगा। सोलर नहीं, आफत मोल ले ली मैंने। या उड़ता तीर.. 


ऑफिस का भागदौड़ भरा दिन

    आज तो ऑफिस पहुंचकर दिलायरी बस शेयर ही करनी थी। कल शिड्यूल तो कर ही दी थी मैंने। वो सब निपटाकर जो आज ऑफिस के कामो में व्यस्त हुआ हूँ, अभी अभी आठ बजे फ्री हुआ हूँ। ऊपर से यह श्राद्ध.. कभी उनके घर जाओ, कभी इनके.. और मेनू फिक्स है, पूरी, आलू की सब्जी, और खीर। खीर न हो तो चूरमा का लाडू। डेली दोपहर को बाइक उठाओ और निकल पड़ो। दोपहर को ऑफिस से निकला ही था, कि थोड़े दूर जाते ही एक बिल के लिए फोन आ गया। वापिस लौटना पड़ा। 


    कभी कभी क्या होता है, कि तुम्हे बड़ी जल्दबाजी है। लेकिन दूसरे लोग अनजाने में ही तुम्हे और देर करवाते रहते है। उनका इरादा नहीं होता है। लेकिन उनकी भी मजबूरी होती है। ऑफिस वापिस लौटते हुए मैं काफी लेट हो रहा था, फिर भी कुछ रिश्तेदारों ने इनको-उनके घर, और उनको-उनके घर छोड़ देने का काम सौंप दिया। और अपन ने तो मना करना सीखा नहीं कभी। साढ़े तीन बजे ऑफिस पहुंचा हूँ। 


किताबों की दुनिया – नया सस्पेंस

    वैसे कल रात से एक बुक पढ़नी शुरू की है। अंग्रेजी बुक का हिंदी संस्करण है। और उस बुक पर फिल्म भी बन चुकी है। हालाँकि अभी से नाम जाहिर नहीं करना चाहता। लेकिन उस फिल्म को मुझे गजे ने रिकमंड किया था। फ़िलहाल तेईस पन्ने पढ़ पाया हूँ, लेकिन काफी रोचक मालुम पड़ी मुझे। कोई भी कहानी कि शुरुआत से ही सस्पेंस बनने लगे, तो वह मुझे ज्यादा आकर्षित करती है। और फिर तो मेरा मन चाहता है, कि बाकी सारे काम छोड़, पहले इसे ही ख़त्म की जाए। बहुत कम पुस्तकों के साथ ऐसा होता है। 


अधूरी गुजराती पुस्तक और वादे

     पहले एक गुजराती बुक भी पढ़ रहा था, लेकिन उसे पूरी कर ही नहीं पाया। सच कहूं तो बुक तो मजेदार है। वार्ता संग्रह है। हर तीसरे पन्ने से नई कथा, नए पात्र.. लेकिन मुझे सारी ही कहानियां एक सी लगी। सब में एक जैसी ही प्रेम, वियोग, और त्याग.. आखिरकार मैंने पूरी नहीं की। फिर भी उसे देलेट नहीं की। किसी दिन समय मिला, और मन किया तो उसे पूरी जरूर से करूँगा। 


पीढ़ियों का अंतर और नई सोच

    रात के साढ़े ग्यारह बजे रहे है। वातावरण में एक सुनकार व्याप्त है। सिवा झींगुरों के कोई भी आवाज कहीं से भी नही उठ रही। अभी अभी गरबी चौक की सफाई करके लौटा हूँ। सारे लोग, सारे लड़के, अपने से जो बन पाए, वे सारे काम स्वतः कर रहे थे। जरूरत थी उन्हें बस एक दिशा देने की। गजा का विश्वास था, वह जीत गया। क्योंकि उन लड़को के आचार देखकर मैं सदैव से सोचता था, कि हमारा ग्रुप आखरी है, जो गरबी चौक और नवरात्रि आयोजन को संभालकर बैठा है। वास्वत में यह जेनरेशन गेप ही है। हमसे दस साल छोटे, हमसे वाकई अलग सोचते है। उनका द्रष्टिकोण अलग होता है। नवरात्रि मंडप को सजाने के लिए हम आजतक बम्बू खड़े करने के लिए हाथ से, गड्ढे करते थे। लेकिन यह अलग जनरेशन कहती है, मशीनों का इस्तेमाल करो, समय और ऊर्जा दोनो बचेगी। 


इलेक्ट्रिकल उलझनों में आनंद

    साफ सफाई में हम लोग अब थक जाते है। मैंने तो जितना वजनी काम था, वह सारा इस नई पीढ़ी को सौंप दिया। मैं अपना इलेक्ट्रिकल डिपार्टमेंट खोलकर अलग हो गया। मुझे यह वायरों की उलझन में ज्यादा मजा आता है। और अक्सर मैं इन उलझे हुए वायरों को सुलझाने में अपना ज्यादा समय और ऊर्जा खपा देता हूँ। फिर अंत मे थक-हारकर वहां एक नया कट लगाकर सारी उलझन सुलझाने का सामर्थ्य पाने का घमंड धारण कर लेता हूँ। वैसे भी अब धीरज का ज़माना नही। पहले फोकस (हेलोजन लाइट) आते थे, उनमें ट्यूब लगी होती थी। चालू होने में काफी धीरज मांगते। लेकिन उसके चालू होते ही, आज की यह नाजुक नववधू सी led की रोशनी शर्मा कर फिक्की हो जाती। 


दीमकों पर छापा और धूल से जंग

    प्रियम्वदा, बंद जगहों पर दीमक भी अपना आश्रय खोज ही लेती है। गरबी चोक का यह स्टोर रूम पूरा ही दीमकों ने अपने साम्राज्य में मिला लिया था। लेकिन आज हमने छापा मार दिया। उनके सारे मिट्टी के किले ध्वस्त हो गए, उन्हें गाजापट्टी करने का भी समय न मिला। मुझे डस्ट से एलर्जी है, अभी तक छींके मठार रहा हूँ। क्योंकि मैं भी शारीरिक श्रम कर सकता हूँ, यह दिखाने के लिए खाली हुए रूम में, जालों और दीमकों के गढ़ों के अवशेष सी मिट्टी, से भरपूर रजयुक्त कमरे में झाड़ू मारने लगा था। लेकिन कुछ ही देर में छींक ने मुझे विवश कर दिया उस रूम से बाहर निकलने को। और फिर चुपचाप अपना बल्ब-सीरीज़ और LED लाइट्स चेक करने के काम मे लग गया था।


    फिलहाल, पसीने से लथपथ होने पर अनुभव होता है, कि सवेरे फालतू में दौड़ लगाने जाते है लोग। ऐसा कोई महेनतभरा काम एक घंटे के लिए कर ले, तब भी स्वास्थ्य में अच्छा सुधार हो जाए।


शुभरात्रि

१६/०९/२०२५

|| अस्तु ||


प्रिय पाठक !

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