“दीवाली, बोनस और वर्दी वाले – दिलायरी : एक सच्ची दीपावली डायरी” || दिलायरी : 10/10/2025

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प्रियम्वदा, हार का भी एक किस्सा होता है

    प्रियम्वदा,

    कैसा लगता होगा जब आप किसी चीज के लिए बार बार कामना करो, उसे पाने का प्रयास करो, उसे पाने के लिए चाहे जितना नुकसान झेलना पड़े, वे सब कुछ सहकार भी, जब वो आपको ना मिले? "इतना भी गुमान ना कर अपनी जीत पे ऐ बेखबर, शहर में तेरी जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हैं.." थक हारकर आखिरकार ऐसी स्टोरी चढ़ानी पड़ती है..! और क्या हो सकता है? उ अमीरकवा के बड़बोले चचा को नोबल नही मिला..! कितने कर्मठ नेताजी है, कितनी तारीफ (टेरिफ) करते है सबकी.. फिर भी नही मिला उन्हें। यही होता है, हम लड़के है न.. हमारे साथ ऐसा ही होता है।


“गरबीचौक में रात के समय स्थानीय लोग वॉलीबॉल खेलते हुए – दीपावली की रोशनी में सजी गलियाँ, हँसी और अपनापन से भरा दृश्य।”

ऑफिस के उतार-चढ़ाव – कभी बहुत काम, कभी कुछ नहीं

    सवेरे जब ऑफिस आया, तो थोड़ा बहुत काम था। आजकल किसी किसी दिन तो बेहद काम होता है, और किसी दिन कुछ भी नही। किसी दिन स्ट्रेस से दिमाग फटने को हो आता है, तो किसी दिन दिमाग को कुछ काम ढूंढकर देने पड़ते है। दीवाली का सीजन है, यही सब चलेगा। इन दिनों में ऐसे ऐसे लोग प्रकट होते है कि बात जाने दो.. (अरे मैं बात जाने दूंगा तो लिखूंगा क्या?) आज फिर एक वर्दी आयी थी। इक्यावनसौ ले गयी। मुझे तो यह समझ नही आता, इन लोगो को शर्म नही आती होगी? किस मूंह से दिवाली मांगते है? न कभी इनका काम पड़ता है हमे। और न ही यह लोग हमारा काम कर सकते है। लेकिन हम भी फिर प्रोटेक्शन मनी समझकर दे देते है। वर्दी भी तो कितनी सारी है, तरह तरह की वर्दी। इनका कोई हक तो नही बनता, फिर भी चले आते है।


वर्दी वाले और उनकी दीवाली “शुभकामनाएँ”

    यहां ऐसी हजारो कम्पनियां है। सबसे पांच हजार अगर मिलते हो, आंकड़ा कहा जाकर रुकता होगा? वो भी बिना मेहनत का पैसा। बस कथित खुशी के नाम पर। यह वर्दी वाले बोलते तो है, कि जो आपका मन हो दे दीजिए। लेकिन ग्यारहसो में मूंह फुला लेते है। कहते है, एक शून्य और जोड़ा जाए इसमें। एक तो इन लोगो की व्यस्तता भी वंदनीय है। फोन पर बहुत बातें करते रहते है। ताकि यहां दीवाली की रकम में नेगोसिएशन न करना पड़े। एक बात और मैंने नोटिस की है। उदाहरण के लिए कहूँ तो सालभर में लगभग कितने ही गौशाला के नाम पर चंदे जाते है। लगभग उन चंदो का जोड़ लगाकर, स्टाफ की संख्या से भाग देते है, तो लगभग सारे स्टाफ को एक एक एक्स्ट्रा पगार मिल सकती है।


बोनस का सिस्टम और सोनपापड़ी का शाश्वत डिब्बा

    दीवाली पर हर जगह अलग अलग सिस्टम नोटिस की है मैंने। कहीं पर पूरा पगार बोनस दिया जाता है। फिर आते है हाफ पगार बोनस पाने वाले। फिर आते है इक्यावन सौ वाले, उनके बाद इक्कीससौ वाले, उनके बाद ग्यारहसौ वाले। फिर आते है सिर्फ सोन पापड़ी के डिब्बे वाले। हमारे यहां सालों से यह सोनपापड़ी का डिब्बा चलता आ रहा है। जिसे हम ले लेते है, और किसी राह चलते को दे देते है। कईं बार तो यह डिब्बा इस तरह लेते है, जैसे हमें इस डिब्बे की जरूरत नही है, लेकिन तुम्हारा मन रखने के लिए ले रहे है। मैं और पुष्पा यही करते है। सालों से हमारे यहां तो यही रिवाज है, इक्कीस सौ रुपये और सोनपापड़ी का डिब्बा। आज के समय महीने पेट्रोल इससे ज्यादा का लग जाता है। न ही इक्कीससो में अच्छी कपड़े की जोड़ी आती है, और न ही कोई ढंग की खरीदारी.. हाँ! मिठाई खरीद सकते है, लेकिन उसमें भी आजकल नकली और बनावटी मिलावट ज्यादा हो रही है।


दूसरों के गिफ्ट ज़्यादा, अपनी कंपनी के कम

    मैं अपनी दिवाली की बात करूं यदि, तो अब मुझे अपनी कंपनी से ज्यादा गिफ्ट्स, दूसरी कंपनीज़ वाले दे देते है। जिन्हें हमारी ज्यादा जरूरत पड़ती है, वे लोग अचूक याद रखते है। पिछली बार पुष्पा के पास तीन टिफ़िन के डिब्बे दीवाली गिफ्ट में आए थे। एक बार की बात है, मैं और पुष्पा मार्किट में थे। एक इलेक्ट्रिकल स्पेरपार्ट्स वाले का फोन आया पुष्पा पर। कि दीवाली गिफ्ट ले जाओ। अब समस्या यह हो गयी, कि पुष्पा मुझे भी साथ मे ले गया। उस बेचारे को दो डिनर सेट देने पड़े, एक पुष्पा को, एक मुझे। कईं बार ऐसा हो जाता है। पिछली दीपावली पर सोनपापड़ी के डिब्बे कम पड़ गए हमारे। फिर हमने आजबाजू की दुकानों में से थे उतने उठा लिए। सोनपापड़ी और दीवाली का कोई पुराना नाता है। 


गरबीचौक की वॉलीबॉल और नई खेलभावना

    आजकल हम लोग वॉलीबॉल खेलते है। अपने गरबीचौक मे चहलकदमी रखना मुख्य उद्देश्य है। मैंने कभी वॉलीबॉल खेला नही था। लेकिन दुसरो को खेलता देखकर लगता था, यह तो बहुत आसान है। लेकिन जब से खेलना शुरू किया है, तब से समझ आ रहा है, इसमें सिर्फ सर्विस करनी ही आसान है। बाकी सब मुश्किल है। इतने छोटे से ग्राउंड में भी कितनी त्वरा और चपलता रखनी पड़ती है। ऊपर से जब वह तेज गति में लहराती हुई बॉल आती है, तो उसे अपने पाले में गिरती रोकने में, हाथ चोटिल जरूर होते है। लेकिन है मजेदार खेल। हम दो-तीन लोग बड़े है, बाकी ज़ेनज़ी प्रजाति के है। लेकिन पूर्ण सहकार की भावना के साथ, वे हमें 'कच्चा निम्बू' समझकर अपने साथ खिलाते है। उन्हें पता है, कि सामने से आती हुई बॉल यदि मेरे ही पास आ रही है, तो ही मैं थोड़ी सी हिलचाल दिखाऊंगा। अगर मुझसे दो फुट की दूरी पर है, तो वह बॉल मैं नही छूता। इस लिए वे लोग अपनी पोज़िशन छोड़कर भी मेरे तरफ आते बॉल को संभाल लेते है।


उम्र और खेल – कच्चा नींबू लेकिन दिल से खिलाड़ी

    क्या करे, अब इस मसमोटी काया के साथ ज्यादा भागदौड़ भी तो नही होती। यही हाल सामने के पक्ष में है। वहां भी एक मेरी केटेगरी का होता है। मैं उसे पास कर देता हूँ, यह सोचकर, कि वह भी मेरी तरह ज्यादा हिलडुल नही पाएगा, और हमारी टीम को पॉइंट मिल जाएगा। रात को खेलते खेलते ऐसे ही समय देखा, तो पता चला बारह बज गए है। अब रात के बारह बजे कैसी दिलायरी? मैं तो गरबीचौक में आया ही दिलायरी लिखने था। लेकिन यह वॉलीबॉल के चक्कर मे भूल ही गया था। यूँ तो अभी तक नवरात्रि के खंभे यूँही खड़े है। उन्हें उतार लेना था रात को। गजे का स्पष्ट मत था, कि शाखा की समाप्ति पर हम गरबी में लगी हुई सीरीज़, खंभे और लाइट्स डेकोरेशन उतार लें। लेकिन लड़के (वही ज़ेनज़ी) तैयार न हुए। और खेलने में लग गए। और हम भी फिर जुड़ गए।


    आलस तो नही कह सकते इसे, आलस होती तो वॉलीबॉल भी न खेलते। यह थी नई नई खेलभावना। खेलना किसे पसंद न आए? थोड़ी देर खेलकर, थोड़ी देर विश्राम लेने बैठ जाते है हम.. (हमसे मतलब है हमारी उम्र वाले) यह ज़ेनज़ी तो थकती नही है। शादी नही हुई है न इनकी.. शादी के बाद अच्छे अच्छे हांफ जाते है। वो हमारा पत्ता.. अभी साल हुआ नही है, और शिकायतें करने लगा है। जबकि शादी का पहला साल तो बड़ा मजेदार होता है। वो नया नया एक साथ रहने का अनुभव ही अलग होता है। लेकिन जैसे कोई नई मशीन पुरानी होने पर घरराने लगती है, वैसे ही यह रिश्ता भी जैसे जैसे पुराना होता जाता है, यहां भी घरराने का स्वर बढ़ता जाता है।


    छोड़ो, आज की दिलायरी इतनी ही रखो,

    शुभरात्रि

    १०/१०/२०२५

|| अस्तु ||


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    हर चोट, हर प्रतीक्षा, हर मौन के पीछे एक गहरा अर्थ छिपा होता है — यही है सहन की कला।

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    कुछ चीज़ें हमें सिखाने आती हैं, पाने के लिए नहीं। यह पोस्ट उसी ‘खोने-पाने’ के मीठे दुख की गवाही देती है।


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